scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमफीचरदिल्ली में एक कुमाऊंनी दलित गा रहा है कव्वाली, यह लोक संगीत की तरह उन्हें जाति में नहीं बांधता

दिल्ली में एक कुमाऊंनी दलित गा रहा है कव्वाली, यह लोक संगीत की तरह उन्हें जाति में नहीं बांधता

नुसरत फतेह अली खान के प्रशंसक सर्वजीत टमटा के लिए लोक संगीत के साथ आगे बढ़ना आसान नहीं था, जिन्होंने 10 साल पहले 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था. उन्होंने तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा है.

Text Size:

नई दिल्ली: दस साल पहले कुमाऊं के एक 16 साल के दलित किशोर ने अपना घर छोड़ दिया क्योंकि उसके पिता ने उसे कव्वाली गाने के लिए हारमोनियम खरीद कर देने से मना कर दिया था. नुसरत फतेह अली खान के इस प्रशंसक के लिए लोक संगीत के साथ आगे बढ़ना आसान नहीं था. आज सर्वजीत टमटा के पास रहमत-ए-नुसरत नाम का अपना एक कव्वाली बैंड है और कल दिल्ली की सुंदर नर्सरी में प्रस्तुति देने के लिए तैयार है.

15 साल की उम्र में पहली बार नुसरत फतेह अली खान के गाए गीत ‘सानू इक पल चैन ना आवे’ सुनने के बाद से शुरू हुआ उनका यह सफर आसान नहीं रहा है.

एक संगीतकार के रूप में अपने बेटे के भविष्य को लेकर सर्वजीत के पिता के मन में बड़ा डर था. लोक कलाकारों को समाज में अच्छा पैसा या सम्मान नहीं मिलता है- यह एक ऐसी स्थिति है जो पिछले 10 सालों में बहुत ज्यादा नहीं बदली है – और इसलिए वह चाहते थे कि उनका बेटा एक इंजीनियर बने. लेकिन सर्वजीत ने संगीत पर अपना मन लगा लिया था.

घर छोड़ने के कुछ महीने बाद सर्वजीत को अपने गृहनगर अल्मोड़ा से 100 किमी दूर पंत नगर के एक प्राइवेट स्कूल में बच्चों को संगीत और पेंटिंग सिखाने की नौकरी मिल गई. लेकिन जब एक दिन सर्वजीत को दलित होने के कारण शौचालय साफ करने के लिए कहा गया तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. अब बिना पैसे के वह सड़कों पर सोकर किसी तरह से अपने आपको जिंदा रखे हुए थे. खुद से सीखे इस कव्वाल ने पंजाब में वडाली भाइयों और राजस्थान में मंगनियार गायक फकीरा खान जैसे दिग्गजों के घरों में भी पनाह ली थी.

‘मैंने पूरे दिन से कुछ नहीं खाया था,’ सर्वजीत ने वडाली बंधुओं से पहली बार मुलाकात को याद करते हुए बताया, ‘उन्होंने (बड़े भाई पूरन चंद वडाली) अपने हाथों से मुझे खाना परोसा. उन्होंने मुझसे पंजाबी में पूछा ‘कहां से आए हो? नैनीताल से? पनीर भी खाओ.’

उसके बाद से उनका संगीत का सफर शुरू हुआ. आज सर्वजीत उन दुर्लभ कव्वालों में से हैं, जो अपने मजबूत सामाजिक संदर्भ के साथ, अक्सर अपने गीत खुद लिखते हैं. लेकिन उन्होंने कुमाऊंनी लोक संगीत को भी पीछे नहीं छोड़ा है. वह अपनी बांसुरी पर पहाड़ी धुनों को बजा सकते हैं.

लोक और कव्वाली

बुधवार को जब मैं उनसे मिली, तो वह दिल्ली की सुंदर नर्सरी में शनिवार को होने वाले अपने कार्यक्रम के लिए गुरुग्राम में हल्की बारिश के बीच एक छत पर बैठे रिहर्सल कर रहे थे. उनका दूसरा बैंड ‘हिमालीमौ’ – एक पहाड़ी लोक गीत समूह – भी यहां अपनी प्रस्तुति देगा.

