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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत जोड़ो यात्रा के सौ दिन पूरे हुए मगर कांग्रेस का मकसद सधता नहीं नज़र आ रहा

अगर राहुल गांधी खुद अपनी पार्टी को साथ नहीं जोड़ सकते तो देश को जोड़ने के उनके मिशन से सहमत होना मुश्किल लगता है.

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कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने शुक्रवार को अपने 100 दिन पूरे कर लिये. राजस्थान से गुजर रही इस पदयात्रा में राहुल गांधी के कुछ मानीखेज चित्र सामने आए. उनके साथ सांसद प्रतिभा सिंह तो दिखीं ही, उनके दो विरोधी, हिमाचल प्रदेश के नये मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और नये उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी साथ चलते नज़र आए जिन्होंने प्रतिभा सिंह की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया था. सुक्खू और प्रतिभा सिंह के पीछे सचिन पाइलट भी किसी सोच में डूबे चलते नज़र आए.

पायलट आखिर किस सोच में डूबे थे? मैं कुछ अनुमान लगाने की कोशिश कर रहा हूं. क्या हिमाचल प्रदेश ने दिवंगत नेता वीरभद्र सिंह के परिवार की अनदेखी करते हुए नये नेतृत्व को आगे बढ़ाकर उनकी पार्टी में निर्णय प्रक्रिया का नया सांचा बना लिया है?

पायलट को मालूम है कि अशोक गहलोत प्रतिभा सिंह नहीं हैं जिनकी वफादारी पर गांधी परिवार को संदेह था और जिन्हें कम ही विधायकों का समर्थन हासिल है. लेकिन पायलट नहीं भूले होंगे कि कई वर्ष पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस के जिला अध्यक्षों से क्या कहा था.

कांग्रेस में लाइन तो लंबी है लेकिन उन्हें जानना चाहिए कि देर-सबेर ‘सबका नंबर आता है.’ लेकिन पायलट का धैर्य जरूर जवाब दे रहा होगा. हिमाचल ने निर्णय क्षमता के जो संकेत दिए उससे उन्हें जरूर कुछ उम्मीद बंधी होगी.

गोवा और मणिपुर में 2017 में पार्टी सुस्त पड़ गई थी लेकिन हिमाचल में उसने तेजी से निर्णायक कदम उठाया. यह और बात है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी इसका कुछ श्रेय लेने का दावा कर सकते हैं.

शिमला में कांग्रेस आलाकमान के दूतों को सावधान किया गया कि कुछ दलबदलू पार्टी विधायकों में कुछ संभावित दलबदलुओं से संपर्क कर रहे हैं.

इन दूतों में से एक ने मुझे बताया कि ‘महाराष्ट्र मॉडल की भी चर्च शुरू हो गई थी, जिसमें भाजपा ने खुद को दो नंबर पर रखकर शिवसेना के बागी नेता शिंदे को गद्दी सौंप दी थी. इसलिए हमने योजना के मुताबिक एक लाइन का प्रस्ताव (मुख्यमंत्री चुनने का फैसला पार्टी आलाकमान को सौंपने का) लेकर लौटने की जगह मामले को वहीं निपटाने का फैसला किया.’ जो भी हुआ हो, आज कांग्रेस हिमाचल में स्थिर दिख रही है.

हिमाचल के शीर्ष पार्टी नेताओं और दूसरे विधायकों को राहुल के साथ यात्रा में लाने का कदम भी साफ संदेश देता है कि पार्टी की कमान किसके हाथ में है. इसमें एक अनकहा संदेश छिपा था.

कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में नया अध्यक्ष भले मिल गया हो, राहुल ने प्रदेश में चुनाव अभियान भले ही न चलाया हो, लेकिन नेताओं को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वहां हुई चुनावी जीत का श्रेय किसे देना है.

अगर पार्टी नेताओं के एक खेमे को लगता हो कि हिमाचल में आए नतीजों पर प्रियंका गांधी और उनकी टीम की छाप है, तो शुक्रवार को प्रियंका की अनुपस्थिति ने मामला साफ कर दिया.

चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर अक्सर कहा करते थे कि कांग्रेस ने दशकों से एक भी आंदोलन नहीं किया. वे कांग्रेस के लिए जे.पी. नड्डा मॉडल की सिफ़ारिश करते रहे.

लगता है, गांधी कुनबे ने उनकी सलाह पर अमल कर लिया है. लेकिन किशोर को भारत जोड़ो यात्रा के स्वरूप को लेकर कई आपत्तियां हैं.


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राहुल-केंद्रित यात्रा

यात्रा के 100 दिन पूरे होने पर कांग्रेस सांसद के.सी. वेणुगोपाल ने कहा, ‘राहुल गांधी की छवि को धूमिल करने की भाजपा की कोशिशों को हमने नाकाम कर दिया है.’

यात्रा की तस्वीरों में हमने राहुल को अपनी मां के जूतों के फीते बांधते देखा, बुजुर्ग महिलाओं को सद्भावना से गले लगाते, बच्चों को प्यार से गोद लेते, फुटबॉल में अपनी कलाबाजी प्रदर्शित करते देखा.

