scorecardresearch
Wednesday, 9 October, 2024
होममत-विमत‘हीरे तो सस्ती चीज हैं’, इमरान खान तो सबसे ताकतवर संस्था का वर्चस्व तोड़ने का इरादा रखते हैं

‘हीरे तो सस्ती चीज हैं’, इमरान खान तो सबसे ताकतवर संस्था का वर्चस्व तोड़ने का इरादा रखते हैं

पांच कैरेट के हीरे का मनहूस साया सिर्फ इमरान और बुशरा पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि यह सर्वशक्तिमान जनरलों के प्रभुत्व पर भी ग्रहण बनकर मंडराने लगा है.

Text Size:

शायद ही कोई होगा जो नायाब हीरे की चमक-दमक देख उसकी ओर खिंचा न चला जाए, लेकिन ऐसे किस्से भी ख्यात हैं कि कुछ बेशकीमती हीरों को जिसने भी अपने पास रखने की कोशिश की, उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. कथित तौर पर ऐसा ही एक शापित हीरा है ब्लू होप, जिसे एक हिंदू देवी की मूर्ति से चुरा ले जाने वाले फ्रांसीसी यात्री जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर को कॉन्स्टेंटिनोपल में जंगली कुत्तों ने नोंच खाया था, तुर्की के नोबेल कुलब बे को भीड़ ने फांसी पर लटका दिया, प्रिंस इवान कोनितोव्स्की की गोली मारकर हत्या कर दी गई, मैडेमोसेले लाड्यू को उसकी प्रेमिका ने मार डाला और महारानी मैरी एंटोनेट और लुई सोलहवें का सिर कलम कर दिया गया.

सच्चाई तो यही है कि ये सब मनगढंत कहानियां हैं जो पियरे कार्टियर की दिमागी उपज थीं और जिन्हें सुनाकर उसने सीधे-सादे पत्रकारों को फंसाया था. हालांकि, ब्लू होप को बेचकर महान जौहरी ने अपना बड़ा नुकसान किया. और उससे यह खरीदने वाली ग्लैमरस एवलिन मैकलीन को पति द्वारा किसी अन्य महिला के लिए उसे छोड़ देने का अपमान सहना पड़ा.

बहरहाल, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पत्नी खातून-ए-अव्वल बुशरा खान को हीरे के लेन-देन के साथ जुड़ने से पहले उसकी फितरत के बारे में अच्छी तरह पता होना चाहिए था.

इस हफ्ते के शुरू में सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की तरफ से जारी किए गए लीक फोन कॉल्स से पता चलता कि विवादास्पद पूर्व प्रथम महिला ने प्रॉपर्टी कारोबारी मलिक रियाज हुसैन से बतौर उपहार तीन कैरेट हीरे की अंगूठी लेने से इंकार करते हुए कहा था कि उन्हें ‘ऐसा कुछ भेजना अनुचित है जो हर किसी को हासिल हो.’ टेप में बिजनेस टाइकून की बेटी अंबर रियाज को अपने पिता से यह कहते सुना जा सकता है कि वह 10 मिलियन पाकिस्तानी रुपये वाली पांच कैरेट की अंगूठी भेजने की योजना बना रही है.

अंबर कहती है कि भरोसा दिलाया गया है कि ‘आपकी साइट्स पर पड़े ताले कल सुबह खुल जाएंगे.’ ‘खान साहब ने उन मामलों को बंद करने की गारंटी दी है जो उनके अख्तियार में हैं.’

वैसे पांच कैरेट के हीरे का अभिशाप सिर्फ इमरान और बुशरा ही नहीं झेल रहे हैं, बल्कि हीरे की घातक चमक देश के सर्वशक्तिमान जनरलों के प्रभुत्व पर भी ग्रहण बनकर छाती जा रही है.


यह भी पढ़ेंः उइगरों को मिटा देने का चीन का अभियान कई पीढ़ियों के लिए नफरत और हिंसा के बीज बो रहा है


किस जनरल ने की जिन्नों की जासूसी

उत्तरी क्षेत्र और सैन्य खुफिया विभाग में अपनी विशेष सेवाएं दे चुके एक लो-प्रोफाइल प्रोफेशनल लेफ्टिनेंट-जनरल आसिम मुनीर शाह को अक्टूबर 2018 में—इमरान खान के सत्ता में आने के कुछ ही हफ्तों बाद—इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली. आईएसआई ने पिछले करीब एक दशक से मलिक रियाज पर नजरें टिका रखी थीं जिसके खिलाफ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और रैकेटिंग के आरोप सामने आते रहे थे. हालांकि, जनरल को पता नहीं था कि उनकी एजेंसी की तरफ से काफी समय से की गई जा रही वायरटैपिंग से क्या उजागर होने वाला है.

