scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमदेशHC में रिटायर्ड जजों की नियुक्ति संबंधी मोदी सरकार के प्रस्ताव में कानून मंत्रालय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति लेना शामिल है

HC में रिटायर्ड जजों की नियुक्ति संबंधी मोदी सरकार के प्रस्ताव में कानून मंत्रालय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति लेना शामिल है

प्रस्तावित व्यवस्था के तहत चीफ जस्टिस एड-हॉक पर नियुक्ति योग्य न्यायाधीशों की संख्या के साथ एक प्रस्ताव मंत्रालय को भेजेंगे और फिर सरकार उस पर राष्ट्रपति की मंजूरी लेगी. इसके बाद ही चीफ जस्टिस नियुक्ति के लिए विशिष्ट नामों की अनुंशसा कर पाएंगे.

Text Size:

नई दिल्ली: केंद्र सरकार की तरफ से हाई कोर्ट में रिटायर्ड जजों की तदर्थ नियुक्ति के लिए अपनाई जा सकने वाली प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार की गई है जिसमें कानून और न्याय मंत्रालय ने खुद को एक ऐसी एजेंसी के तौर पर प्रस्तावित किया है जो पुनर्नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के किसी अंतिम निर्णय से पहले राष्ट्रपति की पूर्व सहमति हासिल करेगी.

सरकार की तरफ से प्रक्रिया को लेकर सुझाए गए दिशानिर्देशों के तहत हाई कोर्ट के सभी चीफ जस्टिस न्यायाधीशों और पूर्व न्यायाधीशों के नाम का एक पैनल तैयार करेंगे जो एक वर्ष के भीतर रिटायर हुए हैं या रिटायर होने वाले हैं. और उनकी सहमति लेने के बाद उनकी फिर से नियुक्ति संबंधी एक प्रस्ताव तैयार करेंगे. प्रस्ताव केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेजने से पहले यह स्पष्ट करना होगा कि इसमें सुझाए गए नाम किस तरह से पुनर्नियुक्ति के लिए एकदम उपयुक्त हैं.

इस स्तर पर, प्रस्ताव में केवल नियुक्ति के लिए प्रस्तावित रिटायर्ड जजों की संख्या शामिल होगी और राष्ट्रपति की तरफ से ‘सैद्धांतिक’ सहमति देने के बाद ही चीफ जस्टिस विशिष्ट नामों की सिफारिश करेंगे.

इस प्रक्रिया की रूपरेखा केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की तरफ से अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए एक पत्र में तैयार की गई थी, जिसमें शीर्ष अदालत से तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति को औपचारिक रूप देने के लिए मौजूदा मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में आवश्यक बदलाव करने को कहा गया था.

उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों से जुड़े एमओपी में हाई कोर्ट में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का तो संदर्भ होता है, लेकिन भर्ती और सेवाओं की समाप्ति संबंधी मानदंड जैसे अन्य पहलुओं पर कुछ नहीं कहा गया है.

यह पत्र शीर्ष अदालत की तरफ से सरकार को संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत हाई कोर्टों में तदर्थ नियुक्तियां करने का निर्देश देने के चार महीने बाद भेजा गया था, जिसमें कहा गया है कि ऐसे न्यायाधीश की भर्ती केवल राष्ट्रपति की ‘पूर्व सहमति’ से की जा सकती है.

जैसा दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते ही बताया था कि यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इस पत्र पर जवाब नहीं दिया है लेकिन इस मामले के न्यायिक पक्ष को उठाया गया है.

पिछले हफ्ते, रिजिजू के अगस्त 2021 के पत्र को केंद्र सरकार की स्थिति रिपोर्ट के हिस्से के तौर पर मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच के समक्ष रखा गया था.

यह कदम अदालत के उस आदेश के जवाब में उठाया गया था, जिसमें कोर्ट ने जानना चाहा था कि अप्रैल 2021 के उसके फैसले का पालन करने की दिशा में सरकार ने अब तक क्या किया है. उस आदेश में कोर्ट ने तदर्थ न्यायाधीशों को नियुक्ति संबंधी कुछ बिंदु निर्धारित किए थे जिसमें किसी हाई कोर्ट में 20 प्रतिशत रिक्तियां होना भी शामिल था.

सुनवाई के दौरान, जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कम बोझिल प्रक्रिया का सुझाव दिया. हालांकि उन्होंने प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन कोर्ट ने प्रशासनिक पहलुओं पर कोई फैसला करना कॉलेजियम पर छोड़ दिया है.


यह भी पढ़ेंः ‘ट्राइबल’ मांडवी में पहली जीत—भाजपा ने गुजरात में कुंवरजी हलपति को मंत्री पद से क्यों ‘नवाजा’


प्रस्ताव में क्या दिशानिर्देश शामिल

दिप्रिंट ने रिजिजू का 2021 का पत्र एक्सेस किया है जो देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमना को लिखा गया था. इसमें कहा गया कि उन्हें एमओपी में संशोधन और जरूरी बिंदुओं को शामिल करने के केंद्र सरकार के सुझाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सर्वसम्मत राय से अवगत कराएं.

राष्ट्रपति की पूर्व सहमति की प्रक्रिया निर्धारित करने के अलावा, केंद्र सरकार यह भी चाहती है कि हाई कोर्ट में नियुक्त सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की संख्या पांच से अधिक न हो. यह नियमित जजों की स्वीकृत पद संख्या के 20 प्रतिशत से अधिक भी नहीं होनी चाहिए. उनका कार्यकाल दो वर्ष से अधिक नहीं होगा और जिस किसी रिटायर जज को फिर से नियुक्त किया जाएगा, उसे किसी अन्य कानूनी कार्य में शामिल नहीं होना चाहिए, यहां तक कि बतौर मध्यस्थ भी नहीं.

प्रस्ताव के तहत, तदर्थ नियुक्ति के लिए किसी पूर्व जज के नाम की सिफारिश करते समय संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को सेवानिवृत्ति से कम से कम तीन साल पहले तक उनके न्यायिक प्रदर्शन से जुड़े आंकड़ों का ब्योरा देना होगा. और साथ ही बताना होगा कि ‘अपने केस निपटाने को लेकर गुणवत्ता और संख्या पर उनकी राय’ क्या रही है. यदि पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ कोई शिकायत आई हो तो उसके बारे में भी मंत्रालय को बताना होगा.

मंत्री के पत्र में कहा गया है कि यदि चीफ जस्टिस किसी सेवारत जज को उसकी सेवानिवृत्ति के बाद तदर्थ नियुक्ति के लिए नामित करते हैं, तो संबंधित उम्मीदवार के बारे में भी इसी तरह पूरा ब्योरा देना होगा.

दिशानिर्देशों के मुताबिक, यदि रिटायरमेंट और पुन: नियुक्ति के बीच अंतराल है तो संबंधित उम्मीदवार की ‘निष्ठा’ को सत्यापित करने के लिए उनके बैकग्राउंड की पूरी जांच होनी चाहिए, और इसके अलावा, संबंधित उम्मीदवार की फिजिकल फिटनेस सुनिश्चित करने के लिए एक मेडिकल टेस्ट भी कराया जाना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)


यह भी पढ़ें: प्रमोशन के लिए महिला सैन्य अधिकारियों की SC से गुहार, रक्षा मंत्रालय ने किया चयन बोर्ड गठित


share & View comments