नई दिल्ली: हालांकि सभी की निगाहें मंगलवार को दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों के रूप में जारी किए जाने वाले व्यापक आर्थिक आंकड़ों पर टिकी हैं, लेकिन क्षेत्रवार प्रदर्शन के विश्लेषण से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था अभी भी रोजगार और आय को बढ़ावा देने के लिए जरूरी मजबूत विकास से दूर है.
आर्थिक प्रदर्शन की एक सामान्य तस्वीर पेश करने के लिए सरकार समय-समय पर कई मीट्रिक जारी करती है. इनमें से एक ‘उच्च आवृत्ति संकेतक’ भी है जिसे रिसर्चर और मीडिया अपने विश्लेषण के लिए इस्तेमाल में लाता रहा है. इससे मासिक आधार पर कार्गो ट्रैफिक, टोल संग्रह, बिजली की खपत, ट्रेड डेटा, वाहन बिक्री, माल ढुलाई जैसी आर्थिक गतिविधियों को मापते हैं.
मशीनों के लिए लुब्रिकेंट्स, ग्रीस, पेंट, कंस्ट्रक्शन मैटिरियल आदि जैसी कुछ वस्तुएं हैं जो अंतर्निहित आर्थिक गतिविधि और उन सभी क्षेत्रों की एक सटीक तस्वीर पेश करती हैं, जो फलफूल रहे हैं और जो ग्रोथ में पीछे रह गए हैं.
दूसरे शब्दों में ऐसी वस्तुएं जिन्हें कंपनियां और परिवार केवल तभी खरीदते हैं जब उन्हें उसकी जरूरत होती है और वो वस्तुएं जिन्हें नियमित रूप से खरीदा जाता है. इन दोनों में बिक्री की मात्रा का विश्लेषण भारतीय अर्थव्यवस्था की सही सेहत के बारे में बताता है.
इसके अलावा, अगर बिक्री से अर्जित राजस्व के बजाय बेची गई इकाइयों की संख्या को देखें तो हाल की उच्च मुद्रास्फीति का प्रभाव भी खत्म होता नजर आ रहा है और अधिक सार्थक तुलना कर पाने में सक्षम हुए हैं.
डेटा से पता चलता है कि औद्योगिक पेट्रोलियम उत्पादों की खपत, नियमित घरेलू खपत की वस्तुएं, और भवन निर्माण और रिनोवेशन में इस्तेमाल किया जाने वाला मटेरियल का क्षेत्र महामारी से उबर गया है, लेकिन यह अभी भी जिस स्तर पर होना चाहिए था उससे कमतर ही नजर आ रहा है. इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में विकास दर औसतन 5 फीसदी से भी कम रहने की भविष्यवाणी करने वाले भारतीय रिजर्व बैंक और अर्थशास्त्रियों ने भी इसकी पुष्टि की है.
कुछ औद्योगिक पेट्रोलियम उत्पादों की मांग अधिक
कुछ पेट्रोलियम उत्पाद जैसे नेफ्था, बिटुमेन, लुब्रिकेंट्स एवं ग्रीस और लाइट डीजल ऑयल (एलडीओ) आर्थिक गतिविधि के प्रमुख संकेतक के रूप में काम करते हैं. यानी आर्थिक विकास के बेहतर रहने के पूर्वाभास पर इन्हें खरीदा जाता है. और अगर निकट भविष्य में विकास की गति धीमी रहने की भविष्यवाणी की जाती है, तो इन उत्पादों की बिक्री गिर जाती है.
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के डेटा से पता चलता है कि इन उत्पादों की बिक्री मिली जुली रही है. यह बता रहा है कि विशेष क्षेत्र ने कैसा प्रदर्शन किया है. उदाहरण के लिए, सड़क निर्माण में बिटुमेन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. अप्रैल-अक्टूबर 2022 में इसकी खपत 4,136 टीएमटी (हजार मीट्रिक टन) थी. पिछले साल की तुलना में इसमें 6.6 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह 2018 के बाद के रुझान से काफी आगे की और बढ़ा है. लेकिन इसकी विकास दर अभी भी उतनी ज्यादा नहीं है जितना कि ये हो सकती थी.
इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि इस साल हाइवे निर्माण का काम काफी धीमा रहा है. यह एक अच्छी खबर नहीं है क्योंकि सड़क निर्माण क्षेत्र एक प्रमुख रोजगार देने वाला क्षेत्र है.
