नई दिल्ली: बीते वीकेंड में, प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस-वामपंथी दोनों खेमों में हंगामा खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा, “थांसा होगा (एकता के लिए कोकबोरोक)”. दरअसल, कोकबोरक त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा है.
मोथा ने सोमवार को कहा है कि वह अपने दम पर चुनाव लड़ने को तैयार है और जल्द ही अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करेगा, लेकिन दोनों पक्षों (बीजेपी और विपक्ष) के बारे में कहा जाता है कि वे आखिरी मिनट की सफलता के लिए विकल्प तलाश रहे हैं और खुद को बुबागरा (कोकबोरोक में राजा) कहने वाले व्यक्ति को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं.
इस बीच, त्रिपुरा के राजनीतिक गलियारों में यह सवाल चल रहा है कि अगर वह गठबंधन के लिए जाता है तो वह किस खेमे को पीछे छोड़ पाएगा.
देबबर्मा ने अपना मन बना लिया है, लेकिन वे अभी इसका खुलासा नहीं कर रहे हैं. गठबंधन का समय तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. राज्य में 16 फरवरी को मतदान होने हैं. देबबर्मा, जिन्हें महाराज के नाम से संबोधित किया जाता है (मीडिया बातचीत के दौरान भी), को 60 विधानसभा सीटों और 28 लाख मतदाता वाले छोटे से पूर्वोत्तर राज्य में सत्ता में आने वाले व्यक्ति के लिए कुंजी की तरह देखा जाता है.
इन 60 सीटों में से 20 पर आदिवासियों का वर्चस्व है – जिनके हितों का समर्थन करने का दावा देबबर्मा करते हैं और जिनमें उनकी पार्टी, तिपराहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (टीआईपीआरए मोथा) का दबदबा माना जाता है. एक पार्टी के रूप में अस्तित्व में आने के कुछ ही महीनों बाद, टिपरा मोथा ने 2021 त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) चुनाव जीता था.
त्रिपुरा के तत्कालीन माणिक्य राजवंश के वंशज, देबबर्मा एक राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके माता-पिता दोनों कांग्रेस के सदस्य थे. उनके पिता किरीट बिक्रम किशोर देबबर्मा त्रिपुरा के अंतिम राजा थे, जबकि उनकी माता बिभू कुमारी देवी त्रिपुरा पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 10वीं लोकसभा के लिए चुनीं गईं थीं.
देबबर्मा का राजनीतिक करियर कांग्रेस के साथ शुरू हुआ. इससे पहले उन्होंने 2019 में कथित तौर पर पार्टी के तत्कालीन महासचिव और पूर्वोत्तर प्रभारी लुइज़िन्हो फलेइरो के साथ मतभेदों सहित अन्य कारणों से आवेश में पार्टी छोड़ दी थी. इसके दो साल बाद, टिपरा मोथा का गठन हुआ.
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शिलांग कनेक्शन
राज्य में 10 लाख से अधिक आदिवासी वोटों को अपने हाथों में रखने वाले देबबर्मा का राजनीतिक उत्थान मुश्किलों भरा रहा है और अपने गृह राज्य के साथ उनका अपना जुड़ाव, थोड़ी देर से हुआ.
देबबर्मा ज्यादातर राज्य के बाहर पले-बढ़े हैं. राज्य के पेचीदा राजनीतिक मुद्दों में से एक यह है कि क्या कोकबोरोक की लिपि बंगाली रहनी चाहिए या देवनागरी में तब्दील की जानी चाहिए, किसी को भी इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि देबबर्मा के ज्यादातर भाषण और संवाद हिंदी में हैं न कि बंगाली या कोकबोरोक में जो राज्य में दो सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाएं हैं. कभी-कभी कोकबोरोक में अंग्रेज़ी के शब्दों की भरमार होती है. असल में देबबर्मा ने मांग की है कि कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि का प्रयोग किया जाए.
आगामी चुनावों के लिए, देबबर्मा हार्डबॉल खेल रहे हैं, वो अपने भावी सहयोगियों से ग्रेटर टिपरालैंड पर एक लिखित प्रतिबद्धता पर जोर दे रहे हैं. ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ में असम, मिजोरम और बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाकों में रहने वाले त्रिपुरा निवासी भी शामिल हैं.
जैसा कि उनके ‘गठबंधन’ के बारे में अटकलें चरम पर हैं, उन्होंने रविवार को ट्विटर पर एक पोस्ट किया, ‘‘गुड मॉर्निंग टू एवरीवन! बस मीडिया में कुछ लोगों को बताना चाहता था कि मुझे बचपन में हमेशा कहा जाता था कि एक राजा कभी अपना राज्य नहीं बेचता है और पैसा और शक्ति आती-जाती रहती हैं, लेकिन अच्छा नाम हमेशा के लिए रहता है. आप सबका दिन शुभ हो.’’
