नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में स्पेशलाइजेशन वाली एक फर्म का दावा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल में भारतीय कंपनियों ने अमेरिका और ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है. यह स्थिति तब है जबकि एआई अपनाना शुरू करने के मामले में अमेरिका की कंपनियां भारतीय कंपनियों से काफी आगे रही थीं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी पीक ने 4 अक्टूबर को जारी अपनी एक रिपोर्ट में ये दावा किया है. ‘डिसीजन इंटेलिजेंस मेच्योरिटी रिपोर्ट’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट इस पर केंद्रित है कि क्या अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में कंपनियां अपने निर्णयों के लिए एआई पर भरोसा करने के लिए तैयार हैं. पीक की तरफ से जारी प्रेस नोट के मुताबिक, ‘डिसीजन इंटेलिजेंस (डीआई) व्यावसायिक फैसले लेने से संबंधित एआई की एक एप्लीकेशन है.’
रिपोर्ट के मुताबिक, यद्यपि शुरुआती दौर में एआई के मामले में अमेरिका काफी आगे रहा था, जहां छह साल पहले ही 28 फीसदी व्यवसायों ने इस प्रौद्योगिकी को अपना लिया था, जबकि भारत में यह आंकड़ा 25 प्रतिशत और ब्रिटेन में 20 प्रतिशत था. लेकिन जब एआई का लाभ उठाने की बारी आती है तो भारत ‘अधिक मेच्योर बाजार’ बन चुका है. पीक के डिसीजन इंटेलिजेंस मेच्योरिटी स्केल पर इसका स्कोर 64 (100 में से) रहा जबकि अमेरिका का स्कोर 52 और ब्रिटेन का सिर्फ 44 है.
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यह रिपोर्ट पेश करने वाली फर्म पीक की स्थापना 2015 में मैनचेस्टर, ब्रिटेन के रिचर्ड पॉटर और डेविड लीच और जयपुर निवासी अतुल शर्मा ने संयुक्त रूप से की थी, जो कंपनियों को एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म प्रदान करती है. इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके कंपनियां पता लगा सकती हैं कि वे एआई-आधारित निर्णयों से अपना लाभ कैसे बढ़ा सकती हैं.
2021 में पीक ने मल्टी-डॉलर समूह सॉफ्टबैंक ग्रुप को इसमें शामिल किया, जिसे अपने निवेश के जरिये विश्व स्तर पर ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने का श्रेय दिया जाता है. इसके संस्थापक-सीईओ मासायोशी सोन ने 2019 में बताया था कि उनका समूह सिर्फ एआई में ही ‘100 बिलियन यूएस डॉलर’ का निवेश कर रहा है.
पीक के सीईओ और सह-संस्थापक रिचर्ड पॉटर ने प्रेस नोट में कहा, ‘भारत पहले ही ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, और इसके संकेत भी स्पष्ट हैं कि इसकी रफ्तार यहीं नहीं रुकने वाली है.’
उन्होंने कहा, ‘विश्व स्तर पर एआई को लेकर जारी होड़ में अमेरिका और ब्रिटेन पिछड़ गए हैं, जबकि भारत ऐसे समय में शीर्ष स्थान पर काबिज होता नजर आ रहा कि जब पश्चिमी देश भू-राजनीतिक अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं.’
3,000 डिसीजन मेकर्स का सर्वे
रिपोर्ट में यह निष्कर्ष अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में कम से कम 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों में कार्यरत 3,000 ‘सीनियर डिसीजन मेकर्स’ के बीच एक सर्वेक्षण के आधार पर निकाला गया है. यह सर्वे लंदन में मुख्यालय वाली एक थर्ड पार्टी मार्केट रिसर्च एजेंसी ओपिनियम ने 21 से 31 जुलाई 2022 के बीच किया था.
सर्वे में शामिल सवाल मोटे तौर पर पांच क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित थे, अर्थात् ‘डिसीजन मेकिंग’ (कोई कंपनी व्यावसायिक फैसलों को बेहतर बनाने में एआई का कितनी अच्छी तरह इस्तेमाल करती है), ‘डेटा एंड टेक्नोलॉजी’ (कंपनी का डेटा कलेक्शन मेथड कितना बेहतर है), वैल्यू (एआई में निवेश किए गए पैसे की तुलना में इसने कितना लाभ कमाया), ‘स्ट्रैटजी’ (समय के साथ कंपनी एआई अपनाने पर अमल और उसमें सुधार की कितनी उम्मीद करती है), और ‘पीपुल एंड प्रॉसेस’ (एआई के प्रति कंपनी का रुख क्या है).
इन सवालों के जवाबों के आधार पर ही इनमें से सभी पांच क्षेत्रों में मेच्योरिटी के मौजूदा स्तर का अनुमान लगाने के लिए कंपनियों को शून्य से 100 के पैमाने पर स्कोर दिए गए.
भारतीय कंपनियों ने सभी पांच क्षेत्रों में ब्रिटेन और अमेरिका की तुलना में अधिक स्कोर किया.
पीक के सह-संस्थापक और चीफ टेक्निकल ऑफिसर अतुल शर्मा ने रिपोर्ट में कहा कि एक कारण यह भी हो सकता है कि भारतीय व्यवसाय ‘मेच्योरिटी के मामले में अपने कई पश्चिमी समकक्षों के करीब पहुंच गए हैं.’ इसका मतलब यह है कि ‘भारतीय व्यवसायों ने एक अधिक एडवांस टेक्नोलॉजी बेस लाइन के साथ शुरुआत की, और उन्हें लीगेसी टेक के कारण इस पर अमल में उस तरह की देरी नहीं झेलनी पड़ी जो हमने अन्य बाजारों में देखी है.’
पीक का प्रेस नोट कहता है कि भारत में सर्वेक्षण में शामिल व्यवसायों के उच्च स्कोर का एक और कारण यह भी हो सकता है कि अमेरिका और ब्रिटेन की कंपनियों की तुलना में भारतीय कंपनियों में प्रबंधन से जुड़े मध्य क्रम और उससे नीचे के कर्मचारियों को ‘अपने संगठनों में एआई से जुड़े प्रोजेक्ट के बारे में पूरी तरह से जानकारी थी.’
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