नई दिल्ली: जो लोग कभी धूम्रपान नहीं करते, लेकिन फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के संपर्क में लगातार बने रहते हैं, ऐसे लोगों को फेफड़ों का कैंसर हो सकता है. लंदन में फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के रिसर्चर्स ने अपने अध्ययन में इस बात का खुलासा किया है. 40 हजार लोगों पर किए गए इस शोध नतीजे 10 सितंबर को जारी किए गए थे. इसे वैज्ञानिक हलकों में ‘एक बड़ी सफलता’ के रूप में देखा गया. पीएम 2.5 हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोमीटर के व्यास वाले सांस के साथ अंदर जाने वाले प्रदूषण के कण होते हैं.
वैसे माना यही जाता है कि सिगरेट धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है. यह 70 फीसदी से ज्यादा मामलों के लिए जिम्मेदार है. लेकिन फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट ने अपने अध्ययन को लेकर जारी किए गए एक बयान में कहा कि 2019 में दुनिया भर में तीन लाख से ज्यादा फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों का कारण वायु प्रदूषण था.
अध्ययन ने इस परिकल्पना की जांच की कि पीएम 2.5 फेफड़ों में सूजन का कारण बनता है. जो आमतौर पर कैंसर वाले म्यूटेशन को ले जाने वाली निष्क्रिय कोशिकाओं को सक्रिय होने का कारण होता है. पीएम 2.5 के कारण होने वाली सूजन के साथ इन कोशिकाओं के प्रसार से ट्यूमर बन सकता है, जिसमें अनियंत्रित रूप से बढ़ने की प्रवृत्ति – कैंसर- हो सकती है.
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अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन जगहों पर पीएम 2.5 ज्यादा है, वहां अन्य प्रकार के कैंसर की दर भी अधिक है.
निष्कर्ष पिछले हफ्ते यूरोपियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल ऑन्कोलॉजी (ESMO) कांग्रेस में प्रोफेसर चार्ल्स स्वैनटन, प्रमुख शोधकर्ता और कैंसर की दवा के विशेषज्ञ द्वारा प्रस्तुत किए गए थे. ESMO ऑन्कोलॉजिस्ट का एक प्रमुख प्रोफेशनल ऑर्गेनाइजेशन है.
द लैंसेट ऑन्कोलॉजी ने गुरुवार को प्रकाशित फ्रांसिस क्रिक के अध्ययन पर एक लेख में इसे ‘एक बड़ी खोज’ बताया और स्वैनटन को यह कहते हुए उद्धृत किया: ‘अध्ययन ने कैंसर को लेकर हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया है. जिन लोगों ने कभी धूम्रपान नहीं किया, लेकिन उनके शरीर में फेफड़े का कैंसर कैसे पनपने लगा, अब इसके कारणों का हमें पता चल गया है.’
स्वैनटन ने कहा, ‘कैंसर पैदा करने वाले म्यूटेशन वाली कोशिकाएं हमारी उम्र के अनुसार स्वाभाविक रूप से जमा होती रहती हैं, लेकिन वे सामान्य रूप से निष्क्रिय होती हैं. हमने पाया कि वायु प्रदूषण फेफड़ों में इन कोशिकाओं को जगाता है, उन्हें बढ़ने और संभावित रूप से ट्यूमर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है.’
कई भारतीय शहर खासतौर पर दिल्ली सहित गंगा के बाढ़ के मैदानों वाले शहर कई सालों से वायु प्रदूषण के उच्च स्तर से जूझ रहे हैं. 2020 में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक विश्लेषण ने अनुमान लगाया कि 2019 में भारत में 1.67 मिलियन मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं. यह देश में सभी मौतों का लगभग 17.8 प्रतिशत था.
‘यूके में कैंसर के 10 मामलों में से एक की वजह वायु प्रदूषण ‘
फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के बयान के मुताबिक, ‘हालांकि धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे बड़ा जोखिम कारक बना हुआ है. फिर भी यूके में फेफड़ों के कैंसर के 10 में से एक मामले में बाहरी वायु प्रदूषण जिम्मेदार होता है.’
बयान में कहा गया, ‘अनुमानित 6,000 लोग जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है, ब्रिटेन में हर साल फेफड़ों के कैंसर से मर जाते हैं. इनमें से कुछ मामलों की वजह काफी हद तक वायु प्रदूषण हो सकती है. साल 2019 में दुनियाभर में लगभग तीन लाख फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों को PM2.5 के संपर्क में आने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था.
अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण में छोटे बदलाव भी इंसान की सेहत पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं.
को-फर्स्ट ऑथर डॉ एमिलिया लिम ने एक बयान में कहा, ‘हमारे विश्लेषण के मुताबिक, वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने से फेफड़ों के कैंसर, मेसोथेलियोमा और मुंह और गले के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.’
उन्होंने आगे बताया, ‘यह खोज वायु प्रदूषण जैसे कार्सिनोजेन द्वारा उत्पन्न सूजन के कारण होने वाले कैंसर के लिए एक व्यापक भूमिका का सुझाव देती है. वायु प्रदूषण के स्तर में छोटे-छोटे बदलाव भी इंसान की सेहत पर असर डाल सकते हैं. दुनिया के 99 फीसदी लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस से ऊपर है. इसका मतलब ये है कि ये हम सभी पर असर कर रहा है.’
भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों पर 2020 लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ लेख में दावा किया गया था कि इस तरह की अधिकांश मौतें एम्बिएंट पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण (0.98 मिलियन) और घरेलू वायु प्रदूषण (0.61मिलियन) के कारण हुईं.
लेखकों ने लिखा था, ‘1990 से 2020 तक घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 64.2 प्रतिशत की कमी आई, जबकि एम्बिएंट कणों के प्रदूषण के कारण इसमें 115.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई और एम्बिएंट की वजह से ओजोन प्रदूषण में 139.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई.’
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