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Tuesday, 23 April, 2024
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‘भारत और USA में खतरे की धारणा अलग है’ – भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख ने वॉर ऑन द रॉक्स में लिखा

क्षेत्रीय द्विपक्षीय सुरक्षा सहायता के मुद्दे पर दोनों ने तर्क दिया है कि अमेरिका और भारत को क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के संबंध में एक ही राह पर रह कर उस दिशा में काम करना चाहिए.

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नई दिल्ली: पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा कि अलग-अलग रणनीतिक प्राथमिकताओं और खतरे की धारणाओं के कारण भारत के अमेरिका से जुड़े बाहरी युद्ध क्षेत्र में सैन्य रूप से शामिल होने की संभावना नहीं है, लेकिन भारतीय और अमेरिकी नौसेना को अपने मुख्य क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है.

पूर्व नौसेना प्रमुख द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय रक्षा और रणनीतिक मुद्दे पर केंद्रित पत्रिका में प्रकाशित एक दुर्लभ लेख में, एडमिरल सिंह ने वॉर ऑन द रॉक्स में लिखा है कि भारतीय नौसेना, इंटरचेंज करने में सक्ष्म, अमेरिकी नौसेना को पर्शियन गल्फ़ और हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में अपनी समुद्री सुरक्षा ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर सकती है और संकटों का जवाब देने के लिए अमेरिकी सेना को बाहर तैनात होने के लिए फ्री कर सकती है.

उन्होंने लिखा कि भारत और अमेरिका की नौसेना के बीच संबंध 2020 में बहुराष्ट्रीय समुद्री अभ्यास मालाबार जैसे सार्वजनिक बयानों और समन्वय अभ्यासों के परे ‘काफी अप्रयुक्त क्षमता’ है.

12 जनवरी को प्रकाशित इस लेख में ब्लेक हर्ज़िंगर एडमिरल सिंह के सह-लेखक हैं. हर्ज़िंगर अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में नॉन रेजिडेंट हैं. एडमिरल सिंह ने क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग के आधे सदस्यों द्वारा पूरे भारत-प्रशांत क्षेत्र में ‘एक मजबूत संकेत’ भेजने के लिए अपने संबंधों का विस्तार करने की संभावना के लिए समर्थन दिखाया है. साथ ही स्पष्ट किया कि मानवीय सहायता, आपदा राहत और प्रमुख नौसैनिक संचालन जैसे सहकारी कार्य सिर्फ युद्धकाल के दौरान नहीं होने चाहिए.

क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड एक बहुपक्षीय मंच है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका शामिल है.

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एडमिरल सिंह और हर्ज़िंगर ने लिखा है, ‘पुनःपूर्ति, समुद्री निगरानी ​​​​और विमानन कार्यों को एकीकृत करने जैसे महत्वपूर्ण कौशल को युद्ध के औचित्य की जरूरत नहीं है: वे शांत समय में होने वाली क्षमताएं हैं. हालांकि, किसी भी भागीदार और चीन के बीच अधिक गंभीर आकस्मिकता उत्पन्न होनी चाहिए, उन साझा क्षमताओं और परिचालन की अच्छी जानकारी के साथ शुरुआती निवेश के लायक होगा.’

लेख का महत्व इस तथ्य में निहित है कि नौसेनाध्यक्ष के रूप में एडमिरल सिंह का कार्यकाल 2019 के बीच रहा – क्वाड के पुनर्जीवित होने के दो साल बाद (2004 हिंद महासागर सूनामी के तुरंत बाद एक अनौपचारिक समूह के रूप में बनाया गया, क्वाड को केवल 2007 में औपचारिक रूप दिया गया था, लेकिन जल्द ही निष्क्रिय हो गया, फिर से स्थापित किया गया ), 2021 के अंत तक. इसके अलावा, मार्च 2021 में एडमिरल सिंह के कार्यकाल के दौरान, क्वाड सदस्यों ने एक संयुक्त बयान जारी किया था, जिसमें सदस्यों ने ‘फ्री और ऑपन इंडो-पैसिफिक के लिए एक साझा दृष्टि’ की पुष्टि की थी, ‘पूर्व और दक्षिण चीन सागर में नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के लिए चुनौतियों का सामना करने के लिए’ सहयोग करने और प्रतिबद्धताओं की एक सूची बनाई थी जिसे क्वाड अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पूरा करेगा. एडमिरल सिंह की टिप्पणी एक तेजी से टॉप पर पहुंचती नौसेना पर कई वर्षों के अनुभव से आई है जिसने इंडो-पैसिफिक की ओर बदलाव को आकार दिया है.

