पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) साल 2013 में भाजपा से अलग हो गए थे. इसके दो साल बाद ही उन्होंने बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने के लिए अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया था. फिर, जुलाई 2017 में, उन्होंने महागठबंधन से भी मुंह मोड़ लिया और भाजपा के पाले में वापस लौट आए और इसी वहज से गुस्से में लाल राजद प्रमुख लालू प्रसाद से उन्हें ‘पलटू राम’ का उपनाम दे डाला था.
पांच साल बाद, यानि कि 2022 में, नीतीश एक बार फिर से अपने गठबंधन सहयोगी भाजपा को झटका देते दिख रहे हैं.
बिहार की राजनीति के लिए मंगलवार का दिन अहम होने वाला है, क्योंकि जद(यू) और राजद दोनों ने फिर से एक साथ आने की अटकलों के बीच अपने-अपने विधायकों की बैठक बुलाई है.
जद(यू) के एक विधायक ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘(इस बैठक में) जद(यू) के विधायक पार्टी के पक्ष में कोई भी निर्णय लेने के लिए मुख्यमंत्री को अधिकृत करने जा रहे हैं.’
सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की राजद भी तेजस्वी यादव – जो फ़िलहाल बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं – के लिए भी ऐसा ही फैसला करने जा रही है.
बिहार की 242 सीटों वाली विधानसभा (एक सीट फ़िलहाल खाली है) में राजद के 79, भाजपा के 77 और जद(यू) के 45 विधायक हैं. फ़िलहाल एक निर्दलीय विधायक के अलावा विधानसभा में अपना प्रतिनिधित्व रखने वाले अन्य दलों में जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के 4 विधायक, कांग्रेस के पास 19, वाम दलों के 16 और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएएमएम के 1 विधायक है.
राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि अगर नीतीश कुमार भाजपा से अपने नाता तोड़ लेते हैं तो उनकी पार्टी उनका समर्थन करेगी.
हालांकि, जद(यू) के वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन को कोई खतरा नहीं है. वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में अपना जनता दरबार आयोजित करते हुए इन घटनाक्रमों पर कोई टिप्पणी नहीं की.
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‘डबल इंजन’ का निकल गया दम
रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार द्वारा आयोजित एक समारोह में उप-मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और भाजपा मंत्री मंगल पांडे के साथ मंच साझा किया.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता, जो अपना नाम नहीं उजागर करना चाहते थे, ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने उनके साथ साथ अभिवादन का आदान-प्रदान भी नहीं किया. नीतीश कुमार जब ‘ विथड्रॉल मोड’ में होते हैं, तो यह उनकी खास शैली होती है.
राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन किया। राज्य सरकार द्वारा हस्तकरघा उद्योग को बढ़ावा देने तथा बुनकरों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु अनेक कदम उठाए गए हैं। बिहार के अस्पतालों में बुनकरों द्वारा तैयार की गई सतरंगी चादर का इस्तेमाल किया जा रहा है। (1/4) pic.twitter.com/fD8WaTjFT8
— Nitish Kumar (@NitishKumar) August 7, 2022
(2/4) बुनकरों को 68 इंच के बडे़ फ्रेमलूम को खरीदने के लिए राज्य सरकार द्वारा 90 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इससे वस्त्र निर्माण और अधिक होगा, उसकी मांग बढ़ेगी और बुनकरों को इसका लाभ मिलेगा। बुनकरों को 10 हजार रू० की दर से कार्यशील पूंजी भी उपलब्ध कराई जा रही है। pic.twitter.com/auESg4QFpQ
— Nitish Kumar (@NitishKumar) August 7, 2022
(3/4) उनके द्वारा खपत की गई बिजली पर विद्युत अनुदान दिया जा रहा है. मलबरी सिल्क के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भी राज्य सरकार द्वारा सहायता दी गई. तसर सिल्क उत्पादन के लिए किसानों को तसर विकास योजना का लाभ दिया गया है. pic.twitter.com/kORh3Xyimg
— Nitish Kumar (@NitishKumar) August 7, 2022
उनके इन क्रियाकलापों से चिंतित होकर राज्य भाजपा के नेताओं ने रविवार देर शाम राज्य के वरिष्ठ मंत्री और जद(यू) नेता विजय कुमार चौधरी से मुलाकात की. लेकिन, जैसा कि एक अन्य भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘चौधरी ने ऐसे किसी भी घटनाक्रम के बारे में अनभिज्ञता व्यक्त की.’
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने पटना में आयोजित पार्टी की एक बैठक में बोलते हुए कहा था कि ‘भाजपा और जद(यू) 2024 में (लोकसभा) चुनाव एक साथ लड़ेंगे, नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.’
हालांकि, नीतीश कुमार ने इस बारे में चुप्पी साधे रखी है, मगर जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की रविवार शाम पटना में हुई पत्रकारों से मुलाक़ात (प्रेस मीट) में की गई टिप्पणी को भाजपा पर लक्षित एक तरह की चुटकी के रूप में देखा गया.
ललन सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह, जिन्होंने शनिवार को पार्टी द्वारा उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया मांगे जाने के बाद पार्टी की प्राथमिक सदस्य्ता से इस्तीफ़ा दे दिया था, के बयानों के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे.
इन आरोपों का जिक्र करते हुए कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख चिराग पासवान ने 2020 में भाजपा के साथ एक साजिश के तहत नीतीश की खुले तौर पर आलोचना करते हुए जद(यू) की सीटों वाले हिस्से में बड़ी सेंध लगाई थी, सिंह ने कहा, ‘जिस तरह से 2020 के विधानसभा चुनावों में ‘चिराग मॉड्यूल’ बनाया गया था, उसी तरह से एक नया ‘आरसीपी मॉड्यूल’ बनाने के लिए भी एक कदम उठाया गया था.’ हालांकि, भाजपा ने हमेशा से इस तरह के आरोप से इनकार किया है.