सर्वजीत ने 2014 में रहमत-ए-नुसरत बैंड बनाया था. अमरास रिकॉर्ड्स के सह-संस्थापक आशुतोष शर्मा कहते हैं, ‘उन्होंने मुझे 2019 में फोन किया और कहा कि वह लोक गीत गाते हैं. लेकिन जब हम मिले, तो उन्होंने खुलासा किया कि वह कव्वाली भी गाते हैं,’ अमरास रिकॉर्ड्स एक रिकार्डिंग कंपनी है जिसने राजस्थानी लोक संगीत बैंड बाड़मेर बॉयज़ को वैश्विक पहचान दिलाई है.

शर्मा ने कहा, ‘उनकी कव्वाली में रूह (आत्मा) है, जो आमतौर पर गायकों में नजर नहीं आती. मैंने उन्हें लोक गायन भी जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया.’

‘रहमत-ए-नुसरत’ नुसरत फतेह अली खान, सूफियाना कलाम की कव्वाली ‘मेरा पिया घर आया हो लाल नी’ से लेकर ‘नित खैर मंगा’ की कव्वालियों को गाते है. ये कवि अमीर खुसरो, मीरा बाई, बाबा बुल्ले शाह, रूमी की मूल रचनाएं हैं. इन्हें युवा संगीतकारों का यह ग्रुप कुछ ही समय में कव्वाली से मधुर कुमाऊंनी धुन में तेजी से बदल लेता है.

जाति का लेबल

सर्वजीत के लिए राजनीति और संगीत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. वह लोक गायन से प्यार करते हैं, लेकिन कहते हैं कि कला का ये रूप उन्हें उनकी दलित पहचान तक सीमित कर देता है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने लोक गायन शुरू किया था, लेकिन एक बार इससे जुड़े ‘बोझ’ को महसूस करने के बाद मैं फिर से उस तरह से वापस नहीं आ सका. अगर मैं कव्वाली गा रहा हूं, तो मैं एक सम्मानित गायक हूं. लेकिन अगर वापस कुमाऊनी लोक गीतों को गाता हूं, तो फिर मैं दलित होने की अपनी पहचान पर वापस आ जाता हूं.’

सर्वजीत के गुरु और लेखक दीपक तिरुवा ने कहा , ‘पहाड़ों में दलित समुदाय के लोग लोक गीत गाते और वाद्ययंत्र बजाते थे. कुमाऊंनी लोक में हुडक नामक ताल वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है. इसे बजाने वाले को हुडकिया कहा जाता है. लेकिन हुडकिया एक सम्मानजनक शब्द नहीं है और इसका इस्तेमाल सिर्फ दलितों के लिए किया जाता है. लोक गायन में शामिल होने वाली अन्य जातियों के लोगों को हुडकिया नहीं कहा जाता है’ सर्वजीत का ग्रुंप दीपक तिरुवा की कंपोजिशन में लाइव परफॉर्मेंस देते हैं.

सर्वजीत ने कहा, ‘अगर सरकार लोक कला रूपों को संरक्षित करना चाहती है और उनमें से जाति कारक को हटाना चाहती है, तो उन्हें विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में हुडक को विषय बनाना चाहिए.’ वह आगे कहते हैं, ‘पारंपरिक कला रूप को संरक्षित करना किसी जाति समूह की एकमात्र जिम्मेदारी नहीं है. मैं लोक कला को एक संगीत के रूप में पसंद करता हूं, और मैं इसे गाता रहूंगा. लेकिन यह उम्मीद कतई नहीं करता कि सिर्फ दलित ही इसे संरक्षित करेंगे.’

शर्मा कहते हैं कि लोक गीतों को लोकप्रिय बनाना ही इसका उपाय है. उन्होंने कहा, ‘एक बार जब संगीत लोकप्रिय हो जाए तो फिर हम उससे जुड़े मसलों को लेकर बात कर सकते हैं. पहले ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे सुनने दें, इससे मंत्रमुग्ध होने दें. हम लोक संगीत को एक लुप्त होती कला के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहते. हम सिर्फ अच्छे संगीत और महान संगीतकारों को पेश करना चाहते हैं.’

