चेन्नई: पिछले महीने भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने इरोड जिले के बरगुर गांव में एक आदिवासी परिवार की झोपड़ी में आराम के कुछ पल गुजारे थे. जब अपने इन पलों को उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किया, तो वह इस बात का जिक्र करना नहीं भूले कि इस साधारण सी झोपड़ी के बगल में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत परिवार के लिए एक पक्का घर बनाया जा रहा है, जो कि 2015 में शुरू की गई किफायती आवास योजना है.
To celebrate the contribution of tribal communities to the history & culture of our nation, our Hon PM Thiru @narendramodi avargal marked Nov 15th as Tribal Pride Day as a mark of respect to the great Tribal leader Shri Birsa Munda. (1/3) pic.twitter.com/jKjluBMKXh
— K.Annamalai (@annamalai_k) November 15, 2022
पिछले साल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के नेतृत्व वाली सरकार ने जब सप्ताहांत पर पूजा स्थलों को बंद रखने का फैसला लिया तो इसके खिलाफ किए गए तमिलनाडु के 12 प्रमुख मंदिरों में विरोध प्रदर्शन का अन्नामलाई ने उत्साहपूर्वक अपनी पार्टी के कैडर की तरफ से नेतृत्व किया था.
इस तरह से क्षेत्र के दौरे और विरोध के अलावा पूर्व आईपीएस अधिकारी से नेता बने अन्नामलाई तमिल गौरव के बारे में बयान देते रहते हैं. साथ ही वह लोगों को ये भी समझाते हैं कि कैसे भाजपा की तमिलनाडु इकाई राज्य में ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ है.
जिन मुद्दों को लेकर अन्नामलाई बात करते रहते हैं, अगर कम शब्दों में उसे परिभाषित करें तो पता चल जाएगा कि कैसे भाजपा तमिलनाडु में खुद को स्थिति में लाने की कोशिश कर रही है और राज्य के विपक्ष की खाली जगह को भरने का फायदा उठाने के प्रयासों में लगी है.
हालांकि भाजपा अभी भी तमिलनाडु में राजनीतिक रूप से कमजोर है, लेकिन राज्य में इसके तेजी से बढ़ते कदम DMK को सावधान कर रहे हैं. क्षेत्रीय दल के नेता भाजपा की आलोचना कुछ इस तरह से कर रहे हैं मानों वही प्रमुख विपक्ष दल है.
डीएमके के प्रवक्ता सलेम धरणीधरन ने कहा, ‘बीजेपी केंद्र में सत्ता में होने के नाते अपने प्रभाव और मीडिया का फायदा उठाती है. और इसलिए वह आसानी से पूरे देश में अपना नैरेटिव सेट करने में सक्षम है.’ वह आगे कहते हैं, ‘दुर्भाग्य से, हमारा नैरेटिव राज्य तक ही सीमित है.’
राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि प्रमुख विपक्ष और भाजपा की सहयोगी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK ) बेबसी से देख रही है. दरअसल वह घबरा रही है कि कहीं उसके कुछ डीएमके विरोधी वोट उसके सहयोगी पार्टी के खाते में न चले जाएं.
भाजपा के बढ़ते कदम राज्य में बाकी पार्टियों को सतर्क कर रहे हैं, तो इसकी भी अपनी वजहे हैं. AIADMK गुटबाजी की राजनीति से घिरी हुई है, जो भाजपा के लिए विपक्ष की जगह भरने का अवसर खोलती है, अब भले ही ये अवसर बयानबाजी में क्यों न हो. विश्लेषकों ने कहा कि इसी तरह डीएमके की सहयोगी कांग्रेस, अपनी पार्टी के अंदर चल रही अंदरूनी कलह के कारण खुद को आग लगा रही है.
इस पृष्ठभूमि में आगे बढ़ते हुए, तमिलनाडु में द्रविड़ पार्टियों को लगातार मजबूत जनादेश मिलने के बावजूद भाजपा द्रविड़ राजनीति की अवधारणा को खत्म करने की कोशिश करने में लगी है. भाजपा का सबसे हालिया प्रयास वाराणसी में चल रहा काशी तमिल संगमम है, जिसका उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच ‘पुराने संबंधों को फिर से खोजना’ है.
तमिलनाडु स्थित भाजपा नेताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने दावा किया कि तमिलनाडु में बीजेपी अपने ब्राह्मण पार्टी के टैग को हटाना चाहती है. यह राज्य के कल्याण के लिए किए गए केंद्र के काम को उजागर करने की कोशिश कर रही है. वह एक हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास कर रही है. जिस राज्य ने कभी धार्मिक आधार पर मतदान नहीं किया, वहां धर्म आधारित राजनीति की भूख को बढ़ा रही है.
