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Tuesday, 17 December, 2024
होममत-विमतपुलवामा हादसे के भगोड़े आशिक नेंगरू की हत्या से नहीं हुई बात खत्म, जैश-ए-मोहम्मद की दास्तां अभी बाकी है

पुलवामा हादसे के भगोड़े आशिक नेंगरू की हत्या से नहीं हुई बात खत्म, जैश-ए-मोहम्मद की दास्तां अभी बाकी है

भले ही कश्मीर के अंदर जैश के खतरे को कुचल दिया गया लगता हो, पर इस संगठन ने अपनी क्षमताओं को कायम रखा है.

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स्विमिंग पूल में कूदते हुए पांच आदमी हंस रहे हैं – यह सेल्फी एक पूरे देश को खून में डुबोने की तैयारी कर रहे मर्दों की ‘मासूम’ सी दिखने वाली खुशी के एक छोटे से पल को रिकॉर्ड करती है. साल 2016 की गर्मियों के अंत में, मुहम्मद उमर फारूक अफगानिस्तान के धूल-धक्कड़ से भरे शहर संगिन से पाकिस्तान के बहावलपुर स्थित अपने घर लौटा था. रिश्ते में उसके भाई और जिहाद में उसके करीबी बिरादर -तल्हा रशीद अल्वी, मोहम्मद इस्माइल अल्वी और रशीद बिल्ला- उस सुबह उसके साथ दक्षिणी पंजाब में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के विशाल मदरसे के अंदर पूल में दाखिल हुए थे.

इसके तक़रीबन दो साल बाद, फारूक कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए साल 2019 के उस आत्मघाती बम विस्फोट के लिए जिम्मेदार सेल की कमान संभालता है, जिसने भारत और पाकिस्तान को जंग के मुहाने तक पहुंचा दिया था.

इस सप्ताह की शुरुआत में, जम्मू और कश्मीर पुलिस द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के गुर्गे आशिक अहमद नेंगरू को मार गिराए जाने की सूचना मिली थी. वह एक ट्रक चालक, एक समय का पुलिस मुखबिर और इस आत्मघाती हमले में शामिल सबसे महत्वपूर्ण भगोड़ों में से एक था. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोप लगाया था कि नेंगरू ने ही फारूक को कठुआ जिले के हीरानगर से कश्मीर पहुंचाया था और उसे एक महफूज ठिकाना (सेफ हाउस) भी मुहैया कराया था.

उसके मारे जाने के साथ ही इस मामले का पटाक्षेप हुआ जैसा लग सकता है, लेकिन यह जैश-ए-मोहम्मद के ‘सफर’ में एक मोड़ पर आया है. कड़े अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करते हुए, पाकिस्तान ने खुद को जैश से दूर करने की कोशिश की, और उसने यहां तक भी दावा किया है कि उसका ‘क्लाइंट स्टेट’ अफगानिस्तान ही फारूक के चाचा और इस संगठन के प्रमुख मसूद अजहर अल्वी को पनाह दे रहा है.

हालांकि, हाल के महीनों में, जैश ने कश्मीर में मारे गए जिहादियों की याद में सार्वजनिक रैलियां आयोजित की हैं और अपने मदरसे के विस्तार के लिए खूब पैसा भी जुटाया है. कश्मीर पुलिस के जांचकर्ताओं ने यह भी दावा है कि इस्लामाबाद के द्वारा इस समूह को बंद करवा दिए जाने के दावे के बावजूद, नेंगरू ने ट्रकों (और यहां तक कि ड्रोन का भी) इस्तेमाल करके जैश के लिए हथियारों की आवाजाही जारी रखी हुई थी.

स्विमिंग पूल वाली तस्वीर में दिख रहा हर शख्स अब मर चुका है, लेकिन खुद जैश को खत्म करना मुश्किल साबित हुआ है.


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जैश का पुनर्जन्म

चार फीट से भी कम लम्बा, अधेड़ और गंजा, नूर मुहम्मद तांत्रे एक डरावने जिहादी कमांडर की तरह बिल्कुल नहीं दिखता था. भारतीय संसद पर हुए साल 2001 के हमले के बाद, तांत्रे को जैश के लिए नई दिल्ली में विस्फोटक पहुंचाने का दोषी ठहराया गया था. इस मामले में अभियोजकों ने दावा किया था कि पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिए जाने बाद तांत्रे संसद पर हुए हमले के कमांडर शाहबाज़ खान के नेटवर्क में शामिल एक प्रमुख व्यक्ति बन गया था. सलाखों के पीछे 12 साल बिताने के बाद तांत्रे साल 2015 में जेल से छूटा था.

