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Wednesday, 18 December, 2024
होमदेश'कड़े प्रतिबंध और सिंपल डिजाइन'- ईरान का ड्रोन प्रोग्राम क्यों एक बड़ी जीत है

‘कड़े प्रतिबंध और सिंपल डिजाइन’- ईरान का ड्रोन प्रोग्राम क्यों एक बड़ी जीत है

तेहरान का ड्रोन प्रोग्राम की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी. ईरानी ड्रोन सस्ते होते हैं, इनमें ज्यादा रेंज और उड़ान क्षमता होती है. साथ ही इसमें गुप्त क्षमताएं और काउंटर जीपीएस जैमिंग सिस्टम भी है.

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नई दिल्ली: आक्रमण के 11 महीने बाद, यह देखते हुए कि ईरानी शहीद -136 ड्रोन – जिन्हें ‘लॉन मोवर‘ या ‘मोपेड’ भी कहा जाता है, ने युद्धग्रस्त यूक्रेन में कहर बरपाया है, बाइडन प्रशासन ईरान द्वारा रूस को ड्रोन की आपूर्ति करने से रोकने के लिए छटपटा रहा है.

युद्ध के जरिए साबित हुआ है कि विशेष रूप से ईरान के शहीद-136 जैसे सस्ते ड्रोन ने अपनी सटीक मारक क्षमताओं के साथ, आधुनिक युद्धक्षेत्र को लोकतांत्रिक बना दिया है.

ऐसा नहीं है कि ड्रोन ने पहली बार सटीक हमले किए, सटीक हमलों की क्षमता हमेशा सेना का फोकस रही है, लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.

उदाहरण के लिए, प्रथम खाड़ी युद्ध (1991) में सद्दाम हुसैन शासन के खिलाफ अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना द्वारा युद्ध में इस्तेमाल कुल सामग्री का 8 प्रतिशत सटीक हमलों वाले हथियार थे, लेकिन अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा गोला-बारूद पर किए गए कुल खर्च में उनका हिस्सा लगभग 84 प्रतिशत था.

लंदन स्थित सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के थिंक टैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (आरयूएसआई) के अनुसार, अमेरिकी सेना के पास सटीक हमले करने वाली मिसाइलों में 1,300 किलोग्राम की टॉमहॉक सबसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी कीमत मौजूदा कीमतों के मुकाबले लगभग 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस का मानना है कि, हालांकि यह सस्ता है, ईरान का शहीद-136 ड्रोन महत्वपूर्ण क्षमताओं को बनाए रखता है, जिसमें रडार का पता लगाने से बचने और 1,500 मील तक की सीमा तक वार करने की क्षमता शामिल है. जबकि, यूक्रेन को दिए गए अमेरिकी स्विचब्लेड ड्रोन केवल 25 मील की सीमा तक काम करते हैं.

भारी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान के ड्रोन प्रोग्राम की सफलता भारत के रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान, विशेष रूप से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के लिए एक सबक है, जो दशकों से अपने मानव रहित ड्रोन (यूएवी) प्रोग्राम से जूझ रहा है.

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने 2020 में डीआरडीओ के यूएवी प्रोग्राम को खराब योजना, अंतिम उपयोगकर्ताओं को अंधेरे में रखने और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रक्रिया (एसओपी) की धज्जियां उड़ाने के लिए नारा दिया था.


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ईरान के ड्रोन कार्यक्रम की अवधारणा

पश्चिम द्वारा अछूत माने जाने वाले ईरान का दावा है कि उसके पास 24 घंटे से अधिक की उड़ान भरने और गुप्त क्षमताओं के अलावा 2,000 किमी की भारी रेंज में सटीक-मिसाइल दागने की क्षमता वाले ड्रोन हैं.

अमेरिका की गैर-लाभकारी यूनाइटेड अगेंस्ट न्यूक्लियर ईरान (यूएएनआई) का मानना है कि तेहरान के तकनीकी कौशल अक्सर प्रचार के लिए होते हैं, इसके ड्रोन प्रोग्राम की सफलता इस्लामी गणराज्य के लिए तकनीकी जीत का प्रतिनिधित्व करती है.

1979 में ईरानी क्रांति के बाद वाशिंगटन ने तेहरान के साथ सैन्य और राजनयिक संबंध तोड़ दिए, जिसके कारण अमेरिका समर्थित ईरान के शाह को हटा दिया गया और बाद में ईरान के इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई.

ईरानी ड्रोन प्रोग्राम 1980 के दशक में शुरू हुआ था और इसने अपने सैन्य यूएवी को उन्नत किया है. ये प्रोग्राम, अपने बेड़े की खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं में सुधार करने और हवाई हमले करने में सक्षम यूएवी को तैनात करने की मांग कर रहा है.

