नई दिल्ली: भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र दशकों से उग्रवाद के चलते काफी खून-खराबा देख चुका है लेकिन आज ये क्षेत्र एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है. यहां हिंसा के मामलों में काफी कमी आई है. इसके चलते सेना ने भी अपनी जिम्मेदारी को कम करते हुए पहले से चले आ रहे उग्रवाद विरोधी अभियान की कमान अब असम राइफल्स को सौंप दी है. सैन्य सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.
उग्रवाद के चरम पर रहे इस क्षेत्र में सेना के पास उग्रवाद विरोधी (सीआई) और आतंकवाद विरोधी (सीटी) के लिए एक पूर्ण कोर- दीमापुर स्थित 3 कोर– के साथ-साथ कई अन्य यूनिट थीं. इसका मतलब था कि तीन से अधिक आर्मी डिवीजनों को पूरी तरह से उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने के लिए तैनात किया गया था.
रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि असम राइफल्स के दो डिवीजनों के अलावा 3 कोर के अपने तीन डिवीजन थे, जिससे यह भारतीय सेना में सबसे बड़ी कोर बन गई. हालांकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की जिम्मेदारी भी उसी के पास थी. एलएसी पर 3 कोर ‘रेस्ट ऑफ अरुणाचल प्रदेश’ क्षेत्र की सुरक्षा में लगी है.
उन्होंने पहले बताया था कि 3 कोर के एक डिवीजन के अलावा, पूर्वी कमान के तहत अन्य सभी दो कोर– 33 और 4 – के रिजर्व सैनिक और अन्य टुकड़ी भी उग्रवाद विरोधी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल थे.
हालांकि पिछले कुछ सालों में स्थिति में नाटकीय सुधार हुए और केंद्र को तीन राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को वापस लेते हुए देखा गया. सेना ने क्षेत्र में सीआई/सीटी अभियानों से अपने सभी सैनिकों को लगभग पूरी तरह से वापस ले लिया है और उन्हें पारंपरिक युद्ध की तैयारी की प्राथमिक भूमिका सौंपी गई.
अब सेना के पास सीआई/सीटी ऑपरेशन के लिए कई डिवीजन के बजाय सिर्फ 73 माउंटेन ब्रिगेड है, जिसका मुख्यालय असम के लैपुली में है. यह कुछ अन्य बटालियन लेवल की यूनिट के अलावा है, जिन्हें अभी भी जरूरत पड़ने पर इन अभियानों का काम सौंपा जाता है.
1954 के बाद यह पहली बार है कि ब्रिगेड स्तर की कोई भी आर्मी यूनिट नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में किसी भी उग्रवादी विरोधी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल नहीं है.
सीआई और सीटी अभियानों की जिम्मेदारी अब असम राइफल्स के पास है. यह एक अर्धसैनिक बल है जिसे खासतौर से पूर्वोत्तर के लिए बनाया गया है. असम राइफल्स का मुख्यालय शिलांग में है और यह भारत का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल है. इसका इतिहास 1835 का है. उस समय इसे कछार लेवी के नाम से जाना जाता था. लगभग 750 पुरुषों वाले इस दल को मुख्य रूप से ब्रिटिश चाय बागानों और आदिवासी हमलावरों के खिलाफ उनकी बस्तियों की रक्षा करने का काम सौंपा गया था.
इसके बाद अंग्रेजों की ओर से असम की सीमाओं के पार दंडात्मक अभियान चलाने की अतिरिक्त भूमिका के साथ कछार लेवी को पुनर्गठित कर दिया गया और इसका नाम बदलकर फ्रंटियर फोर्स रखा गया. 1917 में बल का नाम बदलकर असम राइफल्स कर दिया गया. 66,412 कर्मियों की स्वीकृत संख्या के साथ अर्धसैनिक बल- जिसे ‘पूर्वोत्तर के प्रहरी’ के रूप में भी जाना जाता है- के पास पूरे क्षेत्र में 46 बटालियन तैनात हैं.
असम राइफल्स के पूर्व डायरेक्टर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान (रिटायर्ड) ने दिप्रिंट को बताया, ‘असम राइफल्स हमेशा से उग्रवाद विरोधी अभियान के संचालन में शामिल रही है लेकिन यह अभियान पूरी तरह से सेना के अधीन था. असम राइफल्स अभी भी अपनी ड्यूटी पर लगी है, जबकि सेना अब पूरी तरह से एलएसी पर फोकस कर रही है.’
सूत्रों ने बताया कि डेढ़ दशक पहले सुरक्षा की स्थिति बदलने लगी थी और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के अलावा राज्य पुलिस बल और अधिक सक्षम और सक्रिय हो गए. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने सेना को अपने मुख्य कार्य पर धीरे-धीरे लौटने की अनुमति दे दी थी. उन्होंने कहा कि बेहतर सुरक्षा स्थिति के चलते पूर्वोत्तर में सेना की तैनाती में बदलाव कुछ साल पहले शुरू हुआ.
गृह मंत्रालय के मुताबिक, पिछले आठ सालों में पूर्वोत्तर में उग्रवाद की घटनाओं में 80 प्रतिशत की कमी आई है. एमएचए की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा बलों ने हताहतों की संख्या में 75 फीसदी की गिरावट देखी, जबकि नागरिकों की मृत्यु में 99 फीसदी की कमी आई.
