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Wednesday, 20 November, 2024
होमखेलहेडर्स के मामले में न्यूरोलॉजिस्ट्स एकमत, माना कि इससे फुटबॉल खिलाड़ियों को लंबे समय में होता है नुकसान

हेडर्स के मामले में न्यूरोलॉजिस्ट्स एकमत, माना कि इससे फुटबॉल खिलाड़ियों को लंबे समय में होता है नुकसान

तंत्रिका विज्ञान क्षेत्र में मिली सफलताओं ने अब यह स्थापित का दिया है कि पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए हेडर उनके के लिए बार-बार सबएक्यूट हेड इंजरी का कारण बन सकते हैं, जिससे उन्हें लंबे समय में न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग हो सकते हैं.

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नई दिल्ली: जेफ एस्टल, एक फुटबाल स्ट्राइकर जिन्होंने नॉट्स काउंटी और वेस्ट ब्रोमविच एल्बियन जैसे क्लब्स के लिए बिताए गए अपने शानदार करियर में 200 से अधिक गोल किए थे और यहां तक कि वह इंग्लैंड की टीम के लिए भी खेले थे, उनका साल 2002 में 59 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. इस खिलाडी को कथित तौर पर उनके जीवन के अंतिम दौर में अल्जाइमर का सामना करना पड़ा था.

उनकी बेटी डॉन ने अपने पिता की मौत को याद करते हुए साल 2015 में यूके के एक स्थानीय अखबार को बताया था: ‘उन्होंने अपने पूरे परिवार के सामने दम तोड़ दिया … यह मेरे द्वारा कभी भी देखा गया सबसे भयावह वाकया था.’

साल 2002 की मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि एस्टल की मौत की जांच के दौरान कोरोनर (अचानक होने वाली मौत की वजह पता करनेवाला अफ़सर) ने इसका कारण उनके सिर में चोट लगने से जुड़ा हुआ बताया था, जो उनके खेल करियर के दौरान लगी था और इस तरह उन्होंने इसे ‘इंडस्ट्रियल डिज़ीज़ से हुई मौत’ के बताने वाले अपने फैसले की घोषणा करके एक मिसाल कायम की थी.

लेकिन यह 2014 तक साबित नहीं हुआ था जब ग्लासगो स्थित न्यूरोपैथोलॉजिस्ट (तंत्रिका विज्ञानी) डॉ विली स्टीवर्ट ने एस्टल की मृत्यु की चिकित्स्कीय वजह को क्रॉनिक ट्रॉमैटिक एन्सेफेलोपैथी (सीटीई) के रूप में विशिष्ट तौर पर निर्धारित किया था.

उस समय, बीबीसी ने सीटीई को ‘बॉक्सिंग ब्रेन कंडीशन’ कहा था, क्योंकि यह न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी मुक्केबाजों, जिन्हें बार-बार सिर में चोट लगती है, में आम रूप से पायी जाती थी.

दूसरे शब्दों में, यह सीटीई वाला रोग एस्टल द्वारा अपने खेल करियर के दौरान एक खास विधा का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने का परिणाम था – वह था फुटबॉल को बार-बार अपने सिर से मार कर गोल करना यानि कि हेडर्स.

हेडर्स उनकी खेल शैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे और इसने उन्हें 1959 में नॉट्स काउंटी की तरफ से पहली बार खेलने से लेकर 1977 में पेशेवर फ़ुटबॉल से रिटायर होने तक विपक्षी गोल के लिए एक बड़ा खतरा बनाए रखा था.


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फील्ड स्टडीजेफ एस्टल फाउंडेशन

जेफ एस्टल की चोट का विस्तृत पूर्वव्यापी निदान (रेट्रोस्पेक्टिव डायग्नोसिस) फ़ुटबॉल के खेल से हेडर को बाहर किए जाने के पक्ष में बढ़ते हुए आंदोलन के लिए एक हौसला बढ़ाने वाला तथ्य था.

