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Wednesday, 13 November, 2024
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छोटे शहरों के युवाओं के लिए आसान लोन से जगी उम्मीदें, एफोर्डेबल देशों में पढ़ने का सपना हो रहा पूरा

शिक्षा सलाहकारों और वित्तीय संस्थानों का दावा है कि टियर II और III के शहरों में रहने वाले छात्रों की विदेशों में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है. इन छात्रों का कहना है कि विदेशी डिग्रियां उनके अच्छे भविष्य के लिए मददगार साबित होंगी.

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नई दिल्ली: अजमेर से आने वाले अमित अग्रवाल और बैरकपुर की सुलगना भट्टाचार्य विदेशी डिग्री के लिए एक कतार सी बनाने वाले टियर II और III के शहरों से संबंध रखने वाले छात्रों की बढ़ती जमात का प्रतिनिधित्व करते हैं.

कभी महानगरों और संपन्न परिवारों से आने वाले उनके समकक्षों के साथ ही जुड़े रहने वाले ग्लोबल एक्सपोज़र (विदेशी अनुभव)  के पीछे अब देश भर के छोटे शहरों और कस्बों के युवा भी भाग रहे हैं.

शिक्षा सलाहकार और छात्रों की फंडिंग करने वाली कंपनियां ऐसे कॉलेज और विश्वविद्यालयों के लिए उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या की पुष्टि करती हैं जो उनके लिए उपयुक्त पाठ्यक्रमों के बारे में सजग हैं. उनका कहना है कि फ्रांस, इटली और स्पेन जैसे ‘किफायती देशों’ के साथ विदेश शिक्षा पाने के अवसरों में आई विविधता से उन युवाओं को मदद मिली है, जो अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना देखते हैं.

अजमेर के एक कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल करने वाले 21 वर्षीय अमित फ़िलहाल ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी के विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए आवेदन पत्र भरने में व्यस्त हैं.

एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले, अमित अपनी शिक्षा की फंडिग (पैसों की व्यवस्था)  के लिए छात्रवृत्ति योजनाओं और छात्रों के अनुकूल सेल्फ-फंडिंग (स्व-वित्त पोषण) जैसे विकल्पों पर निर्भर हैं. वे कहते हैं, ‘मैं अपने परिवार में पहला शख्श हूं जो विदेश में शिक्षा के बारे में सोच रहा है. मेरा मानना था कि विदेशी शिक्षा सस्ती नहीं है, लेकिन अब फंडिंग के विकल्पों और विदेशी शिक्षा के अवसरों के बारे में जानकारी हो जाने के बाद, यह एक जोखिम लेने लायक लगता है.’

अजमेर के इस युवक का कहना है कि अगर उसे किसी अच्छे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल जाता है तो उसका परिवार उसकी शिक्षा के लिए कर्ज लेने को तैयार है.

सुलगना भट्टाचार्य के मामले में भी कुछ ऐसा ही है. बी.टेक डिग्री रखने वाली भट्टाचार्य अब फ्रांस में ‘सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंसी’ के पाठ्यक्रमों हेतु आवेदन कर रहीं हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में उनके आगे बढ़ने के विकल्प काफी सीमित हैं.

वे कहतीं हैं, ‘मैंने फ्रांस को चुना क्योंकि यह मुझे एक वर्क स्टडी प्रोग्राम (काम के साथ पढ़ाई के कार्यक्रम) का विकल्प देता है जहां मेरा नियोक्ता ही मेरी शिक्षा के एक हिस्से के लिए पैसे देगा. साथ ही, भारत की तुलना में वहां के पाठ्यक्रमों की विविधता और दायरा बहुत अधिक है. यह मेरे लिए एक अच्छी व्यवस्था के रूप में काम करता है क्योंकि मैं अपनी शिक्षा का खर्च खुद उठा सकूंगीं.’

इस 24 वर्षीय छात्रा ने बैकअप वाले विकल्प के रूप में यूनाइटेड किंगडम (यूके) के विश्वविद्यालयों के लिए भी आवेदन करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि यूके में शिक्षा थोड़ी महंगी है और इसके लिए उन्हें ऋण की आवश्यकता होगी, लेकिन यह रोजगार के बेहतर विकल्प प्रदान करेगी.

