एजुकेशन वर्ल्ड-2022 की ‘टॉप टेन सरकारी डे स्कूल’ रैंकिंग में दिल्ली के पांच राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय को जगह मिली है. प्रतिभा विकास विद्यालय, केंद्र और दूसरे राज्य सरकारों द्वारा संचालित उन स्पेशल स्कूल की तरह हैं जिनकी विशेष पहचान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर सुविधा के लिए रही है. इसके उदाहरण के तौर पर नेतरहाट स्कूल, सैनिक स्कूल और नवोदय हैं. ऐसे सभी स्कूलों का प्रदर्शन हमेशा से ही उत्कृष्ट रहा है.
दरअसल एजूकेशन वर्ल्ड की रैंकिंग में जगह बनाने वाले दिल्ली के सभी पांच स्कूल, उन 22 राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय में से हैं जिसे केंद्र शासित प्रदेश की सरकार स्पेशल स्कूल के रूप में चला रही है. राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय की स्थापना कमजोर तबके को बेहतर शिक्षा देने के लक्ष्य के साथ 1997 में रोहिणी, पश्चिम विहार और सूरजमल विहार में हुई थी. स्कूल के इस समूह को पहली पहचान 2003 में उस समय ही मिल गई थी जब पश्चिम विहार के प्रतिभा विद्यालय को कंप्यूटर शिक्षा के लिए एक्सीलेंस अवॉर्ड दिया गया.
एजुकेशन वर्ल्ड की ताजा रैंकिंग में रोहिणी और सूरजमल विहार के प्रतिभा विकास विद्यालय को 9वां और 10वां स्थान मिला है. वहीं द्वारका सेक्टर 10 का प्रतिभा विकास विद्यालय लगातार दो साल से पहले स्थान पर काबिज है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी.
एजुकेशन वर्ल्ड 2022 की रैंकिंग में दूसरा स्थान हासिल करने वाले यमुना विहार के प्रतिभा विकास विद्यालय की स्थापना 2001 में की गई थी. दिल्ली के इन पांचों प्रतिभा स्कूल में से सिर्फ एक स्कूल जो द्वारका सेक्टर 5 में स्थित है, अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में 2018 में खुला है जिसे इस साल की रैंकिंग में 9वां स्थान मिला है.
दिल्ली के इन प्रतिभा विकास विद्यालय को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार आने से पूर्व भी टॉप-10 रैंकिंग में स्थान मिल चुका है. एजुकेशन वर्ल्ड द्वारा 2014 में जारी की गई सरकारी स्कूल की रैंकिंग में द्वारका सेक्टर 10 और शालीमारबाग के प्रतिभा विकास विद्यालय को क्रमश: तीसरा और छठा स्थान मिला था.
दिल्ली के इन 22 प्रतिभा विकास विद्यालय की बात करें तो इन स्कूल में लगभग वे सभी सुविधाएं हैं जो किसी मंहगे प्राइवेट स्कूल में होती है. लैंग्वेज लैब, अपग्रेडेड एसी ऑडिटोरियम, कॉंफेंस हॉल, किताबों से भरी हुई अच्छी-खासी लाइब्रेरी, नए उपकरण से लैस प्रोजेक्ट डेवलपमेंट रूम और सबसे अहम तौर पर 1:35 का शिक्षक-छात्र अनुपात जो किसी भी शिक्षण संस्थान की उच्च गुणवत्ता के लिए जरूरी पैरामीटर होता है.
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और बढ़ता गया साल दर साल ड्रॉप आउट
दिल्ली के सरकारी स्कूल को लेकर प्रजा फाउंडेशन एनजीओ की व्हाइट पेपर रिपोर्ट State of Public (School) Education in Delhi, March 2019 केजरीवाल के दावे को मुंह चिढ़ा रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद से दिल्ली के सरकारी स्कूल में ड्रॉप आउट रेट बढ़ गया. साल 2014-15 में सरकारी स्कूल में ड्रॉप आउट रेट जहां 2.9% था, दो साल के भीतर 2016-17 तक आते आते ड्रॉप आउट रेट 3.4% हो गया.
दिल्ली ईकोनॉमिक सर्वे 2021-22 में दिए गए आकड़े मुख्यमंत्री के प्रचारतंत्र से वादा खिलाफी कर रहे हैं. ये आंकड़े सरकार पर सवाल उठाते हुए बता रहे हैं कि अगर शिक्षा व्यवस्था सुधर रही है तो साल दर साल सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या घट क्यों रही है. ईकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक 2014-15 में सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 15.42 लाख थी जो घटते-घटते 2017-18 में 14.81 लाख रह गई. 2018-19 से थोड़े सुधार के साथ 2019-20 में यह संख्या 15.19 लाख थी जो 2014-15 से कम है. यानी लगातार पांच साल तक बेहतर शिक्षा व्यवस्था के दावे बीच सरकारी स्कूल में पढ़ने वालों की संख्या लगातार कम होती रही. ईकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक 2020-21 में सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 16.20 थी.
