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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतशुरुआती उपग्रह चित्रों में जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट कैंप को हुए संभावित नुकसान की झलक

शुरुआती उपग्रह चित्रों में जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट कैंप को हुए संभावित नुकसान की झलक

दिप्रिंट को प्राप्त तस्वीरों में जैश शिविर में छत पर चार गहरे धब्बे, गायब टेन्ट और ज़मीन पर जलने के निशान दिखते हैं, पर भवनों और दीवारों को नुकसान नहीं.

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नई दिल्ली: पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग कैंप के दिप्रिंट को प्राप्त शुरुआती उपग्रह चित्रों में वहां इमारत की लोहे की शीट वाली छतों पर चार काले धब्बे नज़र आते हैं. इस कैंप को भारतीय वायुसेना ने 26 फरवरी को हवाई हमले का निशाना बनाया था.

इससे इस बात की संभावना के संकेत मिलते हैं कि भारतीय वायुसेना के स्मार्ट बमों ने संभवत: लोहे की शीट वाली छतों को भेद दिया था, जिन्हें नई शीटों की सहायता से मरम्मत कर नए सिरे पेंट कर दिया गया है.

परंतु जैश कैंप स्थित भवनों के ढांचों और दीवारों को शायद उतना नुकसान नहीं पहुंचा है जितना कि मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी बता रही है.

कर्नल विनायक भट/दिप्रिंट

उपग्रह चित्रों से ये भी जाहिर होता है कि हमले से पहले वहां नजर आने वाले टेन्ट अब गायब हैं.

हमले से पहले की एक तस्वीर में वहां 17 मी. X 6 मी. आकार के दो बड़े टेन्ट थे. लेकिन 4 मार्च को ली गई नवीनतम तस्वीरों में ये टेन्ट गायब हैं. इसका यही मतलब है कि या तो उन्हें हटा दिया गया या वे भारतीय वायुसेना की बमबारी में ध्वस्त हो गए.


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तस्वीरों से इतर बात करें, तो भारत विमानों से जैश कैम्प पर हमला कर पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपना इरादा जताने में कामयाब रहा है कि भारत की ज़मीन पर आतंकवादी हमले की स्थिति में वह पाकिस्तान के भीतर घुसकर जवाब दे सकता है, और देगा भी.

हाई रेजोल्यूशन वाली ये तस्वीरें भारतीय हमले के पांच दिन बाद, 4 मार्च को ली गई हैं.

‘सबसे बड़ा ट्रेनिंग कैंप’

26 फरवरी के हमले के बाद वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों और रक्षा सूत्रों ने बताया था कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के मनसेहरा जिले के बालाकोट स्थित जैश के शिविर को निशाना बनाया है.

विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा था कि ‘भारत ने बालाकोट में जैश के सबसे बड़े प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाया है. इस ऑपरेशन में बड़ी संख्या में जैश के आतंकवादी, प्रशिक्षक, सीनियर कमांडर और फिदायीन हमलों की ट्रेनिंग पा रहे जिहादियों के समूहों का खात्मा कर दिया गया. बालाकोट का यह शिविर जैश प्रमुख मसूद अज़हर के जीजा मौलाना युसूफ़ अज़हर (उर्फ उस्ताद गौरी) के नेतृत्व में चलाया जा रहा था.’


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गोखले ने हमले का निशाना बने शिविर की अवस्थिति का ब्योरा देते हुए उसे ‘असैनिक आबादी से बहुत दूर घने जंगलों में पहाड़ी की एक चोटी पर स्थित’ बताया था. उनसे मिली सूचना के आधार पर ये माना गया था कि हमले का निशाना जब्बा टॉप नामक पहाड़ी की चोटी पर स्थित जैश के शिविर को बनाया गया था, जो बालाकोट और मनसेहरा के मध्य स्थित जब्बा कस्बे के पास स्थित है.

यह शिविर नियंत्रण रेखा से करीब 65 किलोमीटर दूर है और माना जाता है कि हमले के वक़्त वहां कोई 200-300 आतंकवादी मौजूद थे. सर्वप्रथम दिप्रिंट ने यह खबर दी थी कि जैश का यह शिविर करीब 50 हेक्टेयर इलाके में फैला हुआ है, और यह नज़र रखने के अधिकांश खुफिया साधनों की पहुंच से बहुत दूर है.

