नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 497.861 लाख करोड़ रुपये से अधिक दावा मूल्य वाले 16,500 से अधिक मामले मौजूदा समय में दिल्ली के तीन ऋण वसूली न्यायाधिकरणों (डीआरटी) में लंबित पड़े हैं. बताया जा रहा है कि पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव इसकी सबसे बड़ी वजह है.
इन मामलों में से 8,104 डीआरटी-1 में, 4,156 डीआरटी-2 में और 4,634 डीआरटी-3 में लंबित हैं. यह बात ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) की तरफ से पेश रिपोर्ट से सामने आई है.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डीआरटी अर्ध-न्यायिक निकाय हैं जो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को समय पर ऋण वसूली करने में सक्षम बनते हैं. वहीं, डीआरएटी में डीआरटी की तरफ से पारित आदेशों के खिलाफ अपील की जा सकती है. इन ट्रिब्यूनल को रिकवरी ऑफ बैंक्स एंड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन्स एक्ट अधिनियम (आरडीडीबीएफआई) 1993 के तहत स्थापित किया गया था.
पिछले महीने कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अकेले डीआरटी-3 में ही 650 लंबित मामलों में से प्रत्येक का वसूली मूल्य 100 करोड़ रुपये से अधिक है. इन मामलों में कुल दावा 4.24 लाख करोड़ रुपये का है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘बड़ी संख्या में लंबित मामलों और इस मुकदमेबाजी में बड़ी रकम फंसे होने’ को देखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्रालय—जिसे मामले में एक पक्ष बनाया गया था—से रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर गौर करने को कहा ताकि ‘इस रकम पर दावा किया जा सके और अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए वाणिज्यिक तौर पर इसकी वसूली की जा सके.’
जस्टिस नजमी वज़ीरी और गौरांग कंठ की पीठ ने 20 दिसंबर को अपने आदेश में मंत्रालय के संयुक्त सचिव को अदालती कार्यवाही की दक्षता को लेकर कोर्ट और वादी पक्ष की चिंताओं पर ‘एक व्यापक हलफनामा’ दाखिल करने का निर्देश दिया और साथ ही न्यायाधिकरणों की संख्या बढ़ाने का सुझाव भी दिया.
दिल्ली हाई कोर्ट एक महिला की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने डीआरटी में अपने मुकदमे का तेजी से फैसला कराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
बतौर न्याय मित्र पीठ की सहायता कर रहे अधिवक्ता संजीव भंडारी ने दिप्रिंट को बताया कि बढ़ते मामलों से निपटने में दिल्ली में तीन डीआरटी पर्याप्त नहीं हैं. भंडारी ने कहा, ‘हमें दिल्ली में ही लगभग 10-15 नए न्यायाधिकरणों की आवश्यकता है ताकि मामलों के बैकलॉग से निपटा जा सके और यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि संबंधित कानूनों में की गई परिकल्पना के मुताबिक मामलों का समयबद्ध निपटारा हो सके.’
भंडारी ने कहा कि इसके अलावा वर्चुअल सुनवाई भी एक समस्या बनी हुई है. दिल्ली की तमाम अन्य अदालतों में नियमित तौर पर सुनवाई शुरू जाने कब से हो चुकी है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के डीआरटी मामलों की ऑनलाइन सुनवाई ही जारी रखे हुए. ऐसा मुख्यत: कर्मचारियों की कमी की वजह से भी किया जा रहा है.
ऋण वसूली न्यायाधिकरण (प्रक्रिया) नियम, 1993 के तहत, न्यायाधिकरणों की शक्तियां गैर-निष्पादन संपत्तियों (एनपीए) से भुगतान न किए गए धन के भुगतान से संबंधित मामलों को सुलझाने तक सीमित हैं. कानून न्यायाधिकरणों को एक जिला न्यायाधीश के समान शक्तियां देता है.
आरडीडीबीएफआई की धारा 19 (24) में ट्रिब्यूनल की शरण लेने वाले के पक्ष के 180 दिनों के भीतर कार्यवाही को पूरा करने की परिकल्पना की गई है.