पाकिस्तान के दो पूर्व सैन्य अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया है, डायमंड टैप तो बुशरा से जुड़े भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों का एक हिस्सा भर है जिनके बारे में चर्चित रहा है कि वो अपने गुलाम दो जिन्नों के लिए कटोरों में भरकर कच्चा मांस रखती हैं और दावा करती हैं कि वही उनकी रक्षा करते हैं. आईएसआई प्रमुख ने पाया कि बुशरा की सबसे करीबी दोस्त फरहत खान कारोबारियों के साथ सौदेबाजी कर रही थी, नौकरशाहों को खरीद रही हैं और प्रमुख राजनीतिक मुलाकातें तय कराने में भी शामिल हैं.

पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है कि मुनीर शाह ने 2019 की गर्मियों के आखिर में इंटरसेप्ट कंटेंट के बारे में इमरान को सूचित किया, और पूर्व प्रधानमंत्री को एक डोजियर भी सौंपा. इसका नतीजा शाह के लिए बेहद दर्दनाक रहा और उन्हें जून में पद से हटा दिया गया, यह आजादी के बाद से किसी आईएसआई प्रमुख का सबसे छोटा कार्यकाल रहा.

माना जाता है कि आईएसआई का पाकिस्तान के सार्वजनिक जीवन के हर कोने में दखल है लेकिन जिन्नों की मल्लिका की जासूसी करना एक घाटे का सौदा साबित हुआ.

आसिम मुनीर शाह को पद से हटाए जाने के बाद पत्रकार नाजिया सैयद अली ने खुलासा किया, पाकिस्तान सरकार ने यूके को कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में मलिक रियाज के साथ 190 मिलियन पाउंड के सिविल सेटलमेंट के लिए तैयार किया. इसके बाद यह फंड पाकिस्तान आया जिसका इस्तेमाल बिजनेट टाइकून से जुड़े अलग-अलग जुर्माने निपटाने में किया गया. मौजूदा सरकार का दावा है कि इसके बदले में मलिक रियाज ने बुशरा को रियायती कीमतों पर संपत्तियां उपलब्ध कराईं.

2018 के विवादास्पद चुनावों से पूर्व पीएमएल-एन विधायकों को इमरान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के खेमे में लाने के कथित आरोपी लेफ्टिनेंट-जनरल फैज हमीद अब आईएसआई के प्रमुख नियुक्त किए जा चुके थे. पाकिस्तानी सैन्य हलकों से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि अधिकारी की नियुक्ति का रास्ता बुशरा द्वारा आयोजित धार्मिक कार्यक्रमों में फैज और उनकी पत्नी की भागीदारी से खुला था. बाजवा भी अपने अधिकार को मिली इस चुनौती का विरोध नहीं कर पाए.

जिन्नों की मल्लिका?

बुशरा के धार्मिक-राजनीतिक क्षेत्र में इस तरह अपनी पकड़ मजबूत कर लेने के बारे में कुछ ब्योरा उपलब्ध है. सामंती वट्टू कबीले से जुड़े एक परिवार, जिसकी दक्षिणी पंजाब में काफी भूसंपत्ति है, में बुशरा का जन्म 1974 में हुआ था. बुशरा के जन्मस्थल दीपालपुर में ही 26/11 हमले में शामिल आतंकी मुहम्मद अजमल कसाब का भी घर है. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने से पहले महज पंद्रह साल की उम्र में ही बुशरा की शादी एक कस्टम अधिकारी और पीएमएल-एन से जुड़े एक प्रांतीय राजनेता के बेटे ख्वार मनेका से कर दी गई.

इस शादी ने ही बुशरा को मध्यकालीन सूफी फकीर फरीदुद्दीन गंजशकर की प्रसिद्ध दरगाह से रू-ब-रू कराया, क्योंकि ख्वार परिवार खुद को इस दरगाह का पुश्तैनी खादिम बताता है. हालांकि, इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि क्या उस दरगाह में बुशरा को कोई खास दर्जा हासिल था.

