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Saturday, 20 April, 2024
होमदेशशहर, ब्रह्मपुत्र और कला के बीच सेतु बना गुवाहाटी का हेरिटेज सेंटर नई कल्चरल एनर्जी को बढ़ावा दे रहा

शहर, ब्रह्मपुत्र और कला के बीच सेतु बना गुवाहाटी का हेरिटेज सेंटर नई कल्चरल एनर्जी को बढ़ावा दे रहा

गुवाहाटी हेरिटेज सेंटर को पहले प्रतिष्ठित ‘डीसी बंगले’ के नाम से जाना जाता था. समकालीन कला और सांस्कृतिक स्थल के तौर पर यह सेंटर पुराने और अकादमिक असम स्टेट म्यूजियम की तुलना में एक अलग ही महत्व रखता है.

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गुवाहाटी: असम के समकालीन कलाकारों की हर माह लग रही प्रदर्शनियों से लेकर बांग्लादेशी फिल्म समारोह के आयोजन तक—महाबाहु ब्रह्मपुत्र रिवर हेरिटेज सेंटर गुवाहाटी का नया सांस्कृतिक केंद्र बनकर उभरा है.

गुवाहाटी में 19वीं सदी के प्रतिष्ठित ‘डीसी बंगले’ के तौर पर पहचाना जाने वाला ये हेरिटेज सेंटर, जो पिछले अक्टूबर में खुला था, ब्रह्मपुत्र नदी के तट को शहर के व्यस्त पान बाजार क्षेत्र से अलग करने वाली एक पहाड़ी पर स्थित है. इसके इस खास जगह पर होने से सार्वजनिक स्थलों पर शहर की नई और पुरानी सोच के बीच एक तालमेल बना है.

सेंटर बनने से पहले गुवाहाटी का समकालीन कला के साथ नाता कहीं नदारद हो चुका था. भव्य पुराना असम स्टेट म्यूजियम बस प्राचीनता और गहन विद्वता की पहचान बनकर रह गया था. अब, पहली बार नील पवन बरुआ, पुलक गोगोई, और चंपक बारबरा जैसे कलाकारों की पेंटिंग्स को प्रदर्शनी के लिए एक नया ठिकाना मिला है, हालांकि यह अस्थायी ही है.

राज्य के इतिहास को डॉक्यूमेंटेशन के जरिये सहेजने में जुटी वेबसाइट विंटेज असम के अविनीबेश शर्मा ने कहा, ‘ये सेंटर कभी निषिद्ध रहे डीसी बंगले जैसी जगह को लोकतांत्रिक तरीके से खोल रहा है; लोग बिना किसी अनुमति के पहाड़ी पर जा सकते हैं और ब्रह्मपुत्र को निहार सकते हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘यह जगह अड्डेबाजी, मित्रमंडली के जमघट के साथ एक बेहद सक्रिय सांस्कृतिक स्थल बनती जा रही है.’


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गुवाहाटी के सौंदर्यीकरण में अग्रणी

महाबाहु ब्रह्मपुत्र रिवर हेरिटेज सेंटर को कई नामों से जाना जाता रहा है, जैसे डीसी बंगला, बेंटिक का बंगला और बुर्रा साहिब बंगला आदि.

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लेकिन अंग्रेजों की तरफ से ‘द यूरोपियन वार्ड’ के नाम से ख्यात शहर के पान बाजार, फैंसी बाजार और उजान क्षेत्रों में ‘असम टाइप बंगलों’ का निर्माण किए जाने से काफी पहले यह जगह और पहाड़ी अहोमों के लिए रणनीतिक तौर पर काफी अहम होती थी.

अहोम जनरल लचित बोरफुकन के नाम पर इस पहाड़ी का नाम बोरफुकन टीला रखा गया था, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ सरायघाट की लड़ाई (1671) के दौरान इसी जगह पर तोपें लगाईं थीं.

दीपांकर बनर्जी ने 2004 में आई अपनी किताब हेरिटेज गुवाहाटी में लिखा है, ‘यह एक स्कॉटिश-टाइप का बंगला था… जिसमें बॉल डांस पार्टी के आयोजन के लिए पर्याप्त जगह थी.’

