चंडीगढ़: पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार भले ही स्वयंभू सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह संधू के खुलेआम खालिस्तान (एक स्वतंत्र स्वायत्त सिख राज्य) के मुद्दे पर चुप रही हो, लेकिन सभी पार्टियों, सिख प्रचारकों और यहां तक कि आम सिखों से अलग राजनेता विवादास्पद उपदेशक के आचरण और कथनों पर सवाल दागने के लिए एकजुट हो गए हैं.
29-वर्षीय संधू के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, जिन्हें दिवंगत पंजाबी अभिनेता और वकील दीप सिद्धू द्वारा स्थापित एक सामाजिक संगठन वारिस पंजाब दे के एक गुट का प्रमुख बनाया गया था. अक्टूबर में, संधू ने मीडियाकर्मियों से कहा था कि वे पिछले 10 वर्षों से दुबई में थे और अपने धर्म की सेवा के लिए उन्होंने पंजाब लौटने का फैसला किया है.
संधू ने सिख युवाओं से नशे की लत छोड़ने और अपने धर्म का प्रसार करने के मकसद से 23 नवंबर को अमृतसर में अकाल तख्त से एक खालसा वाहीर (धार्मिक मार्च) शुरू किया. माझा और दोआबा जिलों से मार्च करने के बाद, वाहीर का पहला चरण पिछले सप्ताह आनंदपुर साहिब में समाप्त हुआ. वाहीर का दूसरा चरण मालवा के जिलों से गुज़रेगा.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वाहीर के कई वीडियो में, संधू को हथियार बंद लोगों से घिरे हुए देखा गया है. मार्च में लोग खुले तौर पर खालिस्तान की वकालत कर रहे हैं, खालिस्तानी नारे लगा रहे हैं और सिख युवाओं को खुद को हथियार बंद रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
इस महीने की शुरुआत में, वाहीर के दौरान, संधू और उनके समर्थकों ने दो गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की. उनका आरोप था कि गुरुद्वारों के प्रबंधन सिख रेहत मर्यादा (सिख आचार संहिता) के अनुसार यहां के मामलों का संचालन नहीं कर रहे थे.
इन घटनाओं के बाद, सिख प्रचारकों ने इस कदम के लिए संधू की आलोचना की. इन गुरुद्वारों में सिख आगंतुकों ने उनके समर्थकों को ‘गुंडे’ करार दिया और कहा कि बर्बरता ‘अपवित्रता का कार्य’ थी.
प्रमुख सिख प्रचारकों ने भी संधू की सिख धर्म की समझ में गलतियों की ओर इशारा किया, जिसके परिणामस्वरूप सोशल मीडिया पर गाली-गलौज का सिलसिला शुरू हो गया.
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पिछले महीने एक संवाददाता सम्मेलन में पंजाब में संधू की अचानक मौजूदगी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था, केंद्र सरकार राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर कड़ी नज़र रख रही है.
पुरी ने कहा था, ‘हम सभी जानते हैं कि वह (संधू) दुबई से हैं लेकिन क्या किसी ने वहां उनका ट्रैक रिकॉर्ड चेक किया है?…ऐसा नहीं होना चाहिए कि इस तरह की घटना को बढ़ावा दिया जाए.’
इस बीच, पंजाब बीजेपी नेता लक्ष्मी कांता चावला ने पिछले महीने आरोप लगाया कि संधू ‘विदेशी खुफिया एजेंसियों के एजेंट हैं, जो भारत में अशांति के अलावा कुछ नहीं चाहते हैं’.
चावला के जवाब में, संधू ने एक साक्षात्कारकर्ता से कहा कि उन्हें उनसे पंजाबी में सवाल पूछना चाहिए क्योंकि वह हिंदी में पूछे गए किसी भी सवाल का जवाब नहीं देंगे.
एक अन्य बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वे पंजाब की स्थिति को ‘बेहद चिंता’ से देख रहे हैं और कानून-व्यवस्था की स्थिति को राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए.
अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘मैंने पंजाब में आतंकवाद के काले दिन देखे हैं और मैं उस समय को दोहराना नहीं चाहता.’
शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया एक ‘डुप्लिकेट भिंडरावाले’ (खालिस्तानी उग्रवादी संत जरनैल सिंह भिंडरावाले) के बारे में बोल रहे थे, जो हिंदुओं और सिखों को विभाजित कर रहे हैं.
पिछले महीने मीडियाकर्मियों के सामने उन्होंने कहा था कि इससे पंजाब का माहौल खराब करने, राज्य को फलने-फूलने नहीं देने का कोई मकसद पूरा नहीं होगा.
