मुंबई: पिछले 35 सालों से मुंबई के प्रिंस अली खान अस्पताल (PAKH) में काम करने वाले 55 साल के रवींद्र साल्वे के रिटायरमेंट में सिर्फ चार साल बचे थे. वह अपने इन चार सालों में काफी कुछ करना चाहते थे. लेकिन उनकी सारी योजनाएं तब विफल हो गईं जब शहर के नागरिक निकाय ने अगस्त में एक ऑडिट के बाद इमारत को जीर्ण-शीर्ण घोषित कर दिया और अस्पताल प्रबंधन ने संचालन बंद कर का निर्णय ले लिया. प्रबंधन अब अस्पताल को गिराना चाहता है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई है. हमने इस अस्पताल में अच्छा और बुरा समय देखा है. यहां तक कि कोविड के दौरान भी हमने मरीजों को वापस नहीं भेजा. उनकी पूरी देखभाल की थी. एक समय तो मैं और मेरे साथी मरीजों के लिए खाना भी बना रहे थे.’
अस्पताल के स्वास्थ्य और जांच विभाग में काम वाले साल्वे ने कहा, ‘और अब वे हमें बाहर निकालना चाहते हैं. हमने इस अस्पताल को अपना जीवन दिया है, इसे आगे ले जाने के लिए काफी मेहनत की है. और आज हमारी मेहनत और प्रयासों का बदला इस तरह से चुकाया जा रहा है.’
आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क (AKDN) की स्वास्थ्य एजेंसी ‘आगा खान हेल्थ सर्विसेज’ अस्पताल के प्रबंधन से जुड़ी है. प्रिंस अली खान अस्पताल 1945 में 16-बेड के एक छोटे से अस्पताल के तौर पर शुरू हुआ था. इन सालों में यह 154 बेड तक फैल गया और दक्षिण मुंबई के मझगांव क्षेत्र में एक प्रमुख अस्पताल के तौर पर जाने जाना लगा.
साल्वे और उनके जैसे कई अन्य कर्मचारी इसके अचानक बंद हो जाने से बेरोजगार हो गए हैं. वो न सिर्फ दुखी हैं, बल्कि नाराज भी हैं. उनका आरोप है कि इमारत की हालत उतनी खराब नहीं है, जितनी बताई जा रही है. प्रबंधन ने अपने फायदे के लिए अस्पताल को बंद किया है, क्योंकि इलाके में एक रेजिडेंशियल टाउनशिप परियोजना शुरू होने वाली है.
अस्पताल बंद होने के बाद से स्टाफ सदस्यों के 950 परिवार विरोध में उतर आए और उन्होंने इसके परिसर में अपना डेरा डाल हुआ है.
अस्पताल के अंदर का नजारा गमगीन है. कर्मचारी अब गलियारों में नहीं दौड़ रहे हैं या मरीजों की देखभाल नहीं कर रहे हैं, बल्कि चाय और बिस्कुट पर अपने अंधकारमय भविष्य पर चर्चा कर रहे हैं. नर्सें चुपचाप एक कोने में बैठी हुईं हैं. उनकी सारी उम्मीदें प्रबंधन के फैसले को चुनौती दे रही श्रमिक यूनियनों के प्रयासों पर टिकी हैं.
वे एक स्ट्रक्चरल रिपोर्ट का भी इंतजार कर रहे हैं जो बॉम्बे हाईकोर्ट ने 3 अक्टूबर को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे (IIT-B) के विशेषज्ञों को दो सप्ताह के भीतर देने के लिए कहा है. तब तक स्टाफ ने अस्पताल खाली करने से मना कर दिया है.
उधर मैनेजमेंट ने तर्क दिया है कि उनका यह जरूरत के आधार पर उठाया गया कदम है.
प्रिंस अली खान अस्पताल के अध्यक्ष अमीन मानेकिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह कहना गलत है कि मैंने पूरे प्रकरण की योजना बनाई थी.’
उन्होंने दावा किया कि प्रबंधन ऑडिट के परिणामों पर ‘समान रूप से हैरान’ था और सुरक्षा कारणों के चलते ‘भारी मन से’ अस्पताल का संचालन बंद करने का फैसला लिया गया.
मनेकिया ने कहा ,‘यह अंत नहीं है. हमारी योजना इसी इलाके में एक अलग जगह पर अस्पताल को स्थानांतरित करने की है. लेकिन इसे अमल में आने में कम से कम पांच साल लग जाएंगे’ उन्होंने बताया कि प्रबंधन की यूनियनों के साथ बातचीत चल रही है और अस्पताल बंद कर दिए जाने के बावजूद कर्मचारियों को वेतन दिया जा रहा है.
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‘हमें यहां चूहों की बदबू आती है’
19 अगस्त को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के पहले ऑडिट के बाद प्रबंधन ने नगर निगम से दूसरा ऑडिट भी करवाया था, लेकिन परिणाम वही रहे.
28 अगस्त को अस्पताल के प्रबंधन ने बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इमारत को गिराने की मांग की क्योंकि अस्पताल के कर्मचारियों ने मरीजों को भर्ती करना और बार-बार चेतावनी के बावजूद दिन-प्रतिदिन के काम करना जारी रखा था.
इसके बाद प्रिंस अली खान अस्पताल मजदूर संघ ने अदालत में अर्जी दाखिल कर तीसरे स्ट्रक्चरल ऑडिट की मांग की क्योंकि उन्हें पहले दो पर भरोसा नहीं था. इस बार वे अपनी पसंद की एक निजी कंपनी से ऑडिट कराना चाहते थे.