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों मुताबिक, इस साल के पहले तीन महीनों में 1,33,135 छात्र उच्च शिक्षा के लिए अपना देश छोड़कर बाहर गए हैं. साल 2021 के पुरे साल के लिए यह आंकड़ा 4,44,553 है.


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मिडिल क्लास की बढ़ती उम्मीदें और फंडिंग के विकल्पों में आई बढ़ोत्तरी

एक विदेशी ओवरसीज स्टडी प्लेटफार्म (विदेशी अध्ययन मंच) और एक स्टूडेंट फंडिंग कंपनी द्वारा साझा किए गए आंकड़े बताते हैं कि कैसे दूरदराज के इलाकों से आने वाले छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने हेतु उत्सुक हैं.

मंगलवार को जारी की गई अपनी एक रिपोर्ट में, ओवरसीज स्टडी प्लेटफार्म लीपस्कॉलर ने पाया कि 57 प्रतिशत भारतीय मध्यम वर्ग के परिवार, जिनकी घरेलू आय 3-10 लाख रुपये के बीच है, अब विदेशी शिक्षा पर पैसे खर्च करने को इच्छुक थे. इसके लिए वे जिन कारणों का हवाला देते हैं उनमें बेहतर शिक्षा और जीवन शैली, वैश्विक कैरियर के अवसर और बेहतर वेतन का वादा शामिल है.

देश भर में फैले 649 लोगों का यह ऑनलाइन सर्वे इस साल जुलाई से अगस्त के बीच किया गया था. इसमें पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल 83 प्रतिशत छात्रों का मानना है कि विदेश में डिग्री हासिल करने से उनकी बेहतर नौकरी हासिल करने की संभावनाएं बढ़ेंगी और उन्हें प्रतिभा समूह में उनके समकक्ष लोगों से प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलेगी.

लीपस्कॉलर के सह-संस्थापक वैभव सिंह ने एक बयान में कहा, ‘छात्र समुदाय की बढ़ती आकांक्षाओं की वजह से विदेशी शिक्षा के  भारतीय बाजार के कई गुना बढ़ने की उम्मीद है और 2025 तक 2 मिलियन (बीस लाख) से अधिक भारतीय छात्र अपनी अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा पर $100 बिलियन से अधिक की राशि खर्च करेंगे.’

ये बढ़ती आकांक्षाएं छात्रों की फंडिंग के पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में भी परिलक्षित होती हैं. छात्रों को फंडिंग देने वाली एक कंपनी ‘प्रोडिजी फाइनेंस’ का कहना है कि उसने साल 2022 में भारत में अपने ऋण वितरण (लोन डिस्बर्समेंट) में 135 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. इस फर्म में ग्लोबल पार्टनरशिप के प्रमुख मयंक शर्मा इसका श्रेय पिछले एक साल में छोटे शहरों के छात्रों की दिलचस्पी और कंपनी कपनी की साख को देते हैं.

प्रोडिजी फाइनेंस ने तिरुपति में 689 प्रतिशत की, विजयवाड़ा में 332 प्रतिशत की, गुंटूर में 337 प्रतिशत की, नागपुर में 133 प्रतिशत की और वारंगल में 552 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. उन्होंने यह सारा डेटा दिप्रिंट के साथ साझा किया है.

दिल्ली स्थित स्टूडेंट फंडिंग फर्म ‘ज्ञानधन’ ने भी, कोविड की महामारी के बाद से छोटे शहरों और कस्बों से आने वाले आवेदनों में पर्याप्त वृद्धि देखी है. चालू वित्त वर्ष में टियर II और III के शहरों से पिछले वर्ष के 37 प्रतिशत को तुलना में इस साल 53 प्रतिशत आवेदन आए हैं.

यूनिवर्सिटी लिविंग, छात्रों को आवास मुहैया करवाने वाले प्लेटफार्म, जो ऑस्ट्रेलिया, यूके, आयरलैंड, कनाडा और अमेरिका में छात्रों को छात्रावास और कमरों के साथ मदद करता है, ने भी इसी तरह की प्रवृत्ति पाई है.