ऑल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट के अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा ने संधू को पाकिस्तान और अफगानिस्तान जाने की चुनौती दी है, जहां सिखों के साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है और गुरुद्वारों को सुरक्षा की ज़रूरत है.
अक्टूबर में एक मीडियाकर्मी से बात करते हुए बिट्टा ने कहा था, ‘अगर वह और उनके लोग सच में उतने ही बहादुर हैं जितना वे होने का दावा करते हैं और अपने धर्म के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो उन्हें पाकिस्तानी सरकार को निशाने पर लेना चाहिए, जिसने न केवल ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण सिखों की इमारतों बल्कि गुरुद्वारों को भी नुकसान पहुंचाया है.’
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर मंजीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि पंजाब में संधू के उदय को बढ़ते हिंदू और इस्लामी उग्रवाद के संदर्भ में समझा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘हर 25-30 साल में पंजाब के सिख अपनी वीरता और धार्मिक जज्बे की परीक्षा लेते हैं. वह चक्र अपने को दोहराता रहता है. हालांकि, संधू के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन वह जो कह रहे हैं उससे यह साफ है कि वह चाहते हैं कि सिख संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के नक्शेकदम पर चलें. खालिस्तान के बारे में उनके बयानों को हिंदू चरमपंथियों द्वारा हिंदू राष्ट्र की मांग के संदर्भ में देखा जा सकता है.’
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गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की लोगों, राजनेताओं ने की आलोचना
नौ दिसंबर को, संधू और उनके सशस्त्र लोगों के समूह ने कपूरथला जिले के बिहारीपुर गांव में एक गुरुद्वारे के गर्भगृह से ऊंचे आसन को हटा दिया और उनमें आग लगा दी.
संधू ने कहा कि संगत के किसी भी सदस्य को गुरु ग्रंथ साहिब (सिखों द्वारा जीवित गुरु माने जाने वाले) की उपस्थिति में एक ऊंचे आसन या मंच पर बैठने की अनुमति नहीं है.
13 दिसंबर को, उन्होंने जालंधर के मॉडल टाउन में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में इसी कारण का हवाला देते हुए कुर्सियों और बेंचों को हटा दिया और उनमें आग लगा दी.
पहले तो, जालंधर गुरुद्वारा प्रबंधन ने संधू का विरोध नहीं किया, लेकिन उनके लोगों के वहां से चले जाने के बाद, परेशान प्रबंधन ने संधू के व्यवहार को सार्वजनिक किया.
ग्रंथि परमजीत सिंह ने मीडियाकर्मियों से कहा कि संधू और उनके आदमियों ने गुरुद्वारे के अंदर नुकसान पहुंचाकर ‘बेअदबी’ की थी.
गुरुद्वारा आने वाले कुछ लोगों ने संधू की तीखी आलोचना की और कहा कि उन्होंने यह धार्मिक उत्साह में नहीं किया.
जालंधर गुरुद्वारे में अक्सर आने वाली बुजुर्ग सिख महिलाओं के एक समूह ने कुर्सियों को हटाने के लिए अमृतपाल और उनके समर्थिकों की आलोचना की और कहा कि वह अपनी उम्र के कारण अब फर्श ज्यादा देर बैठने तक नहीं बैठ सकतीं.
नाम न छापने की शर्त पर 80-वर्षीय एक महिला ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके घुटने ऐसे हैं कि वे ज़मीन पर नहीं बैठ सकतीं और कुर्सियों पर बैठने में कोई बुराई नहीं है. पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की पत्नी, ने बताया कि संधू को खुद को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. वहां एक नियम था जिसका पालन करना सभी के लिए ज़रूरी था.
बाद में, 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए संधू ने कहा कि वह महिला अहंकारी थी और गुरु ग्रंथ साहिब के बराबर बैठना चाहती थीं. ‘शादियों में नाचते समय उन्हें अपने घुटनों में कोई समस्या नहीं है,’ संधू ने एक वायरल वीडियो में उन्हें एक सिख महिला समझकर चुटकी ली, जिसे एक शादी में साड़ी पहने और नाचते हुए देखा गया था.
18 दिसंबर को, संधू और उनके समर्थकों ने शहीद भगत सिंह नगर जिले के गरचा गांव में एक गुरुद्वारे में स्मारक संरचनाओं (मढ़ी) को नुकसान पहुंचाया था. उन्होंने कहा था कि गुरुद्वारे में किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की याद में ढांचा बनाने की जगह नहीं है.
