नई दिल्ली: राज्य के पुलिस प्रमुख गौरव यादव ने दिप्रिंट को बताया कि पंजाब में कानून-व्यवस्था बिगड़ने के आरोप और कुछ नहीं बल्कि गलत धारणा बनाने का प्रयास है और तथ्यों से परे हैं.
उनकी टिप्पणी इस बीच आई है जब राज्य में आम आदमी पार्टी (आप) के सत्ता में आने के बाद से कानून व्यवस्था चरमराने के दावे किए जा रहे हैं. 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी यादव को 4 जुलाई को पंजाब का कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त किया गया था.
डीजीपी यादव ने बताया, ‘सच तो यह है कि साल 1989-1990, पंजाब में कानून और व्यवस्था के संबंध में सबसे खराब था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. हमारे यहां अब भी बिहार से बहुत कम हत्याएं होती हैं. पंजाब में सबसे कम आंकड़े है. राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था के बारे में अब हम जो कुछ भी सुन रहे हैं, वह सिर्फ बनाई गईं गलत धारणा हैं जो तथ्यों से परे है.’
पंजाब पुलिस के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2021 में राज्य में मार्च, अप्रैल, मई और जून के चार महीनों में 19 गैंगस्टरों की हत्या की सूचना दर्ज की गई थी. 2022 में इसी अवधि में यह आंकड़ा 20 था.
जबकि पिछले साल मार्च से जून के बीच राज्य में हत्या के कुल 190 मामले दर्ज किए गए थे. इस साल भी इन चार महीनों में यह संख्या 200 तक पहुंची है.
इसी तरह इस साल मार्च, अप्रैल, मई और जून में स्नैचिंग के 63 मामले सामने आए जबकि 2021 में उन चार महीनों में ऐसे 61 मामले सामने आए थे.
हालांकि इन चार महीनों के दौरान राज्य पुलिस ने शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की संख्या में गिरावट दर्ज की है. 2021 में यह आंकड़ा 67 था. लेकिन इस साल सिर्फ 47 मामले रिपोर्ट किए गए.
मुख्यमंत्री का पद संभालने के दो महीने बाद भगवंत मान की आप सरकार को इस साल मई में कलाकार सिद्धू मूसेवाला की दिनदहाड़े हत्या से निपटने के लिए तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा.
वहीं मोहाली में राज्य पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर आरपीजी हमले और पटियाला में दो समूहों के बीच संघर्ष के दौरान एक कबड्डी खिलाड़ी की मौत के साथ-साथ राज्य में कट्टरपंथी तत्वों के फिर से सिर उठाने के दावों ने कथित तौर पर पिछले महीने सीएम मान की खाली सीट पर हुए संगरूर के संसदीय उपचुनाव में आप की हार में योगदान दिया है.
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रंगदारी के मामलों में उछाल
पंजाब पुलिस के पास उपलब्ध आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले साल मार्च और जून के बीच जबरन वसूली के चार मामलों की तुलना में इस साल इन महीनों के दौरान अब तक कुल 20 मामले दर्ज किए जा चुके हैं.
हालांकि पुलिस का कहना है कि मूसेवाला हत्याकांड के मुख्य आरोपी लॉरेंस बिश्नोई सहित गैंगस्टरों के सहयोगी होने का दावा करने वाले इन जबरन वसूली कॉल करने वालों में से अधिकांश ‘फर्जी’ पाए गए हैं.
डीजीपी यादव ने दिप्रिंट को बताया: ‘सिद्धू मूसेवाला की हत्या के तुरंत बाद लोगों को धमकी देने और जबरन वसूली के लिए की जाने वाली कॉल अचानक से काफी बढ़ गई. चूंकि लोगों के मन में डर था और असामाजिक तत्वों ने उनके इसी डर का फायदा उठाया. उन्होंने गिरोह से जुड़े होने का दावा करते हुए कॉल करना शुरू कर दिया.
उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि छोटे-छोटे चोरों ने भी गैंगस्टर के रूप में जबरन वसूली करना शुरू कर दिया. जांच के दौरान इनमें से 70 से 80 फीसदी से ज्यादा कॉल फर्जी पाए गए.’
पंजाब पुलिस ने पिछले दो महीनों में कई छोटे गिरोहों का भंडाफोड़ किया है जो कथित तौर पर लॉरेंस बिश्नोई-गोल्डी बराड़ गिरोह के सदस्य के रूप में व्यवसायियों से पैसे वसूल रहे थे.
इसी मामले में लुधियाना पुलिस ने जून में दो लोगों को गिरफ्तार किया था. ये दोनों गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के सहयोगी होने का दावा करते हुए जबरन कॉल करके पूरे पंजाब में लोगों से कम से कम एक करोड़ रुपये की ठगी कर रहे थे.