सेंट्रम ब्रोकिंग लिमिटेड ने इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर एक रिपोर्ट में कहा, ‘एच1 FY23(अप्रैल से सितंबर 2022) के दौरान, NHAI को 191 बिलियन रुपये (386 किमी के मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट समेत) की 1,024 किमी लंबाई वाले सिर्फ 35 प्रोजेक्ट दिए गए हैं. यह NHAI के चालू वित्त वर्ष-23 के 6,000 किमी के लक्ष्य का महज 17 फीसद है.’
कंपनियां मशीनों और इंजनों को चलाने के लिए लुब्रिकेंट्स और ग्रीस का इस्तेमाल करती हैं. अगर कंपनियां अपनी मशीनों और इंजनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रही हैं या फिर ये निकट भविष्य में ऐसा होने की बात कहते हैं तो जाहिर तौर पर उनकी बिक्री में बढ़ोतरी होती है.
अप्रैल से अक्टूबर 2022 में लुब्रिकेंट्स और ग्रीस की खपत की मात्रा 2,557 टीएमटी रही, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मात्र एक फीसद ज्यादा है.
आर्थिक गतिविधि का एक अन्य प्रमुख संकेतक नेफ्था की बिक्री है, जिसका व्यापक रूप से सभी प्रकार के औद्योगिक सॉल्वैंट्स में उपयोग किया जाता है. इस साल नेफ्था की बिक्री 7,378 टीएमटी रही. यह पिछले साल की तुलना में 4.9 प्रतिशत ज्यादा है. लेकिन पिछले तीन सालों (2018, 2019 और 2020) की तुलना में 7,600 टीएमटी के औसत से बहुत कम है.
भट्टियों और बॉयलरों में इस्तेमाल होने वाले हल्के डीजल तेल (एलडीओ) की बिक्री अप्रैल-अक्टूबर 2022 में सिर्फ 420 टीएमटी को छू पाई, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 30.5 प्रतिशत कम थी. तब यह 604 टीएमटी थी. हालांकि इस साल की बिक्री 2018 से लेकर 2020 के तीन वर्षों में देखी गई औसत से अधिक है. जाहिर तौर पर यह आंकड़े बता रहे हैं कि इसका इस्तेमाल सामान्य रूप से बढ़ रहा है.
कंस्ट्रक्शन मटेरियल में जोरदार वृद्धि
अर्थव्यवस्था का आकलन करने का एक सहायक पैमाना उन वस्तुओं की बिक्री को देखना है जिनमें घरों और कंपनियों द्वारा सोच-समझकर किया जाने वाला खर्च शामिल है, जैसे कि कंस्ट्रक्शन मटेरियल. परिवार और कंपनियां आमतौर पर तभी रिनोवेशन या नए निर्माण की तरफ जाती हैं जब उनके पास इस काम के लिए पैसा होता है या जब उन्हें इसकी जरूरत होती है (उदाहरण के तौर पर किसी कंपनी का विस्तार)
निर्माण सामग्री क्षेत्र पर सिस्टेमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज द्वारा संकलित आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में पीवीसी पाइप, सिरेमिक टाइल्स, प्लाईवुड और लैमिनेट्स की बिक्री में महामारी से पहले के समय की तुलना में जोरदार वृद्धि हुई है.
लेकिन इसी के साथ आंकड़े यह भी बताते हैं कि पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में बिक्री की मात्रा काफी हद तक सपाट रही. दरअसल यह इस बात का संकेत है कि पिछले साल इस क्षेत्र में वास्तव में कोई वृद्धि नहीं हुई थी.
सिस्टेमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘बिल्डिंग मैटेरियल्स के सभी सेगमेंट में वुड पैनल वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में समग्र रूप से बढ़ने का आगाज दे रहा है, जो प्रमुख श्रेणियों में बिक्री में बढ़ोतरी और मार्जिन से प्रेरित है.’ सिरेमिक टाइल कंपनियों के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल की पहली तिमाही में बिक्री की मात्रा और राजस्व में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन गैस की बढ़ती कीमतों और सिरेमिक कंपनियों द्वारा अपर्याप्त कीमतों में बढ़ोतरी ने उनके मार्जिन को नुकसान पहुंचाया है.
