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Friday, 22 November, 2024
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हिमाचल में बागियों के कारण BJP को 6 सीटों का नुकसान जरूर हुआ, पर पार्टी की हार में पूरा रोल उनका नहीं

बीजेपी ने गुरुवार को हिमाचल विधानसभा की 68 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को 40 सीटें मिलीं. भले ही बीजेपी उन 6 सीटों पर जीत हासिल कर लेती, जहां बागियों ने बीजेपी के वोट काटे, फिर भी पार्टी के पास सिर्फ 31 सीटें ही होतीं.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के बागियों ने हिमाचल प्रदेश की छह सीटों पर पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, लेकिन राज्य में पार्टी की हार में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई. दिप्रिंट द्वारा परिणामों के विश्लेषण से ये संकेत मिले हैं.

भाजपा ने गुरुवार को 68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा में 25 सीटों के साथ जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने 40 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल किया. अगर भाजपा उन छह सीटों पर भी जीत हासिल कर लेती, जहां बागियों ने भाजपा के वोट काटे, तब भी पार्टी के पास सिर्फ 31 सीटें ही होतीं. तब उसके और कांग्रेस के बीच शायद ज्यादा अंतर नहीं रह पाता लेकिन फिर भी वह कांग्रेस से पीछे ही रहती.

पिछले महीने हुए हिमाचल विधानसभा चुनावों में- जिसके परिणाम गुरुवार को घोषित किए गए- मौजूदा विधायकों सहित 17 भाजपा नेताओं ने टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए पार्टी से नाता तोड़ लिया था.

बागियों ने जिन 17 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ा था, उनमें से सात – अन्नी, सुंदरनगर, कांगड़ा, नाचन, बिलासपुर, बंजार और मंडी – में भाजपा अभी भी जीत हासिल करने में सफल रही है. इसमें से कांगड़ा पहले कांग्रेस के पास था. अगर उसे छोड़ दें, तो ये सीटें पहले से ही भाजपा के पास थीं.

कांग्रेस ने 17 में से तीन – मनाली, फतेहपुर और चंबा – पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा के बागियों को भाजपा उम्मीदवारों के भाग्य को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त वोट नहीं मिले. मनाली में कांग्रेस ने मौजूदा बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया.

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनाव न लड़ने के लिए मनाने की असफल कोशिश के बाद कृपाल सिंह परमार भाजपा के भीतर विद्रोह का चेहरा बन गए. उन्होंने फतेहपुर से चुनाव लड़ा और महज 2,811 वोट हासिल कर पाए. जबकि भाजपा उम्मीदवार को फतेहपुर सीट से 25,884 वोट मिले. यहां कांग्रेस उम्मीदवार ने 33,238 वोटों से जीत हासिल की है.

हमीरपुर में कांग्रेस के पूर्व सदस्य और निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले आशीष शर्मा ने भाजपा से सीट छीन ली.

बागियों ने सिर्फ छह निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के नुकसान में निर्णायक भूमिका निभाई है. इनमें से एक में जहां बागी उम्मीदवार ने जीत हासिल की, वहीं छह अन्य में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त वोट हासिल करने में कामयाब रहे. इसका मतलब है कि अगर बागी उम्मीदवारों को मिले वोटों को बीजेपी के टैली में जोड़ दिया जाता तो बीजेपी इन सीटों पर जीत सकती थी.

नलगढ़ में बागी उम्मीदवार के.एल. ठाकुर ने लगभग 45 फीसदी वोट शेयर के साथ जीत हासिल की. ठाकुर ने भाजपा उम्मीदवार लखविंदर राणा को 16,000 से ज्यादा मतों से हराया. वह इस सीट की दौड़ में तीसरे स्थान पर रहे. कांग्रेस को छोड़ भाजपा में शामिल हुए राणा को पार्टी ने मैदान में उतारा था क्योंकि उन्होंने 2017 में कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी.

किन्नौर में भाजपा के बागी तेजवंत सिंह ने 8,500 वोट पाकर पार्टी की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है. कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवारों के बीच जीत का अंतर 7,000 वोटों से थोड़ा कम था. बीजेपी उम्मीदवार को जहां 13,732 वोट मिले, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार को 20,696 वोट मिले.

इंदौरा में मौजूदा बीजेपी विधायक रीता देवी कांग्रेस प्रत्याशी से 2,250 वोटों से हार गईं. बीजेपी के बागी नेता मनोहर लाल ने यहां 4,442 वोट हासिल किए.


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कुल्लू से मौजूदा कांग्रेस विधायक सुंदर सिंह ठाकुर 4,000 वोटों के अंतर से अपनी सीट बरकरार रखने में कामयाब रहे. उन्हें भी अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी के बागी उम्मीदवार राम सिंह ने मदद की, जिन्हें 11,937 वोट हासिल हुए. वहीं बीजेपी उम्मीदवार नरोत्तम सिंह को 26,183 वोट मिले और कांग्रेस उम्मीदवार ने 30,286 वोट बटोरे.

इसी तरह धर्मशाला में भाजपा के बागी विपन नेहरिया को 7416 वोट मिले, जबकि विजयी कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर शर्मा और भाजपा प्रत्याशी राकेश कुमार के बीच का अंतर सिर्फ 3285 मतों का रहा.

बड़सर में बीजेपी प्रत्याशी माया शर्मा की हार में भूमिका निभाते हुए बीजेपी के बागी संजीव कुमार ने 15,252 वोट पाए. वह इस सीट पर 13,792 वोटों के अंतर से हारे हैं. इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार इंदर दत्त लखनपाल ने 30,293 मतों से जीत दर्ज की.

दांव पर क्या लगा था?

हिमाचल चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक बड़े दांव की लड़ाई थी, जिसने 2017 के चुनावों में पहाड़ी राज्य की कुल 68 विधानसभा सीटों में से 44 पर जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस के पास 21 सीटें थी.

पार्टी के लिए ये चुनाव उसकी नाक का सवाल भी था. क्योंकि यह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर का गृह राज्य है.

भाजपा के सूत्रों ने कहा कि चुनावों के दौरान भाजपा को जिस भारी विद्रोह का सामना करना पड़ा, उसकी वजह चुनावों से पहले भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों को मैदान में उतारना थी.

भाजपा के राज्य और केंद्रीय नेतृत्व ने विद्रोह को रोकने के लिए पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन असफल रहे. कई मौजूदा विधायक टिकट बंटवारे को लेकर नाखुश थे और टिकट से वंचित होने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया.

वैसे तो एक तथ्य यह भी है कि हिमाचल के लोग 1985 के बाद से दोनों दलों के बीच बारी-बारी से चुनाव करते आए है. दोनों में से किसी एक को भी लगातार नहीं चुना गया है. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड बताते है कि राज्य में लगातार दो बार जीतने वाली आखिरी पार्टी कांग्रेस थी, जिसने 1982 और 1985 के राज्य चुनावों में ऐसा कर पाने में सफलता पाई थी.

(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः संघप्रिया मौर्य)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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