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, हालांकि दशकों पुरानी द्रविड़ राजनीति की प्राचीर को तोड़ना इतना आसान नहीं है. उस किले में सेंध लगाना जहां राष्ट्रीय दलों के लिए बहुत कम या कोई जगह नहीं है और एक ऐसे राज्य में हिंदुत्व पार्टी को बेचना जहां ‘हम बनाम वे’ हिंदू या कोई और जाति नहीं, बल्कि तमिल और अन्य लोग हैं, एक लंबा काम है.
तमिल एवं अंग्रेजी लेखक और चेन्नई के राजनीतिक टिप्पणीकार मालन नारायणन ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा ने यहां जमीनी स्तर पर कुछ आधार बनाया है. वे द्रविड़ विरोधी राजनीति कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे वंशवादी राजनीति पर द्रविड़ पार्टियों, विशेषकर डीएमके को निशाना बनाते हैं. लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि क्या इससे भाजपा को स्विंग कराने के लिए पर्याप्त संख्या मिल पाएगी.’
द्रविड़ राजनीति और मजबूत जनादेश
द्रविड़ राजनीति की जड़ें साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन में हैं, जिसकी स्थापना 1916 में हुई थी, जिसे जस्टिस पार्टी के नाम से जाना जाता था. यह ब्राह्मण विरोधी और सामाजिक न्याय के लिए खड़ा किया गया संगठन था.
1938 में जस्टिस पार्टी और पेरियार (ई.वी. रामास्वामी नायकर) के नेतृत्व वाला सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट एक साथ आया और 1944 में एक नए संगठन को जन्म दिया. इसका नाम द्रविड़ कज़गम रखा गया. इसने ‘द्रविड़ नाडु’ यानी एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र का आह्वान किया.
1949 में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुराई वैचारिक मतभेदों को लेकर द्रविड़ कज़गम से अलग हो गए और डीएमके की स्थापना की. इसने चुनाव लड़ना शुरू कर दिया था. अन्नादुरई ने ‘द्रविड़ नाडु’ के एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाया, लेकिन हाल ही में संघ बनाम राज्य की भयंकर लड़ाई और तमिलनाडु में भाजपा के आक्रामक प्रयासों ने नेताओं को अप्रत्यक्ष रूप से मांग को फिर से लेकर आने के लिए उकसाया है.
डीएमके नेता ए. राजा ने इस साल जुलाई में कहा था, ‘सीएम (एमके स्टालिन) अन्ना (अन्नादुरई) के रास्ते पर चल रहे हैं, हमें पेरियार के रास्ते पर मत धकेलिए.’
1967 में डीएमके के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार जबरदस्त जीत के साथ सत्ता में आई थी. अकेले डीएमके ने 234 विधानसभा सीटों में से 137 सीटें जीती थीं और 40 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया था. उसके बाद से अब तक कोई भी राष्ट्रीय पार्टी तमिलनाडु में सरकार नहीं बना पाई है.
अभिनेता एम.जी. रामचंद्रन ने 1972 में डीएमके से अलग हुए गुट के रूप में एआईएडीएमके की स्थापना की थी. AIADMK ने पहली बार 1977 में राज्य विधानसभा में सत्ता का स्वाद चखा था. और तब से लेकर अब तक सत्ता की ये लड़ाई दो द्रविड़ पार्टियों के बीच आकर ठहर गई है.. चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के अनुसार, तब से दोनों दलों ने सामूहिक रूप से तमिलनाडु के 55 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर पर कब्जा जमाया हुआ है.
सेंटर फॉर स्टडी इन पब्लिक स्फीयर के फेलो ए.एस. पन्नीरसेल्वम ने दिप्रिंट को बताया. ‘किसी भी अन्य राज्य की तरह, यह राज्य भी सरकार में बदलाव का विकल्प चुनता है, लेकिन यह राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की तरफ नहीं जाता है. सत्ता का हेर-फेर राज्य के भीतर से आता है.’ पन्नीरसेल्वम ने तमिलनाडु के दिवंगत मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम. करुणानिधि की जीवनी लिखी है.
चुनाव आयोग के आंकड़े पन्नीरसेल्वन की बात की पुष्टि करते हैं. उनके मुताबिक, द्रविड़ पार्टियों के लिए वरीयता पिछले दो चुनावों – 2016 और 2021 में और भी साफ तरीके से उभर कर आई है. तमिलनाडु के 70 फीसदी मतदाताओं ने या तो DMK को वोट दिया या फिर AIADMK को चुना है.