इस बारे में और अनुसंधान हेतु वित्तीय सहायता देने के अलावा एस्टल के परिवार द्वारा स्थापित फाउंडेशन डॉ स्टीवर्ट के; फुटबॉल’स इन्फ्लुएंस ऑन लाइफ लॉन्ग हेल्थ एंड डेमेंशिया रिस्क (फील्ड)’ वाले अध्ययन की मदद से इस मामले में संस्थागत बदलाव लाये जाने की पैरवी कर रहा है.

स्टीवर्ट के नेतृत्व में किया जा रहा फील्ड का अध्ययन साल 2019 से नियमित रूप से नए शोध और अध्ययन प्रकाशित कर फुटबॉलरों के बीच हेडर और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के बीच नैदानिक रूप से पाई गई कड़ी पर अनुसंधान का नेतृत्व कर रहा है.

हालांकि, फील्ड अध्ययन के शोध के प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि फ़ुटबॉल खिलाड़ियों के न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग से पीड़ित होने की संभावना साढ़े तीन गुना अधिक थी, वहीं अगस्त 2021 में जारी फील्ड के खिलाड़ी की पोजीशन स्पेसिफिक (खेलने की जगह पर आधारित) अध्ययन के दौरान एक अधिक सीधा लिंक स्थापित किया गया है.

इस अध्ययन के निष्कर्षों ने आउटफील्ड खिलाड़ियों की तुलना में गोलकीपरों के लिए न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी का कम जोखिम दिखाया और डिफेंडरों को सबसे अधिक प्रभावित होने वाले खिलाडियों  के रूप में चिह्नित किया गया, जो सेंटर-बैक खिलाडियों द्वारा गेंद को सिर से मार कर इसे सामने से आ रहे वाले हमलावर खिलाड़ियों से दूर करने के लिए अपनायी जानी वाली विशेष रणनीति के अनुरूप है.

2019 में प्रकाशित एक अन्य पीर-रिव्युड (सहकर्मियों द्वारा समीक्षित) अध्ययन में पाया गया कि हजारों पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी, जिसमें इंग्लैंड की 1966 फुटबाल विश्व कप विजेता टीम के पांच सदस्य भी शामिल थे, अपने बाद में जीवन में न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी से पीड़ित हुए थे.

संयुक्त राज्य अमेरिका, स्कॉटलैंड और इंग्लैंड जैसे कई फ़ुटबॉल संघों और राष्ट्रों ने या तो 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए गेंद को सिर से मारने पर प्रतिबंध लगा दिया है या युवा खिलाड़ियों के बीच इस तरह के कार्य को समाप्त करने के लिए परीक्षण शुरू कर दिया है.

हालांकि,  यूनियन ऑफ़ यूरोपियन फुटबॉल एसोसिएशन्स  (यूईएफए) ने युवा फुटबॉलरों के लिए हेडर से सुरक्षा पर व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं, मगर इस खेल की वैश्विक नियामक संस्था, फीफा (इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ एसोसिएशन फ़ुटबॉल), को इस संबंध में विश्वव्यापी दिशा-निर्देशों के साथ आगे आना बाकी है.

मगर आगे की राह काफी लंबी है. भविष्य में हेडर को पूरी तरह से हटाए जाने का प्रभाव दूरगामी होगा और यह मैदान पर फुटबॉल खेलने के तरीके को मौलिक रूप से बदल देगा. हालांकि, द गार्जियन द्वारा 2020 में छापी गयी एक खबर के अनुसार बच्चों को ऐसे कृत्य में भाग लेने से प्रतिबंधित करने के सुझावों और नीतियों पर भी ऐतिहासिक रूप से ‘मिश्रित प्रतिकिया‘ मिली है

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अब सवाल यह है कि गेंद को सिर से मारने का खेल लंबे समय के दौरान एक पेशेवर फुटबॉलर के दिमाग को वास्तव में कैसे प्रभावित करता है? तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, इसका उत्तर सिर में लगे तीव्र आघात के व्यक्तिगत उदाहरणों में नहीं बल्कि बार-बार होने वाले सबएक्यूट ट्रॉमा (छोटी- छोटी चोटों) में निहित है.

