नई दिल्ली: व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसी ओवर-द-टॉप (ओटीटी) संचार सेवाओं को दूरसंचार सेवाओं की व्यापक छत्रछाया में लाना और भारत में बड़ी दूरसंचार कंपनियों द्वारा सामना किए जाने वाले दिवालियापन और कंगाली जैसे मुद्दों के दौरान राहत के उपाए – ये कुछ ऐसे प्रावधान हैं दूरसंचार विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकम्युनिकेशन) द्वारा बुधवार को दूरसंचार क्षेत्र के लिए जारी किये गए एक नए ड्राफ्ट बिल (मसौदा नियामक) का अंग हैं.
भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2022 का यह मसौदा, जो महीनों के विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा ट्वीट किया गया था, जिन्होंने इस मसौदे पर सार्वजनिक टिप्पणियां भी मांगीं हैं.
Seeking your views on draft Indian Telecom Bill 2022.https://t.co/96FsRBqlhq
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) September 21, 2022
गूगल और मेटा जैसे सुचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के दिग्गजों द्वारा पेश की जाने वाली ओटीटी संचार सुविधाओं को दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाये जाने से न केवल इन संस्थाओं के लिए लाइसेंस हेतु आवेदन करना अनिवार्य हो जाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि वे दूरसंचार विभाग के नियमों का पालन करें.
यह मसौदा विधेयक, युद्ध के दौरान या जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई बात उठती है तो, सरकार के पास फोन कॉल्स को इंटरसेप्ट करने (बीच में सुनने का रिकॉर्ड करने) और दूरसंचार सेवाओं पर नियंत्रण रखने का अधिकार सुरक्षित रखता है. हालांकि, पत्रकारों को कॉल इंटरसेप्ट किए जाने की अनुमति देने वाले प्रावधान से छूट दी गई है, मगर केंद्र सरकार के पास सार्वजनिक आपात स्थिति के मामले में इस दी गयी छूट को निरस्त करने की शक्ति भी होगी.
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दूरसंचार नियमों का मौजूदा ढांचा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 पर आधारित है, जबकि नया मसौदा विधेयक 1885 के अधिनियम के अतिरिक्त भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 और द टेलीग्राफ वायर्स (अनलॉफुल प्रोटेक्शन) एक्ट 1950 का एक मिलाजुला रूप है.
मसौदा विधेयक में शामिल किये गए एक व्याख्यात्मक नोट के अनुसार, प्रौद्योगिकी के उपयोग के तौर-तरीकों में बदलाव – जिसमें तकनीकी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कंपनियों (बिग टेक) द्वारा बिना किसी लाइसेंस के दूरसंचार सेवाएं शुरू करना भी शामिल हैं – ने डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकम्युनिकेशन के लिए इस तरह के नए नियामक उपायों को तैयार करना आवश्यक बना दिया है.
मसौदा विधेयक केंद्र सरकार को ‘दूरसंचार सेवाएं या दूरसंचार नेटवर्क’ प्रदान करने वाली सभी कंपनियों को लाइसेंस देने के लिए अधिकृत करता है – जिसका अर्थ यह भी है कि बिग टेक कंपनियों को अब लाइसेंस प्राप्त करने के बाद सरकार के नियमों और शर्तों का पालन करना होगा.
मसौदा विधेयक के अनुसार, इसके पीछे का विचार सभी दूरसंचार कंपनियों के लिए समान अवसर पैदा करने का है.
राहत के साथ साथ छान-बीन भी
मसौदा विधेयक दिवालियापन और कंगाली से सम्बंधित कार्यवाही का सामना कर रही कंपनियों के लिए दंड प्रावधानों को आसान बनाने का प्रस्ताव भी करता है.
इस बिल में कहा गया है, ‘यदि कोई लाइसेंसधारी या असाइनी (समनुदेशिती), जो दिवालियेपन से सम्बंधित कार्यवाही के अधीन हो गया है, शर्तों का पालन करने में विफल रहता है, तो ऐसी इकाई को सौंपा गया स्पेक्ट्रम, यदि कोई हो तो, वापस से केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाएगा. और केंद्र सरकार उस तरह से आगे की कार्रवाई कर सकती है, जैसा कि निर्धारित किया जाता है. इसमें ऐसे लाइसेंसधारी या असाइनी को स्पेक्ट्रम का उपयोग जारी रखने की अनुमति देना भी शामिल हो सकता है; बशर्ते कि ऐसी इकाई को प्राप्त राजस्व को एक अलग से नामित खाते में रखा जाए और ऐसी अवधि के दौरान लाइसेंस शुल्क और अन्य लागू किये गए शुल्क को प्राथमिकता के आधार पर पहले भुगतान किया जाए.’
दिवालियेपन से सम्बन्घित मुद्दों का सामना कर रहीं कंपनियां अपनी सेवाएं प्रदान करना भी जारी रख सकती हैं; बशर्ते वे कुछ नियम और शर्तों, जैसे कि आगे किसी भी भुगतान या शुल्क में कोई और चूक न होना सुनिश्चित करना, को पूरी करती हैं.
मसौदा बिल यह भी मानता है कि किसी भी कंपनी के हालत के साथ असाधारण परिस्थितियां जुड़ी हो सकती हैं, जैसे कि अत्यधिक वित्तीय तनाव, उपभोक्ताओं की रुचि में अस्थिरता, या फिर अत्यधिक बाजार प्रतिस्पर्धा. इसलिए, कंपनियों को राहत के उपाय अपनाने जैसे कि भुगतानों को स्थगित करने, देय भुगतान को शेयरों में बदलने और यहां तक कि रकम को बट्टे खाते में डालने का अवसर भी दिया जाएगा.
मसौदा विधेयक में एक पूरा अध्याय युद्ध और सार्वजनिक आपात स्थितियों के दौरान नियामक उपायों और सरकार की शक्तियों के प्रति समर्पित है.
इस अध्याय के अनुसार, ऐसी परिस्थितियों में, केंद्र सरकार के पास किसी की भी बातचीत और संदेशों को इंटरसेप्ट करने की शक्ति होगी, और दूरसंचार कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि जब भी आवश्यकता हो, वे इसका पालन करेंगी. आवश्यक समझे जाने पर दूरसंचार नेटवर्क के निलंबन का भी आदेश दिया जा सकता है और कुछ मामलों में प्रसारण को भी रोका जा सकता है.
प्रेस के सदस्यों को इस तरह की छान-बीन से सामान्यतः मुक्त ही रखा गया है, जब तक कि उन्होंने अतीत में किसी भी तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा न किया हो, या उन पर पहले से ही नजर न रखी जा रही हो.
मसौदा विधेयक में कहा गया है, ‘केंद्र सरकार या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त संवाददाताओं द्वारा भारत में प्रकाशित किए जाने वाले प्रेस संदेशों को तब तक इंटरसेप्ट नहीं किया जायेगा या उन्हें रोका नहीं जाएगा, जब तक कि उनके प्रसारण पर (पहले से ही) रोक न लगी हो.’
इस महीने की शुरुआत में, मेटा और गूगल जैसे बिग टेक दिग्गजों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने इंटरनेट सुविधा के निलंबन, जिससे कंपनियों को व्यावसायिक दृष्टिकोण से काफी परेशानी हुई है, की ‘संघीय निगरानी’ की मांग की थी. आईएएमएआई ने सरकार को एक लिखित दस्तावेज सौंपते हुए कहा था कि इंटरनेट सुविधा बंद रहने के दौरान दूरसंचार से जुड़े व्यवसायों को होने वाले नुकसान का भी कुछ संज्ञान लिया जाना चाहिए.
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