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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकड़ी मेहनत से काम पर लगी है MCD, लेकिन G20 समिट से पहले कूड़े के पहाड़ों का साफ होना संभव नहीं दिखता

कड़ी मेहनत से काम पर लगी है MCD, लेकिन G20 समिट से पहले कूड़े के पहाड़ों का साफ होना संभव नहीं दिखता

एमसीडी का लक्ष्य ओखला और भलस्वा स्थित लैंडफिल साइट्स को दिसंबर 2023 तक और गाजीपुर वाले लैंडफिल साइट को मार्च 2024 तक समतल कर देने का है. जी-20 सम्मलेन के चलते ओखला वाले काम को सितंबर 2032 तक खत्म करने की मांग की का रही है, मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए तो 5 साल भी पर्याप्त नहीं हैं.

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नई दिल्ली: अगर आप अपनी नाक बंद कर लें, तो दिल्ली के तीन लैंडफिल साइट (कूड़ा जमा करने वाले स्थान) – गाजीपुर, ओखला और भलस्वा – कुछ-कुछ लहरदार पहाड़ियों की तरह ही दिखते हैं. पर अब इस बात की उम्मीदें काफी हद तक बढ़ गईं हैं कि इन आंखों में चुभने वाले कूड़े के पहाड़ों का जल्द ही अंत हो जायेगा. दिल्ली नगर निगम (म्युनिसिपल कोर्पोरशन ऑफ़ दिल्ली-एमसीडी) ने इन लैंडफिल साइट्स को समतल करने के लिए पिछले साल ही काम शुरू कर दिया था, और जी- 20 शिखर सम्मेलन के चलते ओखला वाले काम को सितंबर 2023 तक पूरा किये जाने की मांग की जा रही है.  हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावित समय सीमा में से कोई भी वास्तविक नहीं है.

इन तीनों लैंडफिल साइटों को समतल करने के लिए एमसीडी द्वारा निर्धारित अंतिम समय सीमा  ओखला (46 एकड़) और भलस्वा (36 एकड़) के मामले में दिसंबर 2023, और गाजीपुर (70 एकड़) के लिए मार्च 2024 है.

ये लैंडफिल क्रमशः 2010, 2003 और 2002 में अपनी क्षमता से परे चले गए थे.  इन तीनों में लाखों टन का ‘लीगेसी वेस्ट या पुराना कचरा’ जमा है, लेकिन फिर भी वे नया कचरा इकठ्ठा करने की जगह भी बने हुए हैं.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमणदीप कौर | दिप्रिंट

जी- 20 शिखर सम्मलेन के नजदीक आने के साथ ही दिल्ली के उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) के सचिवालय के अधिकारियों का कहना है कि सम्बंधित प्राधिकरणों को इस समारोह के शुरू होने से पहले ही ओखला लैंडफिल साईट वाले काम को पूरा करने के लिए कहा गया है. दिल्ली भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने तो पिछले साल दिसंबर में यहां तक दावा किया था कि नगर निगम ने घोषणा कर रखी है कि जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले ओखला लैंडफिल साइट को साफ कर दिया जाएगा.

उधर, स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 ने साल 2026 तक सभी लेगेसी डंपसाइटों (पहले से भारी मात्रा में कूड़ा जमा किये गए स्थानों) को दुरुस्त करने के लिए एक अलग समय सीमा भी जारी की हुई है.

हालांकि, गैर-लाभकारी शोध संगठन ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)’ के विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि इनमें से किसी भी समय सीमा को तब तक पूरा नहीं किया जा सकता, जब तक कि नए सिरे से कचरे को वहां जमा (डंप) किये जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लागू नहीं किया जाता है और साथ ही कचरे को संसाधित करने की वर्तमान क्षमता में वृद्धि नहीं की जाती है. उन्होंने कहा कि एमसीडी को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में पांच साल लगेंगे.