इमरान ने 2015 के आसपास अपनी पार्टी से जुड़े कारोबारी जहांगीर खान तरीन के लिए चुनाव प्रचार के दौरान बुशरा के पास जाना शुरू किया और तीन साल बाद इन दोनों ने गोपनीय ढंग से निकाह कर लिया. यह निकाह विवादास्पद रहा क्योंकि बुशरा ने कथित तौर पर तलाक और फिर से शादी करने के बीच अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि पूरी नहीं की थी.

पूर्व प्रधानमंत्री का दावा है कि बुशरा के साथ उनके संबंध सूफीवाद में रुचि से प्रेरित थे. इमरान जोर देकर कहते हैं, ‘किसी और की तुलना में मैं शारीरिक आकर्षण के बारे में अधिक जानता हूं, (लेकिन) वास्तव में किसी व्यक्ति का चरित्र और मन, और बुद्धिमत्ता बहुत ज्यादा मायने रखती है. सूफीवाद में लोग अलग-अलग मुकाम हासिल करते हैं लेकिन मैं कभी किसी ऐसे इंसान से नहीं मिला जो मेरी पत्नी की बराबरी कर सके.’

यद्यपि इमरान खान को काफी अंधविश्वासी माना जाता है, जैसा उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान ने दावा किया था कि अपना पौरुष बढ़ाने के लिए वे अजीबो-गरीब तरीके अपनाते थे, लेकिन इस शादी के साथ उनके कई गोपनीय हित भी जुड़े थे. फरहत और बुशरा कुशल राजनीतिक उद्यमी साबित हुईं और उन्होंने इमरान को राजनीति की अपरिहार्य गंदगी से एक कदम दूर भी रखा.


यह भी पढ़ेंः काबुल में तालिबान घुसे तो तीन आशंकाएं उभरीं लेकिन साल भर बाद एक भी सही साबित नहीं हुई


राजनीतिक उद्यमी

फरहत—जिन्हें फराह गोगी के नाम से भी जाना जाता है—का काफी समय से बुशरा के जीवन में एक अहम स्थान रहा है. फरहत ने अपने पिता मुहम्मद हुसैन खान की मृत्यु के बाद अपनी बहनों मुसरत और शफीक के साथ काफी गरीबी झेली. बहनें लाहौर चली गईं, और पार्टियों में नाच-गाकर जीविकोपार्जन करने लगीं. वहीं, फरहत की किस्मत तब पलटी जब वह विभाजन के समय गुरदासपुर से आए शरणार्थी के पोते और पंजाब में आठ बार के विधायक चौधरी मुहम्मद इकबाल गुर्जर के बेटे और प्रॉपर्टी मैग्नेट अहसान जमील गुर्जर से मिलीं.

बीमारी के कारण अहसान गुर्जर को इलाज के लिए बार-बार अमेरिका की यात्रा करने पर बाध्य होना पड़ा. ऐसे में फरहत ने ख्वार परिवार के घर पर काफी समय बिताया, और बुशरा की करीबी बन गईं. कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि दोनों ने साथ मिलकर महिलाओं के लिए एक अनौपचारिक रहस्यमय सर्कल बना लिया, जिसमें बुशरा को पीरनी या मजहबी नेता का दर्जा हासिल हुआ.

माना जाता है कि निकाह गोपनीय तौर पर हुआ था और बुशरा की पुरानी दोस्त ने इमरान के उभरते आंतरिक सर्कल में एक अहम जगह बना ली थी. अपने तमाम व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही फरहत अपने कारोबारी पति अहसान जमील गुर्जर के साथ इमरान के बानी गाला होम आ गई थीं.

हालांकि, उनकी कोई औपचारिक राजनीतिक भूमिका नहीं थी, लेकिन डायमंड टैप से पता चलता है कि उन्होंने बुशरा और इमरान के लिए बतौर मध्यस्थ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पाकिस्तान सरकार का आरोप है कि इस तरह के कार्यों के एवज में उन्हें वित्तीय लाभ भी पहुंचाया गया. इसमें अन्य फायदों के अलावा 600 मिलियन पाकिस्तानी रुपये की कीमत वाला औद्योगिक भूखंड महज 83 मिलियन रुपये में उपलब्ध कराया जाना भी शामिल है.

