लखनऊ: एक तरफ योगी सरकार का गन्ना किसानों को रिकार्ड भुगतान करने का दावा है तो दूसरी तरफ गन्ना मंत्री सुरेश राणा के गृह जनपद शामली में किसान पिछले 10 दिनों से हड़ताल पर हैं. किसानों का कहना है कि 200 करोड़ से अधिक रुपए का भुगतान बाकी है. जब तक उन्हें सरकार की ओर से कोई लिखित आश्वासन नहीं मिल जाता वह अपना विरोध प्रदर्शन व हड़ताल जारी रखेंगे. विपक्षी दलों का भी किसानों को समर्थन मिल रहा है. चुनाव नज़दीक आते ही अब हर दल के लिए ‘आंदोलनकारी’ किसान खास हो गए हैं.
धरने पर बैठे किसान, बंद पड़ी मिल
प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि सरकार के सभी दावे झूठे हैं. किसान देशपाल राणा का कहना है कि ये सरकार और मिल मालिकों की मिलीभगत है. शामली मिल का कुल 211 करोड़ का भुगतान बाकी है. अपनी फसल पर कर्जा लेकर हम 14% ब्याज देते हैं. जनपद के सारे किसान परेशान हैं. एसडीएम, डीएम हमारी नहीं सुनते तो मंत्री या सीएम तक कैसे अपनी बात पहुंचाएं. अब आंदोलन ही हमारे पास इकलौता रास्ता बचा है. वहीं युवा किसान शुभम मलिक ने बताया कि कि मिल मालिक अपने किसानों का पैसा रोककर उससे ब्याज कमाते हैं या दूसरे कारोबार में लगाते हैं, जबकि किसान का बेटा फीस न होने के चलते स्कूल से बाहर निकाल दिया जाता है. उसकी बेटी की शादी समय से नहीं हो पाती है और बिना पैसे उसका इलाज नहीं हो पाता है.
उत्तर प्रदेश में निजी मिल मालिकों की 94 मिलें हैं, जबकि बाकी मिलें सहकारी और निगम की हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई चीनी मिलों पर किसानों का धरना-प्रदर्शन चल रहा है. सबसे बड़ा विरोध शामली ज़िले में हो रहा है, जहां हज़ारों किसान पिछले एक सप्ताह से दोआब शुगर मिल और कलक्ट्रेट में जुटे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं. शामली चीनी मिल 10 दिन से बंद है. मिल अफसरों ने किसानों से वार्ता की और भुगतान के लिए 15-20 दिन का समय मांगा, लेकिन किसानों ने साफ इनकार कर दिया. बोले कि 14 दिन छोड़कर संपूर्ण भुगतान चाहिए इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं. अगर भुगतान जल्द नहीं हुआ तो आत्मदाह के लिए विवश होना पड़ेगा.
बिजनौर के गन्ना किसान सतीश ने बताया कि मिल मालिक इस बार मुनाफे में हैं. इस बार उन्हें 25 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त फायदा हुआ है. इसके उलट किसान की पैदावार में 15 फीसद की कमी आई है. इससे किसान लगभग 15 हज़ार रुपये प्रति एकड़ नुकसान में है. वहीं मिल मालिकों का कहना है कि उन्हें मिल बंद होने से काफी नुकसान हुआ है. यहां तक की कुछ कर्मचारियों को हटाया भी जा सकता है.
तमाम किसान संगठन अलग-अलग जगह जुटे
शामली में यह धरना भारतीय किसान यूनियन नेता सावित मलिक की अगुवाई में चल रहा है, जबकि अन्य जगहों पर अलग-अलग संगठन इसका नेतृत्व कर रहे हैं. बिजनौर के चांदपुर शुगर मिल भारतीय किसान मज़दूर संगठन के बैनर तले किसान संघर्ष कर रहे हैं. किसानों का गुस्सा इस हद तक बढ़ गया है कि उन्होंने कलक्ट्रेट पर भी ताला जड़ दिया. किसानों का आक्रोश बढ़ता देख जिलाधिकारी द्वारा 11 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल बनाया गया है जो गन्ना मंत्री के सामने अपनी बात रखेगा. शामली के ज़िला गन्नाधिकारी अनिल भारती ने बताया कि ज़िला प्रशासन और गन्ना विभाग द्वारा चीनी मिल के स्टॉक में रखी पुरानी चीनी की कुल मात्रा 119807 क्विंटल का स्टॉक गोदाम में है. इसका बाज़ार मूल्य 37.14 करोड़ आंका गया है. चीनी मिल के पास 377630 कुल नए पेराई सत्र की चीनी का स्टॉक है. इसका मूल्य अंकन रुपये 117.06 करोड़ है.