कंपनियों के प्रदर्शन का क्षेत्र-वार विश्लेषण करने वाली नुवामा रिसर्च ने एशियन पेंट्स को ‘घरेलू स्टेपल’ कैटेगरी में रखा है. पेंट की बिक्री का निर्माण और रिनोवेशन गतिविधियों से गहरा संबंध है.
नुवामा के आंकड़ों से पता चलता है कि एशियन पेंट्स ने वित्त वर्ष 2018 की दूसरी तिमाही की तुलना में इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अपने द्वारा बेचे गए उत्पादों की मात्रा में दोगुने से अधिक और पिछले साल की दूसरी तिमाही की तुलना में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है.
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हाउसहोल्ड स्टेपल पिछले साल के समान स्तर पर
अर्थव्यवस्था की अच्छी सेहत का आकलन करने का एक अन्य उपाय फास्ट-मूविंग उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) और नियमित रूप से खरीदी जाने वाली वस्तुओं जैसे चाय, कॉफी, डियोड्रेंट, साबुन, क्लीनिंग प्रोडक्ट, बिस्कुट, खाने-पीने की चीजें आदि पर नजर रखना है.
हिंदुस्तान यूनिलीवर, डाबर, आईटीसी, इमामी, बजाज कंज्यूमर जैसे इन क्षेत्रों में प्रमुख कंपनियों की बिक्री संख्या के विश्लेषण से पता चलता है कि भले ही इनकी बिक्री की मात्रा महामारी से उबर गई है, लेकिन उनकी ग्रोथ कुछ वजहों से ज्यादा नहीं बढ़ पाई है.
इन कंपनियों की बिक्री संख्या को संकलित करने वाली नुवामा रिसर्च ने कहा कि मुद्रास्फीति ने मांग को दबाने में एक भूमिका निभाई है. हालांकि कुछ कंपनियां कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने में कामयाब रहीं, जबकि अन्य को इस तथ्य से फायदा हुआ कि उपभोक्ता महंगे विकल्पों से सस्ते विकल्पों की ओर जा रहे हैं.
नुवामा रिसर्च ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘उपभोक्ता कंपनियों ने वित्त वर्ष-23 की दूसरी तिमाही में कई वस्तुओं में कच्चे माल में मुद्रास्फीति की बाधाओं का सामना किया है. वास्तव में मुद्रास्फीति ने दोहरी मार झेली – इसने कंपनियों के मार्जिन को कम कर दिया और ग्रामीण मांग को दबा दिया.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया ‘फिर भी इस कैटेगरी में अग्रणी रही कंपनियों ने कीमतों में वृद्धि जारी रखी और उसके बावजूद बाजार में हिस्सेदारी हासिल की. बिस्कुट, नूडल्स और आटा जैसे प्रोडेक्ट की मांग स्ट्रीट फूड और लॉन्च से डाउन-ट्रेडिंग (अधिक महंगे से सस्ते विकल्प पर स्विच करना) के जरिए निर्धारित होती है.’
नुवामा रिसर्च ने पाया कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों की मांग में बढोतरी जारी है, खासकर लक्जरी, प्रीमियम और त्वरित कमर्शियल क्षेत्रों में. उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर हमारा मानना है कि एफएमसीजी के लिए सबसे खराब स्थिति धीरे-धीरे रिकवर होते हुए अब पूरी तरह से सुधर चुकी है.’
आगे क्या
मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने गुरुवार को कहा कि उद्योग और अर्थशास्त्रियों के बीच व्यापक सहमति यह है कि 2022-23 के पूरे वित्तीय वर्ष के लिए विकास दर 6.5 से 7 प्रतिशत के बीच रहेगी. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों से स्थिति ज्यादा साफ हो पाएगी. ये आंकड़े 30 नवंबर को जारी किए जाएंगे.
सीईए ने भारतीय स्टेट बैंक के बैंकिंग और आर्थिक सम्मेलन में कहा, ‘वित्त वर्ष 2013 (ग्रोथ) के लिए निजी क्षेत्र, भारतीय रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों के अनुमान मोटे तौर पर 6.5 से 7 प्रतिशत के दायरे में हैं. इस समय यह सही प्रतीत हो रहा है, हालांकि हमें कुछ दिनों में दूसरी तिमाही के आंकड़े मिल जाएंगे, जो इन संख्याओं का सटीक निर्धारण कर पाएंगे और साथ ही ये भी बता पाएंगे कि क्या उन्हें संशोधित करने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 24 के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुमान बड़े पैमाने पर 6 से 6.2 प्रतिशत के बीच में झूलते नजर आ रहे हैं.
