समरकंद, उज्बेकिस्तान: ‘नमस्ते!’, मुझे पीछे से यह आवाज उस समय सुनाई दी जब मैं उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद को ऐतिहासिक शहर समरकंद से जोड़ने वाली सबसे तेज ट्रेन अफ्रोसियोब में सवार होने जा रही थी. मुड़कर देखा तो थोड़े भारी बदन वाला एक आदमी नजर आया जो ऐसा लगता था कि सीधे सोवियत काल से ही आया हो. वह हाथ जोड़कर मेरा अभिवादन कर रहा था. जवाब में मैंने नमस्ते कहा और भारत ने तमाम सालों की अथक मेहनत के साथ जो छवि बनाई है, उसे देखकर एक अलग ही तरह के आनंद में डूब गई.
अगस्त 2021 में अपनी अफगानिस्तान यात्रा के दौरान भी मुझे इसी तरह गर्मजोशी से ‘नमस्ते’ के साथ अभिवादन स्वीकारने का मौका मिला था जब तालिबान की सत्ता में वापसी हो चुकी थी और तमाम अफगान अपने ‘सच्चे दोस्त’ भारत में ठौर-ठिकाना तलाश रहे थे.
मैंने ताशकंद रेलवे स्टेशन पर मिले उन सज्जन से पूछा कि उन्होंने हिंदी कहां से सीखी. उन्होंने टूटी-फूटी अंग्रेजी में मुझसे कहा, ‘मुझे हिंदी पसंद है, मुझे राज कपूर पसंद हैं. मेरा जूता है जापानी.’ वह राज कपूर की 1955 में आई फिल्म श्री 420 के एक गीत की पंक्ति का जिक्र कर रहे थे, वो एक ऐसा दौर था जब बॉलीवुड फिल्में सौहार्द और सांस्कृतिक आचार-व्यवहार को बढ़ावा देने वाली होती थीं, न कि आंख मूंदकर हॉलीवुड की नकल करने वाली. उन्होंने बताया कि यह उनकी पसंदीदा फिल्म है, जिसे उन्होंने अपने बचपन में देखा था और जिसने उन्हें हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया.
मैंने उन्हें अपनी इस यात्रा का उद्देश्य बताया—शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन. वह भारतीयों के अपने देश आने को लेकर बेहद खुश नजर आ रहे थे.
मुझे ट्रेन में सवार होने से पहले 110 डॉलर के नोट को उज्बेकिस्तान सोम में बदलवाना था. निश्चित तौर पर, इसके लिए आपको मनी-एक्सचेंज बूथ की तलाश करने की कोई जरूरत नहीं है. बस आसपास किसी एटीएम में चले जाएं. अब यहां जब एक डॉलर की कीमत 11,000 सोम है तो जाहिर ही है कि 100 डॉलर को एक्सचेंज कराने के बाद आप खुद को किसी करोड़पति से कम नहीं समझेंगे.
जैसे ही मैं अफ्रोसियोब पर चढ़ी, मेरे अंदर एक अलग ही तरह का उत्साह भर गया था—तैमूर और बाबर की सरजमीं देखने का मेरा बहुप्रतीक्षित सपना अगले कुछ ही घंटों में सच होने जा रहा था!
लेकिन जो मैंने कभी नहीं सोचा था, वो यह कि मैं किसी स्पेन-निर्मित टैल्गो बुलेट ट्रेन में सवार होकर वहां तक पहुंचूंगी, जो 137 मील प्रति घंटे की रफ्तार से विशाल शुष्क मैदानों और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों के बीच से गुजरती होगी. यह ट्रेने छोटे-मोटे गांवों और कस्बों से भी होकर गुजरती है जो कभी सिल्क रोड करने जाने वाले रास्ते के मुख्य ट्रांजिट प्वाइंट (पारगमन बिंदु) हुआ करते थे.
इतिहास, ऐश्वर्य, और आधुनिकता
एक प्राचीन स्थल पर रखे गए नाम वाली ट्रेन अफ्रोसियोब ताशकंद को समरकंद और उसके बाद पवित्र शहर बुखारा से जोड़ती है. इन शहरों में आकर आपको जो अनुभव होता है, उसका किताबों में उनके बारे में पढ़े गए इतिहास से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. मुझे निश्चित तौर पर घुड़सवार तुर्क-मंगोल विजेता को इस तरह का रुतबा हासिल होने का कोई अंदाजा नहीं था, मुझे छह-आठ लेन वाली सड़कों, तेज गति कारों, चौड़े-चौड़े फुटपाथों और गली-नुक्कड़ में गार्डन और कैफे होने की उम्मीद भी नहीं थी.
