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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअवमानना के आरोपी यू-ट्यूबर पर हाई कोर्ट सख्त—लाखों व्यूअर वाला एक ‘निर्लज्ज व्यक्ति’ बताया

अवमानना के आरोपी यू-ट्यूबर पर हाई कोर्ट सख्त—लाखों व्यूअर वाला एक ‘निर्लज्ज व्यक्ति’ बताया

हाई कोर्ट ने लाखों की संख्या में देखे गए शंकर के इंटरव्यू पर संज्ञान लिया और कहा कि उन्हें ‘समान रूप से पूरे संस्थान की छवि को कलंकित करने’ की अनुमति नहीं दी जा सकती.

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नई दिल्ली: मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने गुरुवार को अदालत की अवमानना के आरोपी लोकप्रिय यूट्यूबर सवुक्कू शंकर को एक ‘निर्लज्ज चरित्र’ वाला करार दिया जिसके लिए ‘अवमानना की कार्यवाही कोई नई बात नहीं है.’

हाई कोर्ट पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के मामले में शंकर को अवमानना का दोषी करार देते हुए जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन और जस्टिस बी. पुगलेंधी ने कहा कि सोशल मीडिया पर ‘हजारों लोगों द्वारा देखे-सुने जाने वाले’ व्यक्ति के कहे शब्द इस संस्था की ‘गरिमा और सम्मान’ को चोट पहुंचाने वाले हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी.आर.कृष्णा अय्यर का हवाला देते हुए पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘अगर जज ही दबने लगेंगे तो फिर न्याय कैसे मिलेगा. हम कमजोर नहीं बनना चाहते. ऐसे मौके आते हैं जब न्यायाधीशों को दृढ़ और कठोर होना पड़ता है. अगर ऐसी उकसावे वाली बातों से हम यह कहकर किनारा कर लेंगे कि हमारे कंधे मजबूत हैं, तो इसे हमारी कमजोरी के संकेत के तौर पर देखा जाएगा. ये टिप्पणी करने वाले (कोर्ट की अवमानना के आरोपी व्यक्ति) को अपने किए पर कोई पछतावा भी नहीं है.’

हाई कोर्ट ने शंकर की तरफ से 18 जुलाई 2022 को किए गए एक ट्वीट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना का मामला दर्ज किया था. इसमें शंकर ने बताया था एक अन्य यूट्यूबर के खिलाफ चल रहे केस का फैसला किसी बाहरी व्यक्ति के दखल से प्रभावित हुआ था जिसकी जस्टिस स्वामीनाथन के साथ कथित मुलाकात हुई थी. हालांकि, इस ट्वीट में कथित तौर पर मुकदमे पर असर डालने वाले प्रभावशाली व्यक्ति के नाम का जिक्र नहीं किया गया था.

चूंकि इन बयानों ने न्यायाधीशों की ‘न्यायिक अखंडता पर सवाल उठाया’ था, इसलिए शंकर के खिलाफ हाई कोर्ट में एक मामला दर्ज किया गया. लेकिन यह कदम भी तमिलनाडु सरकार के इस निलंबित अधिकारी को न्यायपालिका पर निशाना साधने से नहीं रोक पाया.

जैसा फैसले में बताया गया है, इससे पहले कि कोर्ट शंकर के मामले में सुनवाई शुरू करती, यूट्यूबर ने 22 जुलाई को  एक इंटरव्यू में यह कहकर ‘इस मुद्दे को और तूल दे दिया कि उनके ट्वीट में जिन दो न्यायाधीशों का जिक्र है, उनमें से एक (जस्टिस स्वामीनाथन) की मंदिर के पुजारी से भेंट हुई हो सकती है.’

फैसले के मुताबिक, उसी साक्षात्कार में शंकर ने यह भी कहा कि ‘पूरी उच्च न्यायपालिका भ्रष्टाचार से त्रस्त है.’

पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए किसी फोरेंसिक माइंड की जरूरत नहीं है कि इस तरह की टिप्पणी प्रथम दृष्टया निंदनीय है. ये न्यायपालिका संस्था को बदनाम करने और मखौल उड़ाने वाली है.’


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‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे व्हिसलब्लोअर’

जैसा फैसले में उल्लेख है, तमिलनाडु के सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) में कांस्टेबल पद पर रहे और फिलहाल निलंबित चल रहे शंकर के लिए अवमानना की कार्यवाही के लिए कोई नई बात नहीं है.

