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Thursday, 18 April, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘क्या एक और बाबरी बन जाएगी ज्ञानवापी', उर्दू प्रेस ने उठाये सवाल; UP कोर्ट ने हिंदू महिलाओं की याचिका को दी मंजूरी

‘क्या एक और बाबरी बन जाएगी ज्ञानवापी’, उर्दू प्रेस ने उठाये सवाल; UP कोर्ट ने हिंदू महिलाओं की याचिका को दी मंजूरी

पेश है दिप्रिंट का इस बारे में साप्ताहिक राउंड-अप कि उर्दू मीडिया ने पिछले एक सप्ताह के दौरान विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में किसी तरह की खबरे छापी, और उनमें से कुछ ने इन के बारे में किस तरह की संपादकीय टिप्पणियां की.

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नई दिल्ली: क्या ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदुओं द्वारा पूजा किये जाने के अधिकार की मांग करने वाली कुछ हिन्दू महिलाओं की याचिका को स्वीकार करना राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की तरह एक और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील और लंबे समय तक चली क़ानूनी लड़ाई का अग्रदूत है? यह सवाल उर्दू मीडिया के अख़बारों में काफी हद तक उभरा, और इनमें से एक से अधिक अख़बारों के संपादकीय में इन दो मामलों के बीच समानताएं दर्शाईं गईं.

ज्ञानवापी वाले मामले और इसी से जुड़े वाराणसी की अदालत के एक फैसले ने इस सप्ताह उर्दू प्रेस का बहुत अधिक ध्यान खींचा. उर्दू प्रेस के संपादकीय में भी इस मामले में और ‘जटिलताओं’ की भविष्यवाणियां की गई और मेनस्ट्रीम मीडिया पर इस मुद्दे के ‘एकतरफा’ कवरेज का आरोप लगाया गया.

ज्ञानवापी वाले विवाद के अलावा, कर्नाटक में हिजाब पर लगे प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट में दी जा रहीं दलीलें, कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और गोवा – जहां इसके 11 में से आठ विधायक बुधवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए – में इस पार्टी की दुर्दशा, को भी उर्दू समाचार पत्रों में प्रमुखता से दर्शाया गया.

पेश है इस सप्ताह उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोर रहे मुद्दों का दिप्रिंट द्वारा आपके लिए तैयार किया गया एक राउंडअप.


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ज्ञानवापी मामला

पिछले सोमवार को सभी की निगाहें इस बात को लेकर वाराणसी जिला अदालत पर टिकी थीं कि क्या यह अदालत ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली कुछ हिंदू महिलाओं की याचिकाओं पर सुनवाई करेगी या नहीं.

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12 सितंबर को – जब इस मामले में फैसला आने वाला था – ‘इंकलाब’ ने वाराणसी के ‘हाई अलर्ट’ पर होने और पूरे शहर में धारा 144 लागू होने के बारे में एक खबर अपने पहले पन्ने पाए छापी. इसने एक याचिकाकर्ता द्वारा उसके पक्ष में फैसला आने की स्थिति में ‘धर्म यात्रा’ शुरू करने के वादे की भी सूचना दी.

फिर 13 सितंबर को, सभी अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर अदालत के फैसले की खबर छापी, जो कई शहरों में जबरदस्त पुलिसिया बंदोबस्त की तस्वीरों के साथ छापीं गयीं थी .

‘इंकलाब’ और ‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’ दोनों ने इस तरह की सुर्खियां छापीं जिनमें कहा गया था कि मुस्लिम पक्ष की दलीलें – जो मस्जिद की देखभाल करने वाली समिति अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी की तरफ से पिश की गयीं थीं – को खारिज कर दिया गया था.

सियासत ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक बयान भी छापा, जिसमें इस फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ कहा गया था और यह कहा गयाः था कि ‘नफरत को कायम रखने की कोशिशों से भारी नुकसान होगा.’

15 सितंबर को ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने पर छपी एक खबर में हिंदू पक्ष द्वारा उच्च न्यायालय में की गयी उस अपील पर रौशनी डाली गयी जिसमें कहा गया था कि यदि मुस्लिम याचिकाकर्ता इसके पास जाते हैं, तो अदालत को दूसरे पक्ष की बात सुने बिना कोई फैसला नहीं लेना चाहिए.

