नई दिल्ली: बीजू जनता दल (बीजद) का गठन उस समय हुआ था, जब भाजपा तटीय राज्य ओडिशा में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रही थी, और जैसा कि भाजपा ने उस वक्त महसूस किया था, यह केवल किसी क्षेत्रीय साझेदार के साथ गठबंधन करके ही किया जा सकता था. उसके लिए यह क्षेत्रीय सहयोगी था बीजद, जो तत्कालीन जनता दल से अलग हुए गुट से बना था और जिसका नेतृत्व ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक कर रहे थे.
अब यह एक विडंबना ही है कि आज, जब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में बीजद साल 2024 में अपने लगातार छठे कार्यकाल के लिए पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो रहा है, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा की ही है.
एक छोटे से क्षेत्रीय दल से शुरू करके बीजद ने पिछले 25 वर्षों में एक लंबा सफर तय किया है. दिसंबर 1997 में अपने गठन के बाद से यह संभवत: एकमात्र क्षेत्रीय दल है जिसने अब तक एक भी चुनाव नहीं हारा है. जहां पार्टी ने पिछले हफ्ते ही अपने 25 साल पूरे किए, वहीं मुख्यमंत्री के रूप में नवीन पटनायक का कार्यकाल भी 22 साल से बिना बाधा के ही रहा है.
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कैसे अस्तित्व में आया बीजद
पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रमुख उड़िया राजनेता श्रीकांत जेना, जो उस समय जनता दल के साथ थे, याद करते हुए कहते हैं कि बीजद का गठन 1997 में जनता दल के टूटे हुए गुट के नेताओं के साथ हुआ था.
जेना के मुताबिक, दरअसल बीजद का जन्म जनता दल के विभाजन के बाद राज्य में भाजपा द्वारा की गई राजनैतिक पैंतरेबाजी की वजह से हुआ था.
नवीन पटनायक, जिन्होंने 1997 में उनके पिता की मृत्यु के बाद अस्का लोकसभा सीट से जनता दल के टिकट पर अपना पहला उपचुनाव जीता था, पहले से ही एक लोकसभा सांसद थे. इसके तुरंत बाद, केंद्र में इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली सरकार उस वक्त धराशाई हो गई जब कांग्रेस ने इससे अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद जनता दल में विभाजन हुआ और भाजपा को वहां अपने लिए एक अवसर नजर आया.
जेना ने बताया कि बीजू बाबू (नवीन पटनायक के पिता) भाजपा के साथ किसी तरह के गठबंधन के खिलाफ थे. पर उनकी मृत्यु और जनता दल के विभाजन के बाद, दिवंगत भाजपा नेता प्रमोद महाजन गठबंधन के लिए अनुरोध करते हुए जेना के पास आए थे.
जेना ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए अटल जी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए भाजपा को ओडिशा से सिर्फ पांच लोकसभा सीटों की जरूरत है. मैंने कहा कि मैं भाजपा के साथ गठबंधन नहीं कर सकता, जिस पर महाजन ने मुझसे कहा कि पार्टी (जनता दल) टूटने वाली है.’
जेना, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे, ने कहा, ‘ओडिशा जनता दल के एक बड़े वर्ग ने भाजपा के साथ जाने का विकल्प चुना. उस वक्त ओडिशा में जनता दल की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी ही थी. कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा से हाथ मिलाना उनकी मजबूरी थी. उस समय उनके लिए वैचारिक बाध्यताओं की तुलना में राजनीतिक सहूलियत अधिक आकर्षक थी. उस समय ओडिशा में कांग्रेस सत्ता में थी और वे इसे हराना चाहते थे.‘
इसके कुछ ही समय बाद, नवीन पटनायक ने स्वर्गीय बीजू पटनायक के पुराने वफादार रहे दिलीप रे और अन्य जनता दल के नेताओं के साथ हाथ मिलाया और उन्होंने बीजद का गठन किया. जेना ने कहा, ‘इस तरह वे साथ आए, भाजपा और बीजद का गठबंधन सफल हुआ और उन्होंने 10 सालों तक साथ मिलकर सरकार भी चलाई. प्रमोद महाजन अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से नियुक्त प्रमुख व्यक्ति थे. उनके पास एक पूरी योजना थी… उन्होंने आकलन किया हुआ था कि उन्हें (ओडिशा से) कम से कम पांच भाजपा सांसदों की आवश्यकता है और अन्य को वाजपेयी का समर्थन करना चाहिए. यह (योजना) शीर्ष स्तर पर तैयार की गई थी.’