2021 में AIADMK का वोट शेयर 33.29 प्रतिशत था, जो DMK की तुलना में 4.4 प्रतिशत कम था. यह तब था कि जब दिसंबर 2016 में अन्नाद्रमुक पार्टी अपनी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की मौत के बाद पार्टी में फैले आंतरिक मतभेदों से भरी हुई थी.
यह तथ्य द्रविड़ राजनीति के गढ़ को तोड़ना और भी मुश्किल बना देता है, कि तमिलनाडु के वेलफेयर सूचकांक अन्य राज्यों की तुलना में लगातार बेहतर रहे हैं. बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम प्रदर्शन के आधार पर यहां पार्टियों को निशाना नहीं बना सकते. हम सिर्फ भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति के बारे में बात कर सकते हैं.’
अगर नजर घुमाएं तो यहां कांग्रेस ही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी दिखाई देगी, जिसका तमिलनाडु में आधार रहा है. के कामराज और सी राजगोपालाचारी जैसे पार्टी नेताओं के हाथ में कमान थी, जिस कारण 1991 में वोट शेयर मुख्य रूप से 15.19 प्रतिशत था. ईसी डेटा के अनुसार, 2021 में यह सिर्फ 4.27 प्रतिशत पर सिमट कर रह गया था.
भाजपा यह आरोप लगाकर द्रविड़ राजनीति को नकारने की कोशिश कर रही है कि द्रविड़ पार्टियों ने द्रविड़ विचारधारा को विभाजनकारी रंग दे दिया है. अन्नामलाई के सचिव श्रीकांत करुणेश ने दिप्रिंट को बताया, ‘संस्कृत में द्रविड़ एक स्थान को संदर्भित करता है. यह कोई दौड़ नहीं है. लेकिन उन्होंने (द्रविड़ पार्टियों) ने इसे द्रविड़ बनाम आर्य बहस बना दिया है.’
श्रीकांत ने अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा के गठबंधन का बचाव करते हुए कहा कि पार्टी अपनी सद्भावना पाने के लिए द्रमुक की भाषा बोल रही है, लेकिन स्वभाव में अलग है. उन्होंने बताया, ‘वे राष्ट्र निर्माण की बात कर रहे हैं. लेकिन एआईएडीएमके अभी भी द्रविड़ पार्टी होने की छाया से पूरी तरह से बाहर नहीं आ सकी है, क्योंकि ऐसा करने का मतलब होगा, डीएमके को वाकओवर देना होगा.’
AIADMK के प्रवक्ता कोवई सत्यन ने उस बयान को खारिज कर दिया. और जोर देकर कहा कि भाजपा और AIADMK वैचारिक रूप से ‘बहुत अलग’ हैं.
उन्होंने कहा, ‘बीजेपी-एआईएडीएमके एक ही विचारधारा को साझा नहीं करते हैं, लेकिन जब जन कल्याण की बात आती है तो यह गठबंधन मदद करता है, अगर आप लोगों के लिए अच्छा काम करना चाहते हैं तो केंद्र में पार्टी के साथ अच्छे संबंध होना जरूरी है. यह सर्वोपरि है.’
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 1991 और 2021 के बीच राज्य में भाजपा का वोट शेयर 1.7 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 2.62 प्रतिशत हो गया है.
लेकिन डीएमके के नेता भाजपा की महत्वाकांक्षाओं को लेकर सतर्क हैं. पिछले महीने, राज्य के कैबिनेट मंत्री दुरई मुरुगन ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि इस बार (अगले चुनाव में) उन्हें एक ‘राक्षस’ का सामना करना है और भाजपा एक मॉन्स्टर की तरह बदल रही है.
यह भी पढ़ें: सीता के लिए मंदिर, नीतीश के लिए वोट? कैसे हिंदू धर्म बना बिहार की राजनीति का केंद्र
बीजेपी का तमिलनाडु पर जोर
कमलायम में भाजपा का मुख्यालय चेन्नई के टी नगर की एक संकरी गली में मौजूद है. जब दिप्रिंट ने पिछले सप्ताह वहां का दौरा किया तो श्रीकांत अन्नामलाई की आधी प्रतिमा के बगल में बैठे फोन पर काम कर रहे थे. वह दो फील्ड दौरों का समन्वय कर रहे थे, जहां तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष अगले दो दिनों में जाने वाले थे.
