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Thursday, 21 November, 2024
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भारतीय कंपनियों को चाहिए ग्रीन-स्किल्ड प्रोफेशनल्स, लेकिन शिक्षा व्यवस्था अभी भी इसके लिए तैयार नहीं

पूरी दुनिया के ग्रीन इकोनॉमी की तरफ बढ़ने का मतलब है कि कंपनियां ज्यादा से ज्यादा 'ग्रीन जॉब्स' की पेशकश कर रही हैं. लेकिन शिक्षाविदों का कहना है कि भारत के शैक्षणिक संस्थान अभी इस मांग को पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं.

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नई दिल्ली: शिक्षाविदों और विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाइमेट चेंज को लेकर लगातार जारी बातचीत का ही नतीजा है कि पूरी दुनिया ने ग्रीन इकोनॉमी के तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं और इसकी वजह से ग्रीन जॉब्स बढ़ना भी स्वाभाविक ही है. लेकिन भारतीय शिक्षा प्रणाली अभी इस बदलाव के लिहाज से तैयार नजर नहीं आ रही है.

इस साल दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर ने नवीकरणीय ऊर्जा को ‘बिजली का सबसे सस्ता स्रोत’ बताया और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जलवायु परिवर्तन के खतरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि एक जलवायु आपदा दुनिया के सामने खड़ी है.

भारत की बात करें तो 15 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की थी और इस नीति का उद्देश्य उत्सर्जन घटाने और अगले 25 वर्षों में भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख निर्यातक बनाने के लिए हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देना है.

पहली बार 2021-22 के केंद्रीय बजट में घोषित इस योजना को कई लोगों ने 6 लाख ‘ग्रीन जॉब्स’ के अवसर उत्पन्न होने के तौर पर देखा था. ग्रीन जॉब्स या हरित रोजगार का मतलब है रोजगार के ऐसे मौके जो पर्यावरण संरक्षित करने या उसे फिर बहाल करने में योगदान देते हों.

दुनियाभर के हरित नौकरियों की तरफ कदम बढ़ाने के बावजूद, बाजार विशेषज्ञों और शिक्षकों का दावा है कि कम से कम भारत के मामले में तो मौजूदा समय में मांग आपूर्ति से अधिक है.

विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारतीय शिक्षण संस्थानों को अपने छात्रों को बेहतर ढंग से तैयार करने की जरूरत है. और, इसका मतलब है उनके पाठ्यक्रम जलवायु तकनीक और सतत विकास पर फोकस करते हुए तैयार किए जाएं.

भारत में मानव संसाधन सेवाओं के सबसे बड़े प्रदाताओं में शुमार टीमलीज के संस्थापक शांतनु रूज ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस उद्योग को कुशल लोग मुहैया कराना अभी मांग की तुलना में काफी कम है. और मुझे लगता है कि यूनिवर्सिटीज को इसके लिए विशेष कार्यक्रम बनाने या अपने नियमित कार्यक्रम में इस प्रकार के स्किल सेट के कुछ हिस्सों को शामिल करने की जरूरत है ताकि लोग अधिक पेशेवर बन सकें.’

इस मामले में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर काफी ज्यादा है. रूज के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-2022 में ग्रीन सेक्टर में 1.3 लाख लोगों को रोजगार मिला, जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा 1 लाख था. उन्होंने कहा कि यह वास्तविक मांग का महज 60 फीसदी है.

रूज ने कहा कि ‘ग्रीन जॉब्स’ की संख्या 2030 तक 24 लाख तक हो सकती है. और उनके मुताबिक, संस्थानों को ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने पर विचार करने करने के लिए यह एक प्रमुख कारण हो सकता है.


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लगातार बढ़ रहे ग्रीन जॉब्स

दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण केंद्रित नौकरियों की संख्या में काफी बढ़ी है. अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की तरफ से प्रकाशित एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 2020-21 में 8,63,000 ग्रीन जॉब्स सृजित किए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर 2020-2021 में 12.7 मिलियन ग्रीन जॉब्स सृजित हुए.

इसी तरह, लिंक्डइन की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में 100 उद्यमियों में से दो पर्यावरण संरक्षण में अत्यधिक कुशल हैं. पिछले साल फरवरी में जारी रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दुनियाभर के कार्यबल में ‘ग्रीन टैलेंट’ 2015 के 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 13.3 प्रतिशत (38.5 प्रतिशत की वृद्धि दर) हो गया.

रिपोर्ट में पाया गया कि ‘ग्रीन-इंटेंस’ नौकरियों के मामले में भारत वैश्विक मीट्रिक में पांचवें स्थान पर है.