पार्टी बहुत आगे निकल चुकी है
जब बीजद का गठन हुआ, तब नवीन पटनायक राजनीति में नए आये थे. जनता दल के पूर्व नेताओं, जैसे कि दिलीप रे और बिजॉय महापात्रा जो उनके पिता के काफी करीबी थे, की सहायता से उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाया और यह सीखा कि हालत को अपने फायदे के लिए कैसे मोड़ना है.’
दिप्रिंट से बात करते हुए, भाजपा के बरगढ़ के सांसद, सुरेश कुमार पुजारी ने बताया कि कैसे पटनायक ने सरकार बनाने के बाद ही बड़ी चालाकी से भाजपा को दरकिनार करना शुरू कर दिया और आखिरकार 2009 में गठबंधन तोड़ दिया.
पुजारी ने कहा, ‘यह भाजपा ही थी जिसने जनता दल के विभाजन और एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बीजद के गठन को अंजाम दिलवाया, ताकि हम एक गठबंधन बना सकें और साथ मिलकर संसदीय चुनाव लड़ सकें. यह एक स्वस्थ गठबंधन था. लेकिन बीजद ने उन दिनों के हालात का फायदा उठाते हुए जानबूझकर हमें दरकिनार करने की कोशिश की. केंद्र में वाजपेयी सरकार चलती रही, इसे सुनिश्चित करने के लिए हमें उनके समर्थन की जरूरत थी. साल 2004 में, एनडीए लोकसभा चुनाव में हार गया था, लेकिन हम (भाजपा-बीजद गठबंधन) ओडिशा में चुनाव जीत गए थे.’
उन्होंने कहा कि साल 2004 से 2009 तक बीजद ने गठबंधन को खत्म करने की दिशा में काम करना शुरू किया. भाजपा सांसद ने कहा, ‘जब नवीन बाबू द्वारा गठबंधन को खत्म कर दिया गया तो हम चकित रह गए थे. शायद, नवीन बाबू द्वारा पहले से बनाई जा रही योजना के कारण वे सफल हो पाए थे.’
पटनायक ने सिर्फ भाजपा के साथ गठबंधन ही नहीं तोड़ा था. इसी सब के दौरान उन्होंने दिलीप रे, बिजॉय महापात्रा और प्यारी महापात्रा जैसे उन वरिष्ठ नेताओं को भी दरकिनार कर दिया, जो शुरुआती दिनों से ही उनके साथ खड़े थे.
‘आउटलुक पत्रिका के पूर्व संपादक रूबेन बनर्जी, जिन्होंने पटनायक के शुरुआती दिनों से ही उन पर निगाह रखी है और अपनी पुस्तक ‘नवीन पटनायक’ में उनकी राजनीतिक यात्रा को कलमबद्ध किया है, ने कहा कि बीजद ने 1996-97 की ‘व्यवस्था विरोधी पार्टी’ की स्थिति से आगे बढ़ते हुए खुद को अब एक ‘व्यवस्था वाली पार्टी’ में बदल लिया है.
बनर्जी ने दिप्रिंट को बताया, ‘वे इस वादे के साथ (सत्ता में) आए थे कि वे पूरी व्यवस्था को बदल देंगे. अब जमीनी स्तर या ब्लॉक स्तर या पंचायत स्तर पर सभी ठेकेदार, सत्ता के दलाल आदि बीजद के समर्थक या उसके सदस्य हैं. तो अब, वे व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं. व्यवस्था विरोधी मुद्दे पर सत्ता में आने के बाद, अब वे व्यवस्था के हित का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. पार्टी के सदस्यों के बिना कुछ भी नहीं चलता.’
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पटनायक भाजपा द्वारा पेश किए जा रहे खतरे से बेखबर नहीं हैं और 76 साल की उम्र में भी फिर आगे बढ़ने को तत्पर हैं. अगर कुछ हुआ है तो वह है कि हाल ही में हुए धामनगर उपचुनाव में भाजपा के हाथों मिली हार पार्टी के लिए खतरे की घंटी बनकर आई है और इसने उसे अपनी आत्मसंतोष वाली स्थिति से बाहर निकालने पर मजबूर कर दिया है.
खुद पटनायक आगे बढ़ कर इसका नेतृत्व कर रहे हैं. अपने खराब स्वास्थ्य की अफवाहों को झुठलाते हुए ओडिशा के मुख्यमंत्री ने पूरे राज्य का दौरा करना शुरू कर दिया है, सीधे लोगों तक पहुंच रहे हैं, अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं और 2024 के लिए अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं.