13 सितंबर को छपे ‘ज्ञानवापी मस्जिद: क्या यह दूसरी बाबरी मस्जिद बन जाएगी?’ शीर्षक वाले संपादकीय में, ‘सहारा’ ने कहा कि सभी संकेत यही बताते हैं कि ज्ञानवापी वाला मुद्दा समय के साथ और अधिक तूल पकड़ेगा. संपादकीय में कहा गया है कि ऐसा खास तौर पर इसलिए है क्योंकि हिंदू पक्ष ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि उनके पक्ष में फैसला आने की स्थिति में वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से संपर्क करेंगे और परिसर में स्थित कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग करने का अनुरोध करेंगे.

15 सितंबर को ‘इंकलाब’ के ‘तनाव को मिली एक और नयी जिंदगी’ शीर्षक वाले संपादकीय में भी बाबरी मस्जिद मामले का उल्लेख किया गया था, और कहा गया कि यह विवाद इस तरह के अन्य विवादों को उभरने से पहले ही रोकने के लिए लाये गए उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 (प्लेसेस ऑफ़ वरशिप (स्पेशल प्रोविशंस) एक्ट, 1991 का आधार बना था.

संपादकीय ने मीडिया पर भी निशाना साधा, जिसमें लिखा था कि ऐसे हर मामले में प्रेस ‘एकतरफा बयानबाजी करता है जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए एक खतरा है.’

इसी से संबंधित एक मुद्दे पर, ‘सहारा’ के 10 सितंबर के संस्करण में पहले पन्ने पर एक खबर छपी थी जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट 11 अक्टूबर को उपासना स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.

संपादकीय में कहा गया है कि इस मामले के नतीजे में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद और कृष्ण जन्मस्थान-शाही ईदगाह सहित बड़ी संख्या में चल रहे धार्मिक ‘विवादों’वाले स्थलों के लिए निहितार्थ छुपे होंगे.

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और इस पार्टी के लिए गोवा में आये संकट ने भी लगातार उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोरीं.

13 सितंबर को, ‘इंकलाब’ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के प्रति कांग्रेस की नाराजगी, जब उसने खाकी शॉर्ट्स की एक जोड़ी में आग लगने की एक तस्वीर ट्वीट की थी, पर एक पहले पन्ने वाली खबर छापी.

उसी दिन छपे अपने संपादकीय में, ‘इंकलाब’ ने लिखा कि इस यात्रा ने अपना तमिलनाडु वाला चरण पूरा कर लिया है और अब केरल में प्रवेश कर चुकी, तथा इसे मिली उत्साहजनक प्रतिक्रिया से कई लोगों की असुविधा हुई है. यही कारण है कि पार्टी पर इस तरह से कटाक्ष किया जा रहा है.

इसमें कहा गया है कि इतिहास हमें बताता है कि राजनीतिक यात्राओं ने लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और उस हद तक, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ‘सही रास्ते’ पर हैं और शुभकामनाओं के पात्र हैं.

‘भारत जोड़ो यात्रा’ 12 राज्यों से गुजरने वाली एक पैदल है, जिसका नेतृत्व राहुल गांधी 2024 के आम चुनावों से पहले अपनी पार्टी के कैडर को लामबंद करने में मदद के लिए कर रहे हैं.

14 सितंबर को, ‘सियासत’ ने अपने पहले पन्ने पर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के केरल चरण के दौरान एक बुजुर्ग महिला को गले लगाते हुए राहुल गांधी की एक तस्वीर छापी. इसी के साथ लगी एक रिपोर्ट में राहुल गांधी के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने देश में बढ़ती कीमतों के खिलाफ बातें की हैं.

हालांकि, 15 सितंबर की ख़बरों में गोवा में चल रहे सियासी नाटक, जहां आठ कांग्रेस विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़ भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है, पर ज्यादा ध्यान दिया गया.

‘सहारा’ ने इस घटनाक्रम को कांग्रेस के लिए एक झटका बताया, जबकि इस खबर को प्रमुखता देने वाले ‘इंकलाब’ ने कांग्रेस के बागियों का मुस्कुराते हुए स्वागत करने वाले भाजपा नेता और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की तस्वीर भी लगाई.

मदरसों का सर्वेक्षण

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे मदरसों के सर्वेक्षण ने भी अखबारों के पहले पन्ने पर जगह बनाई. 31 अगस्त को घोषित इस सर्वेक्षण का जाहिराना मकसद ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ मदरसों की पहचान करना है.

