scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशवकील, स्कॉलर, लेखक, कवि- क्यों नए AG के तौर पर 'आउट ऑफ द बॉक्स' पसंद हैं आर. वेंकटरमणी

वकील, स्कॉलर, लेखक, कवि- क्यों नए AG के तौर पर ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ पसंद हैं आर. वेंकटरमणी

72 वर्षीय आर. वेंकटरमणी 1 अक्टूबर को मोदी सरकार के शीर्ष कानून अधिकारी का पद संभालेंगे. उनेक कनिष्ठ सहयोगी उनका वर्णन 'अराजनीतिक' और 'सच्चे न्यायविद' के रूप में करते हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: ‘मृदुभाषी’ और ‘धैर्यवान’ लेकिन ‘मुखर’ और ‘सच्चे न्यायविद’- ये कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिन्हें कई जाने माने वकील भारत के अगले महान्यायवादी होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आर. वेंकटरमणी से जोड़कर बताते हैं.

भारत के राष्ट्रपति ने 28 सितंबर को वेंकटरमणी मोदी सरकार का शीर्ष कानून अधिकारी नियुक्त किया. वो इस पद पर तीन साल तक रहेंगें. 72 वर्ष की आयु वाले ये वरिष्ठ अधिवक्ता 1 अक्टूबर को पद ग्रहण करेंगे, जब इस पद पर आसीन वर्तमान अधिकारी और वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल सेवानिवृत्त हो जायेंगें. उनकी नियुक्ति वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी द्वारा वेणुगोपाल के बाद यह पद संभालने के लिए अपनी सहमति वापस लेने के कुछ दिनों बाद हुई है.

सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हुए चार दशक से अधिक का समय बिताने वाले वेंकटरमणी ने संवैधानिक मुद्दों से लेकर कराधान (टैक्सेशन) तक के मामलों में बहस कर रखी है. लेकिन इस सारी मुकदमेबाजी ने उन्हें उनकी अन्य रुचियों, जैसे कि अध्यापन और लेखन, को आगे बढ़ाने से नहीं रोका है.

वेंकटरमणी कई लॉ कॉलेजों से जुड़े हुए हैं, जहां वे ज्यादातर अदलातों के बाद मिले अवकाश के दौरान कक्षाएं लेते हैं. जब शीर्ष अदालत गर्मी की छुट्टी के लिए बंद हो जाती है, तो वेंकटरमणी अपना बहुत सारा समय इन संस्थानों में नवोदित वकीलों को पढ़ाने में बिताते हैं. उनके कनिष्ठ वकीलों का कहना है कि वे अन्य वरिष्ठों वकीलों – जो गर्मियों में मिले अवकाश के दौरान अंतरराष्ट्रीय सैर करना पसंद करते हैं – के विपरीत शायद ही कभी लंबी छुट्टियों पर जाते हैं.

यह देखते हुए कि वेंकटरमणी ने अपने पुरे करियर के दौरान एक गैर-राजनीतिक प्रोफ़ाइल बनाए रखा है, इस वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति कानूनी हलकों में एक चौंकने वाली बात के रूप में सामने आई है. फिर भी दिप्रिंट ने जिस किसी से भी बात की, उसने एजी कार्यालय में उनके नामांकन का स्वागत किया.

सुप्रीम कोर्ट के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने कहा कि वेंकटरमणी की नियुक्ति सरकार की ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ (लीक से हट के) सोच को दर्शाती है.

श्रीनिवासन ने कहा, ‘वह एक गंभीर विद्वान, वास्तव में पढ़े-लिखे, और ठोस निर्णय की क्षमता के साथ एक सम्मानित व्यक्ति हैं, जो समझदारी भरी सलाह देंगे और शीतल प्रभाव डालेंगे.’ उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वेंकटरमणी ‘बहस और सोच के स्वरूप को अकल्पनीय स्तरों तक ले जायेंगें.


यह भी पढ़ें: ‘आक्रांता और संरक्षक’- उद्धव की राजनीतिक प्राथमिकताओं के बारे में क्या कहता है उनका भाषण


विधि आयोग, हिजाब वाला मामला, अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां

लोयोला कॉलेज, चेन्नई से भौतिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले वेंकटरमणी ने पांडिचेरी लॉ कॉलेज में कानून का अध्ययन किया. साल 1977 में तमिलनाडु बार काउंसिल में नाम दर्ज करवाने के बाद, उन्होंने 1979 में दिल्ली आने से पहले दो साल तक पुडुचेरी में ही काम किया. तीन साल बाद, उन्होंने अनुभवी वकील पी.पी. राव, जिनका अब निधन हो गया है, के साथ काम करना शुरू कर दिया था.

लगभग 18 वर्षों के कानूनी अभ्यास के बाद, साल 1997 में, वेंकटरमणी को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था.

