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Friday, 29 March, 2024
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‘कैसे स्कोर करें के बजाए कैसे स्टडी करें’ – क्यों भारतीय माता-पिता विदेशी स्कूल बोर्ड चुन रहे हैं

डेटा दर्शाता है कि बड़ी संख्या में माता-पिता सीबीएसई को दरकिनार कर रहे हैं और आगे विदेशी कॉलेजों में पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए बच्चों को आईबी और आईजीएससीई स्कूलों में एडमिशन दिला रहे हैं.लेकिन आलोचक‘क्लास सिस्टम’ को लेकर चिंतित हैं.

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नई दिल्ली: मोटी-मोटी फीस की कोई परवाह न करते हुए ज्यादा से ज्यादा भारतीय माता-पिता इस उम्मीद के साथ अपने बच्चों को विदेशी बोर्डों से संबद्ध स्कूलों में एडमिशन दिला रहे हैं कि उनके बच्चों को न केवल ‘अंतरराष्ट्रीय मानक’ वाली शिक्षा मिलेगी, बल्कि आगे चलकर विदेशी यूनिवर्सिटी में प्रवेश का बेहतर मौका भी मिलेगा.

डेटा बताता है कि पिछले कुछ सालों में स्विट्जरलैंड मुख्यालय वाले इंटरनेशनल बैकलॉरिएट (आईबी) और ब्रिटिश कैम्ब्रिज असेसमेंट इंटरनेशनल एजुकेशन (सीएआईई) की भारत में लोकप्रियता काफी बढ़ी है.

कक्षा 9 और 10 के लिए अपने प्रोग्राम के बाद सीएआईई—जिसे आईजीसीएसई (माध्यमिक शिक्षा का अंतरराष्ट्रीय सामान्य प्रमाणपत्र) के तौर पर जाना जाता है—कक्षा 12 के लिए ए-लेवल जैसी अन्य क्वालीफिकेशन हासिल करने की सुविधा भी देता है.

2018 से 2021 के बीच आईबी स्कूलों में छात्रों की संख्या करीब 24 फीसदी बढ़ी है.

दिप्रिंट के सवालों के जवाब में आईबी बोर्ड ने एक बयान जारी करके कहा, ‘भारत में स्टूडेंट को एक या एक से अधिक आईबी प्रोग्राम देने वाले स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ते देखकर हमें काफी खुशी हुई है. वर्तमान में हम भारत में 204 आईबी वर्ल्ड स्कूल और 338 अधिकृत प्रोग्राम चलाते हैं. हमारा प्रमुख प्रोग्राम डिप्लोमा प्रोग्राम (डीपी) है जिसे अधिकांश स्कूलों ने अपनाया है और इसके बाद हमारा प्राइमरी इयर प्रोग्राम (पीवाईपी) काफी लोकप्रिय है.’

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इसी तरह, पिछले चार सालों में भारत में कैम्ब्रिज से संबद्ध स्कूलों की संख्या भी 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है. कैम्ब्रिज इंटरनेशनल की तरफ से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, बोर्ड से संबद्ध स्कूलों की संख्या इस साल अब तक बढ़कर 578 हो गई है, जो 2018 में 496 थी.

कैम्ब्रिज इंटरनेशनल के क्षेत्रीय निदेशक महेश श्रीवास्तव ने दिप्रिंट को दिए एक बयान में कहा, ‘हम देख रहे हैं कि हर साल देशभर के औसतन 40-50 नए स्कूल हमारे साथ जुड़ते हैं.’ उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम ने हाई स्कूल की ‘डिमांड और चुनौतियां’ पूरी करने में मदद की है और छात्रों को अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए तैयार किया है.

दिप्रिंट ने जिन माता-पिता से बात की, उनका कहना था कि आईबी और कैम्ब्रिज-संबद्ध स्कूल घरेलू केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की तुलना में बेहतर कांसेप्ट बेस्ड शिक्षा प्रदान करते हैं, और उन छात्रों की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाने में भी मददगार साबित होते हैं जो आगे चलकर विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं.

हालांकि, यह काफी खर्चीला भी है. निजी सीबीएसई स्कूलों की तरफ से ली जाने वाली फीस काफी वैरिएबल है, जो कुछ सौ से कुछ हजार रुपये प्रतिमाह तक हो सकती है. लेकिन विदेशी बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में कम फीस की उम्मीद करना बेमानी है.