इमरान खान यह सुनिश्चित करने में जुटे थे कि फैज किसी तरह बाजवा के उत्तराधिकारी बन जाए, जबकि यदि सेना प्रमुख नवंबर में निर्धारित समय पर रिटायर हों तो भी फैज उनकी जगह लेने वाले अधिकारियों के वरीयता क्रम में चौथे नंबर आते हैं. इमरान की कोशिशों ने ही अंततः उस संकट की शुरुआत की जिसके कारण उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से बेदखल होना पड़ा. और फरहत 90,000 डॉलर का हैंडबैग दिखाते हुए पंजाब सरकार के एक जेट से संयुक्त अरब अमीरात भाग गईं.


यह भी पढ़ेंः तीस्ता मसले पर शेख हसीना की बेताबी नजर आती है लेकिन मोदी राष्ट्रीय हितों को आंकने पर फोकस कर रहे हैं


उत्तराधिकार की लड़ाई

पिछले हफ्ते, सरकार पर हमला बोलते हुए इमरान खान ने कहा था कि वह अगले सेना प्रमुख के तौर पर एक भ्रष्ट वफादार को नियुक्त करना चाहती है, जिसने सेना को एक तीखा बयान जारी करने पर बाध्य किया कि पूर्व प्रधानमंत्री ‘पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ नेतृत्व को बदनाम और कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं.’ हालांकि, इमरान खान के प्रशंसकों की बड़ी संख्या ने सैन्य प्रतिष्ठान के भीतर यह आशंका पैदा कर दी है कि अगर उन्हें घेरने की कोशिश की गई तो अराजकता फैल सकती है, और इस डर को पूर्व प्रधानमंत्री ने जमकर भुनाया भी है.

अतीत गवाह है कि पाकिस्तानी सेना की अवहेलना करने वाले नेताओं को अक्सर जेल, निर्वासन या फांसी की सजा जैसा अंजाम भुगतना पड़ा है. लेकिन इमरान खान के किसी भी तरह के प्रतिशोध की कार्रवाई से बच जाने को लेकर कई लोगों का अनुमान है कि उन्हें सेना के भीतर समर्थन हासिल है.

माना जा रहा है कि पीएमएल-एन के कुछ नेता आसिम की नियुक्ति पर जोर दे रहे हैं, लेकिन बाजवा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनका सेवानिवृत्त होना तय है. इसके अलावा, 2020 में पारित कानून, यह निर्धारित करता है कि सेना प्रमुख 2024 तक सेवाएं दे सकते हैं जो तकनीकी तौर पर बाजवा को अधिक समय तक पद पर बने रहने की अनुमति देता है.

एक सम्मानित सैन्य पेशेवर लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा, जिन्होंने काफी कम उम्र में ही अपने माता-पिता दोनों को गंवा देने के बाद एक संघर्षपूर्ण जीवन जिया, नवंबर में बाजवा के रिटायर होने पर उनकी जगह लेने वाले अधिकारियों में सबसे वरिष्ठ होंगे. वरीयता क्रम में इसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास और नौमान महमूद राजा आते हैं, इसके बाद ही विवादास्पद फैज का नंबर आता है.

बहरहाल, जो कोई भी बाजवा की जगह कार्यभार संभालता है, उसके सामने एक बड़ी चुनौती होगी. अगले सेना प्रमुख को सेना का वर्चस्व बनाए रखने के लिए राजनीतिक अराजकता का जोखिम उठाना होगा, या फिर संस्थान के प्रभुत्व को गिरवी रख देना पड़ेगा.

देश की नींव पड़ने के बाद से ही ये तय करना पाकिस्तानी सेना के अख्तियार में रहा है कि उसका भाग्य कौन तय करेगा, जिसने उसे निर्वाचित नेतृत्व से ज्यादा ताकतवर संस्था बना दिया. जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक, परवेज मुशर्रफ, वाहिद काकर और खुद बाजवा इस बात का सबूत हैं कि जब भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में सैन्य वर्चस्व का मुद्दा उठा राजनीतिक विश्वसनीयता के लिए चुने गए अफसरों ने अपने आकाओं की सत्ता पलटते देर नहीं लगाई.

इमरान ने दिखा दिया है कि लोकलुभावनवाद—और भ्रष्टाचार—का सहारा लेकर पाकिस्तान की सर्वशक्तिमान संस्था को कमजोर किया जा सकता है. शायद यही वजह है कि उन्होंने इस सप्ताह पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘किसी और महंगी चीज पर बात कीजिए, हीरे तो सस्ती चीज हैं.’

(लेखक दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः कैसे लाहौर में खुलेआम घूम रहे पंजाब के मोस्टवांटेड आतंकी, कुछ तो फेसबुक पर भी आ जाते हैं नजर


 

share & View comments