12 सितंबर को, ‘इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा योगी सरकार के इस फैसले की आलोचना करने की एक खबर प्रकाशित की. इस खबर में बोर्ड के हवाले से कहा गया है कि इस सर्वे के जरिए राज्य सरकार मदरसों को ‘बदनाम’ करना चाहती है.

14 सितंबर को ‘इंकलाब’ ने पहले पन्ने पर एक खबर छापी कि यह सर्वेक्षण शुरू हो गया है और उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने यह कहकर कुछ राहत प्रदान की है कि मदरसा के अधिकारी स्वयं सर्वेक्षण फॉर्म जमा कर सकते हैं.

उसी दिन, इसके पहले पन्ने पर एक और खबर छपी थी जिसमें कहा गया थे कि उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य उत्तराखंड भी इसी तरह का सर्वेक्षण करेगा.

13 सितंबर को ‘इंकलाब’ और ‘सहारा’ दोनों ने इस्लामिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बयान छापा. इस खबर में मदनी के हवाले से कहा गया है कि उनका संगठन इस सर्वेक्षण के खिलाफ नहीं बल्कि सांप्रदायिकता के खिलाफ है .

उसी दिन ‘सहारा’ ने अमेठी में सुल्तानपुर-रायबरेली हाईवे पर स्थित एक चार साल पुराने मदरसे को तोड़े जाने की खबर भी पहले पन्ने पर छापी थी.

इस मामले के संदर्भ में बता दें कि अमेठी जिला प्रशासन का दावा है कि इस राजमार्ग को चराई के लिए बनाई गई भूमि पर अवैध रूप से बनाया गया था.

हिजाब विवाद

कर्नाटक के ‘हिजाब विवाद’ पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को सभी उर्दू अखबारों में प्रमुखता मिली.

16 सितंबर को, ‘इंकलाब’ ने अपनी प्रमुख खबर में याचिकाकर्ताओं – कॉलेज के वे छात्राएं जो हिजाब के साथ कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति चाहती हैं – का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों का शीर्ष अदालत को यह बताते हुए हवाला दिया गया कि स्कूलों में हिजाब पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने वाला कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला ‘बहुमत की हिमायत’ की एक मिसाल है.

उसी दिन पहले पन्ने पर छापी गयी ‘सहारा’ की एक सुर्खी में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि स्कूलों के पास अपने यूनिफार्म को निर्धारित करने की शक्ति है और यह कि ‘हिजाब अलग दिखता है’, इस मामले में याचिकाकर्ताओं के लिए ख़राब संकेत है. खबर में कहा गया है कि यह टिपण्णी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वही बात है जो हिजाब का विरोध करने वाले स्कूलों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष रखी थी.

15 सितंबर को ‘सियासत’ के पहले पन्ने की प्रमुख खबर में याचिकाकर्ताओं की इस दलील को आगे बढ़ाया गया था कि हिजाब पहनना एक धार्मिक कर्तव्य है और अदालतों को इस पर फैसला लेने का अधिकार नहीं है. उसी दिन, ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने पर छपी एक खबर में याचिकाकर्ताओं की इस दलील को शामिल किया गया था कि माननीय न्यायाधीशों को धार्मिक मुद्दों पर फैसला नहीं करना चाहिए.

‘नबन्ना चलो’

भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ भाजपा द्वारा आयोजित एक विरोध प्रदर्शन ‘नबन्ना अभिजन / नबन्ना चलो’ (पश्चिम बंगाल राज्य सचिवालय नबन्ना तक एक मार्च) के बाद हुई हिंसा पर भी उर्दू अखबारों ने ख़बरें छापीं.

14 सितंबर को छापे गए अपने संपादकीय में ‘सहारा’ ने लिखा कि बहुत कुछ ममता बनर्जी की राजनीतिक रणनीति पर निर्भर करता है और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को कार्रवाई के दो तरीकों में से किसी एक पर फैसला करना चाहिए – वह या तो अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से निपट सकती है, या फिर भाजपा का सामना करने के लिए ‘प्रतिशोधात्मक बल’ का उपयोग कर सकती है. इसने कहा कि बाद वाला रास्ता न केवल टीएमसी के लिए मुश्किल साबित होगा, बल्कि अलोकतांत्रिक भी होगा.

संपादकीय में आगे कहा गया है कि कोलकाता और हावड़ा की सड़कों पर जो कुछ भी हुआ, वह पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास पर एक दाग है और इस धब्बे को मिटाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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