अगर हर बार ऐसी भविष्यवाणी के लिए एक पैसे का भी ईनाम रखा जाता कि पाकिस्तान में सरकार गिर रही है, तो देश का हर आदमी अब तक करोड़पति हो चुका होता. आजकल इंग्लैंड इस मामले में पाकिस्तान को पछाड़ने में जुटा है, लिज ट्रस ने सिर्फ छह हफ्ते के बाद ही प्रधानमंत्री पद में इस्तीफा दे दिया. अजीब है कि वे ‘आखिरी गेंद तक लड़े’ बिना ही छोड़ गईं. पाकिस्तान की नई सियासी डिक्शनरी में इसके मायने आधी रात को अविश्वास प्रस्ताव पटरी से उतार देने जैसा है.
बोरिस जॉनसन की वापसी की योजना से इमरान खान में उम्मीद की एक किरण झिलमिलाई कि सब कुछ खो नहीं गया है. लेकिन किस्मत देखिए कि अब उन्हें बाकी वक्त के लिए बाहर बैठा दिया गया है. तोशखाना संदर्भ में, जायदाद छुपाने और सरकारी उपहारों की बिक्री की गलतबयानी के लिए पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने इमरान खान को ‘फिलहाल’ के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है. इसी के ‘फिलहाल’ के लिए पूर्व पीएम को नेशनल असेंबली से निकाल दिया गया है और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष भी नहीं रहेंगे. बहुत वक्त नहीं बीता है, जब इमरान खान गुलाब जामुन का जायका ले रहे थे और पूर्व पीएम नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराए जाने का जश्न मना रहे थे. तब उन्होंने कहा था, ‘यह तो शुरुआत है.’ वाकई, शरीफ पर सियासत में बंदिश और इमरान खान की नई शुरुआत के साथ जो शुरू हुआ था, वह चक्र अब पूरा हो गया है. लेकिन, जैसा कि खान शायद कहें, यह तो हटाए गए पीएम की झूठ की पोटली खुलने की शुरुआत भर है.
पिछले छह महीने
मुख्यधारा मीडिया की न्यूज एनालिसिस या चीखते-चिल्लाते यूट्यूबर या गली-कूचों में सब्जी के ठेलेवालों की रोजाना के गुल-गुपाड़े पर गौर करें तो फिजा में फौजी तख्तापलट या नए चुनाव की जोरदार आहट है. ऐसा चुनाव, जिसके लिए न तो बाढ़ से जूझ रहे देश के पास पैसा है और न ही वह हल है, बल्कि समस्या ही है. या ऐसा मार्शल लॉ, जिसकी आहट घिसे-पिटे एनालिस्ट सुन रहे (ख्वाब पढ़ें) हैं? आखिरकार, इसी महीने 23 साल पहले परवेज मुशर्रफ धमका था. कुछ होने वाला है की जोरदार अटकलों और साजिशों की कहानियां अप्रैल से सियासी अराजकता का माहौल है, इसलिए अजीबोगरीब कयास भी चल पड़े हैं. जाहिर है, सरकारों को जब-तब गिरा देने के उथल-पुथल भरी तारीखें अटकलों को जन्म देती हैं.
और तीस पर, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पाकिस्तान को ‘दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक’ करार दिया, जिससे कहां कोई मदद मिलती है. यह कैसा बर्ताव है, बाइडन? हालांकि, बाइडन ने जो कहा कि वह पिछले 20 वर्षों में कई बार दोहराया गया है. लेकिन परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के असुरक्षित होने की चर्चा सबसे अधिक उठी. कुछ ने तय किया कि बाइडन को यह पता चल जाए. हे बाइडन, ‘याद रखना, हमारे सिर पर सिर्फ अल्लाह है.’ विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राजदूत से उनके राष्ट्रपति की टिप्पणियों पर आपत्ति दर्ज करने का फैसला किया. हैरानी है, क्या पाकिस्तान विरोध में अमेरिकी सहायता को ना कहने को तैयार है.