उसके बाद से, वह पिछले एक दशक से अधिक समय से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के लिए एक विशेष अधिवक्ता के रूप में भी पेश हुए हैं.

हालांकि, वे अदालत के गलियारों के साथ-साथ अदालत कक्ष के अंदर भी मृदुभाषी रहे हैं, लेकिन उनके कनिष्ठ साथी (जूनियर्स) इस बात पर जोर देते हैं कि वेंकटरमणी एक मुखर वकील हैं.

अधिवक्ता अशोक पाणिग्रही ने दिप्रिंट को बताया कि उनका धैर्य उनकी विशेषता है. उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी उन्हें गुस्से में नहीं देखा है. वह एक सच्चे न्यायविद हैं और कभी भी बिना तैयारी के या आधी अधूरी तैयारी के साथ किसी भी मामले में अदालत के सामने नहीं जाते.’

हाल ही में, वेंकटरमणी कर्नाटक के शिक्षकों के एक समूह की तरफ से अदालत में उपस्थित हुए थे जिन्होंने कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने का विरोध किया था. वह आम्रपाली मामले में अदालत द्वारा नियुक्त ‘रिसीवर’ भी हैं और उन्होंने पिछले तीन वर्षों के दौरान इस कंपनी की रुकी हुई आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था करने में अदालत की सहायता की है.

इसके अलावा, उन्हें वित्त और स्वास्थ्य जैसे विभिन्न केंद्र सरकार के मंत्रालयों द्वारा भी विशेष अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया है. उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों का भी प्रतिनिधित्व किया हुआ है.

एक कानूनी विद्वान के रूप में उनके विस्तृत अनुभव ने उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियां दिलवाई हैं. उन्होंने 2010 और 2013 में दो बार विधि आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया और इक्वल ओप्पोर्तुनिटी कमीशन (समान अवसर आयोग) की जांच और इसकी संरचना तथा इसके कार्यों की निर्धारण करने के लिए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह के सह-चयनित (को – ऑप्टेड) सदस्य थे.

उन्हें भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की नैतिक समिति का सदस्य बनने के लिए भी आमंत्रित किया गया था, और उन्होंने साल 1990 में भारत के योजना आयोग द्वारा कल्याणकारी कानूनों (वेलफेयर लेजिस्लेशन्स) पर स्थापित एक विशेषज्ञ समूह में कानून मामलों के सदस्य के रूप में भी काम किया था.

वेंकटरमणी संविधान की समीक्षा के लिए न्यायमूर्ति एम. एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में गठित राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ़ स्टेट पालिसी) पर बनी उप-समिति का भी हिस्सा थे. उनकी अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में न्यायपालिका के ऊपर सार्क देशों के सदस्यों के साथ बनी दक्षिण एशियाई टास्क फोर्स का हिस्सा बनना, एफ्रो-एशियाई क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की गतिविधियों के सम्बन्ध में उसके साथ काम करना और बर्लिन में ‘ राइट टू फ़ूड: (भोजन के अधिकार) पर एक प्रपत्र (इंस्ट्रूमेंट) का मसौदा तैयार करना शामिल है.

गुरु, कवि, लेखक

वेंकटरमणी के जूनियर्स का कहना है कि वह कई वकीलों के गुरु भी रहे हैं.

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, प्रसिद्ध वकील आलोक कुमार ने कहा: ‘प्रोफेसर माधव मेनन (जो एक प्रसिद्ध कानूनी शिक्षाविद् थे) के छात्र होने के नाते, उन्होंने एक वकील के साथ साथ एक शिक्षक होने का गुण ग्रहण किया था. उन्होंने वकालत की कला में 50 युवा वकीलों को प्रशिक्षित करने के लिए मिलत (मेनन इंस्टीट्यूशन ऑफ लीगल एडवोकेसी एंड ट्रेनिंग) के तहत प्रोफेसर मेनन की विरासत को आगे बढ़ाया.

इसके अलावा, जैसा कि उनके जूनियर कहते हैं, वह एक उत्साही कवि भी हैं और कानून से संबंधित विषयों पर लिखने में आनंद उठाते हैं, हालांकि इनमें से ज्यादातर ‘व्यक्तिगत उपभोग’ के लिए ही था.

फिर भी, उनके नाम कई प्रकाशनों का श्रेय भी है. उन्होंने साल 1975 में अपनी पहली पुस्तक का सह-लेखन किया और फिर बाद के वर्षों में और कई किताबें लिखीं जिसमें न्यायमूर्ति ओ. चिन्नप्पा रेड्डी के फैसलों पर आधारित एक किताब तथा ‘सुप्रीम कोर्ट प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर’ नामक एक कानून पुस्तिका (लीगल हैंडबुक) शामिल है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: काश ‘कांग्रेस को मर जाना चाहिए’ याद रखने वाले पढ़ भी लेते कि मैंने यह क्यों कहा था, तो वे आज हैरान न होते


share & View comments