जून 2016 में हाई कोर्ट ने इस जानकारी को लेकर सख्त रुख अपनाया था कि शंकर की वेबसाइट एक मौजूदा हाई कोर्ट न्यायाधीश के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिन्हें पोर्टल के एडमिन के तौर पर नामित किया गया था. जांच के दौरान पता चला कि शंकर उनके क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर सेवाओं के लिए भुगतान कर रहे थे.

शंकर को अवमानना का नोटिस जारी किया गया, लेकिन पिछले छह सालों में कोई कार्यवाही नहीं हुई. गुरुवार को जारी फैसले में कोर्ट ने कहा, ‘इसके (केस के) कोल्ड स्टोरेज में बने रहने से ऐसा लगता है कि वह और अधिक निंदनीय, लापरवाह और निर्लज्ज है.’

स्वभावत: विनम्र शंकर खुद को एक व्हिसलब्लोअर, एक्टिविस्ट और राजनीतिक टिप्पणीकार बताते हैं. उनके बारे में जानने वाले लोगों का कहना है कि हालांकि वह बड़े-बड़े दावे करते हैं, जो अक्सर बदनाम करने वाले होते हैं, लेकिन वह दिल के अच्छे इंसान है, भ्रष्ट नहीं है और समाज को खोखला करने वाले मुद्दों को उठाते हैं.

1990 के दशक के मध्य में अपने पिता (जो एक डीवीएसी कर्मचारी भी) के निधन के बाद शंकर एक निचले स्तर के कर्मचारी के तौर पर विभाग में शामिल हुए. डीएवीसी में काम करते हुए उन्होंने आरटीआई दाखिल करना जारी रखा और दावा करते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामलों का खुलासा किया है.

शंकर को अप्रैल 2008 में अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता के खिलाफ कोडनाड एस्टेट की खरीद से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में दो आईएएस अधिकारियों—तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्य सचिव एल.के. त्रिपाठी और तत्कालीन डीवीएसी निदेशक एस.के. उपाध्याय—की बातचीत का टेप लीक करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, चेन्नई में एक अतिरिक्त सत्र अदालत ने 2017 में शंकर को इस मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया था.

डीएवीसी से अपने निलंबन के बाद, शंकर ने 2009 में अपना वेब पोर्टल ‘Savukku.net’ लॉन्च किया, जहां उन्होंने राजनीतिक विश्लेषण, टिप्पणी और इन्वेस्टिगेटिव जानकारियां पेश करना जारी रखा. ‘न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों समेत कई लोगों की निंदा करने और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने’ के आरोपों को लेकर हाई कोर्ट ने 2014 में इस वेबसाइट को ब्लॉक करा दिया.

उनका ट्विटर अकाउंट भी इस साल के शुरू में संस्पेंड हो गया था, लेकिन इसने उन्हें एक वैकल्पिक एकाउंट का उपयोग करने या फिर तमिल यूट्यूब चैनलों पर नियमित रूप से मौजूदगी दर्ज कराने से नहीं रोका.

तमिल यूट्यूब चैनल ‘रेडपिक्स’ पर ऐसे ही एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने ‘पूरी न्यायपालिका भ्रष्टाचार से त्रस्त है’ वाली टिप्पणी की थी जिसे हाई कोर्ट ने अदालत की अवमानना माना है.


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हाई कोर्ट में क्या हुआ

शंकर ने हाई कोर्ट में अवमानना मामले पर कार्यवाही के दौरान अपने बयान का बचाव किया और 15 सितंबर को दायर एक हलफनामे में ये तक कहा कि एक घंटे की बातचीत के दौरान कथित ‘बयान मेरे मुंह से निकल गया.’ साथ ही दावा किया कि टिप्पणी एक बड़े बयान का हिस्सा थी.

हलफनामे में कहा गया था, ‘अगर इसे संदर्भ से बाहर निकालकर एक अलग बयान में देखा जाए तो ऐसा लग सकता है कि इसे बेहतर शब्दों में कहा जा सकता था. हालांकि, यदि इसे सही संदर्भ में सुना जाए और यह देखा जाए कि किन स्थितियों में किस तरह की बातचीत के बीच इसका इस्तेमाल किया तो ऐसा नहीं लगेगा. इसके आगे-पीछे की बातचीत सुनकर माननीय अदालत निश्चित तौर पर मेरी इस बात पर भरोसा करेगी कि इसके पीछे माननीय न्यायालय के प्रति कोई अनादर दिखाने या उसकी अवमानना करने का कोई इरादा नहीं था.’

