scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतगुजरात में मोदी का जलवा एक बड़े खालीपन की वजह से कायम है, जिसे सांस्कृतिक हस्तियां भी नहीं भर सकतीं

गुजरात में मोदी का जलवा एक बड़े खालीपन की वजह से कायम है, जिसे सांस्कृतिक हस्तियां भी नहीं भर सकतीं

यूट्यूब पर गुजराती भजनों और गानों की भरमार है. वे यूट्यूब पर वैसे ही लोकप्रिय हैं, जैसे पंजाबी रैप गायक, और उनके दर्जनों गीतों को एक करोड़ से ज्यादा व्यू मिले हैं.

Text Size:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुजरात में नेतृत्व की हैसियत में खास बात क्या है? दरअसल, पश्चिम में द्वारका से लेकर पूरब में दाहोद तक, और दक्षिण में धरमपुर से लेकर उत्तर में धनेरा तक गुजरात में रहने वाले ऐसे 10 लोकप्रिय गुजराती भी नहीं हैं, जो वाकई मोदी जितना मशहूर हैं.

गुजरात के सार्वजनिक जीवन में सभी क्षेत्रों में नेतृत्व का शून्य निराशाजनक है. कोई ऐसा नहीं है जो समूचे गुजरात के लोगों में उत्साह भर सके, उनका नेतृत्व कर सके, उन्हें प्रेरित करे और जीवन के मानवीय मूल्यों की मिसाल कायम कर सके. और इसी मामले में पीएम मोदी की अहमियत है.

देश के प्रधानमंत्री बनने से बहुत पहले, मोदी गुजरात की सभी जातियों और वर्गों के बड़े हिस्से की भावनाओं में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए थे. वे अपनी ‘हिंदू पोस्टर बॉय’ की छवि को लेकर विवादास्पद बने हुए हैं, लेकिन ऐसे केंद्र भी बने हुए हैं, जहां कोई दूसरा नहीं है.

वे राजनीति की हदें पार कर दूसरे क्षेत्रों में भी घुसे हुए हैं और अजेय बन हुए हैं क्योंकि मंचीय कला, संस्कृति या व्यवसाय में गुजरात की कोई हस्ती ऐसी नहीं है, जो उनसे मुकाबला कर सके या उनकी सेलेब्रेटी हैसियत के पास भी आ सके.
मोदी की छवि पर बात आए तो बीजेपी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच वैचारिक विभाजन मानो धुंधला पड़ जाता है. कई कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता निजी तौर पर कहते हैं, ‘मोदी मजबूत नेता हैं.’ कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इसे ऐसे कहा कि ‘जुवानो मा तत्विक फरक नथी (कांग्रेस और बीजेपी के युवा काडर के बीच कोई मौलिक अंतर नहीं)’ है.

इसलिए, मोदी की छवि ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नाबाद विजय मार्च की खास वजह बनी हुई है. हालांकि, अब वे अनिवासी गुजराती हैं और ‘रिमोट कंट्रोल’ से नेतृत्व की अपनी सीमाएं हैं. साथ ही, इससे मोदी को अपनी उस कमी की भरपाई में मदद मिली कि राजनीति में अपने प्रारंभिक वर्षों में, वे उत्तरी गुजरात में मेहसाणा के पास अपने मूल स्थान वडनगर से ज्यादा जुड़े नहीं रहे थे.

मोदी सक्रिय राजनीति में 1987 में जुड़े, लेकिन 2014 तक उन्होंने कभी भी अपनी ‘घांची वणिक’ जाति का नाम नहीं लिया. इससे उनकी ‘हिंदू पहचान वाली राजनीति’ में सार्वजनिक छवि बनाने में मदद मिली. ‘एक गुजरात’ कहीं नहीं.
कच्छ और सौराष्ट्र की संस्कृति, इतिहास, भाषा, संगीत, खानपान और पहनावा दक्षिण, उत्तर और मध्य गुजरात से काफी अलग है. कच्छ और सौराष्ट्र की बोली अलग है. छोटा उदयपुर या डांग के आदिवासी इलाकों का कंबे या मेहसाणा के साथ शायद ही कुछ साझा है. इसलिए, गुजरात के सभी हिस्सों में लोकप्रियता हासिल करना आसान नहीं है.
इसलिए पूरे राज्य में अपने नेतृत्व की धाक जमाना मुश्किल है.

