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Wednesday, 6 November, 2024
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मालदीव के विदेश मंत्री बोले- भारत हमारा पहला और सबसे करीबी दोस्त, लेकिन चीन भी हमारा पार्टनर

अब्दुल्ला शाहिद, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष भी हैं, कहते हैं कि मालदीव में 'इंडिया आउट' अभियान एक ऐसे विपक्ष द्वारा चलाया जा रहा है, जिसका कोई विकास का एजेंडा नहीं है.

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नई दिल्ली: मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद का कहना है कि 1988 के ऑपरेशन कैक्टस से लेकर 2020 की कोविड महामारी तक, मालदीव ने हमेशा भारत को अपना ‘पहला और सबसे करीबी’ दोस्त पाया है.

हालांकि, शाहिद ने दिप्रिंट को एक विशेष साक्षात्कार में बताया कि माले चीन के साथ काम करना जारी रखेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि मालदीव में भारत विरोधी अभियान उन विपक्षी सदस्यों द्वारा चलाया जा रहा है जिनके पास ‘विकास का कोई एजेंडा नहीं है’.

शाहिद, जो यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली (संयुक्त राष्ट्र महासभा) के अध्यक्ष भी हैं, ने आगे कहा कि इस वैश्विक निकाय को विश्व स्तर पर हो रहे भू-राजनीतिक परिवर्तनों को ‘प्रतिबिंबित’ करना होगा, जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अधिक समावेशी होने की आवश्यकता है.

शाहिद ने नई दिल्ली की अपनी हाल ही में समाप्त हुई यात्रा के दौरान कहा, ‘मालदीव और भारत के बीच साझेदारी आपसी विश्वास और निकटता की पारस्परिक मान्यता तथा हमारे दोनों देशों के बीच जो आत्मीयता है, उस पर आधारित है और 2018 से राष्ट्रपति [इब्राहिम मोहम्मद] सोलिह के समयकाल (सत्ता में आने के बाद) के दौरान ये संबंध पूरी तरह से फले-फूले हैं.’

राष्ट्रपति सोलिह, जो पिछले महीने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए भारत आये थे, को साल 2023 में चुनाव का सामना करना है. हमारा यह पड़ोसी देश फ़िलहाल सोलिह और उनकी पार्टी के सहयोगी, मालदीव के स्पीकर मोहम्मद नशीद जो खुद एक पूर्व राष्ट्रपति हैं, के बीच खींचतान का सामना कर रहा है.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 17 नवंबर 2018 को माले में आयोजित सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे, और उसके एक महीने बाद ही सोलिह भारत की यात्रा पर आये थे. मोदी ने अगले साल जून 2002 में एक बार फिर से मालदीव का दौरा किया थे और यह 2019 में उनके फिर से चुने जाने के बाद पहली विदेश यात्रा थी.

शाहिद ने कहा ‘हमारे दोनों नेता एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. हम देख रहे हैं कि भारत-मालदीव के संबंध और अधिक मजबूत होते जा रहे हैं.’

मालदीव के विदेश मंत्री ने कहा, ‘भारत मालदीव की समस्याओं और वहां आने वाली आपात स्थितियों पर विचार करने और जब भी जरूरत पड़ी तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए आगे आने वाला पहला देश रहा है. प्राकृतिक रूप से, यह पहला देश है जो ऐसा कर सकता है, और इसने हमेशा खुद को साबित किया है.’

‘ऑपरेशन कैक्टस’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमें अभी भी 3 नवंबर 1988 (की घटना) याद है जब मालदीव पर भाड़े के सैनिकों और आतंकवादियों के एक समूह द्वारा सशस्त्र हमला किया गया था. हमें भारत की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया मिली जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा भी समर्थित थी.’

मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम द्वारा तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी से विद्रोही सुरक्षा बलों द्वारा किये गए तख्तापलट को विफल करने के लिए सैन्य सहायता मांगे जाने के बाद शुरू किये गए ‘ऑपरेशन कैक्टस’ के तहत भारतीय सैनिकों ने आगरा से माले के लिए उड़ान भरी.