Good morning everyone ! Just wanted to tell some people in the media that I was always told as a child that A king never sells his kingdom and money and power come and go but good name lasts forever . Have a good day everyone 🙏
— Pradyot_Tripura (@PradyotManikya) January 22, 2023
उनके अपने व्यावसायिक हित उस क्षेत्र के बाहर स्थित हैं, ‘‘उसके लोगों’’ को भी बेकार में परेशान नहीं करता है. प्रद्योत द हेरिटेज क्लब – त्रिपुरा कैसल का मालिक है, जो शिलांग में 35 कमरों वाला लक्ज़री हेरिटेज होटल है, जो पूर्व में माणिक्य राजवंश का ग्रीष्मकालीन निवास था.
वह अक्सर अपने पत्रकारिता के अतीत का भी ज़िक्र करते हैं. 2006 में, उन्होंने टीएनटी (द नॉर्थईस्ट टुडे) पत्रिका की स्थापना की थी और वो भी शिलांग से बाहर ही थी.
उनके टीएनटी के दिनों के एक मित्र ने ‘‘पत्रकार, उद्यमी होटल कारोबारी’’ को ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद किया, जो अपने वेंचर्स के लिए कुछ भी करने को आतुर था.
उनके दोस्त ने दिप्रिंट को बताया, “त्रिपुरा कैसल शायद पूर्वोत्तर में पहला हेरिटेज होटल था और उसने दूसरों से पहले इसके बारे में सोचा. वह पत्रिका के ढेर को आईएसबीटी, फेरीवालों तक पहुंचा कर आते थे. वह अपने ISUZU की डिग्गी को पत्रिका के पोस्टर और होर्डिंग से भर देता था और शिलांग और अगरतला में उन्हें ऑटो-रिक्शा के पीछे चिपका देता था. यहां तक कि पॉलिटिक्स में भी वे यूज एंड थ्रो की राजनीति में शामिल नहीं रहे, क्योंकि वह अपने अतीत, अपने परिवार के नाम को लेकर बहुत जागरूक हैं.”
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‘महान मेजबान, भटकाव भरा ग्राहक’
देबबर्मा को जानने वाले लोग उन्हें हितधारी और दृढ़ विश्वास वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं.
उनके ट्विटर बायो में लिखा है, “T.I.P.R.A के अध्यक्ष, त्रिपुरा के प्रमुख-पूर्व शाही घराने. खिलाड़ी, संगीतकार, मिमिक्री और जादूगर कलाकार बनने की चाह, पशु प्रेमी. तकरजला/जंपुइजाला से निर्वाचित एमडीसी.”
लेकिन वह ऐसे व्यक्ति भी हैं जो लोगों को असमंजस में रहने को मजबूर कर सकते हैं.
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता जो पिछले एक साल में देबबर्मा के साथ कई गठबंधन वार्ताओं में रहे उन्होंने कहा, “वह एक अच्छे मेजबान हैं. आप उनके साथ कई विषयों पर दिलचस्प बातचीत कर सकते हैं लेकिन वह भटक जाते हैं. जब आप बाहर आएंगे तो आपको एहसास होगा कि उस शाम के बाद से आपके पास दिखाने के लिए कोई राजनीतिक पूंजी नहीं बची है.”
वह ‘‘अपनी कीमत को नहीं समझने’’ के लिए कांग्रेस पार्टी के खिलाफ आक्रोश को तवज्जों नहीं देते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया था, ‘‘जिन लोगों ने मुझे पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया, उनमें त्रिपुरा के प्रभारी महासचिव लुइज़िन्हो फलेरियो भी शामिल हैं, जो अन्य राजनीतिक दलों में चले गए हैं.’’
गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री फलेरियो अब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में हैं.
अपने भाषणों में, देबबर्मा अपने पूर्वजों के नामों का आह्वान करते हैं और कहते हैं कि 13 लाख तिप्रसा (त्रिपुरा के आदिवासी) उन्हें कुछ देने के लिए बुबागरा की राह देख रहे हैं, यही कारण है कि शाही परिवार के वंशज के रूप में, वह ‘‘अपने लोगों’’ को धोखा नहीं दे सकते.
नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व सहयोगी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “कुछ मामलों में, आप कह सकते हैं कि वह थोड़े जोशीलें हैं, लेकिन वे अपने द्वारा की जाने वाली चीजों के प्रति जुनूनी हैं. उन्हें कई चीज़ें पसंद हैं, वह अच्छा गिटार बजाते हैं और एक अच्छे फुटबॉलर हैं. वह एक समय पूर्वोत्तर में संगीत समारोहों के सबसे बड़े आयोजक थे. वह लोगों की मदद करने के लिए अपने रास्ते से हट जाएंगे. अगर कोई युवक एग्जाम फीस के लिए उनके पास जाता है तो वह न केवल पैसे देते हैं, बल्कि उसका हाथ भी थाम लेते हैं. लेकिन वह थोड़े जिद्दी भी हैं.”
दोस्त देबबर्मा को एक खाने के शौकीन के तौर पर देखते हैं, जो किसी भी दिन खाने के लिए चुनौतियों का सामना करेंगे. दोस्त ने कहा, “वह एक चैलेंज ले सकता है और एक बार में 7-10 पिज्जा खा सकता है.”
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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