मोदी को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जो 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 41 प्रतिशत वोट शेयर से स्पष्ट है. राज्य की विविधता के कारण समूचे गुजरात में अपने नेतृत्व की धाक जमाने की मोदी की परियोजना कभी भी आसान नहीं थी.

हालांकि मोदी के कुछ प्रतिद्वंद्वी जरूर हैं. गुजरात भर में मशहूर हस्ती मोरारी बापू उनमें एक हैं. सौराष्ट्र के चोरवाड़ के मूल निवासी दिवंगत धीरूभाई अंबानी 1960 में राज्य के गठन के बाद से राज्य के सबसे चर्चित व्यक्ति रहे हैं. लेकिन वे कभी भी गुजरात के स्थायी निवासी नहीं थे.

इधर कुछ समय से, अहमदाबाद के बिजनेस टाइकून गौतम अडानी ने सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल किया है. लेकिन न तो अडानी और न ही अंबानी, न ही साराभाई और लालभाई के पुराने कुलीन परिवार, किसी भी तरह से समकालीन गुजराती संस्कृति को प्रभावित कर रहे हैं. गुजराती फिल्म उद्योग और साहित्य में कुछ मशहूर हस्तियां हुई हैं, लेकिन वे हाशिए पर ही रहीं और बड़े वर्ग को प्रभावित नहीं कर पाईं. अहमदाबाद में कवियों को अपनी कृतियां छपवाने के लिए प्रकाशक को पैसा देना पड़ता है! जी, आपने सही पढ़ा. हालांकि, कोई भी समाज एक जगह टिका नहीं रहता है.


यह भी पढ़ें: मोदी-शाह का हिंदी पर जोर देना ठीक है लेकिन पहले योगी, सरमा, साहा से भी तो पूछ लेते


खालीपन भर रहे हैं भजन गायक

सार्वजनिक मंच पर लोगों को बांधने के काबिल समूचे गुजरात में मशहूर हस्तियों की अनुपस्थिति में लोग विभिन्न धार्मिक संप्रदायों, मंदिरों, देवी-देवताओं की ओर उमड़ते देखे जा सकते हैं. यह घटना नई नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया के कारण मंदिरों के आसपास का जीवन नाटकीय रूप से बदल गया है.

गुजराती अपने कुल देवताओं, सामुदायिक देवी-देवताओं और संप्रदायों- अघोरियों (शैव साधुओं), तांत्रिकों, कथाकारों, ज्योतिषियों और भुवों (आध्यात्मिक चिकित्सक) की ओर मुड़ते हैं, जो उन्हें बड़े समाज से जुड़े रहने में मदद करता है.

गुजरात की अर्थव्यवस्था में अमूल, अंबानी और अडानी ही सिर्फ नौकरी और धन-सृजनकर्ता नहीं हैं. द्वारका, सोमनाथ, जूनागढ़, पावागढ़, अंबाजी, पाटन, चोटिला, डाकोर, शामलाजी, पलिताना वगैरह में मंदिरों के आसपास रहने वाले तथा फल-फूल रहे गुजरात को ऐसा ठोस आधार मिला हुआ है कि कई प्रसिद्ध भजन गायक, कथाकार और लोक संगीतकार सेलेब्रेटी बन गए हैं.

मंदिरों और उनके आस-पास के बुनियादी ढांचे का निर्माण न केवल हिंदुओं बल्कि जैन, सुन्नी, खोजा, बोहरा और मेमन समुदाय ने भी किया है. अपनी धार्मिक परंपराओं और कल्याणकारी परियोजनाओं को चलाए रखने के लिए उनके पास महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है. कई मंदिरों का प्रबंधन व्यवसायिक है और पारदर्शी नहीं है.

हाल ही में, पाटीदार नेता नरेश पटेल ने 250 करोड़ रुपये की लागत से गुजरात के कागवाड में खोदलधाम मंदिर के निर्माण कराके सेलिब्रिटी जैसे बन गए. यकीन करें या नहीं, मोदी के अलावा सभी प्रसिद्ध गुजराती शख्सियतें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धर्म से जुड़ी हैं. एक तो, स्वामीनारायण संप्रदाय ही इतना विशाल और प्रभावशाली हो गया है कि वह अपनी पहचान अलग ‘धर्म’ के रूप में चाहता है.