इसी तरह, ‘सस्टेनेबिलिटी मैनेजर’ ने गत 18 जनवरी को प्रकाशित लिंक्डइन की नवीनतम रिपोर्ट में 25 सबसे तेजी से बढ़ती नौकरियों पर जगह बनाई है. ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि शिक्षण संस्थान भी इस ट्रेंड के समझे और इसके अनुरूप पाठ्यक्रम शुरू करें.

रूज के मुताबिक, यद्यपि कुछ निजी संस्थानों ने ऐसे जॉब प्रोफाइल के लिए विशिष्ट कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन असल जरूरत यह है कि उन्हें मुख्यधारा की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाए.

बेशक, ऐसी यूनिवर्सिटी हैं जो पर्यावरण और सतत विकास पर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराती हैं. उदाहरण के तौर पर, बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में ‘एक्सप्लोरिंग सस्टेनबिलिटी इन इंडियन कॉन्टेक्स’ नामक एक पाठ्यक्रम है जो छात्रों को सिखाता है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए स्थायी कार्य योजना कैसे तैयार की जाए.

ऐसा ही एक अन्य संस्थान गुजरात यूनिवर्सिटी का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबिलिटी है, जहां स्थिरता के साथ विकास सुनिश्चित करने के लिए एक्शन-बेस्ड मॉडल पर फोकस करने वाले पाठ्यक्रम उपलब्ध है.

लेकिन, अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों ने अभी क्लाइमेट एक्शन पर फोकस करते पूर्ण कार्यक्रम शुरू नहीं किए हैं. उदाहरण के तौर पर आईआईटी जैसे शीर्ष संस्थान में जैव प्रौद्योगिकी और संबंधित विज्ञान पर पाठ्यक्रम हैं, लेकिन उनके पास सतत विकास पर फोकस करने वाले पाठ्यक्रम नहीं हैं.

अहमदाबाद स्थित अनंत नेशनल यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी एंड अनंत फेलोशिप फॉर क्लाइमेट एक्शन की निदेशक मिनिया चटर्जी का मानना है कि यूनिवर्सिटी के कैटलॉग में केवल कुछ सहायक विषयों को जोड़ना अब पर्याप्त नहीं होगा और समय आ गया है कि स्कूलों के स्तर पर ही क्लाइमेट एक्शन पर ध्यान दिया जाए.

निजी स्वामित्व वाली अनंत नेशनल यूनिवर्सिटी का दावा है कि उसने क्लाइमेट एक्शन में अपनी तरह का पहला अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट और डॉक्टरेट कोर्स शुरू किया है और फेलोशिप भी ऑफर करती है.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन सिर्फ पर्यावरण या सस्टेनेबिलिटी पर कुछ पाठ्यक्रम जोड़ने से अब काम नहीं चलने वाला है. कंपनियों को सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्बन अकाउंटिंग, सस्टेनेबिलिटी मैनेजमेंट और तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित पेशेवरों की आवश्यकता होगी.’

ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में भी ग्रीन एजुकेशन की मांग तेजी से बढ़ती नजर आ रही है. अमेरिका स्थित ओपन ऑनलाइन कोर्स प्रोवाइडर कौरसेरा ने दिप्रिंट को बताया कि पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ईएसजी) पर उसके प्रोग्राम की मांग पिछले साल के दौरान तेजी से बढ़ी है.

ईएसजी एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग ऐसे फ्रेमवर्क के बारे में समझाने के लिए किया जाता है जो निवेशकों को किसी संगठन के सतत और नैतिक प्रभावों को समझने में मदद करे.

कौरसेरा के मुताबिक, इंट्रोडक्शन टू सस्टेनेबिलिटी (यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस), फ्रॉम क्लाइमेट साइंस टू एक्शनफर्स्ट स्टेप्स इन मेकिंग द बिजनेस केस फॉर सस्टेनेबिलिटी (यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो), स्ट्रैटेजी एंड सस्टेनेबिलिटी (आईईएसई बिजनेस स्कूल) में नामांकन के मामले में 2022 में पिछले साल की तुलना में 35 से 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

सरकार भी ग्रीन-स्किल्ड वर्कफोर्स तैयार करने पर फोकस कर रही है. जनवरी 2022 में नई दिल्ली स्थित पब्लिक पॉलिसी थिंक-टैंक काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए 238 गीगावॉट सौर और 101 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की योजना पूरी करने में सफल रहता है तो संभवत: 34 लाख छोटी और लंबी अवधि के रोजगार उत्पन्न कर सकता है.

2015 में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने संयुक्त रूप से स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स (एससीजीजे) की स्थापना की थी, ताकि पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी मानक तैयार किए जा सकें, और ग्रीन स्किल में प्रशिक्षित वर्कफोर्स तैयार की जा सके.