वह जिस जिहादी समूह में शामिल हुआ करता था, वह इस के बीच के अंतराल के दौरान बिखर गया था. भारतीय संसद पर हमले के बाद शुरू हुए सैन्य गतिरोध के मद्देनजर पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने जैश पर सख्त कार्रवाई की थी. स्वयं अजहर को गिरफ्तार कर लिया गया था और उसके तमाम प्रशिक्षण शिविर बंद कर दिए गए थे. साल 2012 और 2013 के बीच कश्मीर में इस जिहादी समूह का एक भी लड़ाका नहीं मारा गया और यह इस बाद का संकेत था जिहादी परिदृश्य में यह किस कदर हाशिए पर चला गया था.

इस बीच एक तरफ जहां फारूक और उसके दोस्त अफगानिस्तान में प्रशिक्षण ले रहे थे, वहीं तांत्रे ने साल 2016 की गर्मियों में बड़े पैमाने पर भड़के इस्लामवादी नेतृत्व वाली बगावत से मदद लेते हुए दक्षिणी कश्मीर में जैश समर्थकों की एक नई पीढ़ी को भर्ती करना शुरू कर दिया था. उस समय सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, जिहादी समूहों ने इस इलाके पर राज करना शुरू कर दिया था, यहां तक कि उन्होंने अपने झंडे भी फहराए और मिलिट्री परेड्स भी आयोजित कीं. जिन गांवों में जैश काम करता था, वहां जैश का पाकिस्तानी कैडर ‘हीरो’ बन गया था, जो उन्मादी युवाओं की भीड़ को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था.

आतंकवादी हमलों के एक लंबे सिलसिले के बाद गुस्से से भरे भारत ने सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार हमला कर दिया. इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) निदेशालय को इसके लिए पलटवार करने की जरुरत थी और उसने जैश को खुला छोड़ दिया. इसी के बाद आतंकियों ने नगरोटा में भारतीय सेना के एक ठिकाने पर हमला किया, जिसमें सात जवान शहीद हो गए. साल 2017 में और भी आत्मघाती ऑपरेशन हुए और उस वर्ष दिसंबर में पहले कश्मीरी मूल के फिदायीन-किशोर फरदीन खांडे और मंज़ूर बाबा – द्वारा किये गए के हमले के साथ इन हमलों की परिणति हुई.

खांडे की तरह, कई अन्य युवा कश्मीरियों ने भी जैश में संचलनात्मक (ऑपरेशनल) भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी थीं. जैसा कि एनआईए का कहना है कि फारूक की कथित प्रेमिका इंशा जान ने शाकिर बशीर, वैज-उल-इस्लाम, मुहम्मद अब्बास राथर, बिलाल कुचाय और अब्बास राठेर के साथ मिलकर बम बनाने के लिए इस्तेमाल गए जेलिग्नाइट को प्राप्त करने और महफूज ठिकाने मुहैया कराने के साथ पुलवामा हमले की साजिश में अहम भूमिकाएं निभाईं थीं.

पुलवामा हादसे तक ले जाने वाली राह

साल 2017 के अंत में, खुफिया अधिकारियों ने इस प्रकार की चेतावनियों की एक श्रृंखला जारी करना शुरू कर दी थी कि जैश फिर से बड़े बम विस्फोटों की योजना बना रहा है. सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह ख़ुफ़िया जानकारी तांत्रे द्वारा भर्ती किए गए त्राल-क्षेत्र के निवासी आरज़ू बशीर से मिली थी. इस गिरफ्तारी से अन्य बातों के साथ-साथ तल्हा और बिल्ला की हत्या तथा तांत्रे की गिरफ्तारी भी हुई थी. भले ही इस ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर किये गए ऑपरेशन अधिकारियों को पुलवामा वाली साजिश तक ले जाने में विफल रहे, मगर जैश के दर्जनों अन्य काडर मारे गए.

इन्हीं ऑपरेशन के दौरान कश्मीर में जैश के सैन्य प्रमुख अब्दुल मतीन की जान भी चली गई थी. पाकिस्तान के बहावलपुर के रहने वाले मतीन को व्यापक रूप से उसके उपनाम मुफ्ती वकास के नाम से जाना जाता था. अंत में, फारूक के भाई उस्मान को अक्टूबर 2018 में भारतीय सेना द्वारा मार गिराया गया था. जांचकर्ताओं का कहना है कि यह उन घटनाओं में से एक थी जिसने आदिल अहमद डार को पुलवामा आत्मघाती बम विस्फोट के लिए स्वेच्छा से आगे आने को प्रेरित किया था.