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड (NCPCR) ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर जो रिपोर्ट जारी किया उसमें स्कूलों में प्रिंसिपल की कमी, ड्रॉप आउट, छात्र-शिक्षक अनुपात जैसी समस्या सामने उभर कर आई. NCPCR की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के छात्रों में सीखने की क्षमता राष्ट्रीय औसत से कम है. स्कूल के बाहर बच्चों (Out of School Children) को लेकर एनसीपीसीआर ने कहा है कि 2015-16 में प्राइमरी से अपर प्राइमरी में संक्रमण दर 99.86 थी और अपर प्राइमरी से सेकेंडरी में संक्रमण दर 96.77 थी. हालांकि बाद के दो वर्षों में इसमें कमी आई. साल 2018-19 में इसमें में थोड़ी सुधार देखने को मिली लेकिन संक्रमण दर 2015-16 से फिर भी कम है.
सरकारी स्कूल में दाखिले के विपरीत प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि आई है. साल 2014-15 में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 13.47 लाख थी जो 2020-21 में बढ़ कर 17.82 लाख हो गई. यानी 2014-15 से लेकर 2021-21 तक 6 साल के अंतराल में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में जहां 4 लाख 85 की वृद्धि हुई, वहीं सरकारी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में महज 78 हजार की वृद्धि हुई.
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कल्याणकारी शिक्षा नीति से अभी दूर है दिल्ली
कल्याणकारी राज्य जिसे अंग्रेजी में वेलफेयर स्टेट कहते हैं, सरकार पर उत्तरदायित्व है कि वह अन्य मूलभूत सुविधा सहित नागरिकों की शिक्षा का भी ध्यान रखे. इसलिए भारत की संघीय शासन प्रणाली में शिक्षा तीसरी सूची में शामिल की गई है. मतलब नागरिकों की शिक्षा का दायित्व केंद्र और राज्य, दोनों सरकार पर है. इसमें सरकारी शिक्षण संस्थान की संख्या अहम भूमिका निभाती है.
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) की 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्राइमरी, अपर-प्राइमरी, सेकेंडरी और अपर-सेकेंडरी स्कूलों की कुल संख्या 14 लाख 89 हजार 115 है जिसमें से 10 लाख 22 हजार 386 स्कूल सरकारी है. इसे दूसरे तरीके से कहें तो भारत के कुल स्कूल में से 68.65 प्रतिशत सरकारी स्कूल हैं. लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी स्कूल का प्रतिशत औसत से काफी कम है. दिल्ली में स्कूलों की कुल संख्या 5619 है जिसमें से महज 2762 स्कूल सरकारी है जो राष्ट्रीय औसत से बेहद कम 49.15 प्रतिशत ठहरता है. वहीं बीमारू राज्य कहे जाने वाले बिहार में सरकारी स्कूल का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है. बिहार में 93,165 संचालित हो रही हैं जिसमें से 75,558 स्कूल सरकारी है. यानी 81.10 प्रतिशत स्कूल का खर्च राज्य सरकार वहन कर रही है.
सबसे विकसित राज्य कहे जाने वाले गुजरात पर नजर रखें तो पता चलता है कि वहां भी सरकारी स्कूल का प्रतिशत दिल्ली से ज्यादा है. गुजरात में चल रहे 53,851 स्कूल में से 34,699 स्कूल सरकारी है जो 64.43 प्रतिशत के साथ राष्ट्रीय औसत के आस-पास है.
दिल्ली में बेहतर होती शिक्षा व्यवस्था को नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021-22 के आईने में भी देखा जाना चाहिए. इसकी फाइंडिंग में शिक्षा व्यवस्था को लेकर दिल्ली को सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले पांच राज्यों में रखा गया है. सर्वे में यह भी सामने आया है कि 2017 के बाद से दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की सेहत बिगड़ती गई है. कक्षा 3 और 5 के छात्रों का प्रदर्शन 2017 से पीछे रहा. कक्षा 3 के छात्रों को 2017 में औसत 54 प्रतिशत मिला था जो 2021 में घट कर 47 प्रतिशत रह गया. यह छात्रों के प्रदर्शन के राष्ट्रीय औसत 57 प्रतिशत से 10 प्वाइंट कम है.
ये तमाम आकंड़े और रिपोर्ट इसकी तस्दीक करते हैं कि शिक्षा सुधार को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार के दावे में अभी तमाम कमियां हैं. दिल्ली के बजट में शिक्षा बजट सबसे अधिक होने के बावजूद बच्चे दाखिले के लिए प्राइवेट स्कूल का रुख कर रहे हैं. वहीं सरकारी शिक्षा व्यवस्था डॉप आउट रेट, सुविधा की कमी और छात्रों में सीखने की क्षमता से जूझ रही है. इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बेहतर शिक्षा को लेकर अरविंद केजरीवाल का दावा आधे सच या साफ तौर पर कहें तो प्रचार-तंत्र की बुनियाद पर खड़ा है जो राजनीतिक मार्केटिंग का बेहतरीन नमूना भर है.
(सिद्धार्थ गौतम राजनीतिक विश्लेषक हैं. देश की प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए चुनाव से संबंधित रणनीति निर्माण में अहम भूमिका निभा चुके हैं.)
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