2012 में गुवाहाटी मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) ने बंगले की मरम्मत का प्रोजेक्ट शुरू किया. असम सरकार ब्रह्मपुत्र रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के एक हिस्से के तौर पर छह किलोमीटर के रिवरफ्रंट खंड का सौंदर्यीकरण कर रही है. जीएमडीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कौसर हिलाली कहते हैं, ‘यह एक छोटा-सा घर था. जब मैंने पिछले साल कामकाज संभाला, तो इसकी सूरत बदलने के लिए मुझे सिर्फ तीन माह का समय दिया गया था.’

उन्होंने कहा, ‘(हमने सोचा था कि) यह अनिवार्य रूप से एक ऐसी जगह होगी जहां लोग आएंगे और औपनिवेशिक ढांचे को देखेंगे, और वहां पर पर्यटन का लुत्फ उठाने और नदी तक सैर करने के लिए खुली जगह भी होगी.’ हिलाली ने पिछले साल जुलाई से अक्टूबर के बीच हेरिटेज सेंटर तैयार करने के लिए इंजीनियरों, कलाकारों, मूर्तिकारों और क्यूरेटर्स की एक टीम का नेतृत्व किया था.

अंतत: इस हेरिटेज सेंटर का उद्घाटन 3 अक्टूबर 2021 को हुआ.

और फिर अखबारों की सुर्खियां कुछ इस तरह रहीं—‘150 सालों के बाद गुवाहाटी का ब्रिटिश-कालीन डीसी बंगला अब एक हेरिटेज सेंटर बना (हिंदुस्तान टाइम्स), ब्रह्मपुत्र नदी से पास स्थित ब्रिटिश-कालीन बंगला असम के जीवन और संस्कृति की पहचान बना (डेक्कन हेराल्ड) और अहोम शासकों की विरासत रहा बंगला पर्यटन केंद्र में तब्दील (द टाइम्स ऑफ इंडिया).

असमिया अभिनेता कपिल बोरा कहते हैं, ‘गुवाहाटी में इसका हमेशा से ही एक खास स्थान रहा है.

हेरिटेज सेंटर में सप्ताह के बाकी दिनों में लगभग 600 से 800 आगंतुक आते हैं. सप्ताहांत पर यह आंकड़ा 1,500 तक पहुंच जाता है.

हेरिटेज सेंटर की सफलता के बारे में पूछे जाने पर, हिलाली कहते हैं, ‘पिछले साल अक्टूबर में खुलने के बाद से हमने लगभग 1.5 करोड़ रुपये कमाए हैं, जो लगभग 16 से 18 लाख रुपये प्रति माह है. यह एक बड़ी उपलब्धि है.’


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अकादमिक बंधन तोड़ रहा

हेरिटेज सेंटर की लॉबी में पेंटिंग एक्जीबिशन की व्यवस्था है. जुलाई में यहां गुवाहाटी के प्रसिद्ध चित्रकार नील पवन बरुआ की पेंटिंग प्रदर्शित की गईं. बरुआ की प्रदर्शनी में शानदार फ्रेम में मार्डनिटी और नेचर के बीच तालमेल के साथ उकेरे गए अमूर्त चित्र शामिल थे.

‘आर्ट गैलरी’ लॉबी से आगे बढ़कर आगंतुक सेंट्रल हॉल में प्रवेश करते हैं जहां आर्टिस्ट ज्योति शंकर भट्टाचार्य की कलाकृति ‘लाइफ अलॉन्ग द रिवर’ को प्रदर्शित किया गया है. इसमें मछली पकड़ने के उपकरणों जैसी वॉल हैंगिंग के अलावा छत पर टांगी गई एक नाव भी शामिल है.

The Art Gallery featuring the works of contemporary artists | Angana Chakrabarti/ThePrint
समकालीन कलाकारों के काम को दिखाती आर्ट गैलरी । अंगना चक्रबर्ती । दिप्रिंट

इस सबमें नदी ही केंद्रीय विषय बनी हुई है, और यहां तक कि बगल के ‘व्यूइंग रूम’ में ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे समुदायों द्वारा बनाए जाने वाले कपड़े रखे गए हैं.

‘व्यूइंग रूम’ को क्यूरेट करने वाली फैशन डिजाइनर इशिता दास कहती हैं, ‘हमने मोटिफ्स के साथ काफी ज्यादा काम करना शुरू किया और ये सारे पीस एकत्र किए…(हम दिखाना चाहते थे कि कैसे) ब्रह्मपुत्र इतनी महत्वपूर्ण नदी है और ये समुदाय उसके आसपास रहते हैं.’

