नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में अपने समकक्षों के अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए ओडिशा पुलिस ने सुदर्शन टीवी के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके की राज्य में दो दिवसीय दौरे के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं ताकि उन्हें किसी तरह की ‘परेशानी’ न हो.
मंगलवार को भुवनेश्वर पहुंचे चव्हाणके, दारा सिंह की रिहाई के लिए अपने निरंतर अभियान को आगे बढ़ाने के लिए बुधवार को हत्या के दोषी दारा सिंह से मिलने वाले हैं. सिंह क्योंझर जिला जेल में बंद हैं और तीन अलग-अलग मामलों में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. इसमें से एक मामला 1999 में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो बेटों की हत्या का है.
मंगलवार को चव्हाणके ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का दौरा किया और ‘वीर सावरकर फाउंडेशन’ एनजीओ की ओर से कटक में आयोजित किए जा रहे एक कार्यक्रम में भाग लिया.
19 सितंबर के एक सर्कुलर में विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने जोनल अधिकारियों को ‘सतर्क रहने’, ‘जमीनी स्तर की खुफिया जानकारी’ इक्ट्ठा करने और चव्हाणके की क्योंझर की यात्रा के लिए ‘आवश्यक सुरक्षा, निवारक और एहतियाती उपाय’ अपनाने का निर्देश दिया, ताकि दारा सिंह भाई के साथ उनकी ‘शिष्टाचार मुलाकात’ में कोई बाधा न आए.
ओडिशा पुलिस के एक सूत्र ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुरोध के बाद चव्हाणके को ‘खतरे की आशंका’ के आधार पर सुरक्षा देने का फैसला लिया गया है.
अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह नोएडा से आ रहे हैं. खतरे की आशंका के आधार पर यूपी पुलिस ने हमसे उन्हें जरूरी सुरक्षा देने का अनुरोध किया था. उनके आसपास कुछ पुलिसकर्मी मौजूद रहेंगे क्योंकि उन्हें कोई केंद्रीय या राज्य अधिकारिक सुरक्षा नहीं मिली हुई है इसलिए वे नियम उन पर लागू नहीं होते हैं. लेकिन खतरे की आशंका के चलते उन्हें कुछ सुरक्षा दी जाएगी.’ अधिकारी ने चव्हाणके की सुरक्षा के लिए तैनात कर्मियों की सही संख्या के बारे में कोई विवरण नहीं दिया.
दिप्रिंट ने फोन पर सुरेश चव्हाणके से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
सुदर्शन टीवी के रेजिडेंट एडिटर, मुकेश कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि चव्हाणके को ‘अल-कायदा, आईएसआई, आदि’ से मिली कई धमकियों के आधार पर यूपी पुलिस ने उन्हें सुरक्षा कवर दिया है.
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‘दारा सिंह की रिहाई की मांग करने वाले पहले व्यक्ति’
एक निचली अदालत ने दारा सिंह को 2003 में ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटों (7 और 10 साल की उम्र) की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी. उन्हें जनवरी 1999 में ओडिशा के क्योंझर के मनोहरपुर गांव में भीड़ ने जलाकर मार डाला था.
उड़ीसा हाईकोर्ट ने 2005 में सिंह की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
सिंह को 2007 में एक मुस्लिम व्यापारी की साल 1999 में की गई हत्या से संबंधित एक अन्य मामले में भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इस साल जनवरी में उड़ीसा हाई कोर्ट ने सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अदालत से व्यापारी की हत्या के लिए जेल में बिताए 21 साल को उम्रकैद के रूप में मानने का अनुरोध किया था.
2017 में चव्हाणके ने ट्विटर पर बताया कि सिंह ने बिना किसी पैरोल के 18 साल जेल में बिताए हैं, जबकि अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की पूर्व नेता वी.के. शशिकला- उस वर्ष फरवरी में आय से अधिक संपत्ति के मामले में गिरफ्तार – को अपने पति से मिलने के लिए पांच दिनों के लिए पैरोल दी गई थी, जो सर्जरी के बाद ठीक हो रहे थे.
जून 2018 में चव्हाणके ने ईद उल फितर के अवसर पर कश्मीर में 115 कैदियों की रिहाई का हवाला देते हुए सिंह के पक्ष में बहस करने के लिए फिर से ट्विटर का सहारा लिया.
जून 2020 में सुदर्शन न्यूज में प्रकाशित एक लेख का हवाला देते हुए चव्हाणके ने सिंह के मामले की तुलना जामिया समन्वय समिति की मीडिया कोऑर्डिनेटर सफूरा जरगर से की, जिन्हें 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में मानवीय आधार पर जमानत दी गई थी.
अगस्त 2020 में वेबसाइट पर राहुल पांडे का एक ऐसा ही लेख प्रकाशित किया गया था, जिसमें लिखा था: ‘वह (सिंह) 21 साल से जेल में है. जेल में उसका व्यवहार अच्छा रहा है. उसे कितना प्रताड़ित किया गया है, इस बारे में आज तक किसी को कोई जानकारी नहीं है.
आगे लिखा था, ‘इस बीच कई ऐसे लोग दया के नाम पर जेल से छूटे हैं, जो अपनी पत्नियों को टुकड़े-टुकड़े करके तंदूर में जलाते हुए पकड़े गए, उदाहरण के लिए कांग्रेस नेता सुशील शर्मा.’
लेख में आगे कहा गया है कि चव्हाणके ‘दारा सिंह को रिहा कराने के लिए आवाज उठाने वाले पहले व्यक्ति हैं’
इसमें आगे लिखा था, ‘साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, स्वामी अमृतानंद (2008 मालेगांव विस्फोट आरोपी), स्वामी असीमानंद, धनंजय देसाई (हिंदू राष्ट्र सेना प्रमुख) आदि के लिए सफलतापूर्वक प्रचार करने वाले चव्हाणके अब दारा सिंह की आजादी के लिए अभियान चला रहे हैं.’
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