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सिख उग्रवाद के मामले
मोहाली में राज्य पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर आरपीजी हमले में कथित रूप से प्रतिबंधित संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के शामिल होने की हाल की घटनाओं के मद्देनजर खुफिया एजेंसियों का मानना है कि ये घटनाएं पंजाब में ‘खालिस्तानी आंदोलन के फिर से सिर उठाने’ का संकेत देती हैं.
लेकिन राज्य की खुफिया इकाई से मिले आंकड़े, सिख चरमपंथ के बढ़ते मामलों की ओर इशारा नहीं करते हैं.
दिप्रिंट के पास उपलब्ध इस डेटा से पता चलता है कि पंजाब ने नवंबर 2021 और मार्च 2022 के बीच ऐसी चार घटनाएं देखीं. उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. इसके विपरीत आप के सत्ता में आने के बाद इस साल मार्च और जुलाई के बीच केवल एक ऐसी घटना की सूचना मिली है.
नवंबर 2021 और मार्च 2022 के दौरान रिपोर्ट की गई चार घटनाएं हैं: 7 नवंबर को नवांशहर में अपराध जांच एजेंसी (सीआईए) के कार्यालय पर ग्रेनेड हमला, 21 नवंबर को पठानकोट में त्रिवेणी गेट के पास ग्रेनेड हमला, 3 दिसंबर को भुंदर में डेरा सच्चा सौदा के एक अनुयायी की हत्या, 23 दिसंबर को लुधियाना कोर्ट कॉम्प्लेक्स में बम धमाका.
नवंबर 2021 और मार्च 2022 के बीच पंजाब में प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा जारी ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ के आह्वान के कारण छह घटनाएं देखी गईं. हालांकि इस साल मार्च में आप के सत्ता में आने तक राज्य में ऐसी 16 घटनाएं हो चुकी थीं, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है.
डेटा से यह भी पता चलता है कि नवंबर 2021 से मार्च 2022 के बीच पंजाब में एसएफजे से जुड़े दो आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया गया था. अधिकारियों ने इस साल मार्च और जुलाई के बीच ऐसे तीन मॉड्यूल पर नकेल कसी है.
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‘गैंगस्टरों पर फोकस’ और PCOCA
पंजाब के डीजीपी गौरव यादव ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य के पुलिस प्रमुख के रूप में पदभार संभालने के बाद से वह ‘जमीनी स्तर पर पुलिस को मजबूत करने’ के लिए बुनियादी चीजों पर ध्यान दे रहे हैं.
उन्होंने बताया, ‘हम नींव को मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम कर रहे हैं. इसमें बेहतर पेट्रोलिंग, बेहतर पुलिस थाने जैसी जमीनी स्तर पर की जाने वाली गतिविधियां शामिल है, ताकि लोगों को सिस्टम में विश्वास बने.’
डीजीपी यादव ने कहा, ‘एक नया एलीट स्क्वाड जिसे हम गैंगस्टर विरोधी टास्क फोर्स कहते हैं, गिरोहों, गैंगस्टरों से निपटने के लिए बनाया गया है. टीम नेटवर्क का भंडाफोड़ करने, गिरफ्तारी करने के लिए अथक प्रयास कर रही है. बहुत कम समय में उन्होंने बड़ी सफलता हासिल की है.’
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, गैंगस्टर विरोधी टास्क फोर्स ने अब तक 44 मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने और इस प्रक्रिया में 155 हथियार बरामद करने के अलावा गिरोह से कथित संबंधों के चलते 196 लोगों को गिरफ्तार किया है.
पंजाब पुलिस के सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि आप सरकार संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए पंजाब संगठित अपराध नियंत्रण कानून (पीसीओसीए)- महाराष्ट्र में इसी तरह के कानून की तर्ज पर (मकोका)- लाने की प्रक्रिया में है.
सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि इस कानून का मसौदा तैयार है और अधिकारियों ने इसे मंजूरी दे दी है. इसे अगले संसद सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.
पंजाब पुलिस का मानना है कि प्रस्तावित पीसीओसीए जैसा सख्त कानून उन गैंगस्टरों पर लगाम लगा सकता है, जिनके संबंध खुफिया एजेंसियों की नजर में ड्रग पेडलर्स और खालिस्तानी आतंकवादियों से हैं.
संगठित अपराध में शामिल होने के दोषी पाए जाने वालों के लिए एक साल तक की जमानत के बिना नजरबंदी के लिए आधार प्रस्तुत करने के अलावा, मसौदा कानून यह भी प्रस्तावित करता है कि पीसीओसीए लागू होने पर एक डीआईजी-रैंक अधिकारी के सामने दिए गए एक स्वीकारोक्ति बयान को अदालत में स्वीकार्य माना जाएगा.
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