अभिभावकों का कहना है कि आईबी और कैम्ब्रिज स्कूलों के लिए त्रैमासिक फीस कम से कम 50,000-60,000 रुपये होती है. लेकिन कई परिवार मानते हैं कि इसे वहन किया जा सकता है.


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विदेशी डिग्री पाने की राह होती है आसान

कई अभिभावकों ने दिप्रिंट के साथ बातचीत में दावा किया कि आईबी और कैम्ब्रिज बोर्ड के अधिकांश छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेश जाते हैं, जबकि बाकी अशोका यूनिवर्सिटी और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी जैसे प्रमुख निजी कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं.

दिल्ली स्थित करियर एवं कॉलेज गाइडेंस फर्म इनोमी लर्निंग की संस्थापक ऋचा द्विवेदी ने भी इससे सहमति जताई है. उनका कहना है, ‘विदेशी बोर्डों में दाखिला लेने वाले कम से कम 50 प्रतिशत छात्र विदेशी कॉलेजों में दाखिला लेते हैं. यह न केवल इसलिए संभव हो पाता है कि उन्होंने इन अंतरराष्ट्रीय कॉलेजों के अनुकूल स्टाइल में पढ़ाई की है, बल्कि स्कूलों की तरफ से इसका पूरा माहौल भी उपलब्ध कराया जाता है.’

ऋचा के मुताबिक, इन छात्रों के साथी, सीनियर और शिक्षक ऐसे होते हैं जिनके साथ उनकी पहले से ही उच्च शिक्षा के संबंध में बातचीत शुरू हो जाती है.

उन्होंने कहा, ‘स्कूलों के पास सैट और सिफारिशी पत्र जैसी जरूरतें पूरी करने की तैयारी के मद्देनजर छात्रों के लिए विदेशों कॉलेजों में विकल्प तलाशना और भी आसान हो जाता है.’ साथ ही जोड़ा, कई छात्र भारत से स्नातक पाठ्यक्रम पूरे करने के बाद आगे ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने के लिए विदेश का रुख करते हैं.

विदेशी बोर्ड से संबद्ध कई स्कूल अपने छात्रों को इसके लिए प्रेरित भी करते हैं.

उदाहरण के तौर पर, नोएडा स्थित प्रोमेथियस स्कूल (जो आईबी स्कूल है और कैम्ब्रिज आईजीसीएसई और ए-लेवल की शिक्षा सुविधा भी प्रदान करता है) की मार्केटिंग की एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि छात्रों को इस तरह पढ़ाया जाता है कि वो भारतीय यूनिवर्सिटी की तुलना में विदेश की यूनिवर्सिटी के लिए खुद को ज्यादा बेहतर ढंग से तैयार कर पाएं.

अपना नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे स्कूल में छात्रों को रिसर्च, क्रिटिकल थिंकिंग, कांस्पेचुअल लर्निंग पर फोकस करते हुए पढ़ाया जाता है, साथ ही कम्युनिटी संचालित व्यापक प्रोजेक्ट का हिस्सा भी बनाया जाता है. उच्च शिक्षा के लिए उनके पास भारत में बहुत कम विकल्प हैं क्योंकि हमारे छात्र कक्षा 11-12 में ही सामान्य भारतीय कॉलेजों में मिलने वाली शिक्षा से कहीं ज्यादा बड़े दायरे में ज्ञान हासिल करते हैं.’

खुद आईआईटी स्नातक संजय भारती ने अपनी बेटियों का एडमिशन आईबी स्कूल में कराने का फैसला किया क्योंकि उनका मानना था कि वहां स्टूडेंट को ‘कैसे स्कोर करें’ के बजाये ‘कैसे पढ़ना है’ सिखाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘वे अपनी पढ़ाई का स्तर बच्चों के लिहाज से रखते हैं, बल्कि रिसर्च और सेल्फ स्टडी पर भी पूरा ध्यान केंद्रित करते हैं. वहां मेरी बेटियों को जिस तरह की पढ़ाई कराई गई, वह मुझे बहुत पसंद आई.’