श्रीकांत ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह (अन्नामलाई) लगभग हमेशा लोगों के बीच सड़क पर रहते हैं. उनका तमिल साहित्यिक या शास्त्रीय नहीं है. वह बोलचाल की आम तमिल भाषा बोलते हैं. वह सबसे निचले स्तर पर हमारे कार्यकर्ताओं (कैडर) के घर जाते हैं. वह तेज-तर्रार हैं. लोगों और मीडिया को उनकी सीधी बात पसंद है.’ दरअसल वह लगातार इस बात को बताने की कोशिश कर रहे थे कि अन्नामलाई किस तरह से बीजेपी के प्रति बनी एक ‘दूर की हिंदी- भाषी राष्ट्रीय पार्टी’ की धारणा को तोड़ने की कोशिशों में लगे हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर अन्नामलाई जी को स्वीकार किया जाता है, तो इसका मतलब है कि भाजपा को स्वीकार किया जाएगा.’
अन्नामलाई अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के गाउंडर समुदाय के सदस्य हैं. ठीक इसी तरह से भाजपा के पिछले राज्य प्रमुख एल. मुरुगन अनुसूचित जाति से थे. कुल मिलाकर अन्नामलाई, भाजपा का अपनी कुलीन ब्राह्मण छवि से दूर जाने का एक दांव है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, यह देखते हुए कि कैसे तमिलनाडु के राजनीतिक प्रवचन में के. कामराज और सी.एन. अन्नादुरई से लेकर जयललिता और करुणानिधि तक करिश्माई नेताओं का वर्चस्व रहा है. भाजपा अन्नामलाई को एक प्रभामंडल वाले नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है.
इसलिए जब राज्य के भाजपा नेता अन्नामलाई के बारे में बात करते हैं, तो वे उन्हें बड़ा बना देते हैं. एक बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘अपने आईपीएस अनुभव के चलते उन्हें घोटालों के होने से पहले ही गंध आ जाती है. वह अपने कार्यालय में अपने डेस्क के चारों ओर बिखरे हुए कागजों के बीच बैठे हुए होते हैं. ऐसा लगता है मानो, वह अपनी आंखों से उनकी फोटो खींच रहे हैं. क्योंकि वे जब बाहर निकलते हैं तो हर डेटा और हर वर्ग का हवाला देते हुए उनके बारे में बात करते हैं.’
पन्नीरसेल्वम ने कहा कि हालांकि अन्नामलाई की जाति और भाजपा उन्हें राज्य में आगे बढ़ने से रोक देगी. गौंडर पश्चिमी तमिलनाडु में एक प्रमुख जाति से हैं. और अब तक अधिकांश ‘करिश्माई’ नेता अल्पसंख्यक जातियों से आए हैं. उन्होंने दावा किया, ‘जब आप एक प्रभावशाली जाति से होते हैं, तो आपको दूसरों के विरोधी के रूप में देखा जाता है.’
पार्टी के नेताओं के मुताबिक, केंद्रीय भाजपा नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तमिल शास्त्रीय ग्रंथ को उद्धृत करने और तमिल को ‘दुनिया की सबसे पुरानी भाषा’ बताने के साथ सचेत रूप से अपना काम कर रहा है. वह वाराणसी में केंद्र सरकार के काशी तमिल संगमम का आयोजन करने जैसे कदम उठा रहा है. इसके अलावा कैबिनेट मंत्री राज्य में केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए जोर-शोर से लगे हैं.
दूसरे राज्यों में अपने ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर की तरह बीजेपी तमिलनाडु में भी अपने बूथ कमेटी मॉडल को लागू करने की कोशिश कर रही है.
तमिलनाडु के पार्टी प्रवक्ता नारायणन थिरुपति ने दिप्रिंट को बताया कि लगभग 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा, ‘अब तक हमारे पास प्रत्येक 1,000 मतदाताओं तक पहुंचने के लिए 13 लोग हैं.’ उन्होंने कहा कि पार्टी ने तमिलनाडु की राजनीतिक जरूरतों के अनुरूप कई समितियों बनाई हैं.
थिरुपति ने कहा, ‘एक केंद्रीय योजना समिति राज्य में केंद्र सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करती है. वे डेटा इकट्ठा करते हैं कि योजनाएं कैसे काम कर रही हैं, लाभार्थियों और लोगों को ये योजनाएं संभावित रूप से निर्वाचन क्षेत्र, गांववार और बूथवार मदद कर सकती हैं.’
एक अन्य ‘खेल और युवा सशक्तिकरण समिति’ राज्य के युवा मतदाताओं के लिए परियोजनाओं और कार्यक्रमों को कवर करती है. इसके अलावा एक आध्यात्मिक और मंदिर मामलों की समिति भी है जो तमिलनाडु में भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को चलाती है.
