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Friday, 19 April, 2024
होमदेश‘नो मीन्स नो’, सेक्सिज्म ‘कूल’ नहीं, बच्चों को विपरीत लिंग का सम्मान करना सिखाएं- केरल हाईकोर्ट

‘नो मीन्स नो’, सेक्सिज्म ‘कूल’ नहीं, बच्चों को विपरीत लिंग का सम्मान करना सिखाएं- केरल हाईकोर्ट

हाई कोर्ट कॉलेज में लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार और छेड़खानी के आरोपी एक व्यक्ति की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे कॉलेज की आंतरिक समिति ने दोषी पाया था. उसने इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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नई दिल्ली: केरल हाई कोर्ट ने एक मामले में यह टिप्पणी करते हुए कि सेक्सिज्म को कूल नहीं कहा जा सकता और असली मर्द महिलाओं को परेशान नहीं करते, इस बात पर जोर दिया कि कि बच्चों को कम उम्र में ही उनके परिवारों और स्कूलों की तरफ से विपरीत लिंगियों का सम्मान करना सिखाया जाना चाहिए.

गत 18 जनवरी को सुनाए एक फैसले में जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि ‘यौन उत्पीड़न के सभी या अधिकांश आरोप लड़कों पर ही लगते हैं और लड़कियों के खिलाफ ऐसे आरोप कम ही लगते हैं.’ साथ ही कहा कि लड़के ‘अक्सर कुछ यौन रूढ़िवादिताओं के साथ बड़े होते हैं, जो साथियों और अन्य सामाजिक प्रभावों के साथ और बलवती हो जाती हैं.’

अदालत ने आगे कहा कि यद्यपि मर्दानगी को लेकर पुरानी अवधारणाएं अब काफी बदल गई हैं, लेकिन उनमें और अधिक बदलावों की जरूरत है, और कहा कि ‘किसी लड़की/महिला के प्रति आदर और सम्मान दिखाना कोई दकिनानूसी परंपरा नहीं, बल्कि एक सर्वकालिक गुण है…कोर्ट ने कहा कि सेक्सिज्म स्वीकार्य या ‘कूल’ नहीं हो सकता. किसी की असली ताकत तभी सामने आती है जब वह किसी लड़की/महिला का सम्मान करता है. सम्मान करना सिखाना बेहद अनिवार्य है और इस गुण को कम उम्र में ही विकसित किए जाने की जरूरत है.

जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि एक बच्चे को परिवार के साथ-साथ स्कूल में भी शुरुआत से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि उसे विपरीत लिंगी का सम्मान करना चाहिए.

न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘उन्हें यह सिखाया जाना चाहिए कि असली पुरुष महिलाओं को धमकाते नहीं. यह अमानवीय है; न कि मर्दानगी की निशानी. वास्तव में, महिलाओं पर हावी होने वाले और उन्हें परेशान करने वाले पुरुष कमजोर होते हैं, यह संदेश पुरजोर और स्पष्ट तौर पर दिया जाना चाहिए.’

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इस बात को रेखांकित करते हुए कि हमारी शिक्षा प्रणाली चरित्र निर्माण के बजाये शैक्षणिक परिणामों और रोजगार पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है, जस्टिस रामचंद्रन ने कहा, ‘समय आ गया है कि मूल्य आधारित शिक्षा पर ध्यान दिया जाए ताकि हमारे बच्चे बड़े होकर अच्छे नैतिक गुणों वाले वयस्क बन सकें.’

कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘अच्छा व्यवहार और शिष्टाचार सिखाना पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए; और प्राथमिक कक्षाओं के स्तर पर ही सिखाया जाना चाहिए. शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों में गुणों और मूल्यों को स्थापित करने को बढ़ावा दें. लड़कों को सिखाया जाना चाहिए कि उन्हें किसी लड़की/महिला की स्पष्ट सहमति के बिना उन्हें स्पर्श नहीं करना चाहिए. उन्हें इसकी समझ होनी चाहिए कि ना का मतलब ना होता है.’

अदालत हारून एस. जॉन नामक एक व्यक्ति की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर अपने कॉलेज—टीकेएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कोल्लम—में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था. इसके बाद कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ने जॉन के खिलाफ जांच शुरू की, और उसे दोषी पाया. जॉन ने आईसीसी रिपोर्ट के साथ-साथ कॉलेज प्रिंसिपल की तरफ से उन्हें 18 महीने के लिए निलंबित करने के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

अदालत ने कॉलेज को एक एक वैधानिक समिति ‘कॉलेजिएट स्टूडेंट्स रिड्रेसल कमेटी’ गठित करने का निर्देश दिया, जो जॉन का पक्ष सुने और दो सप्ताह के भीतर अंतिम निर्णय ले सके. समिति को दोनों पक्षों को सुनना है और एक महीने के भीतर निर्णय लेना है.


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‘आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत’

कोर्ट ने फैसला सुनाना शुरू करने के साथ टिप्पणी की, ‘यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं है कि यौन उत्पीड़न के आरोपों को बेहद सामान्य ढंग से लिया जाने लगे, जैसा इन दिनों दिखाई देता है.’ साथ ही जोर देकर कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में स्टूडेंट के खिलाफ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाएं, ‘हमें, एक समाज के तौर पर गंभीरता से सोचने और आत्मनिरीक्षण करने के लिए बाध्य करती हैं.’

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि इसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की अहम भूमिका है, ताकि इस तरह के मुद्दों से संबंधित नियमों को प्रभावी तरह से लागू किया जा सके और उन पर नजर रखी जा सके.

अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में दखल रखने वाले और नीति निर्माता इस मुद्दे पर अपना ध्यान केंद्रित करें और रजिस्ट्री को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और भारतीय माध्यमिक शिक्षा प्रमाणपत्र (आईसीएसई) जैसे शिक्षा बोर्डों के साथ-साथ केरल के मुख्य सचिव, सामान्य शिक्षा विभाग के सचिव और उच्च शिक्षा विभाग के सचिव को निर्णय की एक प्रति भेजने का निर्देश दिया.

(संपादन: ऋषभ राज | अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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