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याचिका ने DRT की स्थिति उजागर की
याचिकाकर्ता इंदु कपूर के मामले ने दिल्ली डीआरटी की वास्तविक स्थिति को उजागर किया है.
कपूर ने पिछले साल वित्तीय संस्थान एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक पर एक गैर-बंधक संपत्ति का दावा करने के लिए मुकदमा दायर किया था.
उन्होंने पहली बार फरवरी में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि डीआरटी-1 में कोई पीठासीन अधिकारी नहीं था और डीआरटी इलाहाबाद का एक अधिकारी दिल्ली की कोर्ट में लंबित मामलों की सुनवाई कर रहा था. कपूर के वकील गौरव श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया कि उक्त अधिकारी की तरफ से नियमित अदालती मामलों की सुनवाई नहीं की जा रही थी, बल्कि केवल अत्यावश्यक आवेदनों पर ही विचार किया जा रहा था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने तब डीआरटी इलाहाबाद को उनके मामले को फास्ट ट्रैक करने के निर्देश जारी किए थे.
श्रीवास्तव ने बताया कि लेकिन आदेशों का एक निश्चित सीमा तक ही पालन किया गया.
इसके बाद, दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अक्टूबर की एक याचिका में कपूर ने अपील की कि एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक के खिलाफ उनके मुकदमे को डीआरटी-1 से डीआरटी-3 में ट्रांसफर कर दिया जाए.
श्रीवास्तव ने बताया, ‘चार महीने इंतजार के बाद हमने अक्टूबर में फिर हाईकोर्ट का रुख किया और मामले को दिल्ली में डीआरटी-1 से डीआरटी-3 में ट्रांसफर करने का आग्रह किया, जिसमें एक नियमित पीठासीन अधिकारी है.’ इस बीच, डीआरटी-1 में नया पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया गया.
हालांकि, केंद्रीय वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी एक अधिसूचना ने कपूर के मामले में मुश्किल बढ़ा दी. दरअसल, इस आदेश के तहत तीनों ही डीआरटी के अधिकार क्षेत्र में संशोधन किया गया, जिसके बाद डीआरटी-3 अब केवल 100 करोड़ रुपये से अधिक दावा मूल्य वाले मामलों की सुनवाई कर सकता है.
कपूर के लिए इसका मतलब यह था कि उनके मामले की सुनवाई अब डीआरटी-3 में नहीं हो सकती थी.
निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं
कपूर की याचिका पर सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी भंडारी ने दिल्ली के डीआरटी की स्थिति को उजागर करने के लिए हाईकोर्ट को कुछ फोटो दिखाईं. भंडारी ने दावा किया कि इन तस्वीरों को ट्रिब्यूनल के दौरे के दौरान क्लिक किया गया है, उनमें एक कोर्ट रूम में पड़ी कुर्सियां और दूसरे में केस फाइल वाले बैग दिखाई दे रहे हैं.
इस बारे में पूछे जाने पर डीआरटी अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि फिलहाल नवीनीकरण चल रहा है, जिससे पीठ ने डीआरएटी को मरम्मत कार्यों पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. कोर्ट ने इससे केस फाइलों के स्टोरेज और निपटान के साथ-साथ रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की प्रगति का मुद्दा सुलझाने को भी कहा.
भंडारी ने दिप्रिंट को बताया कि डीआरटी में मामलों के निपटारे की मौजूदा गति आरडीबीबीएफआई अधिनियम में 180 दिनों की समयसीमा के शासनादेश के अनुरूप नहीं है.
भंडारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोविड की शुरुआत के कारण मार्च 2020 में वर्चुअल सुनवाई शुरू हुई थी. यद्यपि अन्य सभी अदालतें और न्यायिक फोरम फिजिकल मोड में लौट आए हैं, रिक्तियों और अपर्याप्त कर्मचारियों के कारण डीआरटी ने अभी मामलों की डिजिटल सुनवाई करना जारी रखा है.’ भंडारी की तरफ से सुनवाई की अगली तारीख के दौरान डीआरटी की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देने की संभावना है.
(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः रावी द्विवेदी)
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