नरेंद्र मोदी सरकार के तहत इस क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति में सुधार के लिए कई उग्रवादी संगठनो के साथ शांति की ओर कदम बढ़ाए गए. पिछली सरकारों द्वारा शुरू की गई बातचीत में तेजी लाने पर ध्यान दिया गया. और यही वजह रही कि कई संगठनों ने सरकार के साथ हाथ मिलाया और संघर्ष विराम समझौतों की ओर रुख किया.
हाल ही में 15 सितंबर तक केंद्र और असम सरकार ने पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य में आदिवासियों और चाय बागान मजदूरों के दशकों पुराने संकट को खत्म करने के लिए आठ आदिवासी उग्रवादी संगठनों के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर इन आठ संगठनों के 1,182 कार्यकर्ताओं ने आत्मसमर्पण किया और मुख्यधारा में शामिल हुए.
पिछले तीन सालों में पूर्वोत्तर में केंद्र और राज्य सरकारों ने विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ कई समझौते किए हैं. इन समझौतों में 2019 का एनएलएफटी (नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ तिव्प्रा) समझौता, 2020 में बोडो समझौता, 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौता और असम-मेघालय इंटर-स्टेट बाउंड्री एग्रीमेंट 2022 शामिल हैं.
सूत्रों ने बताया कि लद्दाख गतिरोध को लेकर 2020 में एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव के बाद सेना की ओरिएंटेशन प्रक्रिया तेज हो गई.
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, सेना ने ऑर्डर ऑफ बैटल यानी ओआरबीएटी में कई बदलाव देखे हैं. इसमें पाकिस्तान-सेंट्रिक मथुरा-हेडक्वार्टर 1 कोर, एक स्ट्राइक कोर को उत्तरी सीमाओं पर फिर से तैनात करना शामिल था.
जम्मू और कश्मीर के संवेदनशील क्षेत्र में सेना की तैनाती को लेकर भी बड़े बदलाव किए गए हैं. सेना के एक बड़े हिस्से को अब एलएसी की तरफ तैनात कर दिया गया है.
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पूर्वोत्तर में सेना का रिओरिएंटेशन
सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम और बंगाल क्षेत्र के संचालन में शामिल सेना की पूर्वी कमान के अधीन 33, 17, 3 और 4 कोर हैं.
कुछ साल पहले तक, 3 कोर पूर्वोत्तर में सीआई/सीटी अभियानों का नेतृत्व करते थे. एक सूत्र ने बताया, ‘3 कोर को कुछ साल पहले एलएसी में तैनात कर दिया गया था और 21 डिवीजन CI/CT के संचालन को संभाला रहा था. अब इसके लिए सिर्फ एक ही ब्रिगेड है.’
सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा स्थिति में सुधार के कारण पूर्वोत्तर के कई इलाकों में आफस्पा को रद्द कर दिया गया है. सरकार ने दशकों बाद 1 अप्रैल से नागालैंड, असम और मणिपुर में अशांत क्षेत्रों से आफस्पा को कम किया.
बलों की तैनाती में बदलाव के बारे में बताते हुए ऊपर उद्धृत सूत्र ने बताया कि पहले भी जब सैनिकों को सीआई/सीटी ऑपरेशन के लिए तैनात किया जाता था, तो उन्हें हमेशा दोहरे काम दिए जाते थे. और अगर जरूरी हुआ तो उन्हें एलएसी की ओर तैनात किया जाता था.
एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘हालांकि योजनाएं हमेशा बनी रहती हैं लेकिन इसमें समय लगता है. एलएसी पर अब ज्यादा ध्यान है. सैनिकों को स्थायी रूप से चीन सीमा की ओर फिर से लगाया गया है और तैनाती को लेकर जरूरी बदलाव किए गए हैं.’
सूत्रों के मुताबिक, परिस्थितियों के आधार पर पूर्वी कमान के तहत 21 और 12 पैरा पैरा स्पेशल फोर्स (एसएफ) की दोहरी भूमिका अभी तक जारी है.
2017 में डोकलाम प्रकरण के बाद, जब भारत और चीन के सैनिक लगभग तीन महीने तक गतिरोध में फंसे रहे थे, पूर्वी कमान ने नए तोपखाने और मिसाइल प्रणालियों की तैनाती के अलावा एक भारी बुनियादी ढांचे और तकनीक को भी आगे बढ़ाया है.
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया था और एलएसी के दोनों तरफ सैन्य और निर्माण गतिविधियों में वृद्धि देखी गई. सिक्किम, जो सीधे तौर पर डोकलाम गतिरोध को महसूस करता था और अरुणाचल प्रदेश चीन के साथ सीमा साझा करता है.
फरवरी में रक्षा मंत्रालय ने संसद को सूचित किया कि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में क्रमशः 149.98 किमी और 69.46 किमी सड़कों का निर्माण कर लिया है.
इस बीच चीन ने भी एलएसी के अपने पक्ष में बुनियादी ढांचे के निर्माण में तेजी लाई है, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के पास, जिसमें नए दोहरे भूमिका वाले गांव शामिल हैं (जो आक्रामक और रक्षात्मक दोनों उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं).
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