अपने ऊपर लगे आरोपों को अवमानना नोटिस से कहीं आगे बताते हुए शंकर ने हलफनामे में कहा, ‘आरोपों को इस तरह विस्तारित किया जाना अनुचित है. मुझे स्पष्ट तौर पर पता होना चाहिए कि मुझे क्या जवाब देना है और जवाब देने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए. बार-बार गोलपोस्ट बदलता रहता है और यह मेरे लिए परेशानी का सबब है.’

शंकर ने इस आरोप से भी इनकार किया कि उनकी बातचीत अपमानजनक या निंदनीय थी. बल्कि, उनके मुताबिक तो सही मायने में यह एक सार्थक और बहुत महत्वपूर्ण विचार-विमर्श था.

बहरहाल, कोर्ट ने शंकर का स्पष्टीकरण खारिज कर दिया और इसके बजाए, इसे ‘गलतबयानी को जायज ठहराने की कोशिश’ के तौर पर देखा.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘उन्हें (शंकर को) अपनी कही बात पर जरा भी खेद या पछतावा नहीं है. वह किसी तरह उस पर माफी मांगने को भी तैयार नहीं हैं. उल्टे, वह अपनी ऐसी टिप्पणी को जायज ठहराने की कोशिश भी कर रहे हैं. इस तरह के आरोप वाले बयानों को पढ़कर कोई भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि ये अदालतों और न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा और गरिमा को धूमिल करने वाले हैं.’

कोर्ट ने आगे कहा कि शंकर को ‘भ्रष्टाचार के उदाहरणों को सामने लाकर उन्हें उजागर करने का अधिकार है,’ बशर्ते ‘तथ्यात्मक सामग्री के आधार पर वे पुष्ट’ हों. लेकिन वह ‘अपने आरोपों के जरिये पूरी संस्था को एक समान रूप से बदनाम नहीं कर सकते.’

फैसले में कहा गया, ‘यह एक तरह से लक्ष्मण रेखा को पार करने जैसा है.’

अदालत ने शंकर की तरफ से जिला न्यायाधीशों के खिलाफ एक अपमानजनक टिप्पणी करने को लेकर भी अपनी गहरी नाराजगी जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अच्छी दिखने वाली विधवाओं की नियुक्ति करें और उनकी सेवाओं का इस्तेमाल करें.’

बेंच ने इस पर कहा, ‘उनका सीधा मतलब था कि यौन संबंधों के लिए उनका इस्तेमाल होता है. अदालती कार्यवाही के दौरान अवमाननाकर्ता ने एक न्यायिक अधिकारी का नाम लिया और दावा किया कि उसे इसी तरह के कदाचार के लिए बर्खास्त किया गया था. हालांकि, हमारे सामने कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि क्या बर्खास्तगी किसी यौन दुराचार से जुड़ी हुई थी, लेकिन हमारा स्पष्ट मत है कि अवमाननाकर्ता अपने इंटरव्यू में उक्त अधिकारी का खुलकर नाम ले सकता था और अपने आरोप के समर्थन में तथ्यात्मक सामग्री का उल्लेख कर सकता था.’

इसमें कहा गया है कि शंकर को सीधे तौर पर यह आरोप लगाने का कोई अधिकार नहीं है कि ‘महिलाएं कुछ जिला न्यायाधीशों की कमजोरी हैं.’ अदालत की नजर में इस तरह की टिप्पणी आपत्तिजनकर और कानून का उल्लंघन है.

अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर उन्होंने ‘प्रथम दृष्टया सबूतों के आधार पर और नेक इरादे के साथ आरोप लगाए होते, (यह) निश्चित तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के दायरे में आते.’

इसके अलावा, कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट में सेवाएं देने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों के खिलाफ शंकर के बयानों पर भी संज्ञान लिया. हाई कोर्ट ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का योगदान अद्वितीय है. इसके सभी जज सर्वोच्च सम्मान के हकदार हैं. इस तरह से लापरवाही के साथ उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणियां नहीं की जा सकती हैं.’

बेंच ने सोशल मीडिया पर शंकर की फॉलोइंग पर भी गौर किया. पीठ ने कहा, ‘उनके इंटरव्यू लाखों लोग देखते हैं.’ साथ ही जोड़ा कि उनके इंटरव्यू वाले पोस्ट पर की जाने वाली टिप्पणियों में अदालतों और न्यायाधीशों के खिलाफ ‘सबसे ज्यादा अपशब्दों का इस्तेमाल’ किया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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