मुंगेर के लोकसभा सांसद ललन सिंह ने भाजपा-जद(यू) गठबंधन के भविष्य के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन कहा, ‘अब तक तो सब अच्छा ही है. हमने एनडीए के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान भी किया है.‘
ललन सिंह ने यह भी कहा कि जद(यू) केंद्रीय मंत्रिपरिषद का हिस्सा नहीं बनेगी. उन्होंने यह बयान इस बात पर जोर देते हुए दिया कि यह साल 2019 में नीतीश कुमार द्वारा लिया गया एक निर्णय था और पार्टी के सभी नेता इसका पालन करेंगे. उन्होंने इस बात का भी संकेत दिया कि जुलाई में केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देने वाले आरसीपी सिंह को भाजपा ने इस्पात मंत्री बनाया था.
मगर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की और ललन सिंह के इस तरह के आरोपों का खंडन किया. इस भाजपा नेता ने कहा ‘यह सरासर झूठ है. अमित शाह ने नीतीश कुमार से बात की थी और बिहार के मुख्यमंत्री ने अपनी मंजूरी भी दे दी थी.‘
इस भाजपा नेता ने यह भी कहा कि भाजपा और जदयू गठबंधन टूट की ओर बढ़ता दिख रहा है.
टूट की ओर बढ़ रहा है गठबंधन
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले कुछ दिनों में अपने क्रियाकलापों से भाजपा के साथ अलगाव की स्पष्ट भावना प्रदर्शित की है.
रविवार को, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग की बैठक में भी शामिल नहीं हुए, लेकिन वे पटना में कई कार्यक्रमों में भाग लेते देखे गए. इस संबंध में अभी तक मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.
इससे पहले, मुख्यमंत्री ने निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और निवर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के सम्मान में पीएम मोदी द्वारा आयोजित रात्रिभोज से दूर रहने के अपने फैसले से भी सुर्खियां बटोरीं थीं. उस समय सीएमओ ने कहा था कि नीतीश कुमार कोविड-19 से पीड़ित हैं.
इधर, राजद की कार्रवाइयों ने भी इन अटकलों को बल दिया है कि महागठबंधन को फिर से जीवित करने के प्रयास चल रहा है.
जद(यू) के पूर्व प्रवक्ता डॉ. अजय आलोक ने बताया कि पिछले 10 दिनों से राजद कई मुद्दों पर जद(यू) पर नरम रुख अपनाता दिख रहा है. इन मुद्दों में पिछले सप्ताह सारण जिले में अवैध शराब की वजह से हुई एक दर्जन लोगों की मौत और कथित बिहार लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र लीक मामले में पुलिस उपाधीक्षक रैंक के एक अधिकारी की गिरफ्तारी का मामला भी शामिल है.
राजद के एक विधायक ने उनका नाम गुप्त रखने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हमें नीतीश के खिलाफ नहीं बोलने के लिए कहा गया.’
इस सबसे नीतीश कुमार को क्या हासिल होगा?
नीतीश चाहे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बने रहें या महागठबंधन में वापसी करें, मुख्यमंत्री के पद पर उनके ही बने रहने की संभावना है. इससे यह सवाल पैदा होता है कि अब पाला बदलने से उन्हें क्या हासिल होगा?
राजनीतिक विश्लेषक एनके चौधरी कहते हैं, ‘नीतीश के लिए यह एक आत्मघाती कदम होगा. अगर वह फिर राजद के साथ गठबंधन करते हैं तो उनकी विश्वसनीयता कम होगी और उनकी अपनी ही पार्टी की ताकत पर अंकुश लगेगा. बिहार भाजपा के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो नीतीश को चुनौती दे सके. लेकिन राजद के पास तेजस्वी हैं, जिन्होंने 2020 के विधानसभा चुनावों में लगभग सफलता पा ही ली थी.’
उन्होंने कहा, ‘अगर नीतीश को भाजपा से दिक्कत हो रही है तो वह राजद के साथ जाकर कई गुना बढ़ जाएगी. किसी भी तरह से हो पर बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश का कार्यकाल 2025 में समाप्त हो ही जाएगा.‘
पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रमुख चौधरी ने कहा कि नीतीश को केवल एक चीज हासिल हो सकती है, वह है ‘दिल्ली शिफ्ट होने और राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने तथा साल 2025 से आगे राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने’ की उनकी इच्छा.
उन्होंने कहा, ‘यह तभी किया जा सकता है जब वह संप्रग (कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) में जाएं.’
इस बीच जदयू के पूर्व नेता आरसीपी सिंह, जो फिलहाल इस नए तूफान के केंद्र में हैं, ने कहा कि नीतीश कुमार पाला बदलने में काफी हद तक सक्षम हैं.
सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘लेकिन बार-बार पाला बदलने से उनकी विश्वसनीयता बुरी तरह से प्रभावित हुई है. इससे यह आभास होता है कि वह बिहार के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए राजनीति में हैं. इस बार, लोग और उनके अपने ही कार्यकर्ता उन्हें माफ नहीं करेंगे.’
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने साल 2005 और 2010 के बीच बिहार के लिए वाकई चमत्कार वाला काम किया था, लेकिन फिर कुछ महानुभावों ने उन्हें बताया कि ‘पीएम मैटेरिअल’ हैं और तब से उनके मामले में सब कुछ बिगड़ता चला गया.
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