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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशपरिसीमन आयोग को जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के फिर से निर्धारण का अधिकार: केंद्र सरकार

परिसीमन आयोग को जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के फिर से निर्धारण का अधिकार: केंद्र सरकार

सॉलिसिटर जनरल ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील का भी विरोध किया कि संविधान का अनुच्छेद 170 वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की कवायद पर रोक लगाता है.

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नई दिल्ली: केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार दिया गया है.

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का अनुराध करते हुए शीर्ष अदालत से कहा कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 केंद्र सरकार को परिसीमन आयोग की स्थापना किए जाने से रोकता नहीं है.

मेहता ने न्यायमूर्ति एस ए कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ से कहा, ‘2019 अधिनियम की धाराएं 61 और 62 केंद्र सरकार को 2019 अधिनियम की धारा 62 के तहत परिसीमन आयोग की स्थापना करने से नहीं रोकतीं… 2019 अधिनियम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के लिए दो वैकल्पिक तंत्र प्रदान करता है.’

उन्होंने कहा, ‘धाराएं 60-61 के आधार पर परिसीमन निर्धारित करने की शक्ति निर्वाचन आयोग को प्रदान की गई है तथा धाराएं 62(2) एवं 62(3) परिसीमन अधिनियम की धारा तीन के तहत गठित परिसीमन आयोग को परिसीमन करने की शक्ति प्रदान करती हैं.’

पीठ ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) ने छह मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की बात की गई थी.

सॉलिसिटर जनरल ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील का भी विरोध किया कि संविधान का अनुच्छेद 170 वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की कवायद पर रोक लगाता है.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की यह दलील गलत है कि परिसीमन की कवायद या तो 2001 की जनगणना के आधार पर होनी चाहिए या ‘वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना’ का इंतजार करना चाहिए.

दो याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था.

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीट सहित) करना संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है.

याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गयी थी और परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत 12 जुलाई, 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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