नुवामा रिसर्च का कहना है कि ‘स्किन क्रीम, च्यवनप्राश, शहद और हनीटस में उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग के साथ यह साल आने वाले समय में अच्छी सर्दी के शुरुआती संकेत देख रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘यह संभावित रूप से चाय और कॉफी जैसे गर्म पेय पदार्थों को भी कुछ हद तक फायदा पहुंचा सकता है. फिलहाल तो ये सर्दियों के शुरुआती दिन हैं और हमने ट्रैक करना जारी रखा हुआ हैं. फिलहाल तक तो डेटा उत्साहजनक है.’
हालांकि रिसर्च कंपनी ने ये भी कहा कि एफएमसीजी उत्पादों की ग्रामीण मांग में कोई संरचनात्मक सुधार नहीं दिख रहा है, इसलिए इस वर्ष की दूसरी छमाही में बेस इफेक्ट के कारण पहली की तुलना में वृद्धि हो सकती है. लेकिन यह वास्तविक विकास के बजाय काफी हद तक ऑप्टिक्स रहेगी.
बैंक ऑफ बड़ौदा की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बैंक ऑफ बड़ौदा कैपिटल मार्केट्स (BOBCAP) का मानना है कि मिड टर्म में इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में एक आगामी ‘बूम’ अर्थव्यवस्था को गति देगा.
BOBCAP ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘हमारा मानना है कि भारत एक नए कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) अपसाइकल के मुहाने पर है, जो देश के 2003-08 के आखिरी इंफ्रास्ट्रक्चर में बूम आने के करीब दो दशक बाद हुआ है. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बीच पिछला चक्र रुक गया था. जिसके बाद सरकार पूंजीगत व्यय की मशाल बन गई, बुनियादी ढांचे को सबसे आगे रखा और चल रहे 111 ट्रिलियन नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (FY19-FY25) तक पहुंच गई.’
इसमें आगे कहा गया है कि ‘सरकार की संपत्ति निर्माण (एनआईपी), एसेट रिसायकलिंग (नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन) और एकीकृत योजना (गति शक्ति) के ट्रायफेक्टा को भारत के बुनियादी ढांचे के चक्र को फिर से शुरू करना चाहिए. विशेष रूप से, भले ही एनआईपी का सिर्फ 50 प्रतिशत ही फलीभूत हो, फिर भी यह पांच सालों में 11 ट्रिलियन रुपये के एक बड़े वार्षिक पूंजीगत व्यय को आगे बढ़ाएगा’
हालांकि, आरबीआई गवर्नर ने 30 सितंबर को मौद्रिक नीति समिति के फैसले की घोषणा करते हुए कहा था कि कुल मिलाकर, इस साल की दूसरी छमाही में विकास दर 4.6 प्रतिशत रहने की संभावना है.
EY INDIA के मुख्य नीति सलाहकार डी.के. श्रीवास्तव इस आकलन से सहमत हैं. उन्होंने कहा कि औद्योगिक गतिविधियां पर्याप्त तेजी से बढ़ती नहीं दिख रही हैं.
श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को बताया, ‘तीसरी और चौथी तिमाही में सामान्य वृद्धि सिर्फ 4-5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. आरबीआई ने भी ऐसा ही कहा है. बेस इफेक्ट को हटा दिए जाने के बाद, यह उम्मीद की जा रही कि तीसरी तिमाही और चौथी तिमाही में विकास दर 5 प्रतिशत से कम होगी. इसका मतलब यह होगा कि औद्योगिक गतिविधियों में सिर्फ 5 प्रतिशत की वृद्धि दिख रही है, जो काफी नहीं है.
श्रीवास्तव ने कहा कि सर्विस सेक्टर – जिसे इस विश्लेषण में नहीं मापा गया है – के कुछ ऐसे हिस्से हैं जो अभी भी महामारी से पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं. जिसका उनकी रोजगार क्षमता पर प्रभाव पड़ता है.
उन्होंने समझाया, ‘एक क्षेत्र जो इस वर्ष की पहली तिमाही तक पूरी तरह से संभल नहीं पाया था, वह ट्रांसपोर्ट,स्टोरेज, कम्युनिकेशन आदि थे. यह सेक्टर प्री-कोविड स्तर तक नहीं पहुंच पाया है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत अधिक अनौपचारिक रोजगार होता है.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)
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