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Monday, 18 November, 2024
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महिलाओं के प्रति नफरत, जिहाद,- इमरान खान की निजी जिंदगी बताती है कि पाकिस्तान किस दिशा में जा रहा है

इस पतन के लिए इमरान को भले दोष दिया जा सकता है, लेकिन आज वही पाकिस्तान के सबसे करिश्माई नेता हैं और चुनाव में वे मुल्क की बिगड़ी माली हालत को मुद्दा बनाकर फायदा उठा सकते हैं.

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उनकी एक पूर्व बीवी ने जिन्हें “कुछ कमअक्ल” आदमी कहा था जिसकी दिलचस्पी केवल क्रिकेट में थी, उन इमरान खान को अपना पहला आध्यात्मिक अनुभव तब हुआ था जब वे मात्र 14 साल के थे और उनकी मां की धार्मिक सलाहकार पीर जी इबादत करने और सलाह देने आई थीं. बाद में इमरान ने याद करते हुए बताया कि “वे अपनी तीन-चार शिष्याओं के साथ जमीन पर बैठी थीं, उनका सिर चादर से ढका था. उन्होंने कभी चेहरा उठाकर मेरी तरफ नहीं देखा, और न मैं उनका चेहरा देख पाया था.” हालांकि पीर जी ने यह कहकर हैरत में डाल दिया था कि इमरान क़ुरान की क्लास से गायब रहते हैं, लेकिन यह भी कहा था यह लड़का “आगे ठीक हो जाएगा”.

हालांकि इमरान को तब नहीं मालूम था कि वे जिस हिजाब पर गहरी नज़र डाले हुए थे वह उनकी वैचारिक यात्रा और उनकी नियति की शुरुआत थी.

क्रिकेटर से वजीरे आज़म बने इमरान ने “अल्लाह के जिस शहर” का निर्माण करने का वादा किया था वह उनके उठाए तूफानों के थपेड़ों से ही चार महीनों से बिखर रहा है. पाकिस्तान की सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की ओर से मिलने वाले उस राहत-पैकेज को बचाने में जुटी है जिसे इमरान ने अपनी सत्ता के आखिरी महीनों में गंवा दिया था. जिन जिहादियों को उन्होंने संरक्षण दिया था वे आज सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर रहे हैं.

इस पतन के लिए इमरान को भले दोष दिया जा सकता है, लेकिन आज वही पाकिस्तान के सबसे करिश्माई नेता हैं, और उन्हें भरोसा है कि वे समय से पहले चुनाव करवाने के लिए जो ज़ोर दे रहे हैं उसमें सफल हो जाएंगे और चुनाव में वे मुल्क की बिगड़ी माली हालत को मुद्दा बनाकर फायदा उठा सकते हैं.

पाकिस्तान किस दिशा में बढ़ रहा है, यह समझने के लिए इमरान खान की जटिल अंदरूनी दुनिया को जानना बहुत जरूरी है. पत्रकार आइज़क चोटिनर को पिछले सप्ताह दिए इंटरव्यू में स्त्री-द्वेष और जिहाद के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा वह युवाओं की एक पीढ़ी में धर्म को लेकर चिंताओं और सेक्स को लेकर विक्षिप्तता को ही उजागर करता है. दुनिया ने उन्हें तकलीफ के सिवा कुछ नहीं दिया. इमरान खान इस बात के जीते-जागते सबूत हैं कि जन्नत मुमकिन है.

अंग्रेज़ियत और इस्लाम

स्कूली शिक्षा लेने के लिए इमरान इंग्लैंड गए लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से वह उनके लिए यातनादायक सिद्ध हुआ. “मैंने पाया कि अंग्रेज़ो से दोस्ती करना लगभग नामुमकिन था.” 2011 में आई अपनी किताब “पाकिस्तान : अ पर्सनल हिस्टरी’ में उन्होंने लिखा, “अंग्रेजों की तहजीब के बारे में हमने अंग्रेज़ स्कूल मास्टरों, किताबों, कहानियों, अपने वालिदों की पीढ़ी से सुने किस्सों से जो कुछ जाना था वह सब सेक्स, ड्रग्स, और रॉक-ऐंड-रोल की आंधी में खो गया था.” इमरान ने कबूल किया है कि हालांकि वे अपनी ‘मुस्लिम पहचान’ की बहुत परवाह नहीं करते थे मगर उससे “जुड़े जरूर” थे. दूसरी तहजीब के आकर्षण से संघर्ष बराबर जारी रहा.

जाने-माने व्यवसायी विक्रम मेहता के साथ इमरान भावी प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो “हर इतवार को लेडी मारग्रेट हॉल के उनके लॉज जरूर जाते थे, जहां बेनज़ीर पूरे दोपहर खुल कर चीज़ और स्नैक्स परोसती थीं”.

पूर्व प्रेमिका, एमटीवी की प्रेजेंटर, लेखिका और इस्लाम धर्म अपनाने वाली मशहूर हस्ती क्रिस्टिएन बैकर ने ने अपने संस्मरण में बताया है कि प्रचलित तहजीब और इमरान को विरासत में मिली तहजीब के बीच खींचतान बड़ी रंगीन हुआ करती थी.