कूड़े के पहाड़ जो बस बढ़ते ही रहते हैं

एमसीडी के पर्यावरण प्रबंधन सेवा विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ एनवायरनमेंट मैनेजमेंट सर्विस- डीईएमएस) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि नगर निकाय ने 3 नवंबर 2022 को, इन तीनों लैंडफिल साइट्स में से प्रत्येक से 30 लाख मीट्रिक टन (1 मीट्रिक टन = 1000 किलोग्राम) पुराने कचरे को संसाधित करने के लिए तीन कंपनियों को उनकी निविदा के आधार पर अनुबंध प्रदान किये थे. जब यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा तो अतिरिक्त 15 लाख मीट्रिक टन के लिए भी यही अनुबंध फिर से नए तरह से लागू कर दिया जाएगा.

ओखला वाले साइट के लिए प्रभारी कंपनी – ग्रीनटेक एनवायरन मैनेजमेंट – ने 7 नवंबर 2022 को अपना काम शुरू किया. भलस्वा के लिए अल्फा थर्म लिमिटेड और गाजीपुर के लिए सुधाकरा इंफ्राटेक को अनुबंध प्रदान किया गया है.

File photo of a segregation machine at work at the Okhla landfill | ANI
ओखला लैंडफिल में काम कर रही एक सेग्रीगेशन (कूड़े को छांटकर अलग करने वाली) मशीन | फाइल फोटो: ANI

लेगेसी वेस्ट, वह सॉलिड वेस्ट (ठोस कचरा) होता है जो दशकों से लैंडफिल साइट्स में पड़ा होता है, जबकि म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्ल्यू) शहर में हर दिन पैदा होने वाला ताजा कचरा होता है. एमएसडब्ल्यू  का एक भाग, जिसे संसाधित नहीं किया जाता है, लैंडफिल में चला जाता है और अंततः ‘लेगेसी वेस्ट’ बन जाता है.

डीईएमएस द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली प्रतिदिन लगभग 11,000 मीट्रिक टन पर डे (टीपीडी) एमएसडब्ल्यू उत्पन्न करती है  हालांकि, अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि इसमें से कितना कचरा ‘लेगेसी वेस्ट’ बन जाता है.

एक डीईएमएस अधिकारी ने कहा, ‘कचरे को लैंडफिल में डंप किया जाना अभी इस वजह से जारी है क्योंकि शहर में भारी मात्रा में उत्पन्न होने वाले कचरे को संसाधित करने की क्षमता काफी कम है. लेकिन ऐसे कदम (विशेष रूप से ट्रोमेलिंग) उठाए जा रहे हैं, जो ‘लेगेसी वेस्ट’ को लक्षित कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि सितंबर 2022 तक इन तीनों लैंडफिल साइट्स में डाले गए कुल 203 लाख मीट्रिक टन पुराने कचरे में से इन कंपनियों द्वारा अब तक लगभग 33.5 प्रतिशत (68 लाख मीट्रिक टन) का ही प्रसंस्करण किया गया है. लेकिन इन आंकड़ों में पिछले कुछ महीनों में डाले गए नए कचरे को शामिल नहीं किया गया है.

एमसीडी के प्रवक्ता अमित कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि प्रारंभिक समय सीमा एमसीडी द्वारा पिछले साल सितंबर में ड्रोन सर्वे के माध्यम से किये गए एक वॉल्यूमेट्रिक असेसमेंट (आयतन की दृष्टि से किये गए आकलन), जो यह समझने के लिए किया गया था इसमें से कितना कचरा साफ़ किया जा सकता है, के बाद तय की गई थी.  उन्होंने कहा, ‘इसके आधार पर ही हमने इस बात का वर्क मैप (कार्य मानचित्र) बनाया है कि हर दिन कितना काम किया जा सकता है.’