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कौन बनेगा चीफ
मौजूदा उथल-पुथल की एक से ज्यादा वजह हो सकती हैं लेकिन एक वजह, जिसका देश पूरी तरह बंधक बना हुआ है, यह है कि एक फौजी चीफ चुनो और उसके कंधों पर सियासत की सवारी करो. वे दिन गए जब हम गैर-फौजी सरकारों की सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की फिक्र किया करते थे. अब हमें फिक्र फौज के आला हुक्मरान की शांतिपूर्ण बदली की फिक्र है. हमारे पास धन्यवाद देने के लिए पाकिस्तान का इस्टैब्लिशमेंट और उसका नाकाम प्रोजेक्ट इमरान खान हैं. अमेरिका या भारत जैसे देशों में, सेना प्रमुख की नियुक्ति आम खबर ही होती है या कहें कि क्या आम आदमी को अपने सेना प्रमुख का नाम भी पता होता है? यहां ऐसा मामला नहीं है. पिछले छह महीनों से, हम इसी फेर में पड़े हैं कि कौन बनेगा फौजी चीफ. लगातार इसी अपॉइंटमेंट को लेकर चर्चा है, जिसे वैसे भी हर कोई ‘सेंसिटिव सब्जेक्ट’ कहना पसंद करता है. हर तरफ चर्चा है, आप इससे बच नहीं सकते.
हैरानी की बात है कि राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने पिछले चार साल में ज्यादातर वक्त देश को दांत-सफाई के नुस्खे देते रहे हैं, या अपने पार्टी अध्यक्ष के हुक्म पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान जैसे सरकारी मेहमानों के लिए ‘खड़े’ होते रहे हैं. अचानक अल्वी की नींद चीफ की नियुक्ति की भनक से टूटी है और अब सलाह फेंक रहे हैं कि इमरान खान की राय जाननी चाहिए. जब नियुक्त करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, तो ऐसे शख्स से क्यों मशविरा किया जाना चाहिए जो नेशनल असेंबली में भी नहीं है? तो, आगे क्या? क्या सबसे खास नियुक्ति पर नरेंद्र मोदी की राय भी पूछी जानी चाहिए?
President of Pakistan Dr Arif Alvi's message to the people of Pakistan on World Oral Health Day
Recommending everyone to brush their teeth twice a day for at least two minutes to help prevent any dental issues#WorldOralHealthDay #WOHD19 pic.twitter.com/9twnnVRR2I
— The President of Pakistan (@PresOfPakistan) March 20, 2019
नई टाइगर फोर्स
इमरान खान कह रहे हैं कि फौजी चीफ का चयन शरीफ और जरदारी जैसे नहीं करने चाहिए, वरना वे उसे चुनेंगे, जो उनके भ्रष्टाचार को छुपाए और इस तरह वतनपरस्त नहीं होगा. यानी, इमरान खान पीएम बने रहते तो जो करते: ऐसे शख्स को चुनते जो घूस में लिए गए हीरे के हार, घडिय़ां, कई एकड़ जमीन के मद में उने भ्रष्टाचार छिपाए? यह अलग बात है कि इस तर्क से नवाज शरीफ के चुने चीफ भी गद्दार निकले. आश्चर्य है कि खान पीएम के रूप में जनरल बाजवा को विस्तार क्यों देते और अब भी सुझाव देतेे कि वे अगले चुनाव तक बने रहें?