नारायण हेल्थ के साथ कार्यरत गुरुग्राम स्थित न्यूरोसर्जन डॉ अनुराग गुप्ता कहते हैं, ‘हमारा मस्तिष्क खोपड़ी के अंदर एक तरल पदार्थ में तैर रहा होता है. यह जड़ता वाली अवस्था में होता है – जब आपकी खोपड़ी अचानक रुक जाती है, तो आपका मस्तिष्क अभी भी चल रहा होता है और खोपड़ी से टकरा सकता है. आगे-पीछे होने से लगे झटके से ज्यादा, यह एक शेअरिंग फ़ोर्स और घूमता हुआ कोण है जो न्यूरॉन्स (तंत्रिका) को मारकर अधिक सूक्ष्म न्यूरोलॉजिकल डैमेज (तंत्रिका संबंधी क्षति) का कारण बनता है.’

लेकिन डॉ गुप्ता का कहना है कि यह क्षति सिरों के आपस में टकराने या गोलपोस्ट से टकराने जैसी घटनाओं के कारण लगने की वजह से होने वाले मस्तिष्कघातों की तुलना में कम स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. बल्कि, ये वे सूक्ष्म प्रभाव हैं जो 10-15 पंद्रह साल की अवधि, जो एक पेशेवर फुटबॉलर के करियर की औसत अवधि के बराबर होता है, के दौरान न्यूरॉन्स की क्षति और बाद में मनोभ्रंश (डेमेंटिया)  वाली स्थिति की ओर ले जाते हैं.

इस बारे में और अधिक बताते हुए डॉ गुप्ता कहते हैं मतिभ्रम, याददस्त खो जाना, भटकाव, भावनात्मक अस्थिरता और नियमित कार्यों को करने में विफलता जैसे लक्षण रिटायर होने के बाद स्पष्ट हो सकते हैं और मनोभ्रंश के मानक मामलों के समान हो सकते हैं. साथ ही, उन्होंने कहा कि एमआरआई या सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग विधियां केवल ब्रेन एट्रोफी (मस्तिष्क के अपछय) को दिखाती हैं और फुटबॉलरों में इस तरह के न्यूरोलॉजिकल डैमेज का सटीक निदान करना चुनौतीपूर्ण बना देती हैं.

वे कहते हैं, ‘केवल मृत्यु के बाद ही शव परीक्षण या मस्तिष्क की बायोप्सी के माध्यम से आप सीटीई [फुटबॉलरों में] का कोई सबूत देखते हैं …. मस्तिष्क के पूरी तरह से विकसित नहीं होने के कारण बच्चों को विशेष रूप से इस समस्या के प्रति खतरे में पाया गया है.’

भविष्य में इसी खेल को पेशेवर करियर के रूप में अपनाने का प्रयास करने वाले युवा या कॉलेज स्तर के खिलाड़ियों के लिए गेंद को हेड करने की एक अनुचित तकनीक भी स्थायी नुकसान के जोखिम वाली हो सकती है, जैसा कि हेल्थकेयर एआई में काम करने वाले एक न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ सुरजीत नंदी ने स्वयं अनुभव किया है.  डॉ नंदी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉलेज स्तर की फुटबॉल खेली हुई है और दिल्ली में अपने मनोरंजन के लिए फुटबॉल खेलना जारी रखा हुआ है.

वे बताते हैं, ‘90 के दशक की शुरुआत में एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में सेंटर-बैक के रूप में खेलते समय मुझे स्ट्राइकर को चिह्नित करने और बार-बार (हरेक मैच में 20 बार तक) गेंद को हेड करके उससे दूर करने के लिए कहा जाता था. अगर मैं हेडर के लिए प्रयास नहीं करता था, तो मुझे दूसरे खिलाडी से बदल दिया जाता था, लेकिन मेरी तकनीक त्रुटिपूर्ण थी.‘

डॉ नंदी कहते हैं, ‘मैं अपने फ़ोरहेड (माथे) का उपयोग करने के बजाय, कभी-कभी फॉन्टानेल्स – खोपड़ी का काफी कमजोर हिस्सा – से हेड कर देता था और उसके तुरंत बाद में स्तब्ध सा महसूस करता था. लोग कहते थे कि बहुत अच्छा किया, लेकिन मुझे अक्सर चिंता होती थी, क्योंकि मस्तिष्क को आघात लगाना  एक बुरी बात है.’