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लेगेसी वेस्ट का प्रसंस्करण

फिलहाल इन तीन कंपनियों द्वारा लगभग 16,000 टीपीडी पुराने कचरे को ट्रोमेल किया जा रहा है. ट्रॉमेलिंग, ट्रॉमेल मशीनों के माध्यम से कचरे को छानने और फिर इसे तीन श्रेणियों में पृथक करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है. इसमें अक्रिय अपशिष्ट (जो न तो रासायनिक रूप से और न ही जैविक रूप से प्रतिक्रियाशील होता है और जो या तो बिल्कुल भी नहीं अथवा बहुत धीरे-धीरे विघटित होता है); निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट (कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन-सीएंडडी- वेस्ट) जैसे कि कंक्रीट, इमारत का कचरा और मलबा, और पृथक ज्वलनशील अंश (सेग्रीगेटेड कम्बस्टिबल फ्रैक्शन- एससीएफ), जैसी श्रेणियां शामिल होती हैं.

डीईएमएस के अनुसार निष्क्रिय अपशिष्ट को केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और नगरपालिका के इंजीनियरों को दे दिया जाता है, सीएंडडी कचरे को निर्माण कंपनियों/निजी खरीदारों द्वारा खरीदा जाता है, और एससीएफ का पुनर्चक्रण हेतु फिर से उपयोग किया जाता है और इसे सीमेंट उद्योगों या तापीय (थर्मल) उद्योगों द्वारा ईंधन में बदल दिया जाता है.

ताजा कचरे से निपटना

लैंडफिल साइट्स को साफ करने का एक मतलब यह सुनिश्चित करना भी है कि ताजे कचरे की अधिकतम मात्रा को संसाधित किया जाए ताकि यह कचरे के पहाड़ों में न बदलें. यहीं पर अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र (वेस्ट टू एनर्जी –डब्ल्यूटीई- प्लांट) काम में आते हैं.

डब्ल्यूटीई संयंत्र बिजली पैदा करने के लिए ईंधन के रूप में अपशिष्ट (वेस्ट) का ठीक उसी तरह से उपयोग करते हैं, जैसे कि अन्य बिजली उत्पादित करने वाले संयंत्र कोयला, तेल या प्राकृतिक गैस का उपयोग करते हैं. जो भी अपशिष्ट किसी भी अन्य उद्योग में उपयोग नहीं किया जा सकता है, उसका उच्च कैलोरी मान (ऊष्मा मान) होता है और वह संदूषण से मुक्त होता है, इसलिए उसे इन संयंत्रों में भेजा जाता है.

वर्तमान में चार डब्ल्यूटीई संयंत्र काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी परिचालन क्षमता अभी भी उत्पन्न किये जा रहे कचरे की मात्रा से साथ तालमेल बनाए नहीं रख पा रही है, जिसके कारण अतिरिक्त रूप से बचे हुए कचरे को लैंडफिल साइट्स में डंप किया जा रहा है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमणदीप कौर | दिप्रिंट

डीईएमएस द्वारा दिप्रिंट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, बवाना (दिल्ली एमएसडब्ल्यू सॉल्यूशंस) में स्थित डब्ल्यूटीई नई दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी (एनडीएमसी) के अंदर आने वाले इलाकों (रोहिणी, करोल बाग) से उत्पन्न 6,000 टीपीडी कचरे के मुकाबले प्रति दिन लगभग 2,000 टन कचरा ही संसाधित कर सकता है.

इसी तरह गाजीपुर डब्ल्यूटीई (ईस्ट दिल्ली वेस्ट प्रोसेसिंग कंपनी) ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (ईडीएमसी) के इलाके (शाहदरा उत्तर और शाहदरा दक्षिण) से उत्पन्न होने वाले 3,000 टीपीडी कचरे के मुकाबले लगभग 1,300 टीपीडी कचरा संसाधित कर सकती है.

गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कचरे के पहाड़ की फाइल फोटो – मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

ओखला/तुगलकाबाद क्षेत्र में स्थित एक डब्ल्यूटीई (तिमारपुर-ओखला वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी) के पास लगभग 1,600 टीपीडी को संसाधित करने की क्षमता है और नव-उद्घाटित तेहखंड संयंत्र 1,000 टीपीडी को संसाधित कर सकता है. वे सॉउथ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (एसडीएमसी) के इलाकों (ओखला, नजफगढ़) में उत्पादित लगभग 3,600 टीपीडी कचरे को संभालते हैं.

