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Wednesday, 20 November, 2024
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लिकर-गेट, शराब राज, ऑपरेशन लूटस- टीवी न्यूज का असली मजा तो मौजूदा रेड राज में है

भाजपा और उसके विरोधी दलों के बीच चूहे-बिल्ली के खेल ने दोनों ही पक्षों को हास्यापद स्थिति में ला दिया है. इन सबके बीच मुस्कराने का मौका तो सिर्फ टीवी न्यूज को ही मिल रहा है.

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द विनर टेक्स इट ऑल/द लूजर्स स्टैंडिंग स्मॉल, यानी जीतने वाले का सब गुणगान करते हैं और हारने वाला खाली हाथ रह जाता है—यह गाना एबीबीए ने 1980 के दशक में कभी गाया था. लेकिन मौजूदा रेड राज में आखिर विजेता कौन है? क्या यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी है, या फिर जांच और छापों का सामना कर रहे आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दल?

ना, इनमें से कोई नहीं—अगर कोई विजेता है भी तो वो है टेलीविजन न्यूज.

यह बात तो ठीक है कि आप को भरपूर टीवी न्यूज कवरेज मिल रहा है, जो अन्य क्षेत्रीय दलों के मुकाबले उसके पब्लिक प्रोफाइल को थोड़ा ऊपर कर देता, लेकिन इस पर लगे आरोपों का पूरी तरह जवाब न मिलना, इसकी विश्वसनीयता पर सवाल भी उठाता है. वहीं भाजपा, खासकर टीवी पर, भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी तत्परता से काम करती तो दिखती है लेकिन हर कोई ये जानना चाहता है कि वह सिर्फ किसी राज्य में शासन कर रहे विपक्षी दलों के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों करती है? यह ‘प्रतिशोध की राजनीति’ के विपक्ष के दावे को बल देता है.

इस बीच, टेलीविजन न्यूज भाजपा बनाम अन्य की इस स्थिति का भरपूर मजा लेने के लिए रोमांचित है.

एक तरफ राजनीतिक दल जहां सबके लिए बिना पैसे का तमाशा बने हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम—जो न्यूज चैनलों के साथ-साथ पूरे भारतीय मीडिया के लिए काफी मायने रखता है—को नजरअंदाज कर दिया गया…और वो है अडानी समूह की तरफ से कथित दुर्भावना के साथ एनडीटीवी के अधिग्रहण का मामला, जिसका खुलासा मंगलवार को हुआ. इसके अलावा, ध्यान देने वाली बात यह भी है कि एनडीटीवी और इंडिया टुडे के अलावा तमाम न्यूज चैनलों ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों को आम माफी की खबर को भी शायद ही थोड़ा-बहुत समय दिया हो.

बॉल तो न्यूज चैनलों के पाले में है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 15 अगस्त के भाषण में वादा किया था कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ निडर होकर कार्रवाई करते रहेंगे और उनके इस वादे पर अमल उस समय शुरू हुआ, जब हममें से तमाम लोग सोकर भी नहीं उठे होंगे.

बुधवार सुबह कुछ लोग सुबह की चाय की चुस्की ले ही पाए होंगे कि इंडिया टीवी की एक खबर ने चौंकाया—उसने बताया कि ‘सुबह 7 बजे से ही छापेमारी जारी है.’ फिर सुर्खियों में आई ‘चार राजद नेताओं के खिलाफ छापे’ वाली रिपब्लिक टीवी की खबर से नींद पूरी तरह खुल भी नहीं पाई थी कि चीखते स्वर के साथ टाइम्स नाउ पर चल रही हेडलाइन ‘सीबीआई ने नीतीश-तेजस्वी की पार्टी खराब की’ पूरी तरह झकझोरकर नींद भगा देने के लिए काफी थी.

स्क्रीन पर नजर पड़ी तो देखा राजद एमएलसी सुनील सिंह की पत्नी अपने घर की बालकनी पर खड़ी होकर बुरी तरह चीख रही थी, हो सकता है कि दिन की पहली चाय पी रहे कुछ लोगों ने अपनी जुबान भी जला ली हो. टाइम्स नाउ नवभारत ने बताया—फ्लोर टेस्ट से पहले सीबीआई ईडी का ‘टेस्ट’ (स्वाद चखा).


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आगे देखने-सुनने के लिए और भी बहुत कुछ था—रिपब्लिक टीवी ने बताया, ‘एनआईए ने कच्छ ड्रग्स केस में छापे मारे, बड़े सोशलाइट्स शामिल.’ अब, अगर ऐसी खबर के बाद भी आप बिस्तर नहीं छोड़ पाते तो फिर कुछ नहीं हो सकता.

ठीक एक हफ्ते पहले हमने दिल्ली में भी ऐसे नजारे देखे थे जब सीबीआई ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर की 15 घंटे तक तलाशी ली (क्या यह किसी एक दिन में तलाशी का रिकॉर्ड है?). तबसे, टीवी न्यूज चैनल लगातार ताजा ब्लॉकबस्टर चला रहे हैं, जिसमें मनीष सिसोदिया के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुख्य भूमिका में हैं और बतौर सहायक आप नेता संजय सिंह, सौरभ भारद्वाज, राघव चड्ढा और आतिशी भी छाए हुए हैं. दूसरी तरफ, उनका मुकाबला करने के लिए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ भाजपा सदस्य गौरव भाटिया, शहजाद पूनावाला, मनोज तिवारी, सुधांशु त्रिवेदी, कपिल मिश्रा और मनजिंदर सिंह सिरसा हैं.