डॉ गुप्ता के अनुसार, हरेक प्रशिक्षण सत्र और हरेक मैच में पेशेवर खिलाडियों के लिए स्वीकार्य हेडर की मात्रा एक ग्रे एरिया (असमंजस वाला क्षेत्र) बनी हुई है. लेकिन जेफ एस्टल फाउंडेशन और फील्ड अध्ययन के प्रयासों ने हेडर को लोअर मेन्टल फंक्शनिंग (मस्तिष्क के कम क्षमता के साथ कम करने) से जोड़ने वाले साक्ष्य के लिए एक आधार तैयार कर दिया है.

लेकिन डॉ. नंदी और उन जैसे कई अन्य लोगों के लिए, हेडर्स वाला मामला अंततः खेल के ट्रेड-ऑफस (लेन–देन) वाले पह्लू के अंतर्गत आता है, क्योंकि ‘वास्तव में तो किसी ने भी हेडर्स से हुए चिकित्सा लाभ (या नुकसान) का पता नहीं लगाया है’, लेकिन खेल के मैदान पर, यह खेल शैलियों की विविधता में एक और विधा को जोड़ता है.

21वीं सदी के दो सबसे शानदार फॉरवर्ड के गोल स्कोरिंग रिकॉर्ड को देखते हुए यह विविधता और स्पष्ट दिखाई देती है- – लियोनेल मेसी ने 24 हेडेड गोल किए हैं जिनमें से सात ने उनकी टीम को जीत दिलाई; जबकि क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने 112 हेडर वाले गोल किए हैं, जिनमें से 29 में उन्होंने अपनी टीम के लिए मैच जीता है.

डॉ नंदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि मुझे लगता है कि गेंद को हेड करने से मेरे दिमाग के कुछ हिस्सों में बाधा उत्पन्न हुई, मगर उन पर प्रतिबंध लगाकर आप एक तरह से क्रिस्टियानो रोनाल्डो पर प्रतिबंध लगा रहे हैं और लियोनेल मेस्सी का पक्ष ले रहे हैं. अगर आपको लगता है कि फ़ुटबॉल का भविष्य मेसी के बारे में अधिक है, तो यह अच्छी बात है; लेकिन मैं इसे इस तरह से नहीं देखता हूं.’

मैनचेस्टर यूनाइटेड के एक समर्थक के रूप में डॉ. नंदी पूरी मजबूती के साथ ‘रोनाल्डो कैंप’ में हैं और यहां तक कि उन्होंने नेमांजा विदिक द्वारा अपने पूरे करियर में किये गए हेडर्स की संख्या के बारे में मजाक भी किया. मगर उन्होंने इस बात को भी स्वीकारा कि लंबे समय तक सिर परे लगे आघातों से इस सर्बियाई सेंटर-बैक को खतरा हुआ हो सकता है.

डॉ गुप्ता खेल की इन दोनों शैलियों में ‘प्रभावी और मनोरंजक गुण’ देखते हैं, मगर उन्होंने भी डॉ नंदी के साथ सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि ‘पेशेवर फुटबॉल में हेडर पर एकमुश्त प्रतिबंध लगाना अभी बहुत जल्दबाजी होगी.’

हालांकि, उन्होंने एक चेतावनी भी दी – ‘खिलाड़ियों को संभावित खतरों से अवगत होने की आवश्यकता है. बच्चों को निश्चित रूप से तब तक के लिए ऐसा करने से रोका जाना चाहिए जब तक कि वे पर्याप्त रूप से बड़े नहीं हो जाते.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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