तमिलनाडु में हिंदुत्व
बीजेपी नेताओं के मुताबिक, पार्टी इस बात को लेकर सचेत है कि हिंदुत्व का एजेंडा राज्य के वोटरों को प्रभावित नहीं करेगा. तमिलनाडु कभी भी इस्लामी शासन के अधीन नहीं रहा है और ‘मुस्लिम आक्रमणकारियों’ की बयानबाजी राज्य में काम नहीं आएगी. उन्होंने कहा कि तमिल होने की भावना किसी भी धार्मिक संबंध से कहीं अधिक मजबूत है.
2011 की जनगणना के अनुसार, तमिलनाडु की 87.5 प्रतिशत आबादी हिंदू है, 5.8 प्रतिशत मुस्लिम हैं, 6.12 प्रतिशत ईसाई हैं, जबकि बाकी सिख, बौद्ध, जैन या अन्य धर्मों के हैं.
थिरुपति ने कहा, ‘लोग यहां कोर हिंदुत्व पर एक अभियान को स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन, द्रविड़ पार्टियां ईसाइयों और मुसलमानों को खुश करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. उन्हें लगता है कि इससे उनके हिंदू वोट आधार पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’
उन्होंने कहा, ‘तमिलनाडु के लोग भगवान से डरने वाले लोग हैं. यहां विशाल मंदिर हैं. हम सिर्फ संस्कृति की बात कर रहे हैं. हम उन्हें समझाते हैं कि हम मंदिरों को संरक्षित करना चाहते हैं.’
पार्टी के नेता ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे चेन्नई में एक अयोध्या सत्संग मंडपम को अचानक राज्य सरकार के मंदिर ट्रस्ट के तहत लाया गया ‘हालांकि यह तकनीकी रूप से मंदिर नहीं था’.
एक भाजपा नेता ने कहा, ‘लेकिन राम जन्माष्टमी के दिन उन्होंने इसे बंद कर दिया. हम वहां गए, सरकार से लड़ाई की. लोग बहुत गुस्से में थे. हमने सरकार से मण्डप खुलवाया और इसे वापस ट्रस्ट को सौंप दिया.’
लेखक मालन नारायणन ने कहा कि तमिलनाडु में बीजेपी का हिंदू कार्ड काम करेगा या नहीं, इस पर अभी फैसला बाकी है, लेकिन पार्टी ने सभी पार्टियों को हिंदुत्व पर स्टैंड लेने के लिए मजबूर कर दिया है.
डीएमके को नास्तिक पार्टी माना जाता है, लेकिन अब (सीएम) स्टालिन की पत्नी भी एक मंदिर से दूसरे मंदिर की तरफ जा रही हैं, यज्ञ कराती हैं और कहती हैं कि वे नास्तिक नहीं हैं. लेकिन सभी भगवान एक है. यह राहुल गांधी के नरम हिंदुत्व जैसा है.
एआईएडीएमके और डीएमके दोनों के नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि जहां नास्तिकता द्रविड़ विचारधारा के मूल में थी, वहीं पार्टियां और उनके नेता तर्कवादी बन गए हैं. और दोनों ने स्पष्ट रूप से दावा किया कि यहां भाजपा का एजेंडा काम नहीं करेगा.
एआईएडीएमके सदस्य कोवई सथ्यन ने कहा, ‘भाजपा का धार्मिक पूर्वाग्रह है. इस जगह ने हमेशा धार्मिक सद्भाव देखा है. भाषाई और धार्मिक विभाजन तमिलनाडु में काम नहीं करते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘बीजेपी भले ही खुले तौर पर हिंदुत्व के लिए खड़े होने की बात नहीं कह रही हो, लेकिन लोगों के मन में बीजेपी खुले तौर पर धर्मांतरण, अन्य धर्मों की बात कर रही होती है.’
नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक पदाधिकारी ने कहा कि भाजपा को अपने राष्ट्रीय एजेंडे के कारण यहां हिंदुत्व अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘पार्टी अच्छी तरह जानती है कि इसका तत्काल कोई नतीजा नहीं निकलेगा. लेकिन, उनके पास केंद्र में शक्ति है और विस्तार से प्रभावित करने की क्षमता है. इसलिए हम सतर्क हैं.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: UP निकाय चुनावों में ‘मशाल’ फिर से हासिल करने के बाद समता पार्टी ने कहा- पुराने सिंबल के लिए SC जाएगी