नई दिल्ली: दिल्ली महिला आयोग (DCW) की 85 ‘अवैध नियुक्तियों’ की सूची पर सुनवाई करते हुए स्थानीय अदालत ने महिलाओं के अधिकार निकाय की प्रमुख स्वाति मालीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के आरोप तय करने का आदेश दिया है. इस सूची को 2016 में एक भाजपा कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) को सौंपा था.
दिल्ली की अदालत ने गुरुवार को कहा कि आरोपियों पर पद का दुरुपयोग का शक काफी मजबूत है और प्रथमदृष्टया मालीवाल और तीन अन्य के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त चीजें मौजूद हैं. अदालत ने कहा कि साफ नजर आ रहा है कि उन्होंने डीसीडब्ल्यू में आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यकर्ताओं और अन्य परिचितों को ‘अवैध रूप से’ नियुक्त करने के लिए अपने पदों का दुरुपयोग किया है.
अदालत ने पाया कि नियुक्तियां अन्य योग्य उम्मीदवारों से आवेदन लिए बिना ‘अपारदर्शी तरीके’ से की गईं. क्योंकि यह संस्थान सरकार से फंड प्राप्त करता है इसलिए यह अपनी मनमर्जी और पसंद से पद सृजित नहीं कर सकता है. लेकिन डीसीडब्ल्यू ने नियमों के विरुद्ध जाकर न सिर्फ नए पद बनाए बल्कि पारिश्रमिक भी ‘मनमाने ढंग’ से तय किए थे.
मालीवाल के अलावा इस मामले में अन्य आरोपी DCW के पूर्व सदस्य प्रोमिला गुप्ता, सारिका चौधरी और फरहीन मलिक हैं.
विशेष न्यायाधीश डीआईजी विनय सिंह ने आदेश दिया कि आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, आईपीसी की धाराओं – 120 बी (आपराधिक साजिश), 13 (1) (डी) (लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप तय किए जाएं.
दिप्रिंट ने मालीवाल से संपर्क किया है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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अवैध नियुक्तियां, वेतन, कोई पारदर्शिता नहीं
मामला 2016 का है जब भाजपा की पूर्व विधायक और पार्टी की दिल्ली उपाध्यक्ष बरखा शुक्ला सिंह ने एसीबी में शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि आप से जुड़े कई व्यक्तियों को नियमों का उल्लंघन करते हुए और रिक्तियों के बारे में किसी भी पारदर्शिता का पालन किए बिना या सार्वजनिक जानकारी के बिना, उन्हें लाभ देने के लिए महिला अधिकार निकाय में नियुक्त किया गया था.
सिंह ने अपनी शिकायत में आप से जुड़े तीन ऐसे लोगों का जिक्र किया जिन्हें डीसीडब्ल्यू के पदों पर अलग-अलग पारिश्रमिक पर नियुक्त किया गया था. इसके अलावा उन्होंने कुछ 85 लोगों की एक सूची भी संलग्न की, जिनका संबंध आप से था. इन सभी को कथित रूप से महिलाओं आयोग में नियुक्त किया गया था.
उनकी शिकायत के खिलाफ 19 सितंबर 2016 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. मामले में दायर चार्जशीट के अनुसार, डीसीडब्ल्यू ने मंत्रालय के कर्मचारियों द्वारा लिखित अनुरोध के बावजूद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को प्रासंगिक जानकारी मुहैया नहीं कराई. चार्जशीट में यह भी उल्लेख किया गया है कि हालांकि जांच के दौरान DCW ने दावा किया कि भर्ती के लिए इंटरव्यू लिए गए थे. फिर भी संस्थान की ओर से उम्मीदवारों का कोई रिकॉर्ड या परीक्षा की तारीख, स्थान और समय की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई थी.
चार्जशीट के अनुसार, लीगल काउंसलर के पद को छोड़कर बाकी पदों के लिए कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया गया था. DCW की वेबसाइट पर लीगल काउंसलर के पद के लिए 26 अप्रैल 2016 को विज्ञापन डाला गया था. लेकिन इस पद पर भी नियुक्ति तिथि से पहले की गई थी.
दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि इन ‘अवैध नियुक्तियों’ का वेतन मनमाने ढंग से और अवैध रूप से बढ़ाया गया था’.
आगे दावा किया गया कि इस तरह से न सिर्फ योग्य उम्मीदवारों के ‘वैध’ अधिकारों का उल्लंघन किया गया बल्कि नियुक्ति करते समय कुछ लोगों का फेवर किया गया.
जांच में पाया गया कि अगस्त 2015 से अगस्त 2016 के बीच कुल 90 नियुक्तियां की गयी. इनमें से 71 को कॉन्ट्रेक्ट पर रखा गया था. 16 को महिला आयोग की हेल्पलाइन सर्विस ‘डायल 181’ के लिए अपॉइंटमेंट दिया गया था. बाकी तीन नियुक्तियों का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है.
अदालत ने कहा, ‘स्वाति मालीवाल के अलावा तीनों आरोपियों में से किसी ने भी कभी भी अवैध नियुक्तियों पर आपत्ति नहीं जताई या असहमति नोट तक जारी नहीं किया, बल्कि यह दावा किया गया था कि उन बैठकों में सर्वसम्मति से निर्णय लिए गए हैं.’
अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आयोग सरकार को खाली पड़े पदों को भरने के लिए दबाव डाल रहा था और सरकार समय से नियुक्ति नहीं कर पाई, इसके चलते आयोग को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वो मनमाने ढंग से लोगों की नियुक्ति करे.
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