यूएएनआई ने बताया कि ईरान ने पिछले दशक में कईं नए ड्रोन सिस्टम शुरू किए हैं, जिनमें से कई युद्ध में इस्तेमाल किए गए हैं. ये यूएवी स्पेस, तेहरान की प्रगति का प्रदर्शन करते हैं.

तेहरान का ध्यान ड्रोन की तरफ, इसलिए गया क्योंकि वह फारस की खाड़ी में जहाजों की निगरानी करने के तरीकों की तलाश कर रहा था.

1985 में, ईरान की सेना ने अपने आत्मनिर्भरता संगठन के एक विंग के रूप में कूड्स एविएशन इंडस्ट्री कंपनी की स्थापना की. उस वर्ष, इसने अपने पहले यूएवी, मोहजर-1 का परीक्षण किया, जिसने ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान इसकी उपयोगिता का प्रदर्शन किया.

तेहरान द्वारा अब रूस को आपूर्ति किए जा रहे ड्रोनों में से एक का पूर्ववर्ती, मोहजर -1 को कूड्स के हिसाब से डिजाइन किया गया था. इसके अगले हिस्से में तिरछा कैमरा लगाया गया. यह एक स्टिल कैमरा था.

यूएएनआई ने कहा, इस ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध के बाद इराकी पैदल सेना की स्थिति की तस्वीरें निकालने के लिए, अपराधियों की तैयारी की खुफिया जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया.

तेहरान ने कथित तौर पर हर एक विंग के नीचे रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड (RPG) लांचर के साथ इन ड्रोनों को तैयार करने की कोशिश की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसके प्रयास सफल हुए या नहीं.

1990 के दशक की शुरुआत में, ईरान ने मोहजर के कई एडिशन निकाले, जिसमें मोहजर -6 भी शामिल है. अधिक सटीक स्ट्राइक क्षमताओं के अलावा, हर एक एडिशन में बढ़ी हुई सीमा तक वार करने और उड़ान भरने की क्षमता का दावा किया गया.

21वीं सदी की शुरुआत में, ईरान ने भी हमलावर ड्रोन बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया और अब इसके पास यूएवी की एक पूरी सीरीज है.

कर्रर, को 2010 में लांच किया गया, यह इस तरह का हमला करने वाला पहला ड्रोन था. ईरानी राज्य मीडिया ने तब घोषणा की कि उसके पास ”लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए बम ले जाने सहित विभिन्न क्षमताएं” और ”लंबी दूरी पर हाईस्पीड” से उड़ान भरने वाले ड्रोन हैं.

दो साल बाद, सितंबर 2012 में, ईरान ने शहीद-129 लांच किया – जो सक्षम यूएवी विकसित करने के तेहरान के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम था.

ऐसा माना जाता है कि नए ड्रोन को एक अमेरिकी RQ-170 UAV की रिवर्स इंजीनियरिंग द्वारा डिजाइन किया गया था, जो ईरानियों द्वारा अपने परमाणु प्रोग्राम के तत्वों को छिपाने के लिए खोदी गई सैकड़ों सुरंगों का नक्शा जांचने के लिए ईरान के ऊपर से उड़ा था.

वाशिंगटन ने कहा कि तकनीकी खराबी के कारण RQ-170 ईरान के रेगिस्तान में उतरा, जबकि तेहरान ने दावा किया कि उसने ड्रोन को हैक किया और उसे उतरने के लिए मजबूर किया.

हालांकि, यह भी माना जाता है कि शहीद-129 काफी हद तक अमेरिकी मॉडल के बजाय इज़राइली हर्मीस 450 मॉडल पर आधारित है. इसका मतलब यह है कि ईरानी एक इजरायली ड्रोन को भी पकड़ सकते थे और रिवर्स-इंजीनियर कर सकते थे.


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ईरानी ड्रोन में पश्चिमी कंपोनेंट्स

तेहरान के लगातार पश्चिम विरोधी बयानबाजी के बावजूद, पश्चिमी कंपोनेंट्स ईरानी ड्रोन प्रोग्राम के लिए महत्वपूर्ण हैं.

यूक्रेन में पकड़े गए चार ईरानी ड्रोनों के विश्लेषण के अनुसार, पश्चिमी और एशियाई सहित 13 विभिन्न देशों और क्षेत्रों में स्थित 70 से अधिक निर्माताओं ने तेहरान के लिए ड्रोन कंपोनेंट्स का उत्पादन किया.

ब्रिटेन स्थित खोजी संगठन कॉन्फ्लिक्ट आर्मामेंट रिसर्च द्वारा किए गए विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि 82 प्रतिशत कंपोनेंट्स का निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित कंपनियों में किया गया था.