इतने सारे सवाल लेकिन जवाब उस खुले में है जिसमें इमरान खान ने पाकिस्तान की फौज के साथ खिलवाड़ किया. वे हमेशा जिस टाइगर फोर्स के साथ खेलते रहे हैं, अपने सियासी वजूद पर मुश्किल आने पर उसकी कोई हद नहीं होती. भले ही इसका मतलब पिछले साल आईएसआई प्रमुख को बनाए रखना और फिर, यह खोखला बहाना बनाना कि ‘मैं फैज हमीद के साथ सर्दियां गुजारना चाहता था.’ वही अधिकारी खान का मुख्य सचेतक बना हुआ था और गठजोड़ सहयोगियों को नेशनल असेंबली में वोट देने के लिए धमका रहा था. तो, ‘काबिलियत के आधार पर नियुक्ति’ की सारी बातें खोखली लगती हैं, जिन लोगों ने इमरान खान का असेंबली में एक सीट से प्रधानमंत्री की कुर्सी का सफर देखा है, वे हमेशा किसी न किसी जनरल की गोद में बैठे रहे हैं. यह है काबिलियत.
कोई अंत नहीं
भुट्टो के वे दिन गए कि तकत का सरचमा अवाम है (ताकत लोगों से मिलती है); अब तो ताकत जनरल की बंदूक की नली से निकलती है. कोई अगर यह सोच रहा है कि इमरान खान अवाम के वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं तो यह उसकी गलतफहमी है. यह लड़ाई फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए है लेकिन हकीकत में किसी और थ्री-स्टार अधिकारी के मोहरे की तरह. इसमें ऐसी कोई बात नहीं है कि संस्थाएं संवैधानिक दायरे में रहें और सियासत न खेलें. इसके बजाय, पूर्व प्रधानमंत्री उन्हें अपनी तरफ करने के लिए मजहब का सहारा लेते हैं, ‘अल्लाह ने आपको न्यूट्रल रहने की इजाजत नहीं देता.’
अजीब ट्रेजडी है कि एक लोकप्रिय नेता चुनाव जीतता है मगर उसके पास कोई रणनीति नहीं है, सिर्फ सरकार गिराने के लिए राजधानी तक मार्च करने की धमकी है. पुरानी आदतें मुश्किल से छूटती हैं. जैसे राष्ट्रपति अल्वी ने कहा कि सत्ता गंवाने के बाद इमरान खान निराश हो गए और जल्दबाजी में असेंबली से इस्तीफा दे दिया. उसी जल्दबाजी में, उन्होंने फिर इसी हफ्ते नेशनल असेंबली सीटों पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, सिर्फ फिर से असेंबली में पहुंचने के लिए. क्या गेम प्लान है, क्या कोई प्लान नहीं!
Pakistan PM Imran Khan shares a scene from the Hindi film Inquilaab (1984) on his Instagram account to desperately show that there is a conspiracy to defame his Govt. 🤣 pic.twitter.com/kKbLlLWpnv
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) April 20, 2021
बेशक, खान की योजना कहीं फिर वही तो नहीं है जैसा उन्होंने एक बार विरोधियों पर भारतीय फिल्म इंकलाब की एक क्लिप के साथ आरोप मढ़ा था. 1984 की उस फिल्म में, कादर खान और उत्पल दत्त सरकार को गिराने की योजना बना रहे हैं. ‘हमें शहरों में दंगे, मारपीट, डकैतियां करवाने की जरूरत है. हमें मजहबी अशांति, सांप्रदायिक झगड़े फैलाने की दरकार है, जो सरकार को मजबूर कर देता है और पुलिस काबू नहीं कर पाती है. जब यह सब हो रहा होगा तो हम बाहर निकलेंगे और रैलियां निकालेंगे और कहेंगे कि हम हालात काबू में कर लेंगे. हमारे पास हल है.’ जाना-पहचाना डायलॉग लगता है, खासकर पूर्व प्रधानमंत्री के अपने समर्थकों को मकसद के प्रति वफादार रहने की कौल दिलाते देखकर. अयोग्य ठहराए जाने के बाद उन्हें अपनी पार्टी पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए पूरी वफादार की जरूरत होगी, जिसका कामकाज अब उनके नंबर 2 शाह महमूद कुरैशी देखेंगे.आगे दिलचस्प दौर है.
नायला इनायत पाकिस्तान की फ्रीलांस पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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