प्रिंस अली खान अस्पताल मजदूर संघ की महासचिव किरण लोंडे ने कहा, ‘हम यहां चूहों की बदबू आती है. अस्पताल की एक साल पहले ही मरम्मत की गई थी, जिस पर प्रबंधन ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे. इमारत अचानक कैसे जर्जर हो गई? उन्होंने उस समय ऑडिट क्यों नहीं कराया?’
उनके अनुसार, अस्पताल के बंद होने का कारण एक रेजिडेंशियल टाउनशिप प्रोजेक्ट ‘आगा हॉल एस्टेट’ है. पार्क और एक स्कूल के साथ बनने वाले इस प्रोजेक्ट की घोषणा इसी साल की गई थी. इसकी वेबसाइट में लिखा है, ‘आगा हॉल एस्टेट अब अपने मालिक, प्रिंस अली खान हॉस्पिटल चैरिटेबल ट्रस्ट के संरक्षण में तेजी से परिवर्तन की ओर अग्रसर है.’
लोंडे ने आरोप लगाया, ‘प्रबंधन इमारत को गिराकर, एक स्कूल के लिए रास्ता बनाना चाहता है, क्योंकि यह उनकी आवासीय टाउनशिप परियोजना में फिट बैठता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘आवासीय परिसर में अस्पताल कौन चाहेगा? अगर पूरे दिन एम्बुलेंस का सायरन बजता रहा तो कोई भी उनके महंगे फ्लैट नहीं खरीदेगा.’
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रबंधन अस्पताल के कर्मचारियों के साथ आगे नहीं आ रहा है.
उन्होंने कहा, ‘प्रबंधन क्या छुपा रहा है? हमने चेयरमैन से कई बार मुलाकात की मांग की, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया. वे सिर्फ एक नोटिस देकर अस्पताल को बंद नहीं कर सकते हैं. हम ऐसा नहीं होने देंगे.’
यूनियन के सदस्यों ने दिप्रिंट को बताया कि वे सुरक्षा प्रक्रियाओं का पालन करके खुश हैं. उनका दावा है कि उन्होंने प्रबंधन से आईसीयू को खाली करने और आउट पेशेंट सेवाओं को स्थानांतरित करने के लिए कहा है. मगर इसके साथ यह भी अनुरोध किया कि पैथोलॉजी लैब और एमआरआई सेंटर समेत अन्य सुविधाओं को चलते रहने दें.
अस्पताल के एडमिशन डिपार्टमेंट में काम करने वाले सुहास पठारे ने कहा, ‘यह अस्पताल सिर्फ स्टाफ या कर्मचारियों घर नहीं है, बल्कि प्रबंधन का भी है. मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि प्रबंधन ने अपने घर को बचाने के लिए क्या किया है?’
अन्य श्रमिकों की तरह उनका भी यही मानना है कि अस्पताल की बिल्डिंग गिराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के प्रबंधन के फैसले ने संकेत दिया कि कुछ तो गड़बड़ है. उन्होंने दावा किया, ‘यह उनकी सोची-समझी योजना थी.’
तीन अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने IIT-B या फिर वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (VJTI) के विशेषज्ञों से प्रिंस अली खान अस्पताल की तीसरी स्ट्रक्चरल ऑडिट रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इमारत जर्जर अवस्था में है और इसे गिराने की जरूरत है. लेकिन कर्मचारी IIT-B की रिपोर्ट पर जोर दे रहे थे. तब कोर्ट ने IIT की टीम को किसी का भी पक्ष लिए बिना सीलबंद लिफाफे में अपनी सर्वे रिपोर्ट जमा करने को कहा.
‘अस्पताल को बचाने के लिए किया सब कुछ’
प्रिंस अली खान अस्पताल के अध्यक्ष अमीन मनेकिया ने कहा कि उन्होंने अस्पताल को ‘बचाने’ के लिए जो कर सकते थे, वो सब किया.
मनेकिया ने बताया, ‘मुझे इस अस्पताल से भावनात्मक लगाव भी है क्योंकि मैं यहां पैदा हुआ था. मैंने इसे बचाने के लिए हर संभव कोशिश की. पिछले साल, मैंने विभिन्न विभागों में सुधार और नई मशीनें लाने के लिए कम से कम 28 करोड़ रुपये खर्च किए. अगर मैं जानबूझकर अस्पताल गिराना चाहता, तो इतना पैसा क्यों बर्बाद करता? मैं इस पैसे को अपने स्टाफ और कर्मचारियों के बीच वितरित कर सकता था. तब मुझे इन समस्याओं या आरोपों का सामना भी नहीं करना पड़ता.’
उन्होंने कहा कि प्रबंधन कर्मचारियों की सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहता है.
वह बताते हैं, ‘कुछ साल पहले, मुख्य अस्पताल की इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित ऑन्कोलॉजी क्लिनिक की फॉल सीलिंग ढह गई … शुक्र है कि किसी को चोट नहीं आई. हमने इसकी मरम्मत कराई और काम जारी रखा. क्या होगा अगर यह फिर से हुआ तो? हम अब ऐसे जोखिम नहीं उठा सकते हैं. इसलिए हमने ऑडिट कराया.’
उन्होंने कहा कि आने वाले रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स के लेकर कभी किसी को आपत्ति नहीं थी, जबकि यह योजना कई सालों से बन रही थीं.
मनेकिया ने कहा, ‘अस्पताल बंद होने के बावजूद, हम सभी को करोड़ों रुपयों तक का वेतन दे रहे हैं. लेकिन मैं इसे हमेशा के लिए तो नहीं कर सकता. उन्हें भी हमारी स्थिति को भी समझना चाहिए और सहयोग करना चाहिए.’
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