22 दिसंबर को वह बालासोर में करोड़ों की परियोजनाओं की शुरुआत कर रहे थे, फिर 26 दिसंबर को पार्टी द्वारा अपना स्थापना दिवस मनाये जाने के साथ उन्होंने पुरी में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और 29 दिसंबर को अंगुल का दौरा किया.
पार्टी के नेता इस नैरेटिव पर भी सवाल उठाते हैं कि पटनायक अंदरखाने में भाजपा के साथ हैं क्योंकि बीजद ने कई विवादास्पद बिलों के पारित होने के दौरान संसद में सरकार का समर्थन किया है.
प्रसन्न आचार्य, बीजद के राज्यसभा सांसद और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक, के अनुसार, पटनायक किसी आम राजनेता के बिलकुल विपरीत हैं. उन्होंने कहा, ‘वह कभी दूसरों पर आरोप नहीं लगाते, वह कभी कठोर शब्दों से प्रतिकार भी नहीं करते. वह हमेशा लोगों के साथ अच्छा तालमेल बनाये रखने की कोशिश करते हैं. वह टकराव या समझौते में विश्वास नहीं करते. लेकिन, जहां तक राज्य के हित की बात है, वह इससे समझौता करने वाले अंतिम व्यक्ति होंगें.’
इन बीजद नेता ने कहा कि जब भी बीजद ने यह महसूस किया है कि ने केंद्र सरकार की किन्हीं कार्रवाइयों से राज्य के हितों को नुकसान हुआ है तो पटनायक ने हर बार एक मजबूत आवाज उठाई है.
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वह क्या चीज है जो नवीन पटनायक को जनता के साथ जोड़े रखती है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह नवीन पटनायक और कल्याणकारी राजनीति के इर्द-गिर्द सावधानीपूर्वक रचे गए एक नैरेटिव का मिश्रण ही है जिसने उन्हें 22 साल से अधिक के समय के बावजूद उन्हें जनता के साथ जोड़े रखा हुआ है. एक असंगठित विपक्ष ने भी इस बात को सुनिश्चित किया है कि बीजद राज्य की राजनीति में आगे की सीट पर बनी रहे.
बीजद के पूर्व सांसद तथागत सत्पथी के मुताबिक, पटनायक के पास अपना जन जुड़ाव है. उड़िया अखबार ‘धारित्री’ के संपादक सत्पथी ने दिप्रिंट को बताया, ‘और शायद वो इसे अपने हित के लिए बचा कर रखे हुए हैं.’
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि 22 साल से अधिक समय तक सत्ता में रहने के बाद भी पटनायक की निजी लोकप्रियता पर शायद ही कोई खरोंच आई हो. उन्हें एक साफ-सुथरी छवि और साधारण जीवन शैली वाले नेता के रूप में देखा जाता है. उनकी सरकार द्वारा विशेष रूप से महिलाओं, ग्रामीण गरीबों, किसानों, बुजुर्गों और युवाओं को लक्षित कर शुरू की गईं कई कल्याणकारी योजनाओं के साथ, पटनायक ने इस बात को सुनिश्चित किया है कि 83% ग्रामीण आबादी और 48.4% महिला मतदाताओं वाले इस तटीय राज्य में उनका दबदबा बना रहे.
उड़िया दैनिक ‘संबाद’, जो ओडिशा का सबसे अधिक वितरित होने वाला अख़बार है, के उप महाप्रबंधक (समाचार), भबानी शंकर त्रिपाठी, ने दिप्रिंट को बताया, ‘पटनायक के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी इस छवि में कोई बदलाव नहीं आया है. उनके द्वारा शुरू की गई ढेर सारी गरीब-समर्थक योजनाओं के अलावा, यह उनकी सादगी ही है जो उन्हें इतने वर्षों के बाद भी आम आदमी का प्रिय बनाये हुई है.’
त्रिपाठी ने कहा कि पटनायक ने राजनीति में प्रवेश करने के बाद से ही बहुत सावधानी के साथ खुद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में पेश किया है. उन्होंने कहा, ‘55 वर्ष की आयु तक, यह नैरेटिव इस बात का था कि वह अच्छे जीवन के शौकीन हैं, विदेशों में रहते हैं, अभिजात वर्ग के सोसलाइट्स के साथ घूमते हैं, आदि. लेकिन ओडिशा आने के बाद, उन्होंने अपने लिए एक अलग नैरेटिव बनाया.’