दो अन्य डब्ल्यूटीई लगाए जाने की योजना भी है. एक उत्तरी दिल्ली में, जिसमें 3,000 टीपीडी कचरे को संसाधित करने की क्षमता है, और दूसरा पूर्वी दिल्ली में जिसमें 2,000 टीपीडी कचरे को संसाधित करने की क्षमता है. हालांकि, डीईएमएस अधिकारियों के अनुसार, परियोजनाएं ‘पाइपलाइन’ में हैं और इन्हें अभी भी मंजूरी मिलने की आवश्यकता है.


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किस समय सीमा को पूरा किया जाएगा

ओखला क्षेत्र में स्थित दो डब्ल्यूटीई संयंत्रों के पास लगभग 2,600 टीपीडी कचरे के प्रसंस्करण की संयुक्त क्षमता होने के बावजूद, कचरे के टीले की ऊंचाई 45 मीटर बनी हुई है. हालांकि, एमसीडी अधिकारियों का कहना है कि इस साइट पर कोई ताजा कचरा डंप नहीं किया गया है, लेकिन लैंडफिल की ऊंचाई कुछ और ही कहानी कहती है. ऐसे में उप-राज्यपाल द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन किया जाना असंभव लगता है.

हालांकि, डीईएमएस के मुख्य अभियंता सुधीर मेहता ने दिप्रिंट को बताया कि समतलीकरण का काम नगर निकाय द्वारा निर्धारित समय सीमा पर पूरा कर लिया जाएगा.

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के प्रमुख के.एस. जयचंद्रन ने भी कहा कि एमसीडी अपना काम समय सीमा के अंदर पूरा कर सकती है क्योंकि इस उद्देश्य के लिए धन जारी कर दिया गया है और ऐसा करने के लिए तंत्र मौजूद है.

उन्होंने कहा, ‘यह समय सीमा परिणाम-आधारित है. यह उपलब्ध तंत्र के आधार पर परिणाम को समायोजित करने के विपरीत, वांछित परिणाम पर पहुंचने के लिए तंत्र को खोज करने की दिशा में सक्षम है.  निश्चित समय सीमा के भीतर लैंडफिल को समतल करने की उनकी योजना के बारे में मेरा दृष्टिकोण काफी सकारात्मक है.’

डीईएमएस के अधिकारियों ने भी कहा कि वे इस बारे में आश्वस्त हैं और वे ‘लेगेसी वेस्ट’ के प्रसंस्करण में लगी कंपनियों से पूरी प्रक्रिया में तेजी लाने और संचयी रूप से कम-से-कम 50,000 टीपीडी कचरे के शोधन/संशोधन का प्रयास करने के लिए कहने की योजना बना रहे हैं.

ग्रीनटेक एनवायरन मैनेजमेंट के सीईओ रमाकांत बर्मन ने कहा कि उन्हें अभी तक प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए नहीं कहा गया है, लेकिन अगर कहा जाएगा तो ऐसा ही करेंगे. न तो डीईएमएस और न ही ग्रीन टेक ने इस बात को विस्तृत रूप से बताया कि लक्ष्यों को कैसे पूरा किया जाएगा.

हालांकि, सीएसई के विशेषज्ञों का मानना है कि एमसीडी के लक्ष्य अत्यधिक आशावादी हैं और तीनों साइटों को समतल करने में आधा दशक का समय लग सकता है.

सीएसई में म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट की प्रोग्राम ऑफिसर (कार्यक्रम अधिकारी) ऋचा सिंह ने कहा,  ‘भले ही एमसीडी हर दिन 20,000 मीट्रिक टन [एमसीडी आयुक्त द्वारा ‘स्वच्छ शहर संवाद’ के दौरान बताये गए आंकड़े के अनुसार] की संचयी क्षमता पर कचरा संसाधित करती है, फिर भी तीनों लैंडफिल साइटों को साफ करने में उन्हें लगभग 5.3 साल लगेंगे.’

