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Monday, 25 November, 2024
होमदेशपूर्व CJI गोगोई ने 3 साल में राज्यसभा में 0 प्रश्न पूछे, 0 बहस में शामिल रहे; 29% उपस्थिति दर्ज की

पूर्व CJI गोगोई ने 3 साल में राज्यसभा में 0 प्रश्न पूछे, 0 बहस में शामिल रहे; 29% उपस्थिति दर्ज की

न्यायमूर्ति नज़ीर को हाल ही में राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की पोस्टिंग को सुर्खियों में ला दिया है. इस संबंध में न्यायमूर्ति गोगोई का प्रदर्शन प्रभावशाली से कम रहा है.

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नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में रविवार को अपनी नियुक्ति के साथ न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अशोक भूषण के साथ सेवानिवृत्त होने के बाद की पोस्टिंग लिस्ट में शामिल हो गए हैं.

तीन न्यायाधीश पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था. इस फैसले के तहत अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि का स्वामित्व राम मंदिर ट्रस्ट को सौंप दिया गया था.

जुलाई 2021 में सेवानिवृत्त होने वाले न्यायमूर्ति अशोक भूषण को नवंबर 2021 में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष बनाया गया था. गोगोई, जिनका कार्यकाल नवंबर 2019 में पूरा हुआ, उन्हें मार्च 2020 में राज्यसभा का सदस्य मनोनित किया गया. जस्टिस नज़ीर को रिटायरमेंट के 40 दिन बाद अब पोस्टिंग मिल गई है.

सेवानिवृत्ति के बाद की पोस्टिंग की बात करें तो, जस्टिस गोगोई तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में सबसे लंबे समय तक एक पद पर रहने वाले व्यक्ति हैं, लेकिन संसद में पूर्व सीजेआई का प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं रहा है.

राज्यसभा सांसद ने सांसदों की 79 प्रतिशत औसत उपस्थिति की तुलना में तीन वर्षों में केवल 29 प्रतिशत की औसत संसदीय उपस्थिति दर्ज की है.

उच्च सदन में अपनी नियुक्ति पर गोगोई ने एक समाचार चैनल से कहा था, “मैंने इस दृढ़ विश्वास के कारण राज्यसभा के लिए नामांकन की पेशकश स्वीकार कर ली है कि विधायिका और न्यायपालिका को किसी समय राष्ट्र निर्माण के लिए मिलकर काम करना चाहिए. संसद में मेरी उपस्थिति विधायिका के समक्ष न्यायपालिका के विचारों को प्रस्तुत करने का एक अवसर होगी.”

दिसंबर 2021 में गोगोई ने अपने संस्मरण जस्टिस फॉर द जज में पोस्टिंग लेने के अपने फैसले का फिर से बचाव किया था, यह समझाते हुए कि उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के नामांकन स्वीकार कर लिया था क्योंकि वह न्यायपालिका और उत्तर-पूर्व क्षेत्र जहां से वे संबंध रखते हैं- के मुद्दों को उठाना चाहते थे.

संविधान में प्रावधान है कि भारत के राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 लोगों को राज्यसभा में नामांकित कर सकते हैं.

लेकिन अपने नामांकन के बाद से तीन साल और आठ राज्यसभा सत्रों में पूर्व CJI ने उच्च सदन में एक भी प्रश्न नहीं पूछा है, न ही उन्होंने किसी चर्चा में भाग लिया है और न ही संसद के रिकॉर्ड के अनुसार किसी निजी सदस्य का बिल पेश किया है.

हालांकि, दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए गोगोई से फोन पर संपर्क किया, लेकिन इस खबर के पब्लिश किए जाने तक उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.


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‘मैं वहां अपनी मर्जी से जाता हूं’

राज्यसभा के रिकॉर्ड के मुताबिक, गोगोई 13 फरवरी तक 10 दिनों में से छह दिनों के लिए चल रहे बजट सत्र में शामिल हुए हैं. पिछले बजट सत्र में वे 29 में से सिर्फ सात दिन सदन में रहे थे.

पिछले कुछ सत्रों में गोगोई की उपस्थिति में वृद्धि देखी गई है, लेकिन कानून बनाने में उनकी ओर से कोई महत्वपूर्ण हस्तक्षेप नहीं हुआ है.