इसे बेच कर कुल प्राप्त होने वाली धनराशि 154.20 करोड़ रुपये बैठती है. इसे बेचकर किसानों का गन्ना मूल्य भुगतान किया जाएगा. इसकी तैयारी की जा रही है.
सरकार का दावा
योगी सरकार का दावा है कि आज़ादी के बाद से लेकर अब तक इस सरकार ने सबसे ज़्यादा गन्ना मूल्य भुगतान किया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में गन्ना मूल्य 35,463.68 करोड़ के सापेक्ष में 34,202.82 करोड़ भुगतान हो चुका है और 1,260.86 करोड़ बाकी है. वहीं वर्तमान पेराई सत्र के गन्ना मूल्य 10,969.86 करोड़ के सापेक्ष में 5,249.26 करोड़ का भुगतान हो चुका है. इसके अलावा पूर्व के पेराई सत्रों का भी 10,605 करोड़ का भुगतान कराया गया. सरकार के मुताबिक अभी तक कुल 50,057.53 करोड़ का रिकॉर्ड गन्ना मूल्य भुगतान वर्तमान सरकार ने किया है. सरकार के मुताबिक कुल 119 मिलों में से 92 चीनी मिलों द्वारा 2017-18 का शत-प्रतिशत गन्ना मूल्य का भुगतान किया जा चुका है.
गन्ना मंत्री की सफाई
गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार ने मिल मालिकों को गन्ना किसानों के भुगतान के हिसाब से 4 हज़ार करोड़ का सॉफ्ट लोन दिया था. कुछ मिलें औपचारिकता पूरी नहीं कर पाईं, इसलिए उसे यह नहीं मिला. वह भुगतान कराने के प्रयास में जुटे हैं. ‘जिन चीनी मिलों ने भुगतान नहीं दर्ज कराया है, उनकी आरसी (रिकवरी सर्टिफिकेट) करा दी है. उनकी चीनी को बेचकर किसानों का भुगतान किया जाएगा. उनका दावा है कि किसान सरकार से नहीं, मिल मालिकों से नाराज़ है.
पश्चिम यूपी में गन्ना किसान का महत्व
पश्चिम यूपी को गन्ना पैदावर का गढ़ माना जाता है. इस लिहाज से यहां की सियासत में भी गन्ना किसानों की अहम भूमिका है. शामली की दोआब मिल उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े चीनी मिलों में से एक है. यह मिल इथेनॉल भी बनाती है. इससे उसे 50 रुपए प्रति क्विंटल का अलग से फायदा होता है. इससे भी मिल को करोड़ों की कमाई होती है, लेकिन किसानों को सिर्फ चीनी का ही पैसा दिया जाता है. शामली दोआब मिल धरने पर बैठे किसान आंकड़ों की बात करते हुए बताते हैं कि उन्हें अभी तक सिर्फ 23 मार्च 2018 तक का भुगतान किया गया है. मौजूदा पेराई सत्र में शामली मिल ने 124 करोड़ 70 लाख 49 हज़ार रुपए का गन्ना खरीदा है, जिसमें से कोई भुगतान अब तक नहीं किया गया है, जबकि इसी मिल पर 79 करोड़ 83 लाख 31 हज़ार किसानों का सिर्फ पिछले साल का भी बकाया है. जबकि सरकारी आंकड़े व सरकार के मंत्री और अधिकारी कुछ अलग कह रहे हैं.
विपक्षी दलों का समर्थन
किसानों को समर्थन देने पहुंचे राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने कहा कि चुनाव के वक्त किसान जाति और धर्म में बंटकर रह जाता है. जब किसान-मज़दूर वोट बैंक बनेगा तो सरकार को यहां चलकर आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
जयंत चौधरी ने कहा कि गन्ना मंत्री शामली ज़िले का है और यहां के किसान को कड़ाके की ठंड में दिन-रात धरना देना पड़ रहा है. इन्हें किसानों से ज़्यादा चिंता मिल मालिकों यानी पूंजीपतियों की है. इसलिए गन्ना मंत्री के पद से इस्तीफा देकर उद्योग मंत्री बन जाना चाहिए. प्रयाग में डुबकी लगाने पर भी पाप नहीं धुलेंगे.