यानी वे मूलतः एक दयालु, उदार और गर्मजोशी से भरे व्यक्ति के रूप में नज़र आए. कांग्रेस की पूरी सोशल मीडिया टीम ने ऐसी तसवीरों को प्रदर्शित करने में जी-जान लगा दिया.

यह दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का कांग्रेस जो विश्लेषण कर रही है उसमें बुनियादी तौर कितनी कमी है.

वे इसलिए लोकप्रिय नहीं हैं कि वे अपनी मां के पांव धोते या मोरों को दाना खिलाते दिखते हैं. उनकी लोकप्रियता महत्त्वाकांक्षी भारत को वे जो सपने दिखाते हैं उनके कारण है, चाहे कई लोगों को वे सपने कितने भी खोटे क्यों न दिखते हों.

क्या भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करने में सफल हुआ है, जिसके पास देश के लिए कोई सपना है? वे आधा दर्जन से ज्यादा प्रेस कन्फरेंस कर चुके हैं, यूट्यूब वालों को दो-तीन इंटरव्यू दे चुके हैं, और भारतीय अर्थव्यवस्था में उन्हें जो खामियों दिखती हैं उन पर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का इंटरव्यू ले चुके हैं.

यह सब मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना पर ही केंद्रित रहा है, जो वे वर्षों से करते आ रहे हैं. दरअसल, मोदी को सत्ता से हटाना ही उनका वैकल्पिक सपना है, जिसे जनता ने 2014 के बाद से कबूल नहीं किया है.

कांग्रेस के एक नेता ने राहुल से अपनी बातचीत का हवाला देते हुए मुझसे कहा था कि मोदी से लड़ने के लिए कांग्रेस अभी दस साल तक उन पर भरोसा कर सकती है और वे यह लड़ाई लड़ते रहेंगे. लेकिन यह वादा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में जोश नहीं पैदा कर सकेगा.


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कांग्रेस जोड़ो यात्रा की जरूरत

उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी को कांग्रेस जोड़ो यात्रा शुरू करनी चाहिए.
कांग्रेस नेता इसे सलाह के रूप में ले सकते हैं.

सुक्खू और प्रतिभा सिंह या पायलट और गहलोत को एक ही तस्वीर में शामिल करना एक बात है मगर तस्वीर से बाहर भी उन्हें एक साथ रखना दूसरी बात है. कुछ दिनों पहले राहुल तेलंगाना में थे.

अब तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी और उनकी आलोचकों के बीच तलवारें खिंच गई हैं. जिस केरल से राहुल ने यात्रा शुरू की, वहां उनके करीबी नेता वेणुगोपाल के गुट ने पूरी कोशिश की शशि थरूर ने पिछले महीने उत्तरी केरल की जो यात्रा की वह पार्टी में आंतरिक कलह की ज्यादा खबरें दे.

कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के लिए भीड़ जुटाने में डी.के. शिवकुमार और सिद्धारमैया ने पूरी कोशिश की. लेकिन यह यात्रा इन दोनों को करीब लाने में विफल रही. ये दोनों नेता एक-दूसरे को काटने वाले कम करते रहे हैं और यह कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता दिलाने की राह में रोड़ा बना हुआ है.

अब जबकि राहुल की यात्रा राजस्थान से गुजर रही है, गहलोत-पायलट द्वंद्व अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं पर बड़ी काली छाया डाल रहा है.

हर राज्य में पार्टी इसी तरह बंटी हुई है. राहुल अगर अपनी पार्टी को ही एकजुट नहीं रख सकते, तो देश को जोड़ने का उनका मिशन विश्वसनीय नहीं लग सकता.

तपस्या में बदली राजनीतिक यात्रा

राहुल गांधी का मानना है कि यह यात्रा किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत मकसद के लिए नहीं है बल्कि नफरत, भय, और हिंसा की राजनीतिक के खिलाफ है.

इस विचार ने वामपंथी उदारवादी बुद्धिजीवी जमात को उनके इर्द-गिर्द ला दिया है. अभिनेत्री स्वरा भास्कर से लेकर एक्टिविस्ट मेधा पाटकर तक और वकील प्रशांत भूषण से लेकर लेखक तुषार गांधी तक यह सूची काफी प्रभावशाली है.

इसमें एक ही खामी है वह यह कि यह कांग्रेस के विस्तृत दायरे के लोगों की ही है. यह वैसा ही है जैसे धर्म बदल चुके व्यक्ति को उसके नये धर्म के बारे में उपदेश दिया जाए. इससे कांग्रेस को अपना आधार बढ़ाने में और भाजपा के आधार में सेंध लगाने में शायद ही मदद मिलेगी.

भारत जोड़ो यात्रा की संकल्पना जब की जा रही थी तब इसे पार्टी में नयी जान फूंकने के जन उभार कार्यक्रम के रूप में चलाने का विचार किया गया था.

इसे राहुल की ‘तपस्या’ या किसी आध्यात्मिक खोज के रूप में नहीं देखा गया था. जहां तक कांग्रेस की बात है, राहुल ने इस यात्रा को सचमुच में अ-राजनीतिक बना दिया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय )
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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