पिछले साल फरवरी में, मोदी सरकार ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए एससीजीजे के तहत एक पोर्टल की स्थापना की थी.

एससीजीजे के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पी. सक्सेना ने कहा कि 2030 तक हाइड्रोजन को ऊर्जा का मुख्य स्रोत बनाने की भारत की योजना के मद्देनजर अतिरिक्त 6 लाख स्किल्ड मैनपॉवर की जरूरत होगी.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश में ऐसे बहुत से कुशल श्रमिक हैं, हम 10 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने और उन कॉलेजों, विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग बढ़ाने की योजना बना रहे हैं जहां ऐसे पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं. हम इसके लिए व्हाइट और ब्लू कॉलर जॉब्स वाली 40 नई योग्यताओं की पहचान भी करेंगे.’

परिषद के सदस्यों ने कहा कि पिछले सात वर्षों में, एससीजीजे ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में 1 लाख से अधिक तकनीशियनों और अपशिष्ट प्रबंधन में 5 लाख से अधिक श्रमिकों को प्रशिक्षित किया है. यह मुख्य रूप से ब्लू कॉलर जॉब्स हैं, लेकिन परिषद के सदस्यों ने दिप्रिंट को बताया कि व्हाइट-कॉलर प्रोफेशनल तैयार करने के लिए अभी प्रशिक्षकों की कमी है.


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ग्रीन एंटरप्रेन्योर की आवश्यकता

एससीजीजे सदस्यों के मुताबिक, भारत को ऐसे उद्यमियों की आवश्यकता है जो ‘नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में इनोवेशन कर सकें.’ उनका मानना है कि फिलहाल, अधिकांश तकनीक ऐसी है जिसे पश्चिम से उधार लिया गया है.’

2022 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत 72,993 स्टार्टअप में से 3,300 से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी के माध्यम से समाधान प्रदान करके क्लाइमेट एक्शन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं,

हालांकि, यह संख्या अपर्याप्त नजर आती है, खासकर हरित क्षेत्र में अनुमानित निवेश के संदर्भ में देखें तो. पिछले साल अप्रैल में जारी बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2027 तक भारत के ग्रीन टेक सेक्टर में निवेश बढ़कर 45-55 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

इम्पैक्ट इन्वेस्टर्स काउंसिल, क्लाइमेट कलेक्टिव और कंसल्टेंट्स अरेटे एडवाइजर्स की 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 से 2020 के बीच, भारत के ग्रीन टेक सेक्टर में सबसे बड़ा निवेश 705 मिलियन डॉलर के 84 सौदे के रूप में सस्टेनेबल मोबिलिटी के क्षेत्रों में हुआ.

इसके बाद 301 मिलियन डॉलर के 44 सौदों के साथ दूसरा स्थान ऊर्जा क्षेत्र (नए फीडस्टॉक्स से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, एनर्जी एक्सेस, ऊर्जा भंडारण और ऊर्जा अनुकूलन उत्पादों सहित) का रहा.

दिप्रिंट ने जिन उद्यमियों से बात की, उनकी राय है कि यद्यपि पर्यावरणीय मूल्यों का हरित उद्यमशीलता संबंधी गतिविधियों की सफलता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लेकिन बिजनेस आइडिया में सब कुछ इनोवेटिव थिंकिंग पर निर्भर करता है.

उद्यमियों का कहना है कि कम कीमत पर सिर्फ अमेरिका और यूरोपीय देश के ग्रीन टेक की दिशा में आगे बढ़ने की नकल करना कोई समाधान नहीं है, बल्कि जरूरी यह है कि विशिष्ट तौर पर देश को ध्यान में रखकर समाधान तलाशे जाएं.

दिल्ली स्थित स्टार्ट-अप शेरू के संस्थापक अंकित मित्तल ने कहा कि ग्रीन टेक उद्यमियों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ इकोनॉमिक्स, इनवायरमेंट और सस्टेनिबिलिटी के क्षेत्र में गहन विशेषज्ञता हासिल करने की जरूरत है.

मित्तल, जिनका स्टार्ट-अप इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों के लिए क्लाउड स्टोरेज प्रदान करता है, का मानना है कि यद्यपि सरकार ग्रीन टेक एंटरप्रेन्योरशिप के मामले में ‘आगे की सोच’ रखती है लेकिन स्कूली बच्चों को इनोवेशन की दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए ‘इनोवेशन का माहौल’ बनाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय शिक्षा प्रणाली को स्कूलों के स्तर पर नवाचार के लिए लैब और उचित मौके मुहैया कराने में निवेश करना होगा, ताकि बच्चे शुरू से ही समाधान-आधारित प्रोटोटाइप विकसित करने में सक्षम बन सकें.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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