scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशसपनों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, अभी तक मेरा मास्टरपीस आया नहीं है: राजपाल यादव

सपनों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, अभी तक मेरा मास्टरपीस आया नहीं है: राजपाल यादव

राजपाल यादव ने कहा कि जब से दुनिया बनी तब से हंसी का बोलबाला है क्योंकि हम सबको मुस्कुराहट के लिए लाफ्टर तो चाहिए ही. मैं मानता हूं कि कठिन रूपी जीवन जीने के लिए आर्ट एक लाइफ सपोर्टर है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा के जाने-माने हास्य कलाकार और अभिनेता राजपाल यादव ने बॉलीवुड में 25 साल पूरे होने पर कहा कि इस बीच हर तरह के सिनेमा का हिस्सा होने का एक पात्र के तौर पर मौका मिला.

दिप्रिंट से खास बातचीत में उन्होंने कहा, ’25 साल में एक सीन, दो सीन, चार सीन, गेस्ट अपीरिएंस, लीड, सपोर्टिंग, निगेटिव, कॉमिक हर तरह के सिनेमा का हिस्सा बनने का मौका मिला. जो भी अभी तक मिला है, बहुत खुश हूं उससे.’

यादव ने बताया कि जिंदगी में जो भी मिला उसमें कुछ चीज़ें अनुभव के तौर पर मिली तो कुछ चीज़ें कर्म कर के मिली हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने सफर को लर्निंग जर्नी मानता हूं जो कि अभी शुरू हुई है लेकिन कोशिश रहेगी कि आगे और भी गहराई वाली भूमिकाएं निभाऊं.’

राजपाल यादव का बॉलीवुड का सफर रामगोपाल वर्मा की 1999 की फिल्म शूल से हुई थी जिसमें उनकी एक छोटी सी भूमिका थी. अपनी शुरुआती फिल्म के बारे में उन्होंने बताया, ‘रामू जी जैसे डेरिंग डायरेक्टर बहुत कम होते हैं, जो प्रयोग करते हैं और अलग-अलग कार्नर्स पर जाकर चीज़ें लोगों के सामने पेश करते हैं.’

यादव ने बताया, ‘रामू जी ने एक नहीं दसों एक्टरों को मौका दिया. वे मेरी जिंदगी में ऐसे डॉयरेक्टर हैं जिन्होंने मुझे विलेन के तौर पर पेश किया, उन्हीं ने कॉमेडी कराई, लीड एक्टर का मौका दिया. उनके साथ लगभग 17-18 प्रोजेक्ट्स करने का मौका मिला है. उन्होंने मुझपर हर तरह के प्रयोग किए.’

राजपाल यादव की मैच ऑफ लाइफ फिल्म आने वाली है जिसमें मुख्य अभिनेता की शक्ल क्रिकेटर विराट कोहली से मिलती-जुलती है. उस कारण उसे दैनिक जीवन में किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है, इसे इस फिल्म में दिखाया गया है.


यह भी पढ़ें: जाति-विरोधी सिनेमा के लिए मिसाल मराठी फिल्म जयंती, मुख्य भूमिका में OBC, आंबेडकर और शिवाजी की किताबें


‘सपनों की फेहरिस्त बहुत लंबी है’

फिल्मों में क्या कॉमेडी का स्पेस कम होता जा रहा है, इस पर यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘कला जितनी बिखरती है, उतनी निखरती है. समय के अनुसार चाहे वो रोमांस हो, श्रृंगार हो, चाहे हंसी हो…रस जो है वो भाव के अनुसार बदलता रहता है और मुझे ऐसा लगता है कि देश-दुनिया का वातावरण जैसे बदल रहा है तो उसमें इंटरटेनमेंट भी अलग स्टेज लेता जा रहा है.’

यादव ने कहा, ‘जब से दुनिया बनी तब से हंसी का बोलबाला है क्योंकि हम सबको मुस्कुराहट के लिए लाफ्टर तो चाहिए ही. मैं मानता हूं कि कठिन रूपी जीवन जीने के लिए आर्ट एक लाइफ सपोर्टर है.’

यादव ने हाल ही में एक ट्वीट किया जिसमें लिखा था: ‘नींद कैसे आएगी, अभी सपने अधूरे हैं हमारे‘. 25 साल के लंबे और सफल फिल्मी सफर के बाद भी आखिर कौन से सपने अधूरे रह गए, इस पर यादव ने बताया, ‘अभी सपने हुए क्या हैं….मुझे लगता है कि 25 साल में जो मिला है उससे बहुत खुश हूं लेकिन सपनों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. सपने हमेशा अपने होते हैं, जो जीवन जीने के लिए प्रेरणा भी देते हैं, ताकत भी देते हैं. इसलिए अभी तो सपनों की शुरुआत हुई है.’


यह भी पढ़ें: संसाधनों की भव्य बर्बादी है रणबीर कपूर की ‘शमशेरा’


‘मास्टरपीस अभी आया नहीं…’

राजपाल यादव ने हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ‘अर्ध‘ फिल्म से शुरुआत की है. इसके बारे में उन्होंने बताया, ‘अर्ध जैसी फिल्में मेरे दिल के काफी करीब है. 750 करोड़ लोग अगर दुनिया में है तो 700 करोड़ अर्ध जैसे, शिवा-पार्वती जैसे लोगों के संघर्ष हैं.’ गौरतलब है कि अर्ध फिल्म में मुंबई में रहने वाले एक सामान्य परिवार के संघर्ष की कहानी है

उन्होंने कहा, ‘अर्ध जैसी फिल्म ने आत्मविश्वास दिया, जो हमारा सिनेमा को लेकर….जो हमने चार्ली चैपलिन के सिनेमा को समझा या जैकी चैन या जिम कैरी को समझा है….इसलिए कोशिश रहेगी कि जीवन का संदेश देने वाली फिल्में बनाऊं जिसमें खूब इंटरटेनमेंट भी हो.’

यादव ने हिंदी सहित कई भाषाओं में अब तक लगभग 200 के करीब फिल्में की हैं. ये पूछने पर कि क्या उन्होंने अब तक अपना मास्टरपीस बना लिया है, इस पर उन्होंने कहा, ‘उसकी तैयारी पिछले 5-6 साल से चल रही है. मुझे लगता है कि वो मास्टरपीस होगा, जो अभी आया नहीं है.’ उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि रात-दिन उसकी तैयारी कर रहा हूं और उम्मीद है कि अगले 2-3 साल में वो आ जाएगी, जो कि एक उपन्यास पर आधारित है.

उन्होंने बताया, ‘मास्टरपीस का मुझे भी बेसब्री से इंतजार है और लगातार कोशिश कर रहा हूं कि जो अभी पन्नों पर है वो चलचित्र में बदल जाए.’


यह भी पढ़ें: नेशनल फिल्म अवार्ड मिलने से डॉक्यूमेंट्री का मैसेज और लोगों तक पहुंचेगा: कामाख्या नारायण सिंह


 

share & View comments