रहमत-ए-नुसरत उर्फ ​​​​हिमालीमौ ने रिहर्सल के दौरान साझा किया हल्का -फुल्का पल/उन्नति शर्मा/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: जाति जनगणना हिंदुओं तक सीमित न रखें- आदिवासी, मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म के दलितों को शामिल करें


कला के लिए समय निकालना

रहमत-ए-नुसरत और हिमालीमौ में सर्वजीत के सह-कलाकार अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए हैं और लगातार बदलते भी रहते हैं.

बैंड के गायक और हारमोनियम वादक जयंत पिछले पांच सालों से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ संगीत के प्रति अपने जुनून को भी बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे पढ़ाई करना पसंद है और यह कभी बाधा नहीं बनती. यह मुझे कव्वाली और ग़ज़लों के अर्थ को जल्दी से समझने में मदद करता है.’ एम. लक्ष्मीकांत की लिखी ‘इंडियन पोलिटी’ किताब रिहर्सल में उनके साथ रहती है.

तो वहीं अभिषेक एक पैट शॉप के मालिक हैं, कमलेश जागरण में गाते हैं. दीपक हाल ही में ग्रेजुएट हुए हैं और नौकरी की तलाश में हैं. हुडक वादक चंद्रशेखर सिर्फ हिमालीमऊ के सदस्य हैं और स्थायी नौकरी पाने के लिए सरकारी परीक्षाएं दे रहे हैं.

ग्रुप ने 2020 में अपनी शुरुआत की और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल और दिल्ली-एनसीआर में कई जगहों पर परफॉर्मेंस दी है. उन्होंने सेक्रेड म्यूजिक सिएटल, इन2वाइल्ड फेस्टिवल यूके, होथहाउस शिकागो, फैबइंडिया, सूरजकुंड क्राफ्ट्स मेला और डिपो 48 में वर्चुअली प्रस्तुति भी दी है.

अगले हफ्ते वे अरुणाचल प्रदेश के जाइरो संगीत समारोह में परफॉर्म करेंगे.

सर्वजीत के बैंड में ज्यादातर ऐसे कलाकार जुड़े हैं जो दिहाड़ी पर काम करते हैं और संगीत के प्रति उनका जुनून है. इसलिए पुराने कलाकार छोड़ते रहते हैं और नए जुड़ते रहते हैं.

वह कहते हैं, ‘असल चुनौती बैंड को बरकरार रखने की है. हम में से ज्यादातर लोग निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं, जो अपना पेट भरने की कोशिश कर रहे हैं. हमें अपने कॉन्सर्ट के लिए पर्याप्त पैसा नहीं मिलता है इसलिए लोग बैंड छोड़ते रहते हैं. यह पारंपरिक कव्वाल ग्रुप से अलग है जहां आपको अपने परिवार के नाम पर भी काम मिलता है.’

एक अन्य वजह से भी रहमत-ए-नुसरत बैंड अन्य कव्वाली ग्रुप से अलग है – बैंड से जुड़े कलाकार सामाजिक मसलों पर भी गीत लिखते हैं और परफॉर्मेंस देते हैं. दीपक ने कहा, ‘(लेकिन) हम यह सुझाव नहीं देना चाहते हैं कि सब कुछ गलत है या जलकर राख हो जाना चाहिए.’ वह आगे कहते हैं, ‘हमारे गाने आपको एक मुद्दे के बारे में जागरूक करते हैं, लेकिन आशा भी जगाते हैं. हम कह रहे हैं कि यह दुनिया खूबसूरत और बचाने लायक है.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: 70 साल बाद राज्यसभा में टूटा ‘इलीट कल्चर’, नरेंद्र मोदी को क्यों भाए दलित कलाकार इलैयाराजा


 

share & View comments