नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या किसानों के लिए एक बड़ा खतरा साबित हुई है. उत्तर भारत के कई राज्यों में किसान को इन मवेशियों से अपने खेतों की रक्षा के लिए न केवल नियमित तौर पर रखवाली करनी पड़ती है बल्कि बाड़ लगाने पर भी हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.
लेकिन इन आवारा मवेशियों—जिनमें ज्यादातर अनुत्पादक, दूध देना बंद कर देने के कारण छोड़ी गई गायों के साथ-साथ बैल भी शामिल हैं—के कारण होने वाला नुकसान फसलों को क्षति तक ही सीमित नहीं है.
विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि आवारा पशुओं की बढ़ी संख्या हाल में लंपी स्किन रोग का प्रकोप फैलने की एक बड़ी वजह रही है, और इस बीमारी के कारण मरने वालों में भी सबसे ज्यादा आवारा पशु ही शामिल हैं.
दरअसल, खराब आहार के कारण इन अनुत्पादक आवारा मवेशियों की इम्युनिटी बेहद कमजोर होती है और पालतू पशुओं की तुलना में इनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. वे संक्रमण भी तेजी से फैलाते हैं क्योंकि पालतू मवेशियों की तुलना में ये शायद ही कभी आइसोलेट रहते हैं. ये पशु बेरोक-टोक इधर-उधर घूमते रहते हैं.
लंपी स्किन रोग एक वायरल संक्रमण है जो गायों और भैंसों में होता है और आमतौर पर मच्छर जैसे वेक्टर इसे फैलाते हैं. एक बार जब किसी जानवर के संक्रमित होने पर उसमें बुखार और मुंह में घावों जैसे लक्षण पाए जाते हैं. साथ ही त्वचा पर गांठें भी दिखाई देने लगती है, और कई मामलों में स्थिति गंभीर होने पर पशुओं की मौत भी हो जाती है.
सितंबर अंत तक, इस बीमारी ने 15 भारतीय राज्यों में 20 लाख मवेशियों को प्रभावित किया था, जिसमें 97,000 से अधिक मवेशियों की मौत हो गई. अकेले राजस्थान में 14 लाख के करीब पशु संक्रमित हुए और 60,000 से अधिक मौतें हुईं.
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‘आवारा पशुओं में वायरल लोड ज्यादा’
राजस्थान (उत्तर प्रदेश के बाद) दूसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है और भारत में आवारा पशुओं की सबसे बड़ी आबादी का घर भी यही है. 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक, 2019 में भारत में आवारा मवेशियों की आबादी 50 लाख से ज्यादा थी, जिसमें लगभग एक-चौथाई अनुत्पादक मवेशी अकेले राजस्थान में थे.
राजस्थान में पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक प्रफुल्ल माथुर ने कहा, ‘आवारा पशु में ज्यादातर वही होते हैं जिन्हें किसान दूध देना बंद कर देने पर छोड़ देते हैं. वे आमतौर पर भोजन के लिए कूड़ा-करकट पर निर्भर हो जाते हैं, भोजन न मिलने से शरीर का वजन कम होता है और प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है. यही कारण है कि बीमारी के प्रकोप के दौरान आवारा मवेशियों में वायरल लोड अधिक रहा.’
माथुर ने आगे कहा कि राजस्थान में लंपी स्किन रोग के कारण कुल जितने पशुओं की मृत्यु हुई, उनमें 70 प्रतिशत आवारा पशु थे. इस प्रकोप के कारण सितंबर में राज्य में दूध की आपूर्ति में 18 प्रतिशत की गिरावट आई है.
केंद्र सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘संक्रमित आवारा मवेशियों को अलग-थलग रखना मुश्किल है, यही कारण है कि यह बीमारी लगातार फैल रही है. कुल मिलाकर, पूरे देश में वायरस के कारण होने वाली मृत्यु का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा आवारा पशुओं का रहा है.’
हालांकि, आवारा मवेशी रोग फैलाने में एक फैक्टर रहे है, लेकिन जैसा दिप्रिंट ने पूर्व में बताया था कि वायरस का एक नया वैरिएंट और अधिक बारिश के कारण वेक्टर आबादी में वृद्धि होना भी मौजूदा बीमारी का प्रकोप फैलने और उच्च मृत्यु दर होने का एक बड़ा कारण है.
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क्यों बढ़ रही है आवारा पशुओं की आबादी
सड़कों पर घूमते आवारा मवेशी पिछले कुछ वर्षों में एक आम नजारा बन गए हैं क्योंकि नागरिक सतर्कता समूह अनुत्पादक जानवरों के ट्रांसपोर्ट पर सख्ती से नजर रखते हैं और राज्यों ने बूचड़खानों में पशुओं की कटाई पर पाबंदी लगा रखी है.
एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘पहले, ज्यादातर राज्यों में गोहत्या पर प्रतिबंध के बावजूद अनुत्पादक मवेशियों को उन राज्यों में ले जाया जाता था जहां वध की अनुमति थी (जैसे केरल और पश्चिम बंगाल)। लेकिन यह अब बंद हो गया है, जिससे आवारा पशुओं की आबादी में वृद्धि हुई है.’
हाल में उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग में अतिरिक्त निदेशक के पद से रिटायर हुए आर.के. पंवार के मुताबिक, आवारा पशुओं की मुक्त आवाजाही वायरल प्रकोप का प्रसार रोकने में एक गंभीर चुनौती है.
उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी के दौरान लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित करने और वायरस संक्रमण को सीमित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था. लेकिन इस वायरल प्रकोप में आवारा पशुओं के मामले में ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता. इसलिए, ये अनुत्पादक जानवर संक्रमण का स्रोत बन गए हैं.’
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