तल्हा की हत्या के बाद अजहर ने सोशल मीडिया पर जारी किया गया एक मर्सिया लिखा था: शहीद के खून के पहले कतरे के गिरने के साथ ही उसके सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं, वह कब्र की तकलीफों और क़यामत के दिन के खौफ से आजाद हो जाता है, 72 हूरों से उसकी शादी होती है; उसके खानदान को अल्लाह की रहमत मिलती है.’

पुलवामा बम विस्फोट से कुछ घंटे पहले ली गई एक अन्य तस्वीर में एक स्विमिंग पूल से शुरू हुए इस सफर के अंत को रिकॉर्ड किया गया है: फारूक अपने स्विमिंग पूल वाले दोस्त इस्माइल के साथ आत्मघाती हमलावर आदिल डार के बगल में खड़ा है. इस दूसरी तस्वीर में केवल एक व्यक्ति है जो अभी भी जिन्दा हो सकता है: वह है कश्मीरी मूल का समीर डार; जिस पर एनआईए द्वारा आरोप लगाया गया है कि उसने पुलवामा में इस्तेमाल किए गए बम को बनाने में मदद की थी.

इस साजिश में शामिल दूसरे पायदान के कई अन्य लोगों की तरह, नेंगरू भी बम विस्फोट के बाद सीमा पार भाग गया था. भारतीय खुफिया अधिकारियों का कहना है कि कुछ समय के लिए उसने बहावलपुर में मदरसा में काम किया और फिर उसे वापस (आतंक के) काम पर लगा दिया गया.


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लगातार बना हुआ खतरा

पुलवामा बम विस्फोट के बाद, भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने एलओसी के पार (बालाकोट में) हमला किया, जिसके कारण पाकिस्तान वायु सेना ने जवाबी कार्रवाई भी की थी. युद्ध के भड़कने की संभावना का सामना करते हुए, इस्लामाबाद ने कश्मीर में जिहादी अभियानों की रोकथाम करते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी. पिछले साल, पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम को फिर से लागू करने पर भी रजामंदी दे दी, जिससे भारतीय सेना जिहादी गतिविधियों को और आसानी से रोकने में सक्षम हो सकी.

हालांकि, जिहादी समूहों के लिए निम्न स्तर पर साजो-सामान वाला समर्थन जारी रहा, जिसके तहत नेंगरू जैसे लोग कश्मीर में छोटे हथियारों और कैडरों को अंदर धकेल रहे थे. इस साल की शुरुआत में, पुलिस ने जैश के दो गुर्गों को मार गिराया था, जिनके बारे में माना जाता है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से पहले आत्मघाती हमले की साजिश रच रहे थे. पुलिस का आरोप है कि नेंगरू ही इस निष्फल हमले की सारी व्यवस्था कर रहा था.

हालांकि, आईएसआई ने अजहर का त्याग कर दिया है, जैश के अन्य शीर्ष सदस्य सक्रिय हैं. इस आतंकी प्रमुख का भाई और जैश का सैन्य प्रमुख अब्दुल रऊफ असगर अल्वी बहावलपुर मदरसे में सक्रिय बना हुआ है. अज़हर के छोटे भाई अम्मार अल्वी और मोहिउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर जैसे दूसरी पंक्ति के कमांडरों के मामले में भी ऐसा ही हैं.

दो साल पहले, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस बात को दर्ज किया था कि लश्कर-ए-तैयबा के साथ-साथ जैश भी अफगानिस्तान में ऐसे आतंकवादी लड़ाकों की तस्करी की सुविधा प्रदान कर रहा था, जो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाईसेस (आईईडी) के इस्तेमाल के सलाहकार, प्रशिक्षक और विशेषज्ञ के रूप में कार्य करते हैं.’

इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि इन दो समूहों के बारे में माना जाता है कि उनके ‘क्रमशः लगभग 800 और 200 ऐसे सशस्त्र लड़ाके हैं, जो तालिबान बलों के साथ एक ही जगह पर रहते हैं.’ भले ही कश्मीर के अंदर जैश के खतरे को कुचल दिया गया लगता हो, पर इस संगठन ने अपने बुनियादी ढांचे, क्षमताओं और घातक पहुंच को बरकरार रखा है. नेंगरू का मारा जाना उस कहानी में आये विराम चिह्न जैसा है जो लगभग निश्चित रूप से अपने अंत से बहुत दूर है.

(अनुवादः राम लाल खन्ना । संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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