बेंगलुरु, 18 नवंबर (भाषा) देश के सघन प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के तेजी से आगे बढ़ने के लिए अधिक वित्तपोषण की आवश्यकता है, जबकि फिलहाल इस क्षेत्र को कुल प्रौद्योगिकी निवेश का सिर्फ 11 प्रतिशत हिस्सा ही मिल रहा है।
नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैस्कॉम) के अध्यक्ष देवजानी घोष ने शुक्रवार को यह बात कही।
सघन प्रौद्योगिकी स्टार्टअप ऐसे उद्यम हैं, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), रोबोटिक्स, क्वांटम, ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ड्रोन और ऑगमेंटेड रियल्टी (एआर) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में काम करते हैं।
वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा ‘स्टार्टअप्स एंड एंटरप्रेन्योरशिप: विजन इंडिया@2047’ विषय पर आयोजित एक कार्यशाला में घोष ने बताया कि देश में कुल 25,000 से अधिक टेक स्टार्टअप हैं। इसमें से सिर्फ 3,000 सघन प्रौद्योगिकी से संबंधित है।
उन्होंने कहा कि भारत में कुछ बेहतरीन सघन प्रौद्योगिकी स्टार्टअप है, जो उभरती प्रौद्योगिकियों की पूरी श्रृंखला में काम कर रहे हैं, लेकिन प्रौद्योगिकी से संबंधित वित्त पोषण में उन्हें सिर्फ 11 प्रतिशत ही मिल रहा है।
घोष ने कहा कि चीन और अमेरिका जैसे देश वित्त पोषण के लिए प्रौद्योगिकी वाले स्टार्टअप को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि निवेशकों और नियामकों को यह समझना चाहिए कि सघन प्रौद्योगिकी वाले स्टार्टअप को बाजार में उत्पाद लाने में अधिक समय लगता है, क्योंकि उन्हें अनुसंधान और नवाचार के लिए अधिक समय लगाना पड़ता है।
उन्होंने अनिवार्य ‘स्टार्टअप सेवा’ का सुझाव भी दिया। उन्होंने कहा, ”क्या हम इंजीनियरिंग (पाठ्यक्रम) के तीसरे या चौथे वर्ष में कह सकते हैं कि आपको (छात्रों) को किसी टेक स्टार्टअप में एक साल काम करना होगा? इससे टेक स्टार्टअप को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं तक पहुंचने और बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।”
भाषा
पाण्डेय रमण
रमण
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