नई दिल्ली: उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले कैंप ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग में एकनाथ शिंदे गुट की उनके ‘असली’ शिवसेना की पहचानने की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की है.
याचिका दाखिल करने वाले शिवसेना के जनरल सेक्रेटरी सुभाष देसाई ने कहा कि चुनाव आयोग मामले पर फैसला नहीं दे सकता है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट में निलंबित है.
यह याचिका चुनाव आयोग की उस कार्यवाही के खिलाफ दायर की गई है जिसमें शिंदे खेमे ने दावा किया है कि वो असली शिवसेना हैं और इसी रूप में उन्हें पहचान दी जाए. साथ ही उन्होंने पार्टी के चुनाव चिन्ह धनुष और बाण पर दावा किया है.
इसने याचिका में भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को एक पक्ष के रूप में शामिल करने की मांग की, जो एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में आमंत्रित करने के महाराष्ट्र के राज्यपाल के फैसले को चुनौती देता है.
यह कहा गया है कि भले ही 20 जुलाई को अध्यक्ष की ओर से पेश वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया गया था कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामले में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी, शिंदे-गुट ने चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत कार्यवाही शुरू की है. चुनाव आयोग द्वारा ‘असली शिवसेना’ के रूप में मान्यता की मांग और शिवसेना को आवंटित चुनाव चिह्न का उपयोग करने के अधिकार का भी दावा है.
आवेदन में कहा गया है कि 22 जुलाई को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को एक नोटिस दिया गया था जिसमें कहा गया था कि एकनाथ शिंदे और कुछ अन्य लोगों ने ‘असली’ शिवसेना के रूप में पहचाने जाने की मांग की है और चुनाव चिन्ह पर अधिकार का दावा कर रहे हैं.
इसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के आदेश की पूरी अवहेलना करते हुए कार्यवाही शुरू की थी.
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले समूह ने कहा कि शिंदे-गुट को शिवसेना के विधायक के रूप में नहीं माना जा सकता है और उनके दावे और हलफनामों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े कुछ मुद्दों पर विचार के लिए एक बड़ी संवैधानिक बेंच की जरूरत हो सकती है.
भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की बें ने महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा था कि महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे उन मामलों में उत्पन्न होते हैं जिनके लिए एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय की आवश्यकता हो सकती है.
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