इसके बाद लाइब्रेरी हॉल में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षणों की पुरानी तस्वीरों का संग्रह है जिसे क्यूरेट किया है अविनिबेश शर्मा ने.

प्रोजेक्ट में शामिल एक कलात्मक सलाहकार शाहनाब आलम के शब्दों में इस सबसे ऊपर आता है एक गैर-लाभकारी संगठन ब्रह्मपुत्र सांस्कृतिक फाउंडेशन की शिल्पिका बोरदोलोई द्वारा क्यूरेट किया गया संगीत वाद्ययंत्रों का संग्रह. इसका उद्देश्य ‘पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं, प्रथाओं को संरक्षित करना और बढ़ावा देना है.’

औपनिवेशिक, उत्तर-औपनिवेशिक और आधुनिक काल की सांस्कृतिक कलाकृतियों के साथ यह सेंटर कल्चरल कन्वर्सेशन को एक अलग ही आयाम देता है.

आलम कहते हैं, ‘यही तय किया गया था कि इसे संग्रहालय जैसा नहीं बनाना है. एक संग्रहालय बनाना बहुत ही गंभीर काम है; इसके लिए सालों के शोध की जरूरत होती है. यह सांस्कृतिक विरासत को कलात्मक तरीके से दिखाने की एक कोशिश है.’

असम का इतिहास दर्शाने के बावजूद हेरिटेज सेंटर असम स्टेट म्यूजियम से बिल्कुल अलग है, जो यहां से मात्र 1.5 किलोमीटर दूर है.

तीन मंजिले राज्य संग्रहालय में कई कमरें हैं जहां 700 ईसवी से ‘असम के ग्रामीण जीवन’ का चित्रण करने वाली कई ऐतिहासिक कलाकृतियों को सहेजा गया है.

बोरा कहते हैं, ‘राज्य संग्रहालय एकदम अकादमिक है, जहां जाकर आप अध्ययन के लिहाज से हर चीज जान सकते हैं. केंद्र में भी इस तरह की चीजें हैं, लेकिन उन्हें उतनी गहराई से प्रदर्शित नहीं किया गया है. पारंपरिक चीजें, तस्वीरें और किताबें हैं, लेकिन उतनी ज्यादा नहीं. लेकिन जो कुछ भी है, इतिहास को यहां संरक्षित किया गया है, जो सबसे महत्वपूर्ण बात है.’


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‘संग्रहालय जैसा नहीं’

हेरिटेज सेंटर के चारों ओर घूमने-फिरने की जगह है, जिसके कुछ हिस्से को बच्चों के खेलने की जगह बना दिया गया है, जिसमें जमीन पर एक आदमकद चेसबोर्ड, एक सांप-सीढ़ी का बोर्ड और हेंसल और ग्रेटेल-शैली के छोटे घर बने हैं. यहां आने वाले लोग नदी के किनारे पर सूर्यास्त का शानदार नजारा भी देख सकते हैं.

A view of the Brahmaputra outside Heritage Center | Angana Chakrabarti/ThePrint
हेरिटेज सेंटर के बाहर ब्रह्मपुत्र नदी का व्यू । अंगना चक्रबर्ती । दिप्रिंट

इस सेंटर ने एक तरह से नदी के साथ शहर के रिश्ते को फिर मजबूत कर दिया है. बोरा कहते हैं, ‘वैसे तो नदी हमारे लिए शहर के हर नुक्कड़ हर कोने पर उपलब्ध है; लोग जा सकते हैं और नदी की सैर कर सकते हैं. लेकिन बंगलों से घिरे इस परिसर की बात कुछ अलग ही है.’

लंबे समय से गुवाहाटी में रहीं तृषा जालान का कहना है कि सेंटर निश्चित तौर पर नदी तक आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करता है. वह कहती हैं, ‘फैंसी बाजार में नदी के किनारे एक सैरगाह बननी थी लेकिन अब इसकी कोई जरूरत नहीं लगती. फिर आपके पास देखने के लिए श्रद्धांजलि कानन, बेलेव्यू हिल और नेहरू पार्क (जो पिछले कुछ समय से बंद है) जैसी जगहें हैं. लेकिन वास्तव में इस सेंटर के जैसा कोई अन्य सार्वजनिक स्थल नहीं है जो आपको नदी का शानदार नजारा दिखाता हो. हालांकि, इसमें प्रवेश करने के लिए आपको 100 रुपये खर्च करने पड़ते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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