बड़ी संख्या में गुजराती मतदाता किसी न किसी धार्मिक पंथ से जुड़े हैं. राम-सीता, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गणेश, हनुमान तो सबके हैं ही, उनके अलावा स्वामीनारायण, गायत्री मंत्र परिवार, अम्बा माता, खोदल मां, उमिया माता, चामुंडा देवी, रंदेल मां, मां गब्बर, आशापुरी मां, नागबाई, मोमाई माता, जलाराम बापू, सत्ताधर में संत आपागिगा मंदिर और सालंगपुर हनुमान मंदिर में लाखों की भीड़ जुटती है. इन देवी माताओं का अपने-अपने क्षेत्रों में सार्थक सामाजिक संदर्भ है, और उनसे जुड़ी दिल को छू लेने वाली पौराणिक कथाएं हैं.

कई देवी माता मंदिर विशेष जातियों के हैं. बेशक, इन मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भक्त हैं. जब आप उनसे बात करते हैं, तो पता चलता है कि ये विश्वास उनके लिए कितने खास हैं. ज्यादातर श्रद्धालु रोजमर्रा की समस्याओं और जीवन की कठिनाइयों से परेशान होते हैं. उनके लिए स्थानीय मंदिर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां उन्हें सुकून मिलता है. वर्षों से, कई भक्तों ने मुझसे कहा कि ‘देवी ही उन्हें राह दिखाती हैं.’

इस ‘धार्मिक’ गुजरात के बारे में एक बात सबसे अलग है कि हिंदू धर्म के अधिकांश उप-संप्रदाय पूरी तरह संगठित हैं. स्थानीय समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके पास काफी धन-संपत्ति है और उनका सामाजिक-राजनीतिक रसूख गहरा और व्यापक है क्योंकि स्थानीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तीर्थयात्रियों की आमद पर निर्भर है.

आप आज गुजरात में सितारों की हैसियत वालों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आपको गायिका गीता रबारी और विजय सुवादा के बारे में जानना चाहिए, जो देहाती रबारी समुदाय से संबंधित हैं. संगीतकार जिग्नेश कविराज बरोट (इतिहासकार, पौराणिक कथाकार) समुदाय से हैं, जबकि ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) गढ़वी समुदाय में सैकड़ों लोक गायक हैं. राजाओं की वीरता की कहानियां बताने और गाने के लिए बरोट और गढ़वी लोगों को दरबार में रखा जाता था, वे गजब के गीतकार और गायक हुआ करते थे.

जब ये तमाम सितारे भजन कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं, तो उन पर रुपये की बौछार की जाती है. वह बड़ा भौंडा नजारा होता है लेकिन लोग कहते हैं कि वे गायकों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए ऐसा करते हैं. कई बार ये गायक स्टेज पर लाखों रुपए जमा कर लेते हैं. कीर्तिदान गढ़वी जैसे कुछ भजन गायकों की बुकिंग एक साल पहले ही हो जाती है.


यह भी पढ़ें: कोयले के बदले रिन्यूएबल एनर्जी को तरजीह देने के मोदी के वादे को मुश्किल में डाल सकती है खराब राजनीति


गुजरात के सनसनीखेज भजन गायक

वे यूट्यूब पर वैसे ही लोकप्रिय हैं, जैसे पंजाबी रैप गायक, और उनके दर्जनों गीतों को एक करोड़ से ज्यादा व्यू मिले हैं. यूट्यूब पर गुजराती भजनों और गानों की भरमार है.

एक वक्त मशहूर गायक विजय सुवादा के पिता अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में चाय बेचा करते थे. बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए. शुरुआत में विजय ने भी अहमदाबाद के वस्त्रपुर में एक अपार्टमेंट परिसर में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम किया. लेकिन पिछले आठ वर्षों में हालात एकदम बदल गए. उन्होंने यूट्यूब पर 500 गाने पोस्ट किए और करोड़पति बन गए.

