नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को बढ़ती लागत और हितों की रक्षा करने में कथित विफलता को लेकर सेब किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है.
सेब उत्पादकों का शिमला जिले और किन्नौर, सोलन, मंडी व सिरमौर के कुछ हिस्सों में काफी राजनीतिक प्रभाव है. यहां राज्य के 70 फीसदी सेबों की खेती की जाती है और ये सभी जिले मिलकर हिमाचल में सेब बेल्ट बनाते हैं. 68 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 20 इन्हीं जगहों पर हैं. इसलिए भाजपा को चुनाव से पहले इन क्षेत्रों के लोगों की नाराजगी दूर करने की जरूरत है.
सेब उत्पादकों की शिकायत है कि पैकेजिंग कार्टन पर जीएसटी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी और उर्वरकों पर सब्सिडी न मिलने की वजह से व्यापार की इनपुट कीमत बढ़ गई है.
संयुक्त किसान मंच (एसकेएम) के बैनर तले 27 उत्पादक संघों ने पिछले महीने रोहड़ू, ठियोग, कोटखाई, नारकंडा, रामपुर, निरमंड, किन्नौर, मंडी और शिमला सहित कई जिलों में विरोध प्रदर्शन किया. इन संघों ने 5 अगस्त को शिमला में राज्य सचिवालय में बड़े आंदोलन की चेतावनी के अलावा अपनी मांगें पूरी नहीं होने पर चुनाव का बहिष्कार करने की भी धमकी दी है.
एसकेएम के संयोजक हरीश चौहान ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले तीन सालों में सेब की लागत दोगुनी हो गई है लेकिन आमदनी उतनी नहीं बढ़ी.’
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर इस तरह का विरोध चुनावी मौसम तक जारी रहता है, तो यह सेब बेल्ट में पार्टी की संभावनाओं को खतरे में डाल सकता है.’
राज्यव्यापी विरोध के मद्देनजर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 28 जुलाई को सेब उत्पादकों के साथ बैठक की. हिमाचल सरकार ने सेब उत्पादकों की कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए कुछ रियायतों की घोषणा भी की.
सरकारी दुकानों के जरिए उर्वरक उपलब्ध कराने की पुरानी प्रणाली की बहाली और जीएसटी में बढ़ोतरी के लिए सब्सिडी के साथ एक समिति के गठन की घोषणा की गई थी.
लेकिन जीएसटी बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग कर रहे उत्पादक इस कदम से खुश नहीं हैं. कोटखाई क्षेत्र के एक किसान और एसकेएम के पदाधिकारी संजय चौहान ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब तक समिति अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, तब तक सेब का मौसम खत्म हो चुका होगा. साथ ही पैनल में कृषक समुदाय का कोई प्रतिनिधि नहीं है. उसके सदस्यों का चयन सीएम ने किया है. ऐसा लगता है कि राज्य सरकार सेब उत्पादकों से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर नहीं है.
जीएसटी को लेकर घोषित सब्सिडी पर उन्होंने कहा कि ज्यादातर किसान पहले ही महंगी पैकेजिंग सामग्री खरीद चुके हैं.
हिमाचल प्रदेश में बागवानी निदेशक आरके प्रुथी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार ने किसानों की अधिकांश मांगों को स्वीकार कर लिया है. लेकिन कीमत कई कारकों से निर्धारित होती है जैसे सेब की गुणवत्ता और मांग बनाम आपूर्ति की स्थिति.’
उन्होंने कहा, ‘राज्य ने जीएसटी में बढ़ोतरी की भरपाई के लिए सब्सिडी की घोषणा की और केंद्र के जरिए उर्वरक उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की है. सरकार हॉर्टिकल्चर बोर्ड भी बनाएगी जो किसानों की मांगों में से एक है. अन्य मसलों को हल करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है.’
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सेब उत्पादकों की शिकायत
हिमाचल में सेब की खेती के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र फल उत्पादन के तहत कुल क्षेत्रफल का 49 प्रतिशत है, जिस पर लगभग 1.7 लाख परिवार निर्भर हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेब की अर्थव्यवस्था 5,500 करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
सेब किसानों के लिए मुख्य समस्या इनपुट लागत में बढ़ोतरी रही है. चौहान ने दो कारकों का हवाला दिया, जिसमें पिछले साल पैकेजिंग सामग्री पर जीएसटी 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत करना शामिल है.
उन्होंने कहा, ‘अक्टूबर में बढ़ोतरी की घोषणा की गई थी लेकिन इसका असर इस सीजन में महसूस किया गया. ट्रे की कीमत 600 रुपये बढ़कर 850 रुपये प्रति 100 यूनिट हो गई है, जबकि एक कार्टन की कीमत 40 रुपये से बढ़कर 60 रुपये पहुंच गई है.’