ताशकंद में जहां चमचमाती गगनचुंबी इमारतें, डिजाइनर बुटीक, जगह-जगह म्यूजियम नजर आने के साथ एग्जॉटिक शशालिक भी उपलब्ध होता है. वहीं, समरकंद उज्बेकिस्तान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर संजोए दिखता है, जिसने दिल्ली से अंकारा तक अपना प्रभाव जमा रखा है.
ताशकंद में नए-पुराने जमाने के बीच एक बेहतरीन संयोजन दिखता है. गुजरे जमाने की तरह आज भी सोना इसके ऐश्वर्य का प्रतीक है. उज्बेकिस्तान में सब कुछ सोना का है – चाहे वह तैमूर की तलवार हो या वोदका.
ताशकंद की सबसे उत्कृष्ट जगहों में से एक है अमीर तैमूर संग्रहालय, जो प्रतिष्ठित होटल उज्बेकिस्तान से कुछ ही मीटर दूर स्थित है. सोवियत शैली में खुली किताब जैसी आकृति वाला यह विशालकाय होटल 17 मंजिला है.
उज़्बेकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव की तरफ से एक डिक्री जारी किए जाने के बाद यह संग्रहालय 1996 में खोला गया था, जिसे सरकार ने 660वीं जयंती के मौके पर ‘द ईयर ऑफ अमीर तैमूर’ के रूप में चिह्नित किया था. जैसे ही मैंने संग्रहालय में कदम रखा, मैं इसकी भव्यता और साफ-सफाई देखकर एकदम मंत्रमुग्ध हो गई. दीवारें देखने और गंध से महसूस हो रहा था कि पेंट अभी ताजा है, रास्ते में बड़े करीने से संवारे गए बगीचे थे. इमारत का गोल आकार इसे काफी हवादार बनाता है और इसके स्तंभों पर शानदारी आकृतियां उकेरी गई हैं.
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तैमूर—एक महान हस्ती जिसे हासिल है आला दर्जा
एक बार आप मेन हॉल में कदम रखते हैं तो उज्बेकिस्तान की विशाल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत आपको अपने आगोश में ले लेती है. यह स्पष्ट हो जाता है कि उज़्बेक तुर्क-मंगोल शासक को पूजते हैं और ‘अल्लाह’ के बाद उन्हीं को सबसे आला दर्जा देते हैं.
तैमूर यूरेशियन स्टेप के महान खानाबदोश आक्रांताओं में आखिरी था और उसका लक्ष्य चंगेज खान के महान मंगोल साम्राज्य को बहाल करना था. चंगेज खान, जिनकी 1227 में मृत्यु हो गई थी, और तैमूर के पूर्वज एक ही थे. तैमूर ने एक विशाल सेना बनाई और पश्चिम में वोल्गा नदी और कोकेशियान पर्वत श्रृंखलाओं से लेकर दक्षिण-पश्चिम में भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार करने वाले कई अभियानों की कमान संभाली.
तैमूर की एकमात्र सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा सिल्क रोड को बहाल करने और उसे अपने नियंत्रण में रखने की थी. यही वजह है कि उसने पश्चिम से पूर्व तक इस विशाल लंबे मार्ग पर स्थित विभिन्न राष्ट्रों और साम्राज्यों के साथ बड़े युद्ध लड़े.
उज्बेकों के मुताबिक, वह तैमूर ही था जिसने कई देशों और उनके नागरिकों को ‘जोड़ा’ और उनके ‘राष्ट्रीय नायक’ के तौर पर अपनी पहचान बनाई. संग्रहालय उन सभी का प्रतीक है जिन पर उज़्बेक विश्वास करते हैं.
वर्चुअली रियलटी और फ्री हाई-स्पीड वाईफाई नेटवर्क से लैस संग्रहालय एकदम जीवंत अंदाज में कवियों, गणितज्ञों और खगोलविदों सहित 10वीं से 15वीं शताब्दी के बीच के तमाम शासकों से परिचित कराता है. आगंतुक एक ऐप डाउनलोड कर सकते हैं और तुरंत तैमूर को अपने बगल में खड़ा देख सकते हैं या फिर बाबर (उज्बेक में बोबर) को भारत में अपने अभियान के बारे में विस्तार से बताते सुन सकते हैं.