भारती की बड़ी बेटी ने कनाडा स्थित टोरंटो यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा हासिल करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘यह देखते हुए कि उसने हमेशा एक अंतरराष्ट्रीय बोर्ड में पढ़ाई की था, मुझे नहीं लगता था कि वह भारतीय यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्रदान करने के तरीके को अपना पाएगी. वह अपनी उच्च शिक्षा में वहां पूरी तरह रम गई है.’ भारती ने कहा कि उनकी छोटी बेटी अभी मिडिल स्कूल में है, लेकिन उसने भी विदेश में पढ़ाई करने का मन बना रखा है.

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बोर्ड से पढ़ने के बाद भारत में अपनी पढ़ाई जारी रखने वाले छात्रों के लिए कुछ मुश्किलें हो सकती हैं.

‘मेरी पढ़ाई ने मुझे तैयार नहीं किया…’

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिल्स (यूसीएलए) में बायोकेमेस्ट्री की एक 19 वर्षीय छात्रा मान्या बजाज के लिए मुंबई स्थित आदित्य बिड़ला वर्ल्ड एकेडमी—जो एक आईबी स्कूल है—में 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद यूनिवर्सिटी में पढ़ना एकदम सहज था. मान्या के मुताबिक, इस यूनिवर्सिटी में कक्षाएं और रिसर्च पर फोकस करना, उसी तरह है जिसकी वह आदी रही थीं.

लेकिन एक विदेशी बोर्ड स्कूल से पढ़ाई करने वाली 21 वर्षीय सलोनी पधारिया के लिए आगे की पढ़ाई के साथ तालमेल बैठाना आसान नहीं रहा. सलोनी ने अहमदाबाद स्थित कैम्ब्रिज संबद्ध आनंद निकेतन से पढ़ाई की थी और फिर बाद में गांधीनगर में पंडित दीनदयाल एनर्जी यूनिवर्सिटी में अपने इंजीनियरिंग कोर्स की पढ़ाई के साथ संतुलन साधना उनके लिए कठिन हो गया.

सलोनी ने बताया, ‘शुरुआत में मैं अपनी कक्षा में पढ़ाई गई चीजें समझ ही नहीं पाती थी और मुझे वापस जाकर अधिकांश विषयों को फिर से पढ़ने में काफी मेहनत करनी पड़ती थी. स्कूल में सीखने के दौरान वैचारिक समझ पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, यहां देखा जाता है कि किसी स्टूडेंट ने उत्तर कितने समय में दिया.’

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘जेईई (इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा) और जीयूजेसीईटी (गुजरात कॉमन एंट्रेंस एग्जाम) में प्रतिस्पर्धा करना भी मेरे लिए मुश्किल रहा क्योंकि मेरी शिक्षा ने मुझे इस तरह के क्वेश्चन पेपर पैटर्न के लिए तैयार ही नहीं किया था.’

स्टूडेंट्स का यह भी दावा है कि भारतीय कॉलेजों और कैम्ब्रिज/आईबी बोर्ड का मार्किंग सिस्टम इतने अलग हैं कि प्रवेश प्रक्रिया के दौरान कट-ऑफ और उनकी पात्रता को समझना एक अच्छी-खासी चुनौती हो सकता है.

हालांकि, सलोनी पधारिया के लिए राहत की बात यही है कि वह भी अंततः अपने कई साथियों की तरह भारत से बाहर जाकर पढ़ने की योजना बना रही है.

उसने कहा, ‘मैंने भारत में स्नातक की पढ़ाई का फैसला सिर्फ इसलिए किया था क्योंकि मैं घर के करीब रहना चाहती थी, यहां एक्सपोजर हासिल करना चाहती थी, और फिर आगे की पढ़ाई विदेश में करना चाहती थी.’

हालांकि, कैम्ब्रिज स्कूल अब अपने छात्रों को भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से तैयार करने में भी पूरी सक्रियता से जुटे हैं.

कैम्ब्रिज इंटरनेशनल के क्षेत्रीय निदेशक श्रीवास्तव ने कहा, ‘हमारे छात्र अत्यधिक प्रतिष्ठित जेईई और नीट (मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) में काफी सफल हो रहे हैं और इन उपलब्धियों ने माता-पिता के बीच हमारी विश्वसनीयता और ज्यादा बढ़ाने में मदद की है.’