बैकर ने याद किया है, “मैं पीली बटरकप एज़्जेडाइन आलिया मिनी ड्रेस और हल्के समर कोट में उनके फ्लैट पर गई थी. वे हलकी नीली कमीज और नेवी सूट पतलून में जबरदस्त दिख रहे थे. इमरान ने मेरा अभिवादन किया लेकिन मुझे हैरत में डालते हुए कहा कि क्या मैं पूरी शाम वह कोट पहने रह सकती हूं? उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी तहजीब में औरतें अपना जिस्म नहीं दिखातीं. वे, या मर्द भी शालीन किस्म की पोशाक पहनते हैं. घर के अंदर तो बीवियां खुले किस्म के कपड़े पहनती हैं, लाल लिपस्टिक लगाती हैं मगर घर से बाहर वे पुरातन और संजीदा बनकर ही निकलती हैं.” बैकर का कहना था कि पारंपरिक संस्कृति के प्रति इस चिंता ने इमरान को यह पेशकश करने से नहीं रोका कि वे दोनों साथ रहें.


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फिर से मुसलमां

पीर जी से मुलाक़ात के करीब 50 साल बाद इमरान ने एक ऐसी महिला से शादी की, जो उनकी मां की चादर ओढ़े आध्यात्मिक गुरु से काफी मिलती-जुलती थी. 1974 में जन्मी यह महिला पांच बच्चों की मां थी और मांसभक्षी जिन्नों बुशरा मानेका की मालकिन थी और अपने शिष्यों में पिंकी पीरनी के नाम से जानी जाती थी. ब्रिटिश टेलीवीजन की प्रेजेंटर रेहम खान से तलाक, और चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद इमरान दक्षिण पंजाब में इस अध्यात्मवादी महिला के घर जाने लगे थे. उसने इमरान से कहा था कि उनकी सत्ता के रास्ते में कोई काला जादू रोड़ा बन रहा है.

इमरान की मित्र अनु चौधरी के मुताबिक, इस काले जादू की काट यह थी कि इमरान बुशरा की एक बेटी से शादी करें. इमरान ने उम्र का बड़ा फासला बताकर इनकार कर दिया तो बुशरा ने खुद को दुलहन के रूप में पेश किया. इमरान ने बुशरा से तुरंत शादी कर ली, और जल्दी ही उससे दूसरी शादी की क्योंकि पहली शादी, इस्लामी कानून के मुताबिक तलाक के बाद निर्धारित समय बीतने से पहले की गई थी.

इस पूरी कहानी में फ्रायड के मनोविज्ञान का असर भी दिखता है. अपनी मां को इमरान इस बात का श्रेय देते हैं कि उन्होंने उन्हें “सुरक्षा का पूरा एहसास” दिया. “मेरे ऊपर उनके पक्के भरोसे ने मेरी हौसला अफजाई की.” ऐसे शब्द उन्होंने अपनी ज़िंदगी में आए किसी और महिला के लिए नहीं कहे. आध्यात्मिक दिशानिर्देश लेने की लोकप्रथा से जुड़ा उनका खुदा भी उनकी मां की आस्थाओं की देन था. उनके अब्बा धार्मिक वृत्ति के जरूर थे मगर उन्हें पीरों की कभी जरूरत नहीं महसूस हुई.

बैकर के साथ ‘डेटिंग’ करते हुए ही इमरान ने इस्लामी धर्मशास्त्रों में गहरी दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी थी. वे कहती हैं, “केवल व्यक्तिगत विचारों के लिए उनके पास वक़्त नहीं था, खुदा की बातें उनके लिए महत्व रखती थीं.”

कई नये आस्थावानों की तरह क्रिकेट स्टार इमरान भी धर्मांतरण के प्रति उत्साह रखने लगे. बैकर याद करती हैं, “एक दिन हम बर्फीले ग्लेशियर पर टहल रहे थे. तभी इमरान ने मुझसे एक सवाल किया— ‘तुम्हारे विचार से, जीवन का मकसद क्या है?’ उन्होंने कहा ज़िंदगी एक इम्तहान है, और इसके साथ ही यह अनंत में हमारी अगली ज़िंदगियों का बीजक्षेत्र है.“ लंदन की सोशलाइट जेमीमा गोल्डस्मिथ से शानदार शादी, और फिर दर्दनाक तलाक के बाद इमरान ने ज्यादा उपयुक्त दुलहन से शादी करके अपनी साख बचाने की उम्मीद की थी. रेहमान-इमरान निकाह ने फैशन पत्रिकाओं में धूम मचाई लेकिन पब्लिक रिसेप्शन ठंडा-ठंडा रहा.

दिसंबर 2014 में पेशावर के स्कूल में आतंकी हमले में मारे गए 132 बच्चों के परिवार जबकि शोक माना रहे थे तब शादी समारोह करने के लिए इमरान की काफी आलोचना की गई. वह जोड़ा जब पेशावर आया था तब मारे गए एक बच्चे की मां ने गुस्से में कहा था : “मेरे बच्चे के लिए कुछ करने की जगह तुम शादी करने में लगे थे.”