चार काले धब्बे

पहले उपग्रह चित्र से संकेत मिलता है कि जब्बा टॉप स्थिति अधिकांश निर्माण अब भी सुरक्षित मौजूद हैं. लेकिन मुख्य भवन के ऊपर चार गहरे धब्बे दिख रहे हैं, जो संभवत: इस बात को जाहिर करते हैं कि छत में लोहे की नई शीटें लगाकर उन्हें रंगा गया है.

खबरों के अनुसार भारतीय वायुसेना ने लक्ष्यों को बेधने के लिए इज़रायल से प्राप्त 1,000 किलोग्राम वजनी स्पाइस-2000 प्रिसिजन-गाइडेड बमों का इस्तेमाल किया था. ये बम लोहे की शीट की छत वाले इस तरह के भवनों के धुर्रे बिखेर सकते हैं.

चार गहरे धब्बों से यही लगता है कि भारतीय वायुसेना ने संभवत: छोटे आकार के स्पाइस-250 बमों का इस्तेमाल किया था, जिन्होंने छत में चार जगहों से भीतर दाखिल होने के बाद अंदर फट कर नुकसान पहुंचाया होगा.


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विस्फोट के बाद विखंडित होने वाले आयुधों से लैस स्पाइस-250 बमों को चरमपंथियों और जैश के आतंकियों की रिहाइश के लिए इस्तेमाल टेन्टों और झोपड़ियों जैसे अस्थाई प्रकार के लक्ष्यों के खिलाफ बेहद घातक माना जाता है.

हालांकि तस्वीर से पूरी पहाड़ी पर किसी अन्य इमारत को नुकसान पहुंचने का संकेत नहीं मिलता है. पश्चिमी देशों के कतिपय विशेषज्ञों के अनुसार ‘कम ऊंचाई से उच्च गति से गिराए गए गैर-स्मार्ट बम भी अपेक्षाकृत कम प्रयास में पहाड़ी की उस चोटी को नेस्तनाबूद कर देते हैं.’

तस्वीर से ये भी जाहिर होता है कि भारत ने शायद ‘फ्यूल एयर’ विस्फोटकों का भी इस्तेमाल किया होगा जो कि स्पाइस बमों के साथ लगाए जा सकते हैं.

आग से जले स्थल

तीसरी तस्वीर में जब्बा टॉप पहाड़ी पर जलने के निशान दिखते हैं. ये निशान किसी 1,000 किलोग्राम के बम से बनने वाले गड्ढों के अनुरूप नहीं हैं.

जलने के ये निशान बहुत छोटे आकार के हैं, और वास्तव में मानव निर्मित दिखते हैं, ना कि बम से बने गड्ढों जैसे. भागते आतंकवादियों पर भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के दूसरी या तीसरी बार धावा बोलने के दौरान प्यूल विस्फोटकों वाले बम गिराए जाने पर आग लगने के बड़े निशान दिख सकते थे.

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कर्नल विनायक भट/दिप्रिंट

तस्वीर में नज़र आ रहे गड्ढे संभवत: हल्की खुदाई और जलाए जाने की गतिविधियों के अनुरूप अधिक लगते हैं, जो शायद पाकिस्तानी सेना द्वारा जल्दबाज़ी में की गई कार्रवाई हो. ज़मीन की तस्वीरें भी अस्पष्ट हैं, जहां टूटी टहनियां हैं, पर आसपास कहीं पेड़ के ऊपरी हिस्से गिरे नहीं दिखते.

इस रिपोर्ट को और उपग्रह चित्र प्राप्त होने और उनका विश्लेषण किए जाने के बाद अपडेट किया जाएगा.

(कर्नल विनायक भट (सेवानिवृत्त) ने भारतीय सेना में उपग्रह खुफिया सूचनाओं पर काम किया है, और वे खास तौर पर सिर्फ दिप्रिंट के लिए लिखते हैं.)

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