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फीस एक बड़ा फैक्टर

कॉलेज काउंसलर ऋचा द्विवेदी आईबी/कैम्ब्रिज स्कूलों के तुलनात्मक फायदों के बारे में बात करने के साथ यह भी कहती हैं कि तमाम सीबीएसई पास-आउट छात्र भी विदेशों में उच्च शिक्षा हासिल करते हैं और काफी अच्छा प्रदर्शन भी कर रहे हैं.

विदेशी बोर्ड में पढ़ने वाले बच्चों के साथ उनकी समानता यह भी है कि इनमें से ज्यादातर छात्रों ने ‘महंगे और उच्च श्रेणी के स्कूलों’ से पढ़ाई की होती है.

इससे प्रमुख तौर पर यही बात उजागर होती है कि आमतौर पर भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भारी-भरकम फीस के साथ हासिल हो पाती है. और, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, भारतीय बोर्डों के तहत आने वाले विभिन्न स्कूलों के विपरीत, आईबी और कैम्ब्रिज से जुड़े संस्थान अमूमन आम भारतीयों की पहुंच से बाहर होते हैं.

आदित्य बिड़ला वर्ल्ड एकेडमी में आईबी डिप्लोमा प्रोग्राम की प्रमुख शालिनी जोशी ने दिप्रिंट को बताया, विदेशी बोर्डों के लिए फीस अधिक होने का एक कारण यह भी है कि स्कूलों को संबद्धता शुल्क देना होता है, हालांकि उन्होंने यह इस राशि का खुलासा नहीं किया.

जोशी ने कहा, ‘इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक अकादमिक गुणवत्ता बनाए रखने की जरूरत होती है. इसके लिए कौशलपूर्ण ह्यूमन रिसोर्स और बुनियादी ढांचे की भी जरूरत पड़ती है.’

फिर भी, बतौर उदाहरण, एक ऐसे देश में, जहां प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय लगभग 1.28 लाख रुपये है, प्रोमेथियस स्कूल में कक्षा 11-12 की पढ़ाई के लिए 1.50 लाख रुपये से 1.98 लाख रुपये की तिमाही ट्यूशन फीस का भुगतान करना असंभव ही माना जाएगा.

निश्चित तौर पर किसी भी बोर्ड के किसी भी ‘हाई-एंड’ स्कूल में फीस का ढांचा कुछ इसी तरह का होता है, लेकिन अधिकांश विदेशी बोर्ड स्कूलों में कम फीस वाले किसी ढांचे की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती है.

इस साल मई में दिप्रिंट के लिए लिखे एक लेख में, लंदन यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर अरविंद कुमार ने बताया कि कैम्ब्रिज और आईबी स्कूलों की बढ़ती लोकप्रियता सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के बीच भारत में स्कूली शिक्षा प्रणाली की एक ‘थर्ड लेयर’ उभरने के संकेत देती है.

उन्होंने लिखा, ‘सुपर एलीट क्लास के छात्र अंतरराष्ट्रीय बोर्ड स्कूलों को चुनेंगे, और मध्यम वर्ग के छात्र सीबीएसई और आईसीएसई स्कूलों में और हाशिए पर रहने वाले छात्र राज्य बोर्ड संस्थानों में पढ़ाई करेंगे. इसमें महज कुछ ही अपवाद हो सकते हैं.’

अब तक, इन बोर्डों के माध्यम से शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने के बहुत मामूली प्रयास ही किए गए हैं.

उदाहरण के तौर पर पिछले साल दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन ने दिल्ली सरकार के 30 स्कूलों में एक वर्ष के लिए आईबी पाठ्यक्रम अपनाने के उद्देश्य के साथ इंटरनेशनल बैकलॉरिएट के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिनमें 20 ‘उत्कृष्ट विशेष स्कूल’ शामिल हैं.

पिछले साल मुंबई में इसी तरह के कुछ प्लान अपनाए गए, जिसमें शहर के नागरिक निकाय, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने अपने अधीन आने वाले स्कूलों को दो अंतरराष्ट्रीय बोर्डों के साथ संबद्ध करने पर विचार किया. हालांकि, अभी यह मूर्त रूप नहीं ले पाया है लेकिन यह विचार राज्य के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री आदित्य ठाकरे का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जो ‘शिक्षा में गुणवत्ता और समानता सुनिश्चित करना’ चाहते थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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