म्यूजियम के अलावा यहां सोवियत-युग का एक विशाल रेस्तरां है जहां केवल फ्राइड चिकन मिलता है. इसे परोसने के लिए यहां मध्यम आयु वर्ग की वेट्रेस होती हैं जो सफेद स्कर्ट-ब्लाउज के साथ एक लाल एप्रन पहने रहती हैं. किसी ठेठ भारतीय की तरह ही मैंने भी ‘मेनू’ जानने की कोशिश की. मुझे एक अंग्रेजी-भाषी वेट्रेस मिली, जिसने मुझे बताया कि वे ‘केवल फ्राइड चिकन’ बेचते हैं. ऐसा लगा कि वह मुझे बताना चाहती थी कि यहां बिकने वाला चिकन अमेरिकी केएफसी से बेहतर है. वास्तव में ऐसा था भी, उन्हें ब्रेड के पूरे लोफ और सलाद के साथ पेश किया जाता है. उज़्बेकिस्तान का आज के जमाने के टेस्ट और पसंद के साथ अपने ऐतिहासिक अतीत को समेटे मिलता है.
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समरकंद-पूर्व का चमकता सितारा
जैसे ही मैं समरकंद पहुंची, एकदम हैरान ही रह गई. कभी तैमूर की राजधानी रहा शहर अपने विशाल ऐतिहासिक स्थलों, विभिन्न प्रकार की चीनी मिट्टी की वस्तुओं और कालीनों के लिए ख्यात है. इसके मध्य में स्थित है रेगिस्तान स्क्वायर. यहां पहुंचकर एकदम ऐसा लगता है जैसे उज्बेकिस्तान का पूरा इतिहास, उसका सदियों का संघर्ष और वैभव, सब एक ही जगह समाहित हो गया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के किसी हिस्ट्री स्टूडेंट के लिए यहां होने का अनुभव बचपन का सपना सच होने जैसा था.
हमेशा ही समय से चलने वाली अफ्रोसियोब के समरकंद रेलवे स्टेशन में प्रवेश करते ही इतिहास की एक झलक दिखने लगती है. स्टेशन से मेन सिटी सेंटर तक पहुंचने में करीब 10-15 मिनट लगते हैं. कैब का किराया सस्ता है और चालक आमतौर पर गर्मजोशी से भरे नजर आते हैं. दस में से नौ को अंग्रेजी नहीं आती है लेकिन आपको ऐसे लोग आसानी से मिल जाएंगे जो ‘थोड़ा-थोड़ा हिंदी’ जानते होंगे.
समरकंद में प्रवेश करते ही एक शासक के तौर पर तैमूर की लोकप्रियता, प्रसिद्ध सिल्क रोड और जो मंगोलों के आक्रमण से बहुत पहले शिल्प और व्यापार का बड़ा केंद्र रहे शाही रेगिस्तान स्क्वायर का इतिहास आपको आकृष्ट करने लगता है. रेगिस्तान स्क्वायर में ही उलुग बेग मदरसा, टीला-कोरी मदरसा और शेर-डोर मदरसा आदि स्थित हैं, जिसमें एक मदरसे के तौर पर एक संग्रहालय भी है जहां आलिम, राजनेता और वैज्ञानिक प्रशिक्षण पाते हैं.
फिर गुर-ए-अमीर का मकबरा है जहां तैमूर, उसके बेटों और उसके पोते को दफनाया गया था. मकबरे का अंदरूनी हिस्सा सोने, जेड और गोमेद से अलंकृत है, जिसमें शानदार पैटर्न और रंगों के साथ ठोस डेकोरेटिव कोटिंग है. गुंबद हरे गोमेद से सजे हैं और यहां सोने का पानी चढ़े शिलालेखों को भी लगाया गया है.
विदेश यात्रा के इच्छुक किसी भी भारतीय को यूरोप या अमेरिका के बजाए उज्बेकिस्तान की यात्रा करके भी देखना चाहिए. हालांकि, यह तथ्य अपनी जगह है कि भारतीय इतिहास की किताबों में तैमूर हमेशा दिल्ली को लूटने वाला ही रहेगा.
मकबरे के एक गाइड और इतिहासकार के शब्दों में, ‘मुगल इतिहास हमेशा भारत को उज्बेकिस्तान से जोड़े रखेगा. हमारे बीच के इस समृद्ध ऐतिहासिक संबंध को कोई मिटा नहीं सकता.’
(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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