इसके संस्थापक मयंक माहेश्वरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘साल 2022 में, यूनिवर्सिटी लिविंग पर आने वाला 69 फीसदी ट्रैफिक टियर II और III के शहरों से था, जबकि 2021 में यह केवल 48 फीसदी था.’


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फ्रांस, इटली बन रहे हैं नए विकल्प

हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा अभी भी भारतीय छात्रों के लिए शीर्ष गंतव्य बने हुए हैं; मगर, फ्रांस, स्पेन और इटली इस सूची में नए प्रवेश करने वाले देश बन गए हैं.

इस महीने की शुरुआत में, फ्रांसीसी विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना ने कहा था कि उनका देश साल 2025 तक 20,000 भारतीय छात्रों के आगमन की कामना करता है. उन्होंने अपनी योजना को ‘अति महत्वाकांक्षी’ कहते हुए कहा, ‘हम 5,000 के करीब की संख्या से शुरुआत कर रहे हैं.’

छात्रों के फ्रांस, इटली या स्पेन जैसे मूल रूप से अंग्रेजी न बोलने वाले देशों में जाने के लिए भाषा एक बड़ी बाधा थी. हालांकि, पिछले एक साल में, इन विकल्पों ने धीरे-धीरे छात्रों और अभिभावकों के बीच लोकप्रियता हासिल की है. यूनिवर्सिटी लिविंग ने पाया कि पिछले एक साल में विदेश जाने वाले 5.67 प्रतिशत भारतीय छात्र जर्मनी, स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल और यूएई जैसे देशों में गए हैं.

लीपस्कॉलर की रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्र अब भाषा को एक बाधा के रूप में अनदेखा कर बाहर के देशों के लिए अपने विकल्पों में विविधता ला रहे हैं.

मुंबई की एक उद्यमी श्रीलेखा, जिनकी बेटी एक डिज़ाइन स्कूल में पढ़ने के लिए इटली जाने वाली है, उनका मानना है कि भारत में उच्च शिक्षा के विकल्पों का इस कदर अभाव है कि विदेशों में मिलने वाली किफायती शिक्षा के विकल्प अब छात्रों के लिए बेहतर सौदा हो सकते हैं. वह कहती हैं कि उनकी बेटी को विदेशी डिग्री हासिल करने बहुत फायदा होने वाला है.

श्रीलेखा ने कहा, ‘इटली के अच्छे कॉलेजों में शिक्षा और रहने के खर्च सहित प्रति वर्ष लगभग 7-8 लाख रुपये खर्च होंगे. जबकि भारत के किसी निजी विश्वविद्यालय में नामांकन करवाने की लागत भी इसके बराबर ही है, फिर मेरी बेटी दूसरे देश में ग्लोबल एक्सपोज़र हासिल करने का अवसर भी मिलेगा.’

कोविड की महामारी के बाद से यूके ने एक शिक्षा गंतव्य के रूप में अपनी लोकप्रियता फिर से वापस हासिल कर ली है. इस उद्योग पर नजर रखने वालों के अनुसार, वीजा नीतियों में दी गयी ढील और छात्रों के रहने और काम करने के लिए बढ़े हुए विकल्पों ने इसे उच्च अध्ययन के लिए एक आकर्षक विदेशी गंतव्य बना दिया है.

ब्रिटिश उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को दिए गए एक बयान में कहा, ‘शिक्षा, ब्रिटेन और भारत के बीच के जीवंत सेतु के मुख्य आधारों में से एक के रूप में बनी हुई है. भारतीय छात्र ब्रिटेन में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के सबसे बड़े समूहों में से एक हैं. भारतीय छात्रों को जारी किए गए यूके वीजा की संख्या पिछले साल लगभग दोगुनी हो गई है. जून 2022 को समाप्त होने वाले वर्ष में यूके के लगभग 1,18,000 स्टूडेंट वीजा भारतीय नागरिकों को जारी किए गए.  पिछले वर्ष यह संख्या लगभग 56,000 ही थी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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