उनकी गणना साल 2019 के मध्य तक ज्ञात ‘लेगेसी वेस्ट’ के वजन, जो तब 280 लाख मीट्रिक टन था,पर आधारित है. उन्होंने कहा कि मानसून के मौसम में कचरा प्रसंस्करण का काम भी प्रभावित होगा.

कार्रवाई की वांछित दिशा

सिंह के अनुसार, यदि एमसीडी डंपसाइट में सुधार लाने या पुराने कचरे से निपटने के लिए एक ठोस कार्य योजना चाहती है, तो उसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि और अधिक ताजा कचरा डंप नहीं हो रहा है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमणदीप कौर | दिप्रिंट

वे कहती हैं, ‘ऐसा करने के लिए, पहली और सबसे अधिक तरजीह वाली कार्रवाई के तहत एक ऐसा व्यवहार परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, जो उत्पादित कचरे को कम करे.  फिर कचरे को अलग करना, जिस भी चीज का पुन: उपयोग किया जा सकता है उसका फिर से उपयोग करना और कंपोस्टिंग और अन्य रिसाइक्लिंग/ट्रीटमेंट तंत्र के माध्यम से कार्बनिक गीले और सूखे कचरे दोनों को पुनर्चक्रित (रिसायकल) करना, आदि का स्थान आता है.‘

उन्होंने कहा कि प्लास्टिक और अन्य रिसायकल योग्य सामग्रियों को पुनर्नवीनीकरण (रिसायकल) किया जाना चाहिए और केवल उच्च कैलोरी मान (ऊष्मा मान) वाले प्लास्टिक को ही डब्ल्यूटीई में भेजा जाना चाहिए.

इस प्रस्तावित कार्य योजना में कचरे को कम करने के अलावा सभी कदम नगरपालिका स्तर पर ही किए जाने हैं.

उन्होंने कहा,  ‘अंतिम चरण, रिकवरी, ‘ऊर्जा पुनर्प्राप्ति’  (एनर्जी रिकवरी) से संबंधित है, जो डब्ल्यूटीई में उपचारित गैर-पुनर्नवीनीकरण (नॉन-रिसाइकेलेबल) वाला अपशिष्ट होगा. लेकिन पूरा ध्यान 100 प्रतिशत संग्रह दक्षता और स्रोत पर ही कचरे को अलग किये जाने पर होना चाहिए, ताकि कचरा बहुत कम मात्रा में डब्ल्यूटीई संयंत्रों तक पहुंचे.‘

उन्होंने बायोमीथेनेशन प्लांट्स (जहां जैविक सामग्री को बायोगैस में परिवर्तित किया जाता है) और स्रोत पर कचरे के संसाधन के लिए कंपोस्टिंग (खाद बनाने वाले) गड्ढों के महत्व पर भी जोर दिया. ये दोनों तरीके अभी तक दिल्ली में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं.

इस बारे में एमसीडी के कुमार का दावा है कि स्रोत पर ही कचरे को अलग किये जाने के काम को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और वार्ड स्तर पर 232 खाद बनाने वाले गड्ढे और संयंत्र पहले से ही काम कर रहे हैं तथा लगभग 800-900 टीपीडी कचरे का प्रसंस्करण कर रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘उनहत्तर (69) कॉलोनियों को शून्य-अपशिष्ट (जीरो वेस्ट) कॉलोनी में बदल दिया गया है, जहां घरेलू कचरे को गीले, सूखे और ई-कचरे के रूप में अलग किया जाता है. गीला कचरा कंपोस्टिंग गड्ढों में जाता है और ई-कचरा तथा सूखा कचरा रिसाइकल सेंटर्स में जाता है. जिस कचरे को रिसाइकल नहीं किया जा सकता, उसे एमसीडी कर्मचारी अपने साथ ले जाते हैं. इन आवासीय कॉलोनियों और ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों को सहभागिता योजना के तहत कर रियायतों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है.‘

(संपादन: ऋषभ राज | अनुवाद: राम लाल खन्ना)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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