आखिर यह सारा हंगामा किस बात का है? ओह, तो यही वो सब है जिसमें सबमें न्यूज चैनलों की मौज हो गई है. दिल्ली सरकार की ‘आबकारी नीति’ को लेकर जारी जांच जहां किसी के लिए ‘राजनीतिक मुकाबला’ (टाइम्स नाउ) थी, वहीं किसी के लिए आप सरकार के ‘शराब राज’ (आज तक ने अनुराग ठाकुर के हवाले से चलाया) में यह ‘दारू-गेट’ (इंडिया टुडे) बन गई.

कथित घोटाले को लेकर न्यूज चैनलों में दिनभर प्रतिस्पर्धा चली की और फिर प्राइम टाइम में दिल्ली के ‘लिकर गेट’ (सीएनएन न्यूज 18) पर चर्चा के दौरान सारे तर्क-कुतर्क सामने रखे जाने लगे.

इसके बाद, न्यूज चैनलों ने शांति से बैठकर भाजपा और आप नेताओं के बीच जुबानी जंग का जमकर लुत्फ उठाया, जो काफी लंबी चली. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से मुकाबले के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस, बहस और सार्वजनिक स्तर पर उपस्थिति का कोई भी मौका नहीं छोड़ा.

हमें ये सब दोहराने की तो जरूरत नहीं कि दोनों ने एक-दूसरे के बारे में क्या-क्या बातें कहीं क्योंकि आपने ऐसे तमाम विवादास्पद बयान खुद ही सुन रखे होंगे—केजरीवाल के सिसोदिया को भारत रत्न मिलना चाहिए वाले बयान और सिसोदिया के भाजपा की तरफ से संपर्क साधे जाने के दावे से लेकर भाजपा की तरफ से केजरीवाल और सिसोदिया को ‘सबसे भ्रष्ट नेता बताए जाने तक और फिर छापों को आप की तरफ से ‘नौटंकी’ और भाजपा की तरफ से ‘घोटाला’ बताने तक. ‘परेशन लोटस’ से लेकर ‘ऑपरेशन लूट्स’ तक एक-दूसरे पर दोनों पक्षों के हमले बंद नहीं हुए हैं.

आप की रणनीति में भटकाव

शुरुआत में तो आप ही फायदे में नजर आई, दरअसल सिसोदिया की अब तक एक अच्छी, ‘साफ-सुथरी’ सार्वजनिक छवि रही है, इसलिए उनके घर पर सीबीआई का छापा ‘राजनीतिक’ प्रतीत हुआ.

शुक्रवार को पूरे दिन नॉन-स्टॉप कवरेज ने 15 घंटे चले इस छापे को कुछ और भी ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया. रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर ने दावा किया, ‘कागजात बरामद कर लिए गए हैं.’ ओह—यह सब तो ठीक है.

बहरहाल, ऐसा लगता है कि न्यूज चैनल अरविंद केजरीवाल/आप को जितना पसंद करते हैं, उस तरह से उन्हें अन्य विपक्षी दलों और नीतीश कुमार (जेडीयू), ममता बनर्जी (टीएमसी), एम.के. स्टालिन (डीएमके), के. चंद्रशेखर राव (टीआरएस) और कांग्रेस के अशोक गहलोत या भूपेश बघेल जैसे मुख्यमंत्रियों के नाम कुछ खास प्रिय नहीं हैं. हो सकता है दिल्ली में होने की वजह से केजरीवाल को न्यूज चैनलों में ज्यादा तरजीह मिलती हो? या फिर वह ज्यादा टेलीजेनिक हैं?

कारण चाहे जो भी हो, वे उनके सभी वीडियो बयानों को दिखाते हैं और वह जहां भी जाते हैं उनके पीछे-पीछे पहुंच जाते हैं. मसलन गत सोमवार को न्यूज चैनल उनके और सिसोदिया के पीछे गुजरात पहुंच गए—‘आप ने दिल्ली दंगल को मोदी के मैदान में पहुंचाया’ (एनडीटीवी 24×7)—और आप की प्रेस कॉन्फ्रेंस कवर करने के साथ टाउन हॉल बैठक के कुछ हिस्से भी दिखाए.

हालांकि, केजरीवाल और सिसोदिया सुर्खियों में छाए रहे और गोलपोस्ट बदलते रहे. भाजपा पर दिल्ली सरकार को कमजोर करने या उसे गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाने से लेकर यह दावा करने तक कि पूरा देश भाजपा से नाराज है—उनकी रणनीति में भटकाव नजर आया और शराब नीति को लेकर उठ रहे सवालों पर सीधे जवाब के अभाव में यह सब उसके लिए कोई अच्छा टेलीविजन पीआर नहीं साबित हुआ. यहां भाजपा मजबूत विकेट पर नजर आई. पारदर्शिता पर आप का जगजाहिर दावा कहां गया? इस सारे विवाद में टेलीविजन पर तो यह कतई नजर नहीं आया.

लेकिन पूरे प्रकरण में भाजपा भी किसी फायदे में नहीं रही है. और अक्सर टीवी न्यूज में ही नजर आ जाता है कि आम जनता के बीच संदेह की भावना बढ़ रही है कि राज्य दर राज्य पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक, सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय विपक्षी दलों को निशाना क्यों बनाते हैं—वह भी इस कदर खुले तौर पर कि सीबीआई ने बिहार में राजद सदस्यों पर छापेमारी के लिए ऐसा दिन चुना जब नई सरकार का फ्लोर टेस्ट होना था.

इस तरह, भाजपा और उसके विरोधी दलों के बीच जारी चूहे-बिल्ली के खेल ने कुल मिलाकर दोनों ही पक्षों को हास्यापद स्थिति में ला दिया है. ..और इन सबके बीच मुस्कराने का मौका तो सिर्फ टीवी न्यूज को ही मिल रहा है.

(लेखिका द्वारा व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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