चौहान ने कहा, ‘दूसरा कारक खुले बाजार में उर्वरकों की कीमतों का बढ़ जाना है. पहले सरकार अपने आउटलेट के जरिए कम दरों पर कीटनाशक और कवकनाशी उपलब्ध कराती थी लेकिन पिछले दो सालों से इसे भी बंद कर दिया गया है. सब्सिडी भी नहीं मिल रही है. पहले 50 किलो कीटनाशक की कीमत 255 रुपये थी, जो अब बाजार में 1,740 रुपये है. इससे खेती की लागत बढ़ गई है जबकि सेब की कीमत हर साल गिर रही है.’
सेब उत्पादक जम्मू और कश्मीर की तरह ही ए, बी और सी कैटेगरी के सेबों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) शुरू करने की मांग कर रहे हैं.
चौहान बताते हैं, ‘मार्किट इंटरवेंशन स्कीम (एमआईएस) के जरिए जम्मू और कश्मीर में ए ग्रेड के सेब को 60 रुपये, बी ग्रेड को 44 रुपये और सी ग्रेड के सेब को 24 रुपये किलो खरीदने के लिए दरें तय की गई थीं. लेकिन हिमाचल में सरकार के पास एमएसपी आधारित खरीद प्रणाली नहीं है. केवल राज्य की एजेंसी एपीएमसी जैम और जूस के लिए सी ग्रेड सेब को 10 रुपये प्रति किलो पर खरीदती है. जबकि खेती की लागत 40 से 50 रुपये प्रति किलो है. ए ग्रेड के सेब के लिए किसानों को महज 70-80 रुपये मिल रहे हैं. वहीं इन सेबों को अडानी खुले बाजार में 200 रुपये किलो बेचते हैं.
चिली और ईरान से सेब के आयात ने भी किसानों की मुश्किलें बढ़ाई हैं. चौहान ने कहा, ‘हमने मांग की है कि आयात शुल्क को 100 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए और हिमाचल प्रदेश हॉर्टिकल्चर प्रोड्यूस एंड प्रोसेसिंग कॉरपोरेशन (एचपीएमसी) और हिमफेड का 40 करोड़ रुपये का बकाया किसानों को जारी किया जाए.’
एमएसपी स्कीम को लेकर प्रूथी ने कहा, ‘जम्मू और कश्मीर स्कीम सिर्फ कोविड के समय के लिए थी. इसलिए हिमाचल के लिए इस तरह की मांग तर्कसंगत नहीं है.’
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किसानों के साथ ‘संवाद की कमी’
मौजूदा समय में भाजपा के पास शिमला के प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से केवल दो सीटें हैं.
हिमाचल भाजपा के एक दूसरे वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ‘बड़ी समस्या सरकार की किसानों के साथ संवाद की कमी है. सीएम ने सेब उत्पादक संघ के साथ सिर्फ एक बैठक की है लेकिन चुनावी साल में यह काम नहीं करेगी.’
नेता ने बताया, ‘बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का सेब उत्पादकों से कोई लेना-देना नहीं है. वह उनके साथ नियमित रूप से बातचीत नहीं करते हैं. इससे पहले वाले बागवानी मंत्री नरेंद्र ब्रगटा सेब बेल्ट से थे. उनके समय में इस तरह का विरोध कभी नहीं हुआ. वह समस्याओं को दूर करने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करते थे.’
पिछले साल हिमाचल विधानसभा उपचुनाव में तीन सीटें और मंडी की एक महत्वपूर्ण लोकसभा सीट पर काबिज कांग्रेस सेब उत्पादकों की चिंताओं को ‘अनदेखा’ करने के लिए भाजपा सरकार पर निशाना साध रही है. विपक्षी दल ने आश्वासन दिया है कि सत्ता में लौटने के बाद किसानों के सभी मुद्दों का समाधान किया जाएगा.
भाजपा के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘अधिकांश किसान संघ के नेता कांग्रेस या वामपंथी पृष्ठभूमि से हैं, जबकि दक्षिणपंथी लिंक वाले नेताओं का यहां कम प्रभाव है.’
नेता ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का जिक्र किया, जिनकी जड़ें शिमला जिले में थीं और कांग्रेस सरकार में राज्य के पूर्व बागवानी मंत्री विद्या स्टोक्स भी सेब उत्पादक थे. भाजपा नेता ने कहा, ‘एक अन्य सेब उत्पादक और ठियोग निर्वाचन क्षेत्र के सीपीएम विधायक राकेश सिंघा की भी एसोसिएशन में हिस्सेदारी है. यह एक और कारण है कि राज्य सरकार के आश्वासन के बावजूद विरोध लंबे समय से चल रहा है.’
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