आरामतलब जिहादी

जिहाद में इमरान की दिलचस्पी लंदन के रीजेंट स्ट्रीट पर पांचतारा कैफे रॉयल होटल में तभी सामने आई थी जब वे 1983 में अफगान मुजाहिदीनों में दिलचस्पी लेने लगे थे. यह जिहाद के प्रति उनके आजीवन समर्थन की शुरुआत थी. 2011 की अपनी किताब में इमरान ने याद किया है, “अफगान लोगों की खातिर लड़ने के लिए शानोशौकत की अपनी ज़िंदगी छोड़ देने वाला सऊदी अरबपति तारीफ के काबिल है. उसका नाम ओसामा बिन लादेन था.” बाद में, प्रधानमंत्री इमरान खान ने लादेन को “शहीद” कहा.

विद्वान मलीहा अफ़जल ने इमरान के आरामतलब जिहाद को उसी भाव की एक हिसा बताया जिसके तहत वे खेल के मैदान में कामयाब रहे, जो कि उनकी उस मर्दानगी और ताकत का प्रतीक था जिसके लिए उनके मर्द प्रशंसक उनकी तारीफ करते थे. अफ़जल ने कहा, “जिहाद का नारा हमेशा मजहबी उफान के कारण नहीं लगाया जाता, बल्कि अक्सर जंग के प्रति आकर्षण के कारण लगाया जाता है, जो आम लोगों को सुपर हीरो बना देती है.”

फराह गोगी के नाम से भी मशहूर फरहत खान उस बदलाव की प्रतीक थी, जो धार्मिक निष्ठा की वजह से आ सकती है. आजीविका के लिए पार्टियों में डांस करने को मजबूर खान बुशरा के मजहबी दायरे में शामिल होने के कारण असाधारण दौलत और ताकत की मालिका बन गई थी. अपने पति अहसान जमील गुज्जर के साथ फराह इमरान के घर में दाखिल हो गई.

“आज की वैश्वीकृत दुनिया में आज के पाकिस्तान में रहना उपनिवेशवादी शासकों के मातहत रहने से भिन्न नहीं है.” वह कहती है कि इस्लाम आर्थिक रूप से नाउम्मीद हो चुके, अवसरों से वंचित युवाओं के सामने पहचान के संकट से उबरने का सहारा बना है.

इमरान में भी लोकप्रिय इस्लाम के प्रति सहज आकर्षण बना रहा है. 1987 में क्रिकेट से पहली बार संन्यास लेने के बाद इमरान एक सूफी के पास गए थे, “जिसकी आंखें भेदने वाली थीं और चेहरा खुशमिजाज़ था”. उस सूफी को इमरान की बहनों के नाम मालूम थे, जो कि उसकी रहस्यमयी शक्तियों का सबूत था, क्योंकि “वह ऐसा शख्स नहीं लग रहा था जिसकी क्रिकेट में कोई दिलचस्पी होगी”.

रेहम ने लिखा है कि अपनी पर्दानशीन बीवी के साथ इमरान का रिश्ता तंत्र-मंत्र के प्रति लंबे आकर्षण से बना था, जिनमें एक अंधविश्वास यह भी था कि काली दाल को अपने गुप्तांग पर मलने से दुष्टात्मा को दूर भगाया जा सकता है.

इमरान का सूफ़ीवाद शून्य में नहीं उपजा था. विद्वान मुहम्मद सुलेमान ने लिखा है कि 9/11 कांड के बाद जनरल परवेज़ मुशर्रफ की फौजी हुकूमत ने पारंपरिक सूफीवाद को सलफ़ी-जिहादी धर्मशास्त्र के बराबर खड़ा करके उसका राजनीतिकरण कर दिया. हालांकि दावत-ए-इस्लामी जैसे सूफी शाखाओं ने महिलाओं के बारे में विषैले विचार रखे हैं और खुदा के नाम पर हत्या करने को भी राजी हैं. उन्हें सरकार का वफ़ादार माना गया. इमरान को सत्ता में पहुँचने में भी कनाडा के पॉप इसलामवादी मुहम्मद ताहिर-उल-कादरी का हाथ रहा.

यह इस्लाम का लंबे समय से इस्तेमाल करने के पाकिस्तानी हुक्मरानों की चाल का ही एक हिस्सा था, चाहे वे प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो हों या जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक़.

इमरान ने अपने युवा समर्थकों से वादा किया था कि वे, जैसा कि विद्वान कायनात शकील और इहसान यिलमाज ने लिखा है, “मदीना के खोये, आदर्श काल्पनिक समाज” को फिर से बहाल करेंगे. पैगंबर मुहम्मद के राज का यह संस्कारण सभी नागरिकों को घर, स्वास्थ्यसेवा, रोजगार देने के साथ ऐसी मर्दानगी देगा महिलाओं को उपलब्ध कराएगा और उन्हें मातहत बनाएगा. जिस्म के आनंद, धार्मिक निष्ठा के आनंद … इमरान ने एक पीढ़ी को यह जताया था कि यह सब हासिल होना मुमकिन है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(प्रवीण स्वामी दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)


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