पिछले साल दिसंबर में, बाइडन प्रशासन ने इस बात की पड़ताल के लिए विशाल टास्क फोर्स का गठन किया कि अमेरिकी निर्मित माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सहित पश्चिम में बने कंपोनेंट्स ने ईरानी ड्रोन में अपना मार्ग कैसे निकाला.

द न्यू यॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, यूक्रेन में दागे गए ईरानी ड्रोन के सर्किट बोर्ड की तस्वीरें प्रसारित होने के बाद व्हाइट हाउस अमेरिकी निर्माताओं तक पहुंच गया – जो अमेरिका स्थित फर्मों द्वारा निर्मित चिप्स से भरे हुए थे.

लगभग सभी निर्माताओं की एक ही प्रतिक्रिया थी: चिप्स अप्रतिबंधित हैं, ”ड्यूल यूज” आइटम और उनके सर्कुलेशन को ट्रैक करना या रोकना लगभग असंभव है.

विदेशों में सुरक्षा सूत्र बताते हैं कि ईरान ने प्रतिबंधों के तहत काम करने की कला में महारत हासिल कर ली है. अपने ड्रोन और अन्य सैन्य कार्यक्रमों के लिए, ईरानी हथियारों के के लिए जरूरी कंपोनेंट्स को प्राप्त करने वाली फ्रंट कंपनियों के माध्यम से इंजन जैसे विदेशी कंपोनेंट्स को हासिल करने में कामयाब रहा.

इंडिया ‘प्रक्रिया संचालित’, ‘लक्ष्य उन्मुख’ नहीं

हालांकि, ईरानी ड्रोन प्रोग्राम की सफलता भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान और उद्योग में कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन सूत्रों का मानना है कि इसकी सफलता नई दिल्ली द्वारा गहन आत्मनिरीक्षण की मांग करती है.

यह बताते हुए कि कैसे ईरान का ध्यान हमेशा सरल डिजाइन और सरल इंजन पर केंद्रित रहा है, एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “भारत इसे सरल नहीं रखना चाहता है. हमारे देश में डीआरडीओ और अंतिम उपयोगकर्ता, सशस्त्र बलों के बीच संबंध नहीं हैं. अंतिम उपयोगकर्ता यह तय नहीं कर पाता कि वो असल में क्या चाहता है. डीआरडीओ चंद्रमा का वादा करता है और इसे देने में विफल रहता है.”

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने 2020 में डीआरडीओ के यूएवी प्रोग्राम को खराब योजना, अंतिम उपयोगकर्ताओं को अंधेरे में रखने और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रक्रिया (एसओपी) की धज्जियां उड़ाने के लिए नारा दिया था.

ईरानी ड्रोन बेसलाइन काउंटर जीपीएस जैमिंग सिस्टम से लैस हैं, जो एक निश्चित सीमा तक जैमिंग का मुकाबला करने में सक्षम हैं, एक अन्य सूत्र ने कहा, “लगभग 10 ड्रोन प्रोग्राम हैं, जिन्हें भारतीय सशस्त्र बल जीपीएस-अस्वीकृत वातावरण में काम करने के लिए शामिल कर रहे हैं और उनमें से किसी की भी आवश्यकता नहीं है.”

ईरानी अपने ड्रोन प्रोग्राम को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबंधों को दरकिनार करने में सक्षम क्यों हैं और भारत के प्रयास विफल रहे हैं, इस पर पहले सूत्र ने कहा, “भारत एक प्रक्रिया-संचालित देश है-लक्ष्य उन्मुख नहीं. ईरान का एक लक्ष्य था और उसने इसके लिए काम किया. ये वहां आसान है क्योंकि सब कुछ इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के नियंत्रण में आता है.”

रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने स्वीकार किया है कि भारत का अधिकांश ध्यान प्रक्रिया पर ही रहा है, सरकार प्रक्रिया को सरल बनाने की कोशिश कर रही है. सूत्र आईडीईएक्स प्रोग्राम का हवाला देते हैं.

हालांकि, उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आईडीईएक्स पहल में और परियोजनाओं को जोड़ने पर सरकार का जोर वास्तव में अवधारणा के खिलाफ काम करता है.

रक्षा प्रतिष्ठान के एक तीसरे सूत्र का कहना है, “विचार कुछ मुख्य परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना है और सरकारी फंडिंग और हैंडहोल्डिंग के माध्यम से इसे बढ़ाना है. अधिक प्रोजेक्ट्स का मतलब है कि पाई छोटी इकाइयों में विभाजित हो जाएगी. सवाल यह है कि क्या गुणवत्ता या संख्या होनी चाहिए.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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