अन्य सदस्यों के विपरीत गोगोई ने वर्षों से उच्च सदन में तारांकित या अतारांकित कोई प्रश्न नहीं पूछा है, जबकि तारांकित प्रश्न वे होते हैं जिनमें उत्तर मौखिक रूप से दिए जाते हैं, अतारांकित प्रश्न के उत्तर लिखित दिए जाते हैं.

उनके खाते में कोई ‘विशेष उल्लेख’ भी नहीं है, जो सांसदों द्वारा सार्वजनिक महत्व के मामलों पर किया जाता है.

पूर्व सीजेआई ने किसी भी बहस में भाग नहीं लिया है, जबकि सांसदों द्वारा ऐसी भागीदारी का राष्ट्रीय औसत 56.9 है.

अगर हम इसकी तुलना एथलीट पी.टी. उषा के संसद में प्रदर्शन से करें. उन्हें जुलाई 2022 में नामांकित किया गया था और तीन सत्रों में उनकी औसत उपस्थिति 91 प्रतिशत थी. उन्होंने आठ प्रश्न भी पूछे हैं और तीन सत्रों में तीन वाद-विवाद में हिस्सा भी लिया है.

अपने पद पर रहते हुए तीन साल, विपक्षी सदस्यों के नारेबाजी के बीच शपथ लेने वाले पूर्व सीजेआई ने अभी तक न्यायपालिका या उत्तर-पूर्व से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया है.

मार्च 2022 में राज्यसभा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की थी, लेकिन गोगोई ने हिस्सा नहीं लिया. 2021 के अंत में उच्च सदन ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक पर चर्चा की थी. इस दौरान कई सदस्यों ने न्यायपालिका से संबंधित सामाजिक विविधता जैसे मुद्दों को हरी झंडी दिखाई, लेकिन यहां भी पूर्व सीजेआई ने भाग नहीं लिया.

दिसंबर 2021 में एक इंटरव्यू में उन्होंने यह कहते हुए राज्यसभा से अपनी अनुपस्थिति का बचाव किया था कि “कोविड के कारण, डॉक्टर की सलाह पर मैं सत्र में हिस्सा नहीं ले रहा हूं”.

उन्होंने यह भी कहा था, “मैं वहां अपनी मर्जी से जाता हूं. मैं अपनी मर्जी से बाहर आता हूं. मैं किसी पार्टी व्हिप द्वारा शासित नहीं हूं. मैं एक स्वतंत्र सदस्य हूं.”

राष्ट्रपति द्वारा उच्च सदन में उनके नामांकन के तुरंत बाद गोगोई को जुलाई 2020 में विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति में भी नियुक्त किया गया था. 2021 में उन्हें संचार और आईटी पर स्थायी समिति में रखा गया.

समिति के सूत्रों ने कहा कि गोगोई को सितंबर 2022 में विदेश मामलों की समिति में फिर से नामित किया गया था, लेकिन “इसकी सभी नौ बैठकों में वे शामिल नहीं हुए”.

राज्यसभा के रिकॉर्ड के अनुसार, संचार समिति के हिस्से के रूप में भी गोगोई ने आठ महीने तक सेवा की और वे एक भी बैठक में शामिल नहीं हुए.

इस दौरान समिति ने “नागरिक अधिकारों की रक्षा और सामाजिक और ऑनलाइन समाचार प्लेटफार्मों के दुरुपयोग को रोकने” जैसे मामलों पर चर्चा की, जिसमें गोगोई की भागीदारी महत्वपूर्ण हो सकती थी.

लोकसभा सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन, जो विदेश मामलों की स्थायी समिति के सदस्य भी हैं, ने दिप्रिंट को बताया, “उन्होंने (गोगोई) किसी बैठक में हिस्सा नहीं लिया है. मनोनीत सदस्यों को सामान्य सांसदों के समान विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं और उन्हें एक सांसद के रूप में अपना योगदान देना चाहिए. उनका एक विशिष्ट करियर रहा है.”

एक अन्य मनोनीत राज्यसभा सदस्य गुलाम अली ने दिप्रिंट को बताया कि निर्वाचित और मनोनीत सदस्य समान विशेषाधिकारों का आनंद लेते हैं. उन्होंने कहा, “मैंने समिति की बैठकों में भाग लेने के अलावा धन्यवाद प्रस्ताव में भी भाग लिया है.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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