पटनायक अब जिस भी तरह का राजनीतिक कौशल दिखा रहे हैं, उसके विपरीत उन्होंने एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में शुरुआत की थी. आचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि (उस वक्त) पटनायक एक राजनेता नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘वह एक कलाकार थे, उन्होंने बहुत अच्छी तस्वीरें बनाईं थी. उनका एक अलग तरह का व्यक्तित्व था. जब उन्होंने ओडिशा आकर नेतृत्व संभालने का फैसला किया तो कई लोगों ने कहा कि वह सफल नहीं होंगे, पार्टी बिखर जाएगी. लेकिन उन्होंने उन सब को गलत साबित कर दिया है.’
बनर्जी के मुताबिक, पटनायक ने जन धारणा को बहुत अच्छे से मैनेज किया है. बनर्जी ने कहा, ‘हालांकि उन्होंने कुछ बहुत ही गंदी राजनीतिक पैंतरेबाजियां की है, मगर उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया है कि इससे जुड़ी कोई भी गंदगी उनसे न चिपके. वह ‘मिस्टर क्लीन’ बने हुए हैं.’
पार्टी नेताओं का कहना है कि यह महिलाओं के बीच पटनायक का बेजोड़ समर्थन है जिसने बीजद की सफलता में प्रमुख योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि बीजू पटनायक के समय में ही ओडिशा पंचायती राज में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लाने वाला देश का पहला राज्य बन गया था. आचार्य ने कहा कि नवीन पटनायक ने इसे बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया.
महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया जाना शुरू से ही बहुत स्पष्ट था. आचार्य ने कहा ‘जिन स्वयं सहायता समूहों (सेल्फ हेल्प ग्रुप या एसएचजी) को हमने पूरे राज्य में बनाया है, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि घर की महिलाएं अपने पति या बेटे पर निर्भर न हों. यह महिलाओं को सशक्त बना रहा है. अब जब हम गांव में बैठकें करते हैं तो हमें वहां पुरुषों से ज्यादा महिलाएं मौजूद मिलती हैं. यह एक सामाजिक क्रांति है.‘
आज, ओडिशा में 6 लाख महिला एसएचजी हैं. बीजद के राज्यसभा सांसद सस्मित पाल ने कहा, ‘30 जिलों में 70 लाख ऐसी महिलाएं हैं, जो एसएचजी से जुड़ी हैं और जिस तरह का सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हम पाते हैं, वह वास्तव में परिवर्तनकारी है.’
एक ‘जेंटलमैन’ राजनेता, जिसकी अपनी पार्टी पर मजबूत पकड़ है
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, पटनायक एक ‘जेंटलमैन (सज्जन)’ राजनेता हो सकते हैं, लेकिन प्रशासन पर उनकी पैनी नजर है और उनकी पार्टी पर उनकी पकड़ काफी मजबूत है.
पार्टी पर पटनायक की पकड़ का एक उदाहरण इस बात से भी परिलक्षित होता है कि जिस तरह से पार्टी के सांसद संसद का सत्र चालू रहने के दौरान पार्टी द्वारा अपनाई जाने वाली लाइन के बारे में बताए जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं. ओडिशा कैडर के एक नौकरशाह ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर, पार्टी के सांसद क्या लाइन लेते हैं, यह हमारे मुख्यमंत्री द्वारा ही तय किया जाता है. यहां तक कि राज्य से जुड़े सवालों पर भी क्या जवाब देना है, यह मुख्यमंत्री कार्यालय पहले ही तय कर देता है.’
पार्टी नेताओं ने कहा कि पटनायक ने एक सक्षम प्रशासक के रूप में अपनी क्षमता साबित की है.
हालांकि, वह प्रशासन के रोजमर्रा के कामों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वह इसमें शामिल नहीं है. आचार्य ने कहा, ‘वह शासन-प्रशासन पर पैनी नज़र रखते हैं. उन्होंने साफ कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के आरोपी किसी नौकरशाह या मंत्री के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से पहले वह दोबारा कभी नहीं सोचते हैं.‘
बीजद नेताओं ने कहा कि इस तटीय राज्य में पार्टी का इतना दबदबा इसलिए है क्योंकि पटनायक ने पहले दिन से लोगों की दिल से सेवा की है.
पात्रा ने कहा, ‘उन्होंने ओडिशा के लोगों की सेवा के मूल मंत्र पर आधारित उस नेतृत्व को संचालित, विकसित, संलग्न और निर्मित किया है, जो उसकी प्रकृति में बहुत परिवर्तनकारी है.’
