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Tuesday, 7 May, 2024
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कर्नाटक सरकार ने ‘पत्नी को सेक्स स्लेव बनाने वाले’ व्यक्ति पर आपराधिक मुकदमा चलाने को जायज ठहराया

कर्नाटक सरकार ने पुरुष के खिलाफ रेप केस दर्ज करने संबंधी अपने कदम के बचाव वाला रुख ऐसे समय अपनाया है जब वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने के मुद्दे पर बहस शीर्ष कोर्ट में लंबित है.

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नई दिल्ली: कर्नाटक सरकार ने राज्य हाई कोर्ट के उस फैसले का समर्थन किया है जिसमें एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ रेप का केस खारिज करने से इनकार कर दिया गया है, जो अपनी पत्नी को ‘यौन गुलाम’ बनाकर रखने और ‘उसका यौन उत्पीड़न’ करने के आरोपों का सामना कर रहा है.

राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में वैवाहिक बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाने का समर्थन किया और कहा कि उसकी पत्नी के लगाए आरोप निश्चित तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत आते हैं जो बलात्कार के अपराध से संबंधित है.

राज्य ने हाई कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया जिसमें जस्टिस जेएस वर्मा आयोग की सिफारिशों पर धारा 375 में किए गए संशोधनों को संज्ञान में लिया गया है. जस्टिस वर्मा आयोग निर्भया मामले के बाद गठित किया गया था. उसकी सिफारिशों पर संशोधित कानून ने आईपीसी के तहत बलात्कार की परिभाषा को व्यापक बनाया है.

कर्नाटक सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा है, ‘शिकायतकर्ता ने स्पष्ट तौर पर धारा 375 के संशोधित प्रावधानों के तहत मामला दर्ज कराया है और संशोधित प्रावधान का उक्त बिंदु अभियोजन के पक्ष में और याचिकाकर्ता के खिलाफ है.’

हलफनामा पति की तरफ से कर्नाटक हाई कोर्ट के 23 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया था, जिसने उसके खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था.

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उक्त व्यक्ति ने जिस क्रूरता के साथ अपनी पत्नी का यौन उत्पीड़न किया, उसे देखते हुए हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 (2) के अपवाद खंड के तहत पति की संरक्षण देने से इंकार कर दिया था. अपवाद खंड में कहा गया है कि किसी व्यक्ति पर तब तक अपनी पत्नी के बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता है, जब तक कि वह (पत्नी) 15 वर्ष से कम आयु की न हो.

हाई कोर्ट ने कहा, ‘इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए इस तरह के हमले/बलात्कार के लिए पति की छूट अपवाद नहीं हो सकती, क्योंकि कानून में कोई भी छूट इस तरह अपवाद नहीं हो सकती कि समाज के खिलाफ अपराध करने का लाइसेंस बन जाए.’

उक्त व्यक्ति खिलाफ बलात्कार के अलावा, अप्राकृतिक यौन संबंध (धारा 377), दहेज उत्पीड़न (498ए), छेड़छाड़ (354) और आपराधिक धमकी (506) जैसी आईपीसी की धाराएं भी लागू की गई हैं.

यहां तक कि उस पर अपनी बेटी के साथ कथित तौर पर मारपीट करने और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत भी धाराएं लगाई गई हैं.

हालांकि, इस व्यक्ति की तरफ से तर्क दिया गया है कि उसे आईपीसी की धारा 375(2) के तहत बलात्कार के आरोपों से कानूनी छूट मिली हुई है, लेकिन राज्य ने इस विषय पर कोई कानूनी पहलू सामने नहीं रखा, सिवाय इसके कि उसका कृत्य मौजूदा बलात्कार कानून के दायरे में आता है.


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वैवाहिक बलात्कार पर बहस

कर्नाटक सरकार ने पुरुष के खिलाफ रेप केस दर्ज करने संबंधी अपने कदम के बचाव वाला रुख ऐसे समय अपनाया है जब वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने के मुद्दे पर बहस शीर्ष कोर्ट में लंबित है.

दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ के दो न्यायाधीशों के बीच विभाजित फैसले के बाद यह मुद्दा अब शीर्ष कोर्ट के समक्ष लंबित है और इसमें अंतिम फैसले का इंतजार किया जा रहा है.

केंद्र सरकार ने आईपीसी की धारा 375(2) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं का दिल्ली हाई कोर्ट में विरोध किया था.

कर्नाटक सरकार ने अपने हलफनामे में आगे कहा है कि शिकायत में कही गई बातों के साथ-साथ पुलिस जांच के दौरान दर्ज शिकायतकर्ता के बयानों से पता चलता है कि आरोपित व्यक्ति के तर्कों में कोई दम नहीं है.

आईपीसी की धारा 377 के संबंध में राज्य ने कहा कि शिकायत और पुलिस आरोपपत्र ‘स्पष्ट तौर पर यह जाहिर करते हैं कि याचिकाकर्ता अप्राकृतिक सेक्स जैसे कृत्य में लिप्त है.’

राज्य ने कहा, ‘इसलिए, निर्धारित आरोपों में आईपीसी की धारा 377 को भी शामिल किया गया है.’ साथ ही जोड़ा कि हाई कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ आरोप तय करते समय ट्रायल कोर्ट को इस धारा को शामिल करने का निर्देश देकर सही किया था.

राज्य के मुताबिक, हाई कोर्ट ने यह मानकर सही किया कि बच्चे के आरोप और लिखित संचार—जिन्हें आदेश से निकाला नहीं जा सकता और आदेश का एक हिस्सा बनाया गया है—उस व्यक्ति को आरोपित करने के लिए पर्याप्त हैं और उसे खुद का निर्दोष साबित करने के लिए मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.

हाई कोर्ट के फैसले का बचाव करते हुए राज्य ने अपने हलफनामे में कहा, ‘पूरी परिस्थितियों को देखते हुए मुकदमा चलाने की आवश्यकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद:  रावी द्विवेदी)
(संपादन: हिना फ़ातिमा)


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