जालंधर गुरुद्वारा प्रकरण के बाद, कांग्रेस सांसद रवनीत बिट्टू ने संधू और उनके आदमियों को ‘गुंडा‘ करार दिया और कहा कि उन्हें गुरुद्वारा परिसर में प्रवेश करने और फर्नीचर हटाने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि यह अपवित्र कार्य था और पूछा कि गुरुद्वारा समितियों ने उनके खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कराई.
पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने संधू की गतिविधियों की आलोचना करते हुए, मीडियाकर्मियोंको से कहा कि संधू और उनके आदमियों को जालंधर के मॉडल टाउन स्थित गुरुद्वारे में तोड़फोड़ नहीं करनी चाहिए थी और पंजाब में बने इस तरह के हालात से हर समुदाय के लोग चिंतित थे.
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सिख प्रचारकों ने संधू को आड़े हाथों लिया
लोकप्रिय सिख उपदेशक रंजीत सिंह ढड़रियावाले ने भी संधू के समूह द्वारा कुर्सियां जलाने को लेकर आड़े हाथों लिया. ढड़रियावाले ने कहा, ‘एक बेंच या कुर्सी पर बैठना बेअदबी नहीं है. बेअदबी वह है जब लोग गुरु ग्रंथ साहिब के नाम पर पैसा और ज़मीन बनाते हैं. पीछे की कुर्सियों पर बैठे बूढ़े लोग गुरु ग्रंथ साहिब के दुश्मन नहीं हैं, वे केवल आशीर्वाद लेने आते हैं.’
तरनतारन जिले के धुंडा गांव में एक संबोधन के दौरान, संधू ने खालिस्तान को लेकर एक अन्य लोकप्रिय उपदेशक सरबजीत सिंह धुंडा के बयान पर तीखा पलटवार किया था.
धुंडा ने कहा था, ‘अगर खालिस्तान बनाया जाता है, तो सिखों के बीच विभिन्न समूह इस बात को लेकर लड़ेंगे कि कौन मंत्री बनेगा और कौन प्रधानमंत्री बनेगा. जो लोग खालिस्तान की मांग कर रहे हैं, उन्हें पहले यह पता लगाना चाहिए कि वास्तव में खालिस्तान में कौन रहना चाहता है.’
संधू ने जवाब दिया था कि सिख प्रचारकों में से किसी ने भी सिखों पर अत्याचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने की ज़हमत नहीं उठाई और बल्कि 20 वर्षों तक उन्होंने एक सिख के जीवन के तरीके पर सीधी-सादी चर्चा जारी रखी.
दिसंबर के शुरुआत में, धुंडा गांव के अन्य लोगों ने सरपंच स्वर्ण सिंह के नेतृत्व में संधू की टिप्पणियों की निंदा की थी.
प्रोफेसर मनजीत सिंह ने कहा, हालांकि, खालिस्तान को लेकर काफी शोर मचाया जा रहा है, लेकिन यह कैसे बनेगा, इसका स्वरूप क्या होगा और शेष भारत में रहने वाले लाखों सिखों का क्या होगा, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. ‘क्या यह एक धर्म शासित या धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा?’ प्रोफेसर सिंह ने पूछा था.
उन्होंने कहा, ‘अगर वह सिख धर्म का प्रसार कर रहे हैं तो दूसरों का विनाश और घृणा कहां से आती है? जिस तरह से वह पंजाब में काम करने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले प्रवासी मजदूरों (जिन्हें संधू ने ‘भैया’ कहा था) या बुजुर्ग पुरुषों और महिलाओं को संदर्भित करता है, यह किसी ऐसे व्यक्ति को शोभा नहीं देता है जो धर्म के मार्ग पर होने का दावा करता है.’
सिख उपदेशक संत बंता सिंह ने भी बिना नाम लिए संधू पर सवाल दागा था कि धर्म के नाम पर बहुत ठगी चल रही है. सिंह ने कहा, ‘हाथ में तीर लेकर और सोशल मीडिया पर चरमपंथ के बारे में बोलने वाला जरूरी नहीं कि संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला बन जाए.’
उन्होंने कहा कि सिखों को ऐसे लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए क्योंकि वे आखिर में जो कहते हैं और जो करते हैं उसमें हमेशा बड़ा अंतर होता है.
पिछले महीने सिख नेता डॉ. गुरिंदर सिंह रंगरेटा ने वीडियो के जरिए संधू पर निशाना साधा था, जिसमें कहा गया था कि एक उच्च जाति के जाट सिख के रूप में, संधू सिख इतिहास में मज़हबी सिखों द्वारा निभाई गई भूमिका को नकारते हुए इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे, जबकि जाट सिखों की सीमित भूमिका थी.
(अनुवादः फाल्गुनी शर्मा, इंद्रजीत | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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