उनका गाना ‘टच मा रेजो’ (संपर्क में रहो) जनवरी 2022 में रिलीज हुआ. उसे 2.4 करोड़ व्यूज मिल चुके हैं.
जिग्नेश कविराज के गाने ‘हाथ मा छे व्हिस्की ने आंखो मां पानी’, ‘बेवफा सनम तारी बहु मेहरबानी’ को पिछले पांच वर्षों में 18 करोड़ व्यूज मिले हैं.

गीता रबारी के गीत ‘रोना सेर मा रे’(शेर मां मतलब देवी), ‘चली किस्मत नी गाड़ी टॉप गियर मां रे’ को 52 करोड़ से अधिक लोगों ने देखा है. उत्तराखंड में भी इसे लाखों बार देखा गया.

करोड़पति बने इन गायकों की खास बात यह है कि इनमें अधिकतर भजन-कीर्तन गायक हैं. उनके कई प्रेम गीत ‘देवी-माता’ के इर्द-गिर्द बुने गए हैं. लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि अमीर पति के लिए किसी महिला का अपने गरीब प्रेमी को छोड़ने वाले गाने कैसे इतना हिट होते हैं.

इनमें से अधिकतर ‘देवी’ उपासक एक रात के कार्यक्रम के लिए 2-10 लाख रुपये लेते हैं. वे अपनी सेलिब्रिटी हैसियत और शानदार जिंदगी का लुत्फ उठाते हैं, और उसकी तस्वीरें इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं. सो, आश्चर्य नहीं कि सैकड़ों विशाल मंदिरों के प्रबंधक या ट्रस्टी स्थानीय राजनीति में हाथ आजमा रहे हैं.

धार्मिक गुजरात ही राजनैतिक गुजरात

बीजेपी ने 1980 के दशक के उत्तरार्ध से, धार्मिक और राजनीतिक गुजरात का ठोस नेटवर्क कायम किया है. यही नेटवर्किंग कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में भी अपनाई गई है. बीजेपी नेताओं के राजनीतिक भाषण लगभग हमेशा स्थानीय देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने से शुरू होते हैं. 22 नवंबर को, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पाकिस्तान की सीमा के पास उत्तरी गुजरात के दिसा में अपना भाषण शुरू किया, तो उन्होंने 1971 के युद्ध में भारतीय सैनिकों की मदद करने के लिए स्थानीय देवी मां नलेश्वरी देवी को याद किया. उसी दिन पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने गुजरात के शेहरा में अपने भाषण में मृदेश्वर महादेव का जिक्र किया.

बीजेपी की सांगठनिक ताकत बूथ स्तर तक पहुंच गई है, वह भी इसलिए क्योंकि प्रभावशाली स्थानीय मंदिरों के प्रबंधकों और भाजपा नेताओं का सामाजिक गठबंधन है या वे एक ही परिवार के हैं. मौजूदा चुनाव में, जंबूसर से बीजेपी उम्मीदवार डी.के.स्वामी स्वामीनारायण संप्रदाय के संत हैं. गढड़ा निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार शंभूप्रसादजी टुंडिया अत्यंत प्रतिष्ठित दलित मंदिर के ‘प्रमुख महंत’ हैं.

विजय सुवादा 2021 में आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुए थे, लेकिन इस साल उनके पिता रणछोड़ रबारी उन्हें गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल के पास ले गए. विजय सुवादा ने मुझसे कहा, ‘पाटिल ने मुझसे कहा कि मैं युवा और मशहूर हूं. मेरे आगे एक लंबा करियर है इसलिए मुझे बीजेपी में शामिल हो जाना चाहिए.’

वे बताते हैं कि बीजेपी नेताओं के साथ सिर्फ दो मुलाकातोंं के बाद वे पार्टी में शामिल हो गए और अब पार्टी के चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं. सेलिब्रिटी होने के नाते, वे अपनी नई पार्टी के लिए भीड़ जुटाने में कामयाब हैं.

(शीला भट्ट दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sheela2010 है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद : हरिमोहन मिश्रा)
(संपादन: इन्द्रजीत)


यह भी पढ़ें: गुजरात को मिले हिंदुत्व के दो चेहरे लेकिन उसके राजनीतिक विरोध का एकमात्र चेहरा हैं राहुल गांधी


share & View comments