इस कायाकल्प का उदाहरण देते हुए पात्रा ने कहा कि जब पटनायक ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था तब यह राज्य गरीबी में लगभग डूब ही रहा था. पात्रा ने कहा, ‘नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक, उन्होंने एक करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. ओडिशा में गरीबी में 25% की कमी देखी गई है, जो किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक है. इसके अलावा, 80% लोग खाद्य सुरक्षा योजनाओं के अंतर्गत आते हैं.‘
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लेकिन सभी लोग इससे सहमत नहीं हैं
साल 2019 में कांग्रेस से निष्काषित किए गए जेना ने कहा कि यह मान लेना गलत है कि पटनायक के नेतृत्व में ओडिशा ने काफी प्रगति की है.
जेना पूछते हैं, ‘नवीन पटनायक के 22 साल से अधिक समय तक शासन करने के बावजूद, ओडिशा एक गरीब राज्य बना हुआ है. इसकी प्रति व्यक्ति आय सबसे कम क्यों है? सबसे ज्यादा पलायन ओडिशा से ही क्यों हो रहा है? आप ओडिशा में हॉकी के विश्व कप का आयोजन कर सकते हैं, एक बहुत अच्छा सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं, लेकिन नौकरियां कहां हैं?’
जेना ने कहा कि पटनायक चुनाव दर चुनाव इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि कोई चुनौती देने वाला ही नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मैदान पर केवल एक ही टीम खेल रही है, अन्य सभी उसके प्रॉक्सी (परोक्ष समर्थक) हैं, इसलिए जो टीम खेल रही है वह तो जीत ही जाएगी. आज के दिन में नवीन पटनायक के लिए असली चुनौती कौन है? राज्य में हो रही लूट में हर कोई भागीदार है.‘
आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ से भाजपा सांसद जुआल ओराम ने कहा कि इतने सालों के बाद पटनायक सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर प्रकट होने और दिखने लगी है.
ओराम ने कहा, ‘लोगों का आक्रोश बढ़ रहा है. बीजद 22 साल से अधिक समय से सत्ता में है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ओडिशा कहां खड़ा है? नौकरियां नहीं हैं, आर्थिक स्थिति खराब हो गई है, भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. सरकार कर क्या रही है?’
अनिश्चित भविष्य
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि बीजद का अब तक का सफर तो बहुत अच्छा रहा है, लेकिन एक बार पटनायक के संन्यास लेने का फैसला करने के बाद का इसका भविष्य अनिश्चित दिखता है.
बनर्जी के अनुसार, यह ‘बहुत ही अस्थिर स्थिति’ होने वाली है.
बनर्जी ने कहा, ‘उन्होंने किसी को तैयार नहीं किया है. तो एक तरह का खालीपन होगा. भाजपा भी अपनी किस्मत आजमा रही होगी, उसके पास काफी संसाधन हैं और वह राज्य की ‘नंबर दो’ पार्टी तो है ही. अगर बीजद को कोई कद्दावर नेता नहीं मिला तो पार्टी टूट सकती है और भाजपा उसे निगल जाएगी.‘
लेकिन बनर्जी को ऐसी स्थिति नहीं दिखती जहां बीजद मौजूद ही न हो. उन्होंने कहा, ‘भाजपा के चाहने भर से बीजद ख़त्म नहीं हो सकती, यह अभी भी बनी रहेगी. इसकी अपनी संरचना है. इसके पास बहुत सारे संसाधन हैं. पार्टी को सिर्फ एक विश्वसनीय नेता, विश्वसनीय चेहरे की जरूरत है.‘
बीजद के एक पूर्व नेता, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘आर.एन. सिंह देव, हरेकृष्ण महताब, नीलमणि राउत्रे, बीजू पटनायक के बाद ओडिशा का क्या हुआ? राज्य तो फिर भी बचा रहा. वे सभी मुख्यमंत्री थे, और उनमें से कुछ ऐसी पार्टियों के प्रमुख भी थे जो कांग्रेस से अलग हुए गुट से बनी थीं. यही वह जगह है जहां ओडिशा को बाहरी नजरिए से देखने वाले लोगों को इस बात का अहसास नहीं है कि औसत उड़िया मतदाता ने हमेशा किसी राष्ट्रीय संगठन के बजाय एक क्षेत्रीय संगठन को ही चुना है.‘
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