वहीं पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक का कहना है कि गन्ना मंत्री के गृह जनपद में गन्ना किसानों की यह दुर्दशा है तो प्रदेश भर में स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि, किसानों को 14 दिन में भुगतान कराने का दावा करने वाले आज मिल मालिकों के साथ खड़े हैं. सपा के प्रवक्ता प्रो. सुधीर पंवार ने कहा कि किसानों का भुगतान करने की ज़िम्मेदारी मिल एवं सरकार दोनों की है. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि तीन दिन में भुगतान नहीं होता तो शामली चीनी मिल के किसानों को अन्य मिलों के किसानों को भी इस आंदोलन में सम्मिलित होने की अपील करनी चाहिए.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रदेश की योगी सरकार पर गन्ना किसानों से धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया. अखिलेश ने पिछले दिनों मीडिया से बातचीत में कहा कि समय से चीनी मिलें न चलने से खेतों में खड़ा गन्ना सूख रहा है, जिससे किसान बेहद परेशान हैं. राज्य सरकार ने नवंबर के अंत तक चीनी मिलों में पेराई शुरू करने की समय सीमा निर्धारित की थी. समय सीमा समाप्त होने के बाद भी अभी सभी चीनी मिलों में पेराई शुरू नहीं हुई है. एक वर्ष के भीतर लागत में भारी बढ़ोत्तरी होने के बावजूद गन्ने के समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी न होने से किसान हताश है.
सरकार की ओर से की गईं घोषणाएं
योगी सरकार ने पिछले साल सितंबर गन्ना किसानों को बड़ी मदद का ऐलान किया था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए चीनी मिलों को चार हज़ार करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन देने का फैसला लिया गया. राज्य सरकार ने इस ऋण के साथ शर्त रखी है कि चीनी मिलों को सारा पैसा सीधे किसानों के खातों में भेजा जाएग. सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘चीनी मिलों को 30 नवंबर तक हर हाल में गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए कहा गया है. इसके लिए सरकार उनकी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए उनकी मदद करेगी. ऐसी चीनी मिल जिन्होंने कम से कम 30 फीसदी तक गन्ने के बकाए का भुगतान किया है, उन्हें सॉफ्ट लोन देने की व्यवस्था की गई है.
जेल भेजने की भी दी थी चेतावनी
सीएम योगी ने बीते दिनों चीनी मिल मालिकों को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने किसानों के गन्ने की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया तो उन्हें जेल जाना पड़ेगा. मुख्यमंत्री ने किसान दिवस के अवसर पर मिल मालिकों को फटकार लगाते हुए कहा कि किसानों के शोषण को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अब किसानों की अपील है कि सीएम अपने वादे को निभाएं.
जब सीएम के बयान पर उठे थे सवाल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साल सितंबर के माह में हैरान कर देने वाला बयान दिया था. उन्होंने गन्ना किसानों से गन्ना के अलावा और भी फसलें उगाने को कहा. उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया है कि शुगर के कारण लोग बीमार हो जाते हैं और उन्हें डायबिटीज़ हो जाती है. बागपत में एक सड़क के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये बयान दिया था. सीएम ने कहा, ‘और भी फसलों को बोने की आदत डालनी पडे़गी, दिल्ली का बाज़ार आपके पास है. आप इतना गन्ना उगा दे रहे हैं कि शुगर हो जा रहा है.’ इस पर विपक्षी दलों ने सीएम योगी पर जमकर तंज कसे थे.
किसानों का रुख
चुनाव के मद्देनजर पश्चिम के किसानों का रुख अहम हो गया है. एक वक्त पर बागपत, शामली, मुज़फ्फर नगर के आसपास आरएलडी को किसानों का काफी समर्थन हासिल था, लेकिन साल 2014 के पास तस्वीर बदल गई. किसानों को लेकर तमाम वादे व बेहतर रणनीति से बीजेपी ने इन इलाकों में पकड़ बना ली. 2014 लोकसभा चुनाव व 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इसका लाभ भी मिला, लेकिन कैराना लोकसभा उपचुनाव के दौरान किसानों का रुख बदल गया. वह सरकार से नाराज़ दिखे. इस उपचुनाव ने विपक्षी दलों को इस इलाके में नई उम्मीद दे दी.
केवल चुनावी मोहरा न बन जाएं किसान!
लोकसभा चुनाव करीब हैं और पश्चिम यूपी में गन्ना किसान अहम हैं. ऐसे में हर दल की निगाह उन पर है. सरकार की ओर से मीडिया को बताया जा रहा है कि इन गन्ना किसानों की नाराज़गी सरकार से नहीं, मिल मालिकों से है. वहीं विपक्षी दल सीधे सरकार को इसका दोषी मान रहे हैं. अब किसानों को तय करना है कि वे केवल चुनावी मोहरा बनकर रह जाएंगे या अपनी आवाज़ के दम पर सरकार को झुकने पर मजबूर कर देंगे.