इस तरह, एडमिरल सिंह और हर्ज़िंगर ने व्यापक क्वाड संरचना में सकारात्मक रुझानों के बावजूद भारत-अमेरिका नौसैनिक संबंधों में हुई धीमी प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया है, दोनों देशों की नौकरशाही के बीच साझेदारी में बढ़ोतरी हुई है, और सोवियत फोकस से एक धीमा लेकिन स्थिर बदलाव आया है. भारत ने लंबे समय से, पांच अलग-अलग रास्तों पर नीतिगत सुझाव दिए हैं और भविष्यवाणी की है कि इस रिश्ते का भविष्य क्या होगा.


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रणनीति पर पुनर्विचार, प्रशिक्षण रणनीति

क्षेत्रीय द्विपक्षीय सुरक्षा सहायता के मुद्दे पर दोनों ने तर्क दिया है कि अमेरिका और भारत को क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के संबंध में एक ही राह पर रह कर उस दिशा में काम करना चाहिए. उन्होंने लिखा है कि यह पता लगाना कि किन क्षेत्रों में उनके कार्यक्रम ‘अतिव्यापी या भिन्न’ (ऑवरलैपिंग या डाइवरजेंट) हो सकते हैं – जैसे कि वियतनाम में – और इस प्रक्रिया में अधिक कुशल क्षमता निर्माण करना.

एडमिरल सिंह और हर्ज़िंगर ने ईंधन जैसे नौसैनिक उपकरण संसाधनों के बेहतर बंटवारे की भी वकालत की है. उनका तर्क है कि सहयोग और सहकार्य के मौके चूक गए हैं – खासतौर से मध्य-समुद्र में ईंधन भरना, जिस पर भारतीय नौसेना की स्थिर पकड़ है और अमेरिकी नौसेना इसकी बढ़ती जरूरत को महसूस कर रही है.

दोनों लेखकों ने ‘अभ्यास से परे और ऑपरेशनल क्षेत्र में’ द्विपक्षीय नौसैनिक सहयोग के विस्तार का भी आह्वान किया है, जिसका मतलब है रणनीति और प्रशिक्षण रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा.

उन्होंने लिखा है, ‘अलग-अलग रणनीतिक प्राथमिकताओं और खतरे की धारणाओं से यह संभावना कम हो जाती है कि भारत बाहरी युद्ध क्षेत्र में सैन्य रूप से साझेदार होगा, भारतीय नौसेना, इंटरचेंजे होने की क्षमता के साथ, अमेरिकी नौसेना को पर्शियन गल्फ़ और हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में अपनी समुद्री सुरक्षा जिम्मेदारियों से मुक्त कर सकती है, जिससे अमेरिका संकटों का जवाब देने के लिए सेना को बाहर की ओर प्रवाहित कर सकता है.’

इसके अलावा, एडमिरल सिंह और हर्ज़िंगर ने दोनों देशों की सेना के बीच ‘मजबूत स्टाफ लिंक बनाने’ और ‘समुद्री डोमेन जागरूकता और सूचना-साझाकरण’ बढ़ाने का समर्थन किया है.

जहां तक भारत-अमेरिका नौसैनिक साझेदारी के भविष्य का सवाल है, दोनों का मानना है कि प्रगति का सबसे महत्वपूर्ण संकेत अमेरिका-भारत 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद के अगले एडिशन के लिए उनके नीतिगत सुझावों पर विचार करना होगा. साथ ही उन्होंने भारत के पूर्वी और पश्चिमी कमानों, यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड और यूएस पैसिफिक फ्लीट को नौसैनिक संबंधों के विस्तार के लिए आवश्यक कड़ी मेहनत करने के लिए जिम्मेदार बताया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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