शाहिद ने कहा, ‘साल 2004 में आई भयंकर सुनामी के दौरान भी भारतीय जहाज तुरंत आवश्यक उत्पादों के साथ भारतीय बंदरगाहों से मालदीव के लिए रवाना हुए. 2015 में माले में उत्पन्न जल संकट के दौरान भारत ने फिर हमारी मदद की. इसके बाद कोविड की महामारी के दौरान, टीकों की आपूर्ति से लेकर बाहर फंसे छात्रों को निकालने तक, भारत ने हमेशा हमारी मदद की है.’

उन्होंने कहा, ‘भारत ने मालदीव को हमेशा जिस तरह की मदद दी है, उसे हमारे लोग कभी नहीं भूलेंगे. इसलिए हम इस खास रिश्ते को कभी नहीं भूलेंगे.’


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चीन और अन्य देशों के साथ काम करना

शाहिद के अनुसार, हालांकि भारत हमेशा मालदीव का ‘पहला और सबसे करीबी दोस्त’ बना रहेगा, जो दशकों से उसकी ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति में परिणत हुआ है, मालदीव के चीन के साथ भी सौहार्दपूर्ण और कामकाजी संबंध बने रहेंगे.

शाहिद ने कहा, ‘साथ ही, हम चीन और कई अन्य देशों सहित उन सभी के साथ काम करना जारी रखेंगे, जो उनकी सहायता और सहयोग के मामले में बहुत उदार रहे हैं.’

मालदीव में वहां के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, जो राजनीति में वापसी करने और अगले साल के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं, द्वारा प्रचारित ‘इंडिया आउट‘ अभियान में अचानक से तेजी देखी जा रही है.

माना जा रहा है कि यामीन इस अभियान को चीन के समर्थन के साथ अंजाम दे रहे हैं. 2013 से 2018 तक यामीन के शासनकाल के दौरान मालदीव ने पूरी तरह से चीन की ओर रुख कर लिया था और उससे भारी कर्ज भी ले लिया था.

शाहिद ने जोर देकर कहा, ‘यह [इंडिया आउट अभियान] विपक्षी लोगों के एक ऐसे समूह द्वारा किया गया है, जिनके पास हमारे सबसे करीबी दोस्त और पड़ोसी के खिलाफ उन्माद पैदा करने के अलावा विकास का कोई एजेंडा नहीं है.’

उन्होंने कहा,’यह उन लोगों का समूह है जिनके पास लोगों को देने के लिए कुछ नहीं है. इसलिए, उन्हें किसी-न-किसी मुद्दे के साथ सामने आना होगा.’ साथ ही, उनका कहना था कि राष्ट्रपति सोलिह ‘फिर से निर्वाचित होने जा रहे हैं और मालदीव के लोगों को उनके उत्कृष्ट नेतृत्व के तहत किया गया अच्छे काम का लाभ प्राप्त हुआ है.’

फरवरी 2021 में मालदीव और भारत द्वारा एक सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उस साल ‘इंडिया आउट’ अभियान को अधिक गति मिली थी.

‘यूएन को बदलाव दर्शाना होगा’

शाहिद, जिनका यूएनजीए अध्यक्ष के रूप में एक साल का कार्यकाल सितंबर में समाप्त होगा, ने कहा कि उनकी अध्यक्षता ऐसे समय में हुई है जब सारी दुनिया कोविड महामारी, तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता के अधिग्रहण और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ‘मौत, तबाही और निराशा’का मंजर देख रही थी.

उन्होंने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से संयुक्त राष्ट्र में कूटनीति को वापस लाने में सक्षम रहा हूं … लेकिन जैसे-जैसे अधिक से अधिक संख्या में संघर्ष होते जा रहें हैं, यह बहुपक्षवाद (मल्टीलैटरालिस्म) को मजबूत करने, बहुपक्षवाद में विश्वास बढ़ाने और बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता को बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है.’

शाहिद ने इस बात पर भी रौशनी डाली कि संयुक्त राष्ट्र को इस बहुपक्षीय संस्था की स्थापना के बाद से दुनिया में आये ‘परिवर्तनों को प्रतिबिंबित’ करना होगा. उन्होंने कहा, ‘अगर संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बने रहना है